How to get more fruits with every picking in okra

  • भिन्डी की फसल में अधिक तुड़ाई लेने के लिए बुवाई के 2 सप्ताह पहले खेत में सडी हुई गोबर की खाद 10 टन/एकड़ की दर से खेत में समान रूप से मिला दे, जिससे पोधो में पोषक तत्वों को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है
  • बुवाई के समय उर्वरको के साथ नाईट्रोजन स्थिरीकरण एवं फास्फोरस घुलनशील जीवाणु की मात्रा 2 किलो/एकड़ की दर से खेत में अच्छी तरह से मिला दे।
  • नाईट्रोजन (60-80 किलो/ एकड़ ) की आधी मात्रा बुवाई के समय तथा शेष मात्रा बुवाई के 30 दिन बाद दे, जिससे भिन्डी में प्रति पोधे प्रति शाखा में फलो की संख्या में वृद्धि अधिक होती है और 50 % तक उत्पादन बढ़ सकता है।
  • भिंडी की फसल बुवाई के लगभग 40 से 50 दिन बाद फल देना शुरु कर देती है।
  • पहली तुड़ाई के पहले केल्सियम नाइट्रेट+बोरान @ 10 किलो/एकड़, मैग्नीशियम सल्फेट 10 किलो/एकड़ + यूरिया @ 25 किलो/एकड़ को 1 किलो नाईट्रोजन स्थिरीकरण एवं फास्फोरस घुलनशील जीवाणु के साथ दे ।
  • भिंडी  में फुल बनते समय अमोनियम सल्फेट 55-70 किलो/एकड़ की दर से दे जो फल के विकास के लिए अति आवश्यक है।

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How to Control Stem Borer in Sweet Corn

  • यह मीठी मक्का का प्रमुख और अधिक हानि पहुँचाने वाला कीट है|
  • तना छेदक कीट की इल्ली मक्के के तने के बीच घुसकर सुरंग बना देती है|
  • यह इल्ली तने में घुसकर ऊतकों को खाती रहती है| इस कारण पौधो में जल और भोजन का संचरण नहीं हो पाता है|
  • पौधा धीरे-धीरे पीला पड़कर सूखने लग जाता है|
  • अंत में पौधा सूखकर मर जाता है|
  • प्रबंधन-
  • फसल की बोआई के 15 -20 दिन बाद फ़ोरेट 10%जी 4 किलो/एकड़ या फिप्रोनिल 0.3% जी 5 किलो/एकड़ को 50 किलो रेत में मिलाकर जमीन में दे एवं साथ ही सिंचाई करें|
  • यदि दानेदार कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया गया हैं तो नीचे दिए गए किसी एक कीटनाशक का छिड़काव करें|
    • बोआई के 20 दिनों बाद बाइफेंथ्रीन 10% EC 200 मिली प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें|
    • या बोआई के 20 दिनों बाद फिप्रोनिल 5% SC 500 मिली प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें |
    • करटाप हाईड्रो क्लोराईड 50% SP 400 ग्राम /एकड़ का स्प्रे करें|

 

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Basis for selection of Cotton vareity

मिट्टी के प्रकार के आधार पर :-

  • हल्की से मध्यम मिट्टी के लिए :- नीयो  (रासी)।
  • भारी मिट्टी के लिए :-Rch 659 BG II, मैग्ना (रासी), मोक्ष बीजी-II (आदित्य), सुपर कॉट Bt-II (प्रभात)

सिचाई के आधार पर :-

  • वर्षा आधारित:- जादु (कावेरी), मोक्ष बीजी 2 (आदित्य)।
  • अर्ध सिंचित: – नीयो, मैग्ना (रासी), मनीमेकर (कावेरी), सुपर कॉट Bt- II (प्रभात)।
  • सिंचित: – Rch 659 BG II (रासी), जादू (कावेरी)।

पौधे के बढने के स्वभाव के  आधार पर:

  • सीधी बढने वाली किस्मे: – जादु (कावेरी), मोक्ष बीजी-II (आदित्य), भक्ति (नुजिवीडु)।
  • फैलने वाली किस्मे:-  Rch 659 BG-II (रासी), सुपर कॉट Bt- II (प्रभात)।

फसल समय अवधि के आधार पर : –

  • अगेती किस्में (140-150 दिन)
  • Rch 659 BG-II (रासी)।
  • भक्ति (नुजिवीडु)।
  • सुपर कॉट Bt- II (प्रभात)।

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Importance of Microbes in Soil (ZnSB )

