कद्दू, तरबूज और खरबूज में बदलते मौसम के प्रभाव से होने वाली गम्मी तना झुलसा रोग की पहचान कैसे करें?

  • इस बीमारी के कारण पौधे की जड़ को छोड़कर अन्य सभी भाग संक्रमित हो जाते हैं।
  • पौधे की पत्ती के किनारों पर पीलापन और सतह पर जल भरे हुए धब्बे दिखाई देते हैं।
  • इस रोग से ग्रसित पौधे के तने पर घाव बन जाते हैं जिससे लाल-भूरे, काले रंग का चिपचिपा पदार्थ (गम) निकलता है।
  • तने पर भूरे-काले रंग के धब्बे बन जाते जो बाद में आपस में मिलकर बड़े हो जाते हैं।
  • प्रभावित पौधे के बीजों पर मध्यम-भूरे, काले धब्बे पड़ जाते हैं।
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खरबूजे की फसल को फ्यूसैरियम क्राउन और फुट रोट रोग से कैसे बचाएँ

  • इन रोगों से संक्रमित पौधों को नष्ट करें।
  • रोग मुक्त बीज का उपयोग करें।
  • बुआई से पहले कार्बेन्डाजिम @ 2 ग्राम/किलोग्राम बीज के साथ बीजोपचार करें।
  • जब खरबूजे के पौधे पर बीमारी दिखाई दे तो प्रोपिकोनाजोल @ 80-100 मिली/एकड़ का प्रयोग करें।
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खरबूजे की फसल मे फ्यूसैरियम क्राउन और फुट रोट रोग को कैसे पहचाने

  • रेतीली मिट्टी में यह रोग अधिक पाया जाता है।
  • पौधे के ऊपरी भाग तथा तने के पास वाली जड़ के ऊपर भूरे रंग के संकेन्द्रीय धब्बे दिखाई देते हैं।
  • इसकी वजह से सड़न धीरे – धीरे तने के आसपास तथा पौधे के अन्य भागो में फैलने लगती है।
  • पौधे का प्रभावित भाग हल्का नरम तथा शुष्क दिखाई देने लगता है।
  • प्रभावित पौधा मुरझाकर सूखने लगता है।
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गिलकी में मोज़ेक वायरस रोग का प्रबंधन:

  • मोजेक वायरस से बचाव के लिए खेत में उपस्थित खरपतवार आदि को उखाड़कर नष्ट करें।
  • फसल चक्र अपनाएँ।
  • मोज़ेक वायरस से बचाव के लिए सवेंदनशील मौसम व क्षेत्रों में फसल को ना उगायें।
  • 10-15 दिन के अंतराल पर एसिटामिप्रिड 20% एसपी @ 100 ग्राम/एकड़ का स्प्रे करें साथ ही स्ट्रेप्टोमाईसीन 20 ग्राम प्रति पम्प का स्प्रे करें तथा शुरुआती संक्रमण से फसल को बचाएँ।
  • 10-15 दिन के अंतराल पर ऐसीफेट 75% एसपी @ 80-100 ग्राम/एकड़ प्रति पम्प स्प्रे करें साथ ही स्ट्रेप्टोमाईसीन 20 ग्राम प्रति एकड़ का स्प्रे करें तथा शुरुआती संक्रमण से फसल को बचाएँ।
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‘कृषि में महिलाएं’ विषय पर हैदराबाद में दो दिवसीय राज्य स्तरीय बैठक

भारत में कृषि क्षेत्र में विशेष रूप से महिलाएं बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। परंतु न केवल समाज के द्वारा बल्कि स्वयं महिलाओं के द्वारा भी कृषि क्षेत्र में उनके योगदान को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। 

कृषि क्षेत्र में महिलाओं के इसी योगदान को उभारने के लिए, 6 मार्च से हैदराबाद में एक राज्य-स्तरीय बैठक आयोजित की जा रही है। इस दो दिवसीय बैठक का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण भारत में महिलाओं, विशेष रूप से कृषि क्षेत्र की महिलाओं को होने वाली समस्याओं पर ध्यानाकर्षित करवाना है। यहां कृषि संबंधित कई क्षेत्रों के विशेषज्ञ अपने शोध-पत्र प्रस्तुत करेंगे। इसके अलावा यहाँ आपको विभिन्न किसान यूनियनों, अकादमिक संस्थानों और चर्चा में भाग लेने वाले वैज्ञानिकों के प्रतिनिधि भी मिलेंगे।

एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस आयोजन के बारे में बात करते हुए, तेलंगाना रायथू संघम के उपाध्यक्ष, अरीबंदी प्रसाद राव ने कहा कि “महिलाएं कृषि में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और यही समय है जब हम कृषि क्षेत्र में उनको आने वाली समस्याओं की पहचान करें और उन्हें दूर करें।”

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किसानों के लिए खुशख़बरी: 15 मार्च से हटेगा प्याज के निर्यात पर लगा बैन

पिछले साल प्याज की बढ़ती कीमतों को देखते हुए प्याज के निर्यात पर सरकार ने प्रतिबंध लगा दिए थे, पर अब परिस्थितियां बदल गई हैं क्योंकि इस बार प्याज की अच्छी पैदावार होने का अनुमान है। इसी को देखते हुए केंद्र सरकार ने प्याज के निर्यात पर लगा बैन हटाने का निर्णय लिया है।

