मिर्ची की फसल से अच्छी उपज प्राप्ति का जांचा परखा नुस्खा है मिर्च समृद्धि किट

Chilli Samriddhi Kit is a tried and tested product to get good yield from chilli crop

  • ‘मिर्च समृद्धि किट’ आपकी मिर्च की फसल का सुरक्षा कवच बनेगा। इस किट में आपको वो सब कुछ एक साथ मिलेगा जिसकी जरूरत मिर्च की फसल को होती है।

  • खेत की अंतिम जुताई के बाद ग्रामोफोन के ‘मिर्च समृद्धि किट’ को 5 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में प्रति एकड़ की दर से अच्छी तरह मिलाकर उपयोग करें और फिर हल्की सिंचाई कर दें।

  • इस किट में लाभकारी बैक्टीरिया, कवक एवं पोषक तत्वों का मिश्रण है।

  • इसका उपयोग खेत में बुआई के समय भुरकाव के रूप में करने से फसल का अनुकरण बहुत अच्छा होता है एवं पौधा बहुत सी बीमारियों से भी बचाया जा सकता है।

  • यह किट मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बढ़ाने में सहयता करती है।

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कम पानी में भी सब्जी वर्गीय फसल से ले सकते हैं अच्छा उत्पादन

How to make water available in vegetable crops during water shortage in the summer season
  • गर्मियों के मौसम में सब्जी वर्गीय फसलों की बहुत ज्यादा मांग होती है।

  • पर किसानों के पास सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं होता है इस कारण किसान सब्ज़ी वर्गीय फसलों से ज्यादा लाभ प्राप्त नहीं कर पाते हैं।

  • सिंचाई के पानी की कमी होने पर भी अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं इसके लिए सब्जियों वाली फसलों की सीधे धूप वाली जगह पर बुआई नहीं करनी चाहिए।

  • फसल की सिंचाई की व्यवस्था इस प्रकार करनी चाहिए की कम पानी में भी फसल का उत्पादन अच्छे से हो पाए।

  • ड्रिप सिचाई, फव्वारा सिचाई या बागवानी पानी के बर्तन से भी सीधे पौधे की जड़ों के पास पानी दिया जा सकता है।

  • इस प्रकार कम पानी में भी अच्छी फसल उगाई जा सकती है।

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जैविक कवकनाशी व जैविक कीटनाशक के प्रयोग से मिलते हैं कई कृषि संबंधित लाभ

Use of organic fungicides and organic pesticides gives many agricultural benefits
  • जैविक कवकनाशी तथा जैविक कीटनाशक कीटों, फफूंदों, जीवाणुओं एवं वनस्पतियों पर आधारित उत्पाद है।

  • यह फसलों, सब्जियों एवं फलों को कीटों एवं व्याधियों से सुरक्षित कर उत्पादन बढ़ाने में सहयोग करते हैं।

  • जीवों एवं वनस्पतियों पर आधारित उत्पाद होने के कारण, जैविक कीटनाशक एवं फफूंद नाशक लगभग एक माह में भूमि में मिलकर अपघटित हो जाते हैं तथा उनका कोई अवशेष नहीं रहता। यही कारण है कि इन्हें पारिस्थितिकी मित्र के रूप में भी जाना जाता है।

  • जैविक उत्पादों के प्रयोग के तुरन्त बाद फलियों, फलों, सब्जियों की कटाई कर प्रयोग में लाया जा सकता है।

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फसलों में नाइट्रोजन की कमी से नजर आएंगे ये लक्षण

nitrogen deficiency in crops
  • नाइट्रोजन की कमी से पौधों की पत्तियों का रंग हल्का पीला होने लगता है।

  • साथ ही इसकी कमी से पौधों का विकास भी रुक जाता है।

  • पौधों की निचली पत्तियां झड़ने लगना भी इसकी कमी का एक लक्षण है।

  • इसकी कमी से पौधों में कल्ले एवं फूल भी कम निकलते हैं।

  • नाइट्रोजन की कमी से फसल समय से पहले पक जाती है, पौधे लंबे एवं पतले दिखाई देते हैं।

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अगली फसल में नहीं होगा मकड़ी का प्रकोप, अपनाएँ ये बचाव उपाय

How do farmers protect the next crop from mites outbreak
  • किसान अपनी फसल में मकड़ी के प्रकोप को लेकर हमेशा चिंतित रहते हैं। यदि पिछली फसल में मकड़ी का प्रकोप बहुत अधिक मात्रा में हुआ हो तो इसका असर नई फसल में भी दिखाई देता है।

  • पिछली फसल के अवशेषों को खेत में नहीं छोड़ना चाहिए, ऐसा करने से मकड़ी का हमला खेत की नई फसल में नहीं होता है।

  • दरअसल यही अवशेष नई फसल में मकड़ी के प्रकोप का कारण बनते हैं।

  • इसलिए फसल को मकड़ी से बचाने के लिए पिछली फसल के अवशेषों को खेत से दूर एक गड्ढा खोदकर उसमे डाल दें।

