करेले की फसल में वायरस का प्रकोप एवं नियंत्रण के उपाय

Virus outbreak in bitter gourd crop
  • किसान भाइयों अधिक गर्मी एवं मौसम परिवर्तन के कारण करेले की फसल में वायरस फैलने की सम्भावना बढ़ जाती है।

  • करेले की फसल पर मुख्यतः मोज़ेक वायरस का प्रकोप अधिक देखने को मिलता है। 

  • इस वायरस का वाहक सफेद मक्खी है। 

  • यह पत्तियों से रस चूस कर एक पौधे से दूसरे पौधे को संक्रमित करती है। 

  • इस रोग के लक्षण पौधे की सभी अवस्थाओं में देखे जाते हैं। इसके कारण पत्तियों की शिरायें पीली पड़ जाती हैं एवं पत्तियों पर जाल जैसी संरचना बन जाती है।

  • इससे पौधे की वृद्धि रुक जाती है। फल पीले, छोटे एवं असामान्य आकार के बनते हैं।

  • रासायनिक प्रबधन: इस के निवारण के लिए नोवासीटा (एसिटामिप्रीड 20% एसपी) @ 100 ग्राम या पेजर (डायफैनथीयुरॉन 50% डब्ल्यूपी) @ 250 ग्राम या प्रुडेंस (पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% ईसी) @ 250 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।  

  • जैविक प्रबधन: जैविक उपचार के रूप में बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना) @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें। 

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मूंग की फसल में झुलसा रोग की पहचान एवं नियंत्रण के उपाय

Outbreak of blight in moong crop
  • किसान भाइयों मूंग की फसल में इस रोग में पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं, तने पर बने विक्षत धब्बे लंबे दबे हुए एवं बैंगनी-काले रंग के होते हैं। ये धब्बे बाद में आपस में मिल जाते हैं और पूरे तने को चारों और से घेर लेते हैं। फलियों पर लाल या भूरे रंग के अनियमित धब्बे दिखाई देते हैं। रोग की गंभीर अवस्था में तना कमजोर होने लगता है।

  • रासायनिक प्रबधन: करमानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% डब्ल्यूपी) @ 300 ग्राम या मिल्ड्यू विप (थायोफिनेट मिथाइल 70%डब्ल्यूपी) @ 300 ग्राम या जटायू (क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यूपी) @ 400 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।   

  • जैविक प्रबधन: जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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मूंग की 15 से 25 दिनों की अवस्था में ये छिड़काव करें व पाएं स्वस्थ फसल बढ़वार

Follow this spraying in 15 to 25 days after sowing of moong
  • किसान भाइयों मूंग की फसल में इस अवस्था पर कीट एवं रोगों के प्रकोप के साथ ही वृद्धि से संबंधित समस्या भी दिखाई देती है।

  • इन सभी समस्याओं के निवारण के लिए मूंग की फसल की बुवाई के 15-25 दिनों में निम्न सिफारिशें अपनाकर फसल प्रबंधन कर सकते हैं। 

  • नोवामैक्स (जिब्रेलिक एसिड 0. 001 एल) @ 300 मिली + मिल्ड्यू विप (थायोफेनेट मिथाइल 70% डब्ल्यूपी) @ 300 ग्राम + थायोनोवा 25 (थायामेथोक्साम 25% डब्ल्यूजी) @ 100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।  

  • इल्ली की समस्या दिखाई देने पर इमानोवा (इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी) @ 100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

  • जैविक नियंत्रण के रूप में कीटों से बचाव के लिए बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ एवं रोगों के लिए स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग कर सकते हैं।

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प्याज की पत्तियां पीली होकर ऊपर से सूखने लगे तो हो जाएँ सावधान

Onion bolting or flowering problem and its remedy
  • किसान भाइयों प्याज में बोल्टिंग की समस्या एक रोग नहीं बल्कि भौतिक परिवर्तन एवं व्याधि है जिसे आम भाषा में किसान प्याज में फूल आना या पाइप बनना आदि नामों से जानते है। यह समस्या प्याज में प्राय: 4-5 पत्ती अवस्था में देखने को मिलती है।

  • इस व्याधि में प्याज की पत्तियां पीली होकर ऊपर से सूखने लगती है एवं पत्तियों पर फूल बनने लगते हैं जिसके कारण प्याज के कंदो के आकार के साथ उपज भी प्रभावित होती है।

  • इसके संभावित कारणों में फसल में नाइट्रोजन की कमी एवं अधिकता, अधिक सिंचाई, मौसम के अनुसार किस्म का चयन न करना, मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी, पौध रोपाई में देरी, वातावरण में नमी आदि प्रमुख हैं।

  • इससे बचाव के लिए उचित समय पर सही मात्रा में नाइट्रोजन एवं पोषक तत्वों का उपयोग करें। ध्यान रखें की कंद बनते समय यूरिया का उपयोग न करें।

  • बुवाई के लिए मौसम के अनुसार अच्छी गुणवत्ता वाली किस्म का ही चयन करें एवं अधिक सिंचाई से बचें।

  • प्याज की रोप 30-45 दिनों में रोपाई के लिए तैयार हो जाती है, रोपाई में देरी से भी इस व्याधि की संभावना बढ़ जाती है।

  • फसल में फूल दिखते ही उसे तोड़ दें, ऐसा करना आवश्यक है अन्यथा कंदो को पर्याप्त पोषण नहीं मिलता है और कंद छोटे रह जाते है।

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जानें आखिर मिट्टी परीक्षण करवाना क्यों बेहद जरूरी?

Why soil test is necessary
  • मिट्टी परीक्षण, उर्वरकों के सार्थक उपयोग और बेहतर फसल उत्पादन के लिए बेहद जरूरी है। 

  • मिट्टी परीक्षण से मिट्टी पीएच, विद्युत चालकता, जैविक कार्बन के साथ-साथ मुख्य पोषक तत्वों और सूक्ष्म पोषक तत्वों का पता लगाया जा सकता है, जो उपज बढ़ाने के लिए बेहद जरूरी है। 

  • इससे मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्वों के स्तर की जांच करके फसल एवं किस्म के अनुसार तत्वों की संतुलित मात्रा का निर्धारण किया जा सकता है। इसी के साथ ही खेत में खाद एवं उर्वरक मात्रा की सिफारिश भी इससे की जा सकती है।

  • मिट्टी की अम्लीयता, लवणीयता एवं क्षारीयता की पहचान भी इससे होती है। जिसके सही अनुपात के लिए सुधारकों की मात्रा व प्रकार की सिफारिश कर इस तरह की भूमि को कृषि योग्य बनाने के लिए महत्वपूर्ण सलाह एवं सुझाव अपनाए जा सकते हैं।

  • इसकी मदद से बागवानी के लिये भूमि की उपयुक्तता का पता लगा सकते हैं।

  • मृदा उर्वरता मानचित्र तैयार करने और मानचित्र में विभिन्न फसल उत्पादन योजना निर्धारण के लिये भी यह महत्वपूर्ण होता है, जो क्षेत्र विशेष में उर्वरक उपयोग संबंधी जानकारी देता है l

कृषि क्षेत्र से जुड़ी ऐसी ही अन्य महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों के साथ भी साझा करें।

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तरबूज में ड्रिप सिंचाई प्रणाली द्वारा ऐसे करें पोषक तत्व प्रबंधन

Nutrient management by drip irrigation system in watermelon
  • किसान भाइयों तरबूज की फसल में ड्रिप सिंचाई प्रणाली में पानी के साथ – साथ उर्वरक, कीटनाशक एवं अन्य घुलनशील रासायनों को सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है। 

  • परंपरागत विधि की तुलना में इसमें पानी के साथ रासायनिक उर्वरकों की भी अधिक मात्रा में बचत होती है एवं रसायन और उर्वरकों का उपयोग होता है।

  • जिन किसान के पास ड्रिप सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है वह निम्न उत्पादों का उपयोग कर पोषक तत्व प्रबंधन कर सकते हैं –  

  • तरबूज की बुवाई के बाद दसवें दिन तक प्रति दिन यूरिया 2 किग्रा + 19:19:19 @ 3 किग्रा + 13:00:45 @ 1 किग्रा प्रति एकड़ की दर से ड्रिप में चलाएं। 

  • तरबूज बुवाई के ग्यारवें दिन से पच्चीसवें दिन तक प्रति दिन यूरिया 1 किग्रा + 19:19:19 @ 3 किग्रा + 0:52:34 @ 1 किग्रा + 13:00:45 @ 2 किग्रा + मैग्नीशियम सल्फेट 0.35 किग्रा प्रति एकड़ की दर से ड्रिप में चलाएं। 

  • तरबूज बुवाई के छब्बीसवें दिन से पचहत्तरवें दिन तक प्रति दिन 19:19:19 @ 1 किग्रा + 00:00:50 @ 1 किग्रा +  0:52:34 @ 0.5 किग्रा + 13:00:45 @ 1 किग्रा प्रति एकड़ की दर से ड्रिप में चलाएं। 

  • ध्यान रहे उपयुक्त उर्वरकों को मिलाए बिना अलग अलग उपयोग करें।

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तरबूज की क्वालिटी होगी अच्छी अगर अपनाए जाएं ये सुझाव

Follow these tips to increase the quality of watermelon fruit
  • किसान भाइयों तरबूज की फसल में यदि फलों की गुणवत्ता यानी क्वालिटी बहुत अच्छी रहती है तो किसानों को उत्पादन के साथ-साथ आय भी बहुत अच्छी मिल जाती है।

  • इसके लिए बुवाई के 45-50 दिन बाद NPK – 19:19:19 @ 50 किलोग्राम + म्यूरेट ऑफ़ पोटाश 50 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से मिट्टी में मिलाएं। 

  • पौधे में फूलों की संख्या एवं अच्छे फल निर्माण के लिए नोवामैक्स (जिब्रेलिक एसिड 0.001% एल) @ 300 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

  • बुवाई के 60-65 दिन बाद NPK – 0:00:50 @ 1 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से पत्तियों पर छिड़काव करें। 

  • पोटाश के उपयोग से तरबूज के फल का आकार बहुत अच्छा बनता है।  

  • फलों के उचित वृद्धि एवं विकास के लिए पिंचिंग की प्रक्रिया भी फायदेमंद होती है।

  • चिलेटेड कैल्शियम ईडीटीए @ 200 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करने से ब्लॉसम एन्ड रॉट की समस्या नहीं आती है साथ ही फल में चमक बनी रहती है।

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सावधान, मूंग में पर्ण कुंचन विषाणु जनित रोग होगा घातक

Moong leaf curl virus disease
  • किसान भाइयों मूंग की फसल में पर्ण कुंचन विषाणु जनित रोग का प्रकोप फसल की किसी भी अवस्था में हो सकता है। 

  • इस रोग का मुख्य वाहक थ्रिप्स नामक कीट होते हैं। 

  • इस रोग के लक्षण में नई पत्तियों के किनारों, शिराओं और उसकी शाखाओं के चारों और हरिमहीनता प्रकट होना प्रारंभ हो जाती है। पत्तियां नीचे की ओर सिकुड़कर मुड़ने लगती हैं। ऐसी पत्तियां धीरे से हिलाने से ही डंठल सहित नीचे गिर जाती हैं। फली बनने की अवस्था में पौधा छोटी और विकृत फली पैदा करता है।

प्रबंधन के उपाय:

  • बुवाई के 30 दिनों के अंदर संक्रमण दिखाई देने पर संक्रमित पौधों को नष्ट कर दें। 

  • विषाणु और थ्रिप्स को आश्रय देने वाले खरपतवारों को हटा दें।

  • प्रतिरोधी बीज किस्मों का उपयोग करें।  

  • थ्रिप्स प्रबंधन के लिए लैमनोवा (लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 5% ईसी) @ 250 मिली + प्रोफेनोवा सुपर (प्रोफेनोफोस  40 % + सायपरमेथ्रिन 4% ईसी) @ 400 मिली + फिपनोवा (फिप्रोनिल 5% एससी) @ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव कर सकते हैं। 

  • प्री वेंटल (पॉलीफॉर्मफॉस) @ 100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव भी फायदेमंद रहता है। 

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जरूर अपनाएं स्मार्ट खेती के ये उपयोगी टिप्स

Must follow these useful tips of smart farming
  • किसान भाइयों स्मार्ट खेती से आशय यह है की किसान खेती करने के नए तरीके एवं खेती को लाभ पहुंचाने वाले उत्पादों का उपयोग कर खेती करें।  

  • स्मार्ट खेती के अंतर्गत कीट रोग एवं पोषण संबधी फसल की आवश्यकता को टेक्नोलॉजी के माध्यम से पूरा किया जाता है। 

  • इस प्रकार की खेती में मोबाइल एप्लीकेशन, वृहद आंकड़े, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीनों का उपयोग होता है।  

  • कृषि में भी सूचना संचार प्रौद्योगिकी का प्रयोग किसान की उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।

  • युवा कृषक पारंपरिक खेती की जगह स्मार्ट खेती तकनीक अपनाकर अपनी खेती में व्यापक सुधार कर सकते हैं। 

  • स्मार्ट खेती के माध्यम से किसान की लागत कम एवं उपज ज्यादा होती है।

ग्रामोफ़ोन एप के माध्यम से आप भी कर सकते हैं स्मार्ट खेती। आज ही अपने खेत को “मेरी खेती” विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में रोगों व कीटों के प्रकोप की समयपूर्व जानकारी प्राप्त करते रहें।

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जानें आखिर क्या है एकीकृत कीट प्रबंधन एवं इसके प्रमुख उपाय

What is Integrated Pest Management and its main measures
  • किसान भाइयों फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट, रोग एवं खरपतवार आदि से होने वाली हानि को आर्थिक परिसीमा से नीचे रखने में सक्षम अधिकाधिक विधियों का सामन्यजस्यपूर्ण उपयोग एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन (आईपीएम) कहलाता है l

  • इसमें पर्यावरण के अनुकूल व्यवहारिक, यांत्रिक, जैविक एवं आवश्यक होने पर रासायनिक पौध संरक्षण क्रियाओं का परस्पर उपयोग किया जाता है। 

प्रमुख उपाय:

  • व्यवहारिक नियंत्रण में गहरी जुताई करना, फसल चक्र अपनाना, बीज एवं पौध उपचार, समय पर बुवाई, प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग, खरपतवार नियंत्रण, पोषक तत्वों एवं सिंचाई जल का समुचित उपयोग आदि। 

  • यांत्रिक नियंत्रण में प्रकाश पाश एवं लैंगिक पाश, रोग एवं कीट ग्रसित भागों को नष्ट करना आदि है। 

  • जैविक क्रियाओं में परभक्षी एवं परजीवी कीटों का उपयोग करना।

  • रासायनिक नियंत्रण में परभक्षी एवं परजीवी कीटों की उपस्थिति में इनके संरक्षण की दृष्टि से नाशीकीटों के आर्थिक परिसीमा से अधिक प्रकोप होने पर ही अपेक्षाकृत सुरक्षित कीटनाशक रसायनों का प्रयोग करना।

स्मार्ट कृषि एवं उन्नत कृषि उत्पादों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। उन्नत कृषि उत्पादों व यंत्रों की खरीदी के लिए ग्रामोफ़ोन के बाजार विकल्प पर जाना ना भूलें।

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