इस बाबत विदेश व्यापार महानिदेशालय की तरफ से सोमवार को एक अधिसूचना जारी की गई है जिसके अनुसार, आगामी 15 मार्च से प्याज निर्यात पर लगा बैन निरस्त कर दिया गया है। इसके साथ साथ प्याज के लिए निर्धारित न्यूनतम निर्यात मूल्य की शर्त भी अब खत्म कर दी गई है।

इस अधिसूचना में यह कहा गया है कि नियमों में बदलाव के साथ प्याज की सभी किस्मों (बैंगलोर रोज और कृष्णापुरम किस्म को छोड़ कर) को वर्तमान ‘निषिद्ध’ श्रेणी की सूची से हटाकर अब ‘मुक्त’ श्रेणी की सूची में डाला गया है। इस अधिसूचना के बाद 15 मार्च से प्याज निर्यात पर लगा प्रतिबंध निरस्त हो जाएगा। इसके साथ साथ अब प्याज के निर्यात पर किसी प्रकार के कोई लेटर ऑफ क्रेडिट या फिर न्यूनतम निर्यात मूल्य की शर्त पूरी करने की भी जरुरत नहीं होगी।

सरकार के इस फैसले से किसानों को लाभ मिलेगा । इस बार किसानों को प्याज का अच्छा उत्पादन हुआ है और निर्यात पर से प्रतिबंध हटने की वजह से उन्हें प्याज की अच्छी कीमत मिलने की उम्मीद है। 

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गिलकी में मोज़ेक वायरस से होने वाले रोग की पहचान:

image source -https://d2yfkimdefitg5.cloudfront.net/images/stories/virtuemart/product/nurserylive-sponge-gourd-jaipur-long.jpg
  • यह वायरस जनित रोग एफिड कीट द्वारा फैलती है, जो पौधे का रस चूसकर बीमारी फैलाते हैं।
  • इससे ग्रसित पौधे की नयी पत्तियों की शिराओं के बीच में पीलापन आ जाता है, एवं पत्तियाँ बाद में ऊपर की तरफ मुड़ जाती हैं।
  • पुरानी पत्तियों के ऊपर उभरे हुए गहरे रंग की फफोलेनुमा संरचना दिखाई देती है। प्रभावित पत्तियाँ तन्तुनुमा हो जाती हैं।
  • पौधा आकार में छोटा हो जाता है बीमारी से पौधे की वृद्धि, फल-फूल के विकास एवं उपज पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • इसके समस्या से ज्यादा प्रभावित पौधे पर फल नहीं लगते हैं।
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तरबूज की फसल में मृदुरोमिल आसिता रोग का नियंत्रण

  • प्रभावित पत्तियों को तोड़कर नष्ट कर दें।
  • रोग प्रतिरोधी किस्मों को लगाएं।
  • फसल चक्र को अपना कर एवं खेत की सफाई कर रोग की आक्रामकता को कम कर सकते हैं।
  • मेटालैक्सिल 4% + मैंकोजेब 64% WP @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से घोल बना कर जड़ों के पास छिड़काव करें।
  • थायोफनेट मिथाइल 70% WP 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • सूडोमोनास फ्लोरसेंस 500 ग्राम/एकड़ की दर से प्रति एकड़ छिड़काव करें।
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FPO योजना से किसान को होगा फायदा, जानें इससे जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां

केंद्र सरकार की तरफ से कृषि विकास हेतु आने वाले पांच वर्ष में 5000 करोड़ रुपये की बड़ी रकम खर्च की जायेगी। दरअसल केंद्र सरकार किसानों को आर्थिक मदद देकर समृद्ध बनाने की योजना पर चल रही है। अब किसान उत्‍पादक संगठन (FPO-Farmer Producer Organisation) बना कर किसान खुद का भविष्य सवारेंगे। इसके लिए सरकार की तरफ से 10,000 नए किसान उत्पादक संगठन बनाये जाने की मंजूरी दे दी है। इसकी शुरुआत पीएम मोदी ने उत्तरप्रदेश के चित्रकूट से किया है और इसके अंतर्गत आने वाले 5 वर्ष में इस पर 5000 करोड़ रुपये खर्च किये जाएंगे।

क्या है FPO? 

FPO-Farmer Producer Organisation अर्थात कृषक उत्पादक कंपनी वैसे किसानों का समूह होता है जो कृषि उत्पादन के काम में हो और आगे चल के खेती से संबंधित व्यावसायिक गतिविधियाँ चलाने में सक्षम हो। आप भी एक समूह बना कर कंपनी एक्ट में रजिस्टर्ड हो सकते हैं।

कैसे होगा किसानों को फायदा?

कृषक उत्पादक कंपनी लघु एवं सीमांत किसानों का समूह होगा और इससे जुड़े हुए किसानों को अपने उत्पादन के लिए बाजार के साथ साथ खाद, बीज, दवा तथा खेती के उपकरण आदि भी आसानी से सस्ती दरों पर मिल पाएंगे।

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तरबूज की फसल में मृदुरोमिल आसिता रोग की पहचान 

  • पत्तियों की निचली सतह पर जल रहित धब्बे बन जाते हैं।
  • जब पत्तियों के ऊपरी सतह पर कोणीय धब्बे बनते है प्राय: उसी के अनुरूप ही निचली सतह पर जल रहित धब्बे बनते हैं।
  • धब्बे सबसे पहले पुरानी पत्तियों पर बनते हैं और धीरे धीरे यह नई पत्तियों पर भी बनने लगते हैं।
  • इस समस्या से ग्रसित लताओं पर फल नहीं लगते हैं।
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