  1. भारत की कृषि योग्य भूमि में 50% तक ज़िंक की कमी पाई जाती हैं जो की 2025 तक 63% तक हो जाएगी|
  2. जिंक एक अनिवार्य सुक्ष्म पोषक तत्व है जो पौधों के विकास के लिए आवश्यक हैं। परन्तु यह मिट्टी में अनुपलब्ध रूप में रहता हैं जिसे पौधे आसानी से उपयोग नहीं कर पाते |
  3. यह जीवाणु पौधों को जिंक उपलब्ध करवाते हैं परिणामस्वरूप धान में ‘खैरा रोग’ का नियंत्रण करते हैं, फसल की उपज और गुणवत्ता की वृद्धि में सहायक होते हैं, मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार और हार्मोन की सक्रियता को बढ़ाते हैं और प्रकाश संश्लेषण की गतिविधि को भी बढ़ाते हैं।
  4. जिंक घोलने वाले जीवाणु मिट्टी में कार्बनिक अम्ल उत्पन्न करते हैं जिससे अघुलनशील जिंक (जिंक सल्फाइड, जिंक ऑक्साइड और जिंक कार्बोनेट), Zn+ (पौधों के लिए उपलब्ध रूप ) में बदल जाता हैं इसके अलावा ये मिट्टी के pH का संतुलन बनाए रखते हैं।
  5. जिंक घुलनशील जीवाणु 2 किलो/ एकड़ की दर से 50 किलो अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद में मिला कर खेत में बुरकाव करे |

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An Improved Variety of Soybean:- JS 20-29

  • जेएस 20-29 एक नई किस्म हैं जो JNKVV  द्वारा विकसित की गई हैं यह ज्यादा उपज लगभग 10 -12 क्विण्टल/एकड़ होती हैं |
  • इस किस्म की अंकुरण क्षमता अधिक होती हैं तथा यह विभिन्न रोगो के प्रति प्रतिरोधी हैं |
  • पत्ती नुकीली और अण्डाकार  गहरे हरे रंग की होती हैं । शाखाएं तीन से चार, पौधा मध्यम लम्बाई लगभग 100 सेमी का होता हैं
  • फूल का रंग सफ़ेद होता हैं |
  • यह  किस्म लगभग 90-95  दिन में पक कर तैयार हो जाती हैं एवं इसके 100 दानो का वजन 13 ग्राम होता हैं |   

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Save cauliflower to diseases – May cause serious damage

  • फफूंद जनित रोगों के कारण उत्पादन में लगभग 4 – 25 % तक नुकसान हो सकता हैं |
  • फूलगोभी भारत की महत्वपूर्ण सब्जी वाली फ़सलों में से एक है।
  • फूलगोभी में लगने वाले रोग जैसे :- काली सड़ांध, फूल गलन, मृदुल आसिता, उकटा आदि रोग फसल की गुणवत्ता को कम करते हैं और गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं।
  • रोगो के नियंत्रण के लिए प्रबंधन अधिक महत्वपूर्ण है: –
  • काली सड़ांध और फूल गलन से बचाने के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन @ 20 ग्राम/एकड़ और कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% @ 300 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें।
  • फफूंद से होने वाले रोगों की रोकथाम के लिए मेन्कोजेब 75% डब्लूपी @ 400 ग्राम / एकड़ या कार्बेन्डाजिम 50% @ 300 ग्राम /एकड़ टेबुकोनाजोल 50% + ट्राइफ्लोक्सिस्ट्रोबिन 25% डब्लूपी @ 100-120 ग्राम / एकड़ का छिड़काव करें।

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How to Take care of insect pests & diseases at bud initiation stage of mungbean

    • मूंग की फसल का अधिक उत्पादन लेने के लिए कीट एवं बीमारियों का प्रबंधन करना अति आवश्यक हैं |
    • कीट और बीमारियों से मूंग की फसल में लगभग 70 % तक उत्पादन में नुकसान हो सकता हैं |
    • गर्मियों के मौसम में, फुल व फली बनते समय, फल की इल्ली, तम्बाकू की इल्ली आदि  नुकसान पहुँचाते हैं |
    • मूंग भी बाक़ी फलियों वाली फसल की तरह, फफूंद,जीवाणु और वायरस द्वारा होने वाले रोगों के प्रति अतिसंवेदनशील होती हैं।पत्तियों,तने एवं जड़ पर झुलसा रोग, पीलापन और जड़ सडन के लक्षण फसल की बढती हुई अवस्था पर देखे जा सकते हैं |
    • कीटो के प्रभावी नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफोस 36% एसएल @ 300 मिली/एकड़,  इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी @ 100 ग्राम/एकड़ (फली की इल्ली के लिए) तथा फ्लुबेंडामाइड  20% डब्लू जी 100 ml/एकड़ या इंडोक्साकारब 14.5 % एस सी @ 160-200 ml/एकड़ (तंबाकू की इल्ली के लिए ) के लिए कर सकते हैं |
    • रोग नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम 50% डब्ल्यूपी @ 300 ग्राम/ एकड़ (झुलसा रोग के लिए) और थायोफनेट मिथाइल 70% डब्ल्यू पी @ 250-300 ग्राम प्रति एकड़ ( मिटटी जनित रोगो के लिए ) का उपयोग करें।

