कटाई के बाद ऐसे करें अपनी कटी हुई फसलों की सुरक्षा

How to protect the harvested crops

किसान भाइयों, अभी खेतों में चना, सरसों, गेहूँ आदि की कटाई व थ्रेसिंग का कार्य चल रहा है। यह कार्य समाप्त होने के बाद उपज को सुरक्षा प्रदान करना बेहद आवश्यक  होता है l इसके लिए निम्न बातों का ध्यान रख सकते हैं –

  • कटी हुई फसलों को बिजली के तारों के नीचे, ट्रांसफार्मर के पास, सड़क के किनारे ढेर लगाकर न रखें। ऐसा करने से दुर्घटना एवं आगजनी होने की संभावना बढ़ जाती है। 

  • साथ ही फसल की थ्रेसिंग करते समय स्वयं एवं श्रमिकों का ख्याल रखें और यह भी देखें की जन सामान्य को कोई असुविधा न हो। इसके लिए एकदम सड़क किनारे के स्थान पर थ्रेसिंग न करें। इससे सड़कों पर बारीक भूसा जमा होता है जिससे वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो सकती है l 

  • थ्रेसर पर कार्य करने वाले व्यक्ति ढीले कपड़े ना पहनें और गले में कपड़ा न डाले तथा धूम्रपान बिलकुल न करें। सुरक्षा एवं सतर्कता के लिए पास में ही पानी का टैंक तथा रेत रखें, जिससे कोई घटना न हो सके। 

  • किसान बंधुओं जब तक आप फसल सुरक्षात्मक तरीके से भण्डारण नहीं कर लेते, तब तक कोई लापरवाही न करें और सुरक्षात्मक तरीके से रबी फसलों की कटाई के बाद संसाधन क्रिया कराएं।

  • नजदीकी विद्युत विभाग एवं आपदा प्रबंधन के कार्यालय तथा उनके अधिकारियों का संपर्क नम्बर जरूर रखें।

  • फसल बुवाई पूर्व प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत अपनी फसल का बीमा अवश्य कराएं जिससे प्राकृतिक आपदा से होने वाले नुकसान की भरपाई हो सके। 

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कद्दू वर्गीय फसलों में लगने वाले रोगों का ऐसे करें प्रबंधन

Management of diseases in cucurbitaceae crops

किसान भाइयों, इस समय कद्दू वर्गीय फसलें वृद्धि विकास एवं फल अवस्था पर है और इस समय विभिन्न प्रकार के रोग फसल को नुकसान पहुंचा रहे हैं। आइये जानतें हैं इन रोगों व इनके प्रबंधन के बारे में विस्तार से।  

डाउनी मिल्ड्यू: यह रोग पत्तियों की निचली सतह पर पीले धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं और कुछ समय बाद यह धब्बे बड़े होकर कोणीय हो जाते हैं एवं भूरे रंग के पाउडर में बदल जाते हैं।

रासायनिक प्रबंधन: एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाजोल 18.3% एससी [कस्टोडिया] @ 300 मिली या फोसटाइल 80% डब्ल्यूपी [एलीएट] @ 500 ग्राम प्रति एकड़ के रूप में छिड़काव करें। 

पाउडरी मिल्ड्यू: आमतौर पर यह रोग पत्तियों को प्रभावित करता है। पत्तियों की ऊपरी एवं निचली सतह पर सफेद रंग का चूर्ण दिखाई देता है। 

रासायनिक प्रबंधन: एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एससी [कस्टोडिया] @ 300 मिली या मायक्लोबुटानिल 10% डब्ल्यूपी [इंडेक्स] @ 100 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

गमी स्टेम ब्लाइट: इस रोग के लक्षण सबसे पहले पत्तियों पर और फिर तने पर गहरे भूरे रंग के धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं। इस रोग का एक मुख्य लक्षण यह है कि इस रोग से ग्रसित तने से गोंद जैसा चिपचिपा पदार्थ निकलता है।

रासायनिक प्रबंधन: कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% डब्ल्यूपी [कोनिका] @ 300 ग्राम या क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यूपी [जटायु] @ 300 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

