गोभी के अच्छे उत्पादन के लिए उन्नत बीजों का चुनाव है जरूरी

How to choose the right seed in cabbage crop
  • गोभी वर्गीय फसलों के बीज किस्मों के परिपक्व होने के लिए तापमान एक बहुत महत्वपूर्ण कारक होता है।
  • हर किस्म के बीज की बुआई 27 डिग्री तक के तापमान की आवश्यकता होती है।
  • वैसे तापमान की आवश्यकता के अनुसार गोभी की किस्मों को चार प्रकारों में विभाजित किया गया है।
  • इन चार किस्मों में जल्दी पकने वाली किस्मे, माध्यम पकने वाली किस्मे, माध्यम देरी से पकने वाली किस्मे और देरी से पकने वाली किस्मे होती हैं और इन्हीं बातों का ध्यान रख कर बीजों का चयन करना चाहिए।
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फूलगोभी की फसल में बोरान का होता है खास महत्व

Importance of Boron in cauliflower
  • फूलगोभी में सूक्ष्म तत्वों के प्रयोग से उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि होती है। इन तत्वों में बोरान प्रमुख है।
  • बोरोन की कमी से गोभी के फूल हल्की गुलाबी या भूरे रंग की हो जाती है जो खाने में कड़वी लगती है।
  • बचाव के लिए बोरेक्स या बोरान 5 किलोग्राम/एकड़ की दर से अन्य उर्वरकों के साथ खेत में डालें। यदि फसल पर बोरेक्स के 2-4 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें तो आशातीत उपज और अच्छे फूल प्राप्त होते हैं।
  • बोरोन फूलगोभी में फूल को खोखला और भूरा रोग होने से बचाता है तथा उपज में भी वृद्धि करता है।
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फसल अवशेषों से बनेगा ईंधन, मध्य प्रदेश सरकार कर रही है तैयारी

Fuel will be made from crop residues, Madhya Pradesh government is preparing

किसानों द्वारा खेतों में पराली जलाने से प्रदूषण के साथ साथ खेतों की उर्वरता भी कम हो रही है। इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए सरकार किसानों से पराली न जलाने का आग्रह करती रहती है। हालांकि अब इसी मसले पर मध्यप्रदेश सरकार नया कदम उठाने जा रही है जिससे इस समस्या का हमेशा के लिए समाधान हो सकता है।

मध्यप्रदेश में पराली को जलाने से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान को रोकने की योजना पर काम किया जा रहा है। इसके तहत राज्य में पराली से ईंधन बनाने की इकाइयां लगाए जाने का प्रस्ताव है। राज्य के कृषि मंत्री ने कहा है कि पराली जलाने से हो रहे पर्यावरणीय नुकसान को रोकने के लिए पराली से ईंधन बनाने के यूनिट लगाए जाएंगे।

स्रोत: इंडिया डॉट कॉम

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गोभी एवं पत्तागोभी की फसल में डायमंड बैक मोथ की पहचान एवं नियंत्रण

Diamondback Moth in Cabbage and cauliflower
  • इस कीट की इल्लियाँ पत्तों के हरे पदार्थ को खाती हैं तथा खाई गई जगह पर केवल सफेद झिल्ली रह जाती है जो बाद में छेदों में बदल जाती है।
  • रासायनिक नियंत्रण हेतु स्पिनोसेड 45% SC @ 300 मिली/एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @ 100 ग्राम/एकड़ या प्रोफेनोफोस 40% + साइपरमेथ्रिन 4% EC@ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना 1 किलोग्राम पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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कुसुम योजना से किसानों को मिलेगा सोलर पम्प, रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया जारी है

Kusum scheme will provide solar pump to farmers

कुसुम योजना के अंतर्गत किसानों को सोलर पंप सब्सिडी दी जाती है। इससे डीजल की खपत पर और कच्चे तेल के आयात में कमी आएगी। इसीलिए सरकार इस योजना को बढ़ावा दे रही है।

इस योजना के अंतर्गत सौर ऊर्जा उपकरण स्थापित करने के लिए किसानों को महज 10% राशि का भुगतान करना होगा। इसके अलावा केंद्र सरकार किसानों को बैंक खाते में सब्सिडी देती है। योजना के अंतर्गत लगने वाले सौर प्लांट बंजर भूमि पर लगाए जाते हैं।

इस योजना के अंतर्गत रजिस्ट्रेशन करने की अंतिम तिथि बढ़ा कर 1 दिसंबर कर दी गई है। अतः अंतिम तारिख से पहले किसान कुसुम योजना की आधिकारिक वेबसाइट https://kusum.online/ पर जाकर रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं।

स्रोत: कृषि जागरण

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फल छेदक से भिंडी की फसल को 22-37% तक हो सकता है नुकसान

How to control fruit borers in Okra crops
  • फल छेदक हेलिकोवर्पा आर्मीजेरा की इल्ली है और यह भिंडी की फसल का मुख्य कीट है। इसे सही समय पर यदि नियंत्रण ना किया जाये तो यह 22-37 प्रतिशत तक फसल को नुकसान पहुंचाता है।
  • यह कीट पत्ते, फूल और फल खाता है। यह फलों पर गोल छेद बनाता है और इसके गुद्दे को खाता है।
  • इसके नियंत्रण के लिए निम्न उत्पादों के उपयोग करें।
  • फिरोमोन ट्रैप द्वारा कीट संख्या के फैलाव या प्रकोप की निगरानी की जा सकती है। फिरोमोन ट्रैप विपरीत लिंग के कीटों को आकर्षित करता है।
  • प्रोफेनोफोस 40% + साइपरमेथ्रिन 4% EC@ 400 मिली/एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG@ 100 ग्राम/एकड़ या नोवालूरान 5.25% +इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% SC@ 600 मिली/एकड़ या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC @ 60 मिली/एकड़ की दर छिड़काव करें।
  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना 1 किलोग्राम पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।
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तरबूज की उन्नत खेती के लिए ऐसे करें में खेत की तैयारी एवं मिट्टी उपचार