  • इसके बाद फसल अवशेषों पर डिकमपोज़र का छिड़काव करें एवं गड्ढे को मिट्टी से ढक दें।

  • इस प्रकार यह अवशेष खाद में परिवर्तित हो जाएंगे।

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गर्मियों में खाली खेत में करें वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग

How to use vermicompost in summer in farm
  • आजकल जैविक खाद के रूप में वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग बहुत सारे किसान भाई कर रहे हैं।

  • यह आसानी से उपलब्ध होती है एवं कम खर्च में अधिक लाभ प्रदान करती है।

  • गर्मियों में वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग से पहले खेत में गहरी जुताई करें एवं मिट्टी को ऊपर नीचे जरूर कर लें।

  • वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग करने से पहले वर्मीकम्पोस्ट में पर्याप्त नमी अवश्य बनाए रखें।

  • इसके पश्चात पूरे खेत में वर्मीकम्पोस्ट का अच्छे से भुरकाव करें।

  • वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग के बाद खेत में हल्की सिचाई अवश्य करें।

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मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी से फसलों में दिखाई देंगे ये लक्षण

nitrogen deficiency in soil
  • विशेष रूप से फल और बीज विकास के लिए पौधों द्वारा नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है।

  • इसके अलावा नाइट्रोजन पत्ती के आकार और गुणवत्ता को भी बढ़ाता है और पौधे की परिपक्वता को भी बढ़ाता है।

  • इसकी कमी के कारण पूरे पौधे का सामान्य क्लोरोसिस एक हल्के हरे रंग का हो जाता है और इसके बाद पुरानी पत्तियों का पीलापन युवा पत्तियों की ओर बढ़ने लगता है।

  • इसके कारण पत्तियां पर्याप्त क्लोरोफिल बनाने में असमर्थ हो जाती हैं। इस अवस्था में पत्तियों को क्लोरोटिक कहा जाता है। निचली पत्तियों (पुरानी पत्तियां) पर सबसे पहले इसके लक्षण दिखते हैं।

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गेहूँ की कटाई के बाद घर पर ही करें सुरक्षित भंडारण, देखें वीडियो

safe wheat storage

गेहूँ की फसल की कटाई बहुत सारे किसान भाइयों ने कर ली है। कटाई के बाद कई किसान उपज को भरोसेमंद खरीददारों के पास सही रेट पर बेचना चाहते हैं। इसके लिए तो ग्रामोफ़ोन का ग्राम व्यापार मददगार सिद्ध हो सकता है। यहाँ आप कई भरोसेमंद खरीददारों से संपर्क कर सकते हैं और घर बैठे सौदा तय कर सकते हैं। हालाँकि कई किसान अपनी गेहूँ की उपज को घर पर ही भंडारित कर के रखते हैं। तो घर पर घरेलू नुस्खों के साथ गेहूँ के सुरक्षित भंडारण हेतु देखें वीडियो।

वीडियो स्रोत: ग्रीन टीवी

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गेहूँ की पराली से खेत में ही बनाएं घरेलू खाद, जानें पूरी प्रक्रिया

Make domestic fertilizer in the field with wheat straw

किसानों के बीच फ़सल अवशेषों के निपटारे को लेकर अव्यवस्था की स्थिति बनी रहती है। अक्सर फसल की कटाई के बाद फ़सल अवशेषों को जलाये जाने की खबर आती है जिसके कारण प्रदूषण का स्तर भी काफी बढ़ जाता है। फसल अवशेषों को खेत में जलाने से खेत की उर्वरा शक्ति भी कम होती है। इसीलिए फ़सल अवशेषों के बेहतर निपटारे हेतु किसानों को कार्य करना चाहिए और इसके लिए सबसे बेहतर युक्ति है इन अवशेषों का डिकम्पोजर की मदद से घरेलू खाद बनाना। ऐसा करके वे ना सिर्फ फ़सल अवशेषों का निपटारा कर पाएंगे बल्कि डिकम्पोजर की मदद से तैयार घरेलू खाद से खेतों की उर्वरा शक्ति भी बढ़ा पाएंगे।

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इन उपायों से मिर्च की नर्सरी को डंपिंग ऑफ रोग से बचाएं

damping off disease in chilli nursery,
  • डम्पिंग ऑफ मिर्च की नर्सरी में लगने वाला एक प्रमुख रोग है।

  • इस रोग के कारण मिर्च की फसल नर्सरी अवस्था में बहुत अधिक प्रभावित होती है।

  • डम्पिंग ऑफ रोग के कारण अंकुरण के तने पानी से लथपथ और पतले, लगभग धागे जैसे हो जाते। हैं।

  • संक्रमित पत्तियाँ भूरे से हरे रंग की हो जाती हैं और युवा पत्तियां मुरझाने लगती हैं।

  • प्रबंधन हेतु थियोफैनेट मिथाइल 70% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 70% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या मेटालेक्सिल + मेंकोजेब @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ दर से उपयोग करें।

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