एन्थ्रेक्नोज: इस बीमारी के लक्षण पौधे में पत्तियों, बेलों और फलों पर दिखाई देते हैं। फल पर छोटे, गोलाकार धब्बे दिखाई देते हैं। इसके कारण फल बिना पके ही गिरने लगते हैं, जिससे उपज में भारी नुकसान होता है।

रासायनिक प्रबंधन: इस रोग के नियंत्रण के लिए क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यूपी [जटायु] 300 ग्राम या हेक्साकोनाज़ोल 5% एससी [ट्रिगर प्रो] 300 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

जैविक उपचार: उपरोक्त सभी रोग के जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी 500 ग्राम + स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें।

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अप्रैल माह में किए जाने आवश्यक कृषि कार्य

Agriculture work required to be done in April
  • किसान भाइयों, अप्रैल माह कृषि कार्य करने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माह होता है। इस समय गहरी जुताई करने के बाद खेत को खुला छोड़ दें, ताकि मिट्टी में उपस्थित कृमिकोष, कीट, उनके अंडे एवं खरपतवार, फफूंद  जनित रोग फैलाने वाले रोगकारक नष्ट हो जाएँ। 

  • इस महीने फसल कटने के बाद खेत के मिट्टी की जांच जरूर कराएं। मिट्टी परीक्षण से मिट्टी का पीएच, विद्युत चालकता, जैविक कार्बन के साथ साथ मुख्य और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का पता लगाया जाता है जिसे समयानुसार सुधारा जा सकता है। 

  • गेहूँ की कटाई के बाद मिट्टी की सेहत सुधारने के लिए हरी खाद जैसे ढैंचा, लोबिया, मूंग आदि की बुवाई कर सकते हैं। 

  • मूंग की फसल में अगर मिट्टी में नमी की कमी हो तो एक हल्की सिंचाई अवश्य करें। सिंचाई के पहले निराई-गुड़ाई करें ताकि मिट्टी में नमी ज्यादा दिनों तक रह सके। थ्रिप्स, माहू और हरा तेला की समस्या हो तो, थायोमेथोक्साम 25% डब्ल्यूजी [थियानोवा 25] @ 100 ग्राम प्रति एकड़ का छिड़काव करें। 

  • कद्दू वर्गीय फसलों में अधिक फूलों की संख्या एवं विकास के लिए होमोब्रेसिनोलीड्स 0.04% [डबल] @ 100 मिली प्रति एकड़ का छिड़काव करें।

  • कपास की खेती करने के लिए गहरी जुताई कर 3-4 बार हैरो चला दें ताकि मिट्टी भुरभुरी होने के साथ इसकी जलधारण क्षमता भी बढ़ जाए। ऐसा करने से मिट्टी में उपस्थित हानिकारक कीट, उनके अंडे, प्युपा तथा कवकों के बीजाणु भी नष्ट हो जायेंगे।

  • पशुओं में खुरपका – मुंहपका रोग से बचाव के लिए टीका अवश्य लगवाएं एवं बदलते हुए मौसम के अनुसार सुपाच्य तथा पौष्टिक चारे की व्यवस्था करें।

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ये उन्नत कपास बीज दिलाएंगे जोरदार उपज व बढियाँ मुनाफा

These advanced cotton seeds will give good yield and better profits

कपास की खेती का सीजन अब शुरू होने ही वाला है। ज्यादातर किसान इस असमंजस में रहते हैं की वे अच्छी उपज और बढियाँ मुनाफा प्राप्त करने के लिए कपास के कौन से किस्म के बीज खरीदें। इस लेख के माध्यम से हम आपकी इन्हीं असमंजस को दूर करने वाले हैं। अगर बात मध्य प्रदेश की करें तो यहाँ कपास की फसल मई जून माह में सिंचित एवं असिंचित दोनों क्षेत्रों में लगाई जाती है। मध्य प्रदेश में लगाई जाने वाली कुछ उन्नत किस्में एवं उनकी महत्वपूर्ण विशेषताएं निम्न हैं। 

  • नुजीवीडू गोल्डकोट: इस संकर किस्म के डोडे का आकर मध्यम और कुल वज़न 5 ग्राम होता है। इसकी फसल अवधि 155 से 160 दिनों की होती है। यह किस्म भारी मिट्टी में उगने के लिए उत्तम होती है। इस किस्म की बीज़ दर 600-800 ग्राम/एकड़ लगती है। इस किस्म की बुआई का उचित समय मई-जून रहता है।