Field preparation and soil treatment in water melon before sowing
  • तरबूज की उन्नत खेती के लिए आवश्यकता अनुसार जुताई करके खेत को ठीक प्रकार से तैयार कर लेना चाहिए तथा छोटी-छोटी क्यारियां बना लेनी चाहिए।
  • खेत को भारी मिट्टी को ढेले रहित कर बीज बोना चाहिए। रेतीली भूमि के लिये अधिक जुताइयों की आवश्यकता नहीं पड़ती। इस प्रकार से 3-4 जुताई पर्याप्त होती हैं।
  • तरबूज को खाद की आवश्यकता पड़ती है। मिट्टी उपचार के लिये बुआई से पहले सॉइल समृद्धि किट के द्वारा मिट्टी उपचार किया जाना चाहिए।
  • इसके लिए सबसे पहले 50-100 किलो FYM या पकी हुई गोबर की खाद या खेत की मिट्टी में मिलाकर बुआई से पहले खाली खेत में भुरकाव करें।
  • बुआई के समय DAP@ 50 किलो/एकड़ + एसएसपी@ 75 किलो/एकड़ + पोटाश@ 75 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी भुरकाव करें।
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प्याज एवं लहसुन में लगने वाले कवक रोगों का नियंत्रण है जरूरी

Control of fungal diseases in onion and garlic
  • प्याज व लहसुन से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए इसमें लगने वाले हानिकारक रोगों की रोकथाम आवश्यक है।
  • वैसे तो प्याज व लहसुन की फसल पर अनेक रोगों का प्रकोप होता है परन्तु कुछ रोग आर्थिक दृष्टि काफी हानि पहुंचाते हैं।
  • प्याज़ एवं लहसुन की फसल में लगने वाले कवक जनित रोगों में प्रमुख हैं आधारीय विगलन (बेसल रॉट), सफेद गलन (व्हाइट रॉट), बैंगनी धब्बा (पर्पल ब्लाच, स्टेम्फीलियम झुलसा (स्टेम्फीलियम ब्लाईट) आदि।
  • इन रोगों के निवारण हेतु निम्न उत्पादों का उपयोग करना लाभकारी होता है।
  • थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W @ 300 ग्राम/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 300 ग्राम/एकड़ या हेक्साकोनाज़ोल 5% SC @ 400 ग्राम/एकड़ या कीटाजिन 48% EC @ 200 मिली/एकड़ या क्लोरोथायोनिल 75% WP @ 250 ग्राम/एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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गेहूँ में लगने वाले कवक रोग से फसल को होगा नुकसान, ऐसे करें बचाव

Control of fungal disease in wheat
  • गेहूँ की फसल में लगने वाले कवक एवं जीवाणु जनित रोगों के प्रकोप की वजह से फसल की बढ़वार कम होने के साथ ही कल्ले भी कम निकलते हैं।
  • इसलिए सही वक्त पर इन रोगों की पहचान कर समुचित फसल प्रबंधन करना बेहद जरूरी होता है। ऐसा करने से उपज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
  • गेहूँ में लगने वाले रोगों में प्रमुख हैं पत्ती धब्बा रोग, करनाल बन्ट, गेरुआ या रतुआ रोग, अनावृत्त कण्डुआ इत्यादि।
  • इन रोगों के नियंत्रण के लिए निम्न उत्पादों का उपयोग करना लाभकारी होता है।
  • हेक्साकोनाज़ोल 5% SC@ 400 ग्राम/एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 25.9% EC@ 200 मिली/एकड़ या कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या प्रोपिकोनाज़ोल 25% EC @ 200 मिली/एकड़  की छिड़काव करें।
  • जैविक उपचार रूप  में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ या ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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खुलेंगे 28 फूड प्रोसेसिंग यूनिट, 10 हजार से ज्यादा लोगों को मिलेगा रोजगार

more than 10 thousand people will get employment

केंद्रीय कृषि मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने 28 फूड प्रोसेसिंग यूनिट बनाये जाने की मंजूरी दी है जिससे बहुत सारे रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। देश के कुछ 10 राज्यों में ये यूनिट लगाए जाएंगे जिससे 10 हजार से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलेगा।

इन राज्यों में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, तमिलनाडु, उत्तराखंड, असम और मणिपुर शामिल हैं। इस योजना के लिए मंत्री द्वारा 320.33 करोड़ रुपये की लागत निर्धारित की गई है।

इस योजना का मुख्य उद्देश्य प्रसंस्‍करण एवं संरक्षण क्षमताओं का निर्माण और मौजूदा फूड प्रोसेसिंग यूनिटों का आधुनिकीकरण/विस्‍तार करना है, जिससे प्रसंस्‍करण के स्‍तर में वृद्धि होगी, मूल्यवर्धन होगा तथा अनाज की बर्बादी में कमी आएगी।

स्रोत: न्यूज़ 18

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