जरूर अपनाएं स्मार्ट खेती के ये उपयोगी टिप्स

Must follow these useful tips of smart farming
  • किसान भाइयों स्मार्ट खेती से आशय यह है की किसान खेती करने के नए तरीके एवं खेती को लाभ पहुंचाने वाले उत्पादों का उपयोग कर खेती करें।  

  • स्मार्ट खेती के अंतर्गत कीट रोग एवं पोषण संबधी फसल की आवश्यकता को टेक्नोलॉजी के माध्यम से पूरा किया जाता है। 

  • इस प्रकार की खेती में मोबाइल एप्लीकेशन, वृहद आंकड़े, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीनों का उपयोग होता है।  

  • कृषि में भी सूचना संचार प्रौद्योगिकी का प्रयोग किसान की उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।

  • युवा कृषक पारंपरिक खेती की जगह स्मार्ट खेती तकनीक अपनाकर अपनी खेती में व्यापक सुधार कर सकते हैं। 

  • स्मार्ट खेती के माध्यम से किसान की लागत कम एवं उपज ज्यादा होती है।

ग्रामोफ़ोन एप के माध्यम से आप भी कर सकते हैं स्मार्ट खेती। आज ही अपने खेत को “मेरी खेती” विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में रोगों व कीटों के प्रकोप की समयपूर्व जानकारी प्राप्त करते रहें।

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जानें आखिर क्या है एकीकृत कीट प्रबंधन एवं इसके प्रमुख उपाय

What is Integrated Pest Management and its main measures
  • किसान भाइयों फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट, रोग एवं खरपतवार आदि से होने वाली हानि को आर्थिक परिसीमा से नीचे रखने में सक्षम अधिकाधिक विधियों का सामन्यजस्यपूर्ण उपयोग एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन (आईपीएम) कहलाता है l

  • इसमें पर्यावरण के अनुकूल व्यवहारिक, यांत्रिक, जैविक एवं आवश्यक होने पर रासायनिक पौध संरक्षण क्रियाओं का परस्पर उपयोग किया जाता है। 

प्रमुख उपाय:

  • व्यवहारिक नियंत्रण में गहरी जुताई करना, फसल चक्र अपनाना, बीज एवं पौध उपचार, समय पर बुवाई, प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग, खरपतवार नियंत्रण, पोषक तत्वों एवं सिंचाई जल का समुचित उपयोग आदि। 

  • यांत्रिक नियंत्रण में प्रकाश पाश एवं लैंगिक पाश, रोग एवं कीट ग्रसित भागों को नष्ट करना आदि है। 

  • जैविक क्रियाओं में परभक्षी एवं परजीवी कीटों का उपयोग करना।

  • रासायनिक नियंत्रण में परभक्षी एवं परजीवी कीटों की उपस्थिति में इनके संरक्षण की दृष्टि से नाशीकीटों के आर्थिक परिसीमा से अधिक प्रकोप होने पर ही अपेक्षाकृत सुरक्षित कीटनाशक रसायनों का प्रयोग करना।

स्मार्ट कृषि एवं उन्नत कृषि उत्पादों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। उन्नत कृषि उत्पादों व यंत्रों की खरीदी के लिए ग्रामोफ़ोन के बाजार विकल्प पर जाना ना भूलें।

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गर्मियों में लोबिया की फसल चारे के रूप में लगाकर उठाएं लाभ

Benefits of planting cowpea crop as fodder in summer
  • किसान भाइयों गर्मियों के मौसम में पशुओं के हरे चारे की समस्या बढ़ जाती है, ऐसे में पशुपालक इस समय लोबिया की बुवाई कर सकते हैं।  

  • लोबिया पशुओं के लिए पौष्टिक चारे के रूप में बहुत उपयोगी है।

  • लोबिया सबसे तेज बढ़ने वाली एक दलहनी चारा फसल है। 

  • लोबिया की फसल अधिक पौष्टिक व पाचकता से भरपूर होने के कारण इसे घास के साथ मिलाकर बोने से इसकी पोषकता और भी बढ़ जाती है।

  • लोबिया की खेती सब्ज़ी के रूप में भी की जाती है क्योंकि बरसात के दिनों में हरी सब्जियों की उपलब्धता कम हो जाती है। उस समय हरी सब्जी के लिए लोबिया का उत्पादन किसानों को अच्छा मुनाफा दिलाता है।

  • इसके अलावा लोबिया एक दलहनी फसल भी है जो मिट्टी में नाइट्रोज़न नामक पोषक तत्व की उपलब्धता को बढ़ाता है।

  • किसान गर्मी की फसल के लिए मार्च-अप्रैल माह में इसकी बुवाई कर सकते हैं।

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भंडार गृह में संग्रहित गेहूँ की उपज को चूहों से कैसे रखें सुरक्षित?