  • प्रभात सुपर कोट: इस किस्म के डोडे बड़े व 5.5 ग्राम से लेकर 6.5 ग्राम वजनी होते हैं। इसकी फसल अवधि 140 से 150 दिनों की होती है। यह भारी काली मिट्टी में उगने के  लिए उत्तम होती है। इस किस्म में लाइन से लाइन की दूरी 4 फिट एवं पौधे से पौधे की दूरी 1.5 फिट होती है। यह किस्म रस चूसक कीट के प्रति सहिष्णुता, अच्छी गुणवत्ता, व्यापक अनुकूलन वाली होती है। इसकी बीज़ दर 600-800 ग्राम/एकड़ होती है। यह किस्म मई-जून में लगाने के लिए उपयुक्त होता है।

  • आदित्य मोक्षा: इस संकर किस्म के डोडे मध्यम और 6 ग्राम से लेकर 7 ग्राम वजनी होते हैं। इसकी फसल अवधि 140 से 150 दिनों की होती है। यह किस्म हल्की मध्यम मिट्टी में उगने के लिए उत्तम होती है। इस किस्म में लाइन से लाइन की दूरी 4 फिट एवं पौधे से पौधे की दूरी 2.5 फिट होती है। यह किस्म सिंचित एवं असिंचित दोनों क्षेत्र में बुआई के लिए उपयुक्त होती है। इस किस्म की बीज़ दर 600-800 ग्राम/एकड़ है। यह किस्म मई- जून में बुआई हेतु उपयुक्त है।

  • अंकुर 3028: इस संकर किस्म के पौधे सीधे होते हैं। इनके डोडे बड़े एवं आसानी से तोड़ने लायक होते हैं। इनका पौधा बहुत हराभरा होता है। ये कम दूरी की बुआई के लिए उपयुक्त होते हैं साथ ही रस चूसक कीटों एवं बैक्टीरियल ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी होते हैं। इससे बने धागे की गुणवत्ता बहुत अच्छी होती है।

  • अंकुर 3224: यह संकर किस्म मानसून पूर्व बुआई के लिए उपयुक्त है और मध्यम व भारी मिट्टी में लगाई जा सकती है। यह सिंचित और वर्षा आधारित खेती के लिए उपयुक्त किस्म है। इसका पौधा लम्बा एवं मज़बूत होता है तथा इसके नोड एवं इंटर नोड के बीच की दूरी कम होती है। इसके डोडे का आकार बड़ा एवं 5 से 5.5 ग्राम वजनी होता है। यह रस चुसक कीटों के प्रति प्रतिरोधी किस्म होती है।

  • अंकुर जय: यह संकर किस्म मानसून पूर्व बुआई के लिए उपयुक्त होती है, भारी मिट्टी में  लगायी जा सकती है, इसके पौधे लम्बे होते हैं, यह  रस चूसक कीटों के प्रति प्रतिरोधी होती है, इसके डोडे का आकार बड़ा एवं वज़न 5.5 ग्राम होता है, इससे बने धागे की क्वालिटी बहुत अच्छी होती है।

  • तुलसी सीड्स लम्बुजी: इस संकर किस्म से पौधा लंबा एवं मज़बूत होता है और कटाई के समय तक हराभरा रहता है। इसके डोडे की तुड़ाई बड़ी आसानी से की जा सकती है एवं यह रस चूसक कीटों के प्रति एक प्रतिरोधी किस्म होती है।

इन बताई गई बीज किस्मों के अलावा मगना, मनी मेकर, जादु, अजित 155, भक्ति, आतिश आदि अन्य किस्मे भी किसान भाई लगा सकते हैं। बताई गई बीजों की खरीदी के लिए ग्राम बाजार पर जाएँ। 

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संरक्षित खेती अपनाएं मूंग की फसल को नुकसान से बचाएं

Avoid damage to green gram crop by adopting protected farming
  • किसान भाइयों संरक्षित खेती परम्परागत कृषि से हटकर खेती की एक नई पद्धति है। जिसमें खेतों की कम से कम जुताई या बिना जुताई के बुवाई की जाती है। इस विधि में पूर्व फसल अवशेष का उपयोग किया जाता है तथा फसलों के विविधीकरण को अपनाया जाता है। 