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Importance of Iron in Crop Production

  • फसल वृद्धि और उत्पादन के लिए लौह तत्व (Fe) आवश्यक माना जाता हैं। पौधे में कई एन्ज़इम्स जो पौधे में ऊर्जा हस्तांतरण तथा नाइट्रोजन के फिक्ससेसशन के लिए उपयोगी होते हैं का एक घटक हैं।
  • लौह तत्व की कमी आमतौर पर अधिक pH वाली मिट्टी में देखी जाती है क्योंकि ऐसी मिट्टी में लौह तत्व पौधे को उपलब्ध नहीं हो पाता।
  • नई पत्तियाँ क्लोरोफिल या पर्णक विहिन दिखाई देती है ।
  • पत्तियाँ नीचे से हल्की-पीली, चितकबरी रंग की होना शुरु हो जाती है, साथ ही चित्तकबरापन मध्य शिराओं के ऊपर व नीचे की ओर बढ़ने लगता है ।
  • इसकी कमी को @150-200g/एकड़ की दर से  चिलेटेड आयरन का घोल बनाकर, पत्तियों पर छिड़काव करके दूर कर सकते है ।

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Kasie bachaein baigan ko fruit borer se

  • इस कीट के द्वारा नुकसान रोपाई के तुरन्त बाद से लेकर अंतिम तुड़ाई तक होती है।
  • यह उपज को 70% तक कम कर सकता है।
  • गर्म वातावरणीय दशा में फल एवं तना छेंदक इल्ली की संख्या में अधिक वृद्धि होती है।
  • प्रारंभिक अवस्था में छोटी गुलाबी इल्ली टहनी एवं तने में छेंद  करके प्रवेश करती है। जिसके कारण पौधे की शाखाएँ सूख जाती है।
  • बाद की अवस्था में इल्ली फलों में छेंद कर प्रवेश करती है और गूदे को खा जाती है।

प्रबंधन:

  • फेरोमोन ट्रैप @ 5/एकड़ की दर से खेत में लगाईये |
  • एक ही खेत में लगातार बैंगन की फसल न लेते हुये फसल चक्र अपनाये।
  • छेद हुये फलों को तोड़कर नष्ट कर दें।
  • कीट को नियंत्रित करने के लिए रोपाई के 35 दिनों के बाद से पखवाड़े के अंतराल पर साइपरमेथ्रिन 10% ईसी @ 300ml/एकड़ या लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 5% ईसी @ 200-250 ml/एकड़ की दर फसल पर छिड़काव करें।
  • कीट के प्रभावशाली रोकथाम के लिये कीटनाशक के छिड़काव के  पूर्व छेंद किये गये फलों की तुड़ाई कर लें।

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How to maintain healthy chilli nursery

एक मुख्य समस्या :-डम्पिंग ऑफ

  • डम्पिंग ऑफ बीमारी के लक्षण नर्सरी की शुरुआती दिनों में दिखाई देते है |
  • डम्पिंग ऑफ बीमारी का प्रभाव कभी-कभी बीजो पर भी दिखाई देता है,ध्यान से मिट्टी को खोदने पर हमें नरम और सड़े हुए बीज दिखाई देते है |
  • नर्सरी पौधे के तने के ऊपर पनीले धब्बे आने के बाद तना भूरा दिखाई देता है और अंत में पौधा सिकुड़कर मर जाता है|
  • इस बीमारी के संक्रमण के लिए उपयुक्त परिस्थितियां –
  1. नमी की मात्रा (90-100%) |
  2. मिट्टी का तापमान (20-28°C) |
  3. जल निकासी की उचित व्यवस्था न होना |

प्रबंधन –   

  • बेहतर जल निकासी के साथ उपयुक्त अन्तराल पर सिंचाई करे |
  • नर्सरी बेड की तैयारी के समय 0.5 ग्राम/वर्ग मीटर की दर से थियोफैनेट मिथाइल की मात्रा को मिट्टी में मिलाये  |
  • रोग के अत्यधिक आक्रमण होने पर 20 दिन बाद मेटालैक्सिल-एम (मेफानोक्सम) 4%+मैनकोजेब 64% डब्ल्यू पी 500 ग्राम/एकड़ का स्प्रे करना चाहिए |

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