How to keep the wheat crop stored in the warehouse safe from rats
  • किसान भाइयों अभी लगातार खेतों से गेहूँ की फसल की कटाई हो रही है और बहुत सारे किसान अपनी गेहूँ की फसल को बाजार में बेचने के बजाय भंडार ग्रह में संग्रहित करके रख रहे हैं। 

  • गेहूँ के भंडारण में सबसे बड़ी समस्या चूहों की होती है। 

  • इसके बचाव के लिए भंडारण के पहले निम्न बातों का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है –

  • गेहूँ की फसल को भंडार गृह में रखने के पहले भंडार गृह को अच्छे से साफ करके रखें। 

  • यदि भंडार गृह में पहले से ही चूहों का प्रकोप हो तो पहले से ही उनके निवारण के उपाय करना जरूरी है।

  • गेहूँ भंडारण के बाद यदि चूहों का प्रकोप दिखाई दे तो आटे या बेसन में चूहा मार दवा मिलाकर रखने से चूहों का नियंत्रण किया जा सकता है।  

  • एक ग्राम जिंक फॉस्फाईड और उन्नीस ग्राम सत्तू या आटा में थोड़ा सरसों का तेल मिलाकर एवं लगभग 10 ग्राम की गोली बनाकर चूहों के आने-जाने के रास्ते पर गिनती में रख देना चाहिए। 

  • चूहा शंकालु प्रवृत्ति का होता है। इसलिए बदल-बदल कर विषाक्त चारा चूहे-दानी एवं टिकिया को रखना चाहिए।

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प्याज की रोपाई के 65 दिनों बाद किये जाने वाले आवश्यक छिड़काव

Important tips to be done after 65 days of onion transplanting

  • प्याज की फसल से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए उर्वरक एवं पोषण प्रबंधन की जानकारी होना बेहद जरूरी है। संतुलित मात्रा में खाद, उर्वरकों एवं कृषि रसायनों के प्रयोग से उच्च गुणवत्ता के साथ रोग एवं कीट रहित फसल प्राप्त की जा सकती है। 

  • यदि आपकी प्याज की फसल रोपाई के बाद लगभग 65 दिनों की हो गई है तो निम्न सिफारिशें उपयोग में लायी जा सकती हैं। 

  • जल घुलनशील उर्वरक 00:52:34 @ 1 किलो + एबामेक्टिन 1.9% ईसी [अबासीन] 150 मिली + किटाज़िन 48% ईसी 400 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।  

  • इस छिड़काव के मदद से फसल को मकड़ी एवं बैंगनी धब्बा रोग जैसी समस्याओं से सुरक्षित रखा जा सकता है l 00:52:34 जल घुलनशील उर्वरक का प्रयोग करने से कंद निर्माण में मदद मिलती है।

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प्याज की रोपाई के 75 दिनों बाद करें ये जरूरी छिड़काव

Important tips to be done after 75 days of onion transplanting
  • किसान भाइयों प्याज की अच्छी फसल बढ़वार प्राप्त करने के लिए उर्वरक एवं पोषण प्रबंधन की जानकारी होना बेहद जरूरी है। संतुलित मात्रा में खाद, उर्वरक एवं कृषि रसायनों के प्रयोग से आप उच्च गुणवत्ता के साथ रोग एवं कीट रहित फसल प्राप्त कर सकेंगे। 

  • यदि आपकी प्याज की फसल रोपाई के बाद 75 दिनों के लगभग है तो निम्न सिफारिशें उपयोग में ला सकते हैं। 

  • जल घुलनशील उर्वरक 00:00:50 @ 1 किलोग्राम + फोलिक्योर (टेबुकोनाज़ोल 25.9% ईसी) @ 200 मिली + बेनेविया (सायंट्रानिलिप्रोल 10.26% ओडी) @ 250 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें l 

  • उपर्युक्त छिड़काव के साथ सिलिकोमैक्स (सिलिकॉन आधारित स्टिकर) @ 5 मिली 15 लीटर पानी के साथ मिला कर छिड़काव अवश्य करें l

  • जैविक नियंत्रण के लिए मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास )@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव कर सकते है। 

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कद्दू वर्गीय फसलों में मधुमक्खी होता है एक अच्छा पोलिनेटर, जानें कैसे?

Honeybee is a good pollinator in cucurbits
  • किसान भाइयों जायद के मौसम में कद्दू वर्गीय फसलें जैसे लौकी, गिलकी, तोरई, कद्दू, परवल, तरबूज, खरबूज आदि बहुत अधिक क्षेत्र में लगायी जाती है। 

  • मौसम एवं तापमान में परिवर्तन के कारण कद्दू वर्गीय फसलों में फूल आने के बाद फल विकास में बहुत समस्या आती है। 

  • मधुमक्खियां कद्दू वर्गीय फसलों में प्राकृतिक रूप से परागण के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 

  • कद्दू वर्गीय फसलों में मधुमक्खी के द्वारा परागण की क्रिया को 80% तक पूरा किया जाता है।

  • मधुमक्खियों के शरीर में बाल अधिक संख्या में पाए जाते है जिनमें पराग कण चिपक जाते हैं इसके बाद जब मधुमक्खियां दूसरे मादा पुष्पों पर जाकर बैठती हैं तो पराग कणों को छोड़ देती है। 