  • संरक्षित खेती अपनाकर मूंग की फसल में बुवाई से पूर्व नरवाई (फसल अवशेष) जलाने से होने वाले नुकसान जैसे मृदा की भौतिक, रासायनिक संरचना प्रभावित होना, मृदा उर्वरता एवं जल धारण क्षमता कम होना आदि से बचा जा सकता है। 

  • संरक्षित खेती द्वारा मूंग की खेती करने से फसल को अधिक तापमान से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है। फसल अवशेष मिट्टी के तापमान को कम करने में सहायक होता है। 

  • संरक्षित खेती द्वारा मूंग की खेती करने से सिंचाई जल की भी बचत होती है।

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जानिए दलहनी फसलों में मोलिब्डेनम का महत्व

Molybdenum is one of the eight essential micronutrients needed by plants. Plants absorb molybdenum in the form of molybdheth. Molybdenum is mainly located in the phloem and vascular parenchyma and is the mobile element in plants. Molybdenum is needed for the chemical transformation of nitrogen in plants.
  • किसान भाइयों मोलिब्डेनम पौधों द्वारा ग्रहण किये जाने वाले आठ आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों में से एक है। पौधे मोलिब्ढेथ के रूप में मोलिब्डेनम को अवशोषित करते हैं।

  • मोलिब्डेनम मुख्य रूप से फ्लोएम और नाड़ी पैरेन्काइमा में स्थित होता है और पौधों में चलायमान तत्व के रूप में होता है। पौधों में नाइट्रोजन के रासायनिक परिवर्तन के लिए मोलिब्डेनम की आवश्यकता होती है। 

  • मोलिब्डेनम तत्व दलहनी फसलों की जड़ों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणुओं के कार्य में सहयोगी होता है। इसकी कमी से पौधे में होने वाली एमिनो एसिड तथा प्रोटीन निर्माण की समस्त क्रियाएं शिथिल हो जाती हैं। इससे पौधों की रोगरोधी क्षमता कम होने लगती है साथ ही यह पौधों में विटामिन-सी व शर्करा के संश्लेषण में सहायक है।

  • कमी के लक्षण- नई पत्तियां सूख जाती हैं, हल्के हरे रंग की हो जाती हैं, मध्य शिराओं को छोड़कर पूरी पत्तियों पर सूखे धब्बे दिखाई देते हैं। नाइट्रोजन के उचित ढंग से उपयोग न होने के कारण पुरानी पत्तियां हरित महीन होने लगती हैं। 

  • मोलिब्डेनम की कमी जिन पौधों में होती है, वहां नाइट्रेट पत्तियों में जमा हो जाता है और पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन का निर्माण नहीं होने देता है। इसका परिणाम ये होता है कि नाइट्रोजन की कमी के कारण पौधों का विकास अवरुद्ध हो जाता है।

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फेरोमोन ट्रैप के माध्यम से होगा कीट प्रबंधन, मिलेगा जबरदस्त लाभ

Take advantage of pest management by pheromone trap
  • किसान भाइयों हमारी विभिन्न फसलों में अलग अलग प्रकार के फल छेदक कीट फलों को नुकसान पहुंचाते हैं। इसके नियंत्रण के लिए फेरोमोन ट्रैप उपयोगी होता है। यह एक प्रकार का कीट जाल होता है जो कीड़ों को लुभाने के लिए उपयोग किया जाता है।

  • अलग अलग प्रकार के कीटों के लिए अलग अलग प्रकार के फेरोमोन ट्रैप का उपयोग किया जाता है।

  • इसे खेत के चारो कोनों पर लगाया जाता है। हर फेरोमोन ट्रैप में एक कैप्सूल लगा होता है जिसकी गंध पाकर नर वयस्क इसकी ओर आकर्षित होता है और फिर फेरोमोन जाल में कैद हो जाता है। 

  • इस नई तकनीक का लाभ यह है कि किसान अपने खेतों पर कीड़ों की संख्या का आंकलन कर सही समय पर कीट के नियंत्रण के उपाय कर सकते हैं।

  • यह फल मक्खी एवं इल्ली वर्गीय कीट से छुटकारा पाने का सबसे सस्ता जैविक तरीका है।

  • फेरोमोन जाल कीटों