  • मधुमक्खियों से फसलों को किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होता है।

  • उपर्युक्त क्रिया के बाद निषेचन की क्रिया पूरी हो जाती है। इसके बाद पौधे में फूल से फल बनने की क्रिया शुरू हो जाती है।

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मूंग की फसल में खरपतवार नियंत्रण के ये हैं सटीक उपाय

Weed management in Green gram crop
  • किसान भाइयों मूंग प्रमुख दलहनी फसलों में शामिल है एवं कम समय में अच्छा उत्पादन देने वाली फसल है। 

  • फसल की शुरुआती अवस्था में बुवाई के 15 से 45 दिन के मध्य फसलों को खरपतवारों से मुक्त रखना बेहद जरूरी होता है। 

  • सामान्यत: खरपतवारों को निराई-गुड़ाई कर निकाल देना चाहिए। इसके लिए पहली निराई-गुड़ाई बुवाई के 15-20 दिन के अंदर व दूसरी निराई-गुड़ाई बुवाई के 30-35 दिनों पर करने से खरपतवारों का नियंत्रण प्रभावी ढंग से किया जा सकता है।  

  • यदि यांत्रिक और भौतिक नियंत्रण उपायों को नहीं अपनाया जाता है तो बीज बुवाई के 0-3 दिनों के अंदर धानु टॉप सुपर (पेंडीमिथलीन 38.7%) @ 700 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव कर सकते हैं।  

  • मूंग की बीज बुवाई के 10-15 दिनों बाद खरपतवारों की 2-4 पत्ती अवस्था में वीडब्लॉक (इमाज़ेथापायर 10% एसएल + सर्फैक्टेंट) @ 300 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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जानिए, आखिर क्यों नहीं जलाना चाहिए हमें गेहूँ की फसल के अवशेष?

Why we should not burn the crop residues of wheat
  • गेहूँ की फसल काटने के बाद जो तने के अवशेष अथार्त डंठल (नरवाई) बचती है, उसे बहुत सारे किसान आग लगाकर नष्ट कर देते हैं। 

  • नरवाई में लगभग 0.5%, फास्फोरस 0.6% और पोटाश 0.8% पाया जाता है, जो आग में जलकर नष्ट हो जाता है।

  • गेहूँ की फसल में दाने से डेढ़ गुना भूसा होता है, यदि 1 हेक्टेयर में 40 क्विंटल गेहूँ का उत्पादन होता है तो भूसे की मात्रा 60 क्विंटल होगी।

  • इस भूसे से 30 किलो नाइट्रोजन, 36 किलो फास्फोरस और 90 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर प्राप्त किया जा सकता है। जो वर्तमान मूल्य के आधार पर लगभग 3,000 रुपये का होगा।

  • वहीं फसल के अवशेष जलाने से भूमि में उपस्थित सूक्ष्मजीव एवं केंचुआ आदि भी नष्ट हो जाते हैं। जिससे खेत की उर्वरता व जमीन की भौतिक दशा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। 

  • इससे जमीन कठोर हो जाती है, जिसके कारण जमीन की जल धारण क्षमता कम हो जाती है। जिस वजह से फसलें जल्द सूखती हैं। 

  • इससे जमीन में होने वाली रासायनिक क्रियाएं भी प्रभावित होती हैं, जैसे- कार्बन-नाइट्रोजन एवं कार्बन-फास्फोरस आदि का अनुपात बिगड़ जाता है। जिस कारण पौधों को पोषक तत्व उपलब्ध अवस्था में नहीं मिल पाते हैं।

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तरबूज बुवाई के 45 से 50 दिनों बाद किये जाने वाले आवश्यक छिड़काव

Necessary work to be done after 45-50 days of watermelon sowing
  • बुवाई करने के 45 दिन बाद तरबूज की फसल फूल से फल बनने वाली अवस्था में होती है। इस समय निम्न सिफारिशें उपयोग में ला सकते हैं –             

  • बुवाई के 45-50 दिन बाद उर्वरक प्रबंधन में 19:19:19 @ 50 किलो या 20:20:20 @ 50 किलो + MOP 50 किलो प्रति एकड़ की दर से मिट्टी के माध्यम से दें l

  • पौधों की इस अवस्था में ज्यादा फल लगने के लिए एवं इल्लियाँ, फल मक्खी, सफेद मक्खी, डाउनी मिल्डयू रोग आदि की समस्या से छुटकारा पाने के लिए पायरिप्रोक्सीफेन 10% + बायफेंथ्रिन 10% ईसी [प्रुडेंस] @ 250 मिली + इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी [इमा नोवा] @ 100 ग्राम + जिब्रेलिक एसिड 0.001% एल [नोवा मैक्स]  @ 300 मिली +  एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाजोल 18.3% एससी  [कस्टोडिया] @ 300 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें l 

  • फल मक्खी से फसल के बचाव के लिए 10 फेरोमोन ट्रैप प्रति एकड़ की दर से आवश्यक रूप से उपयोग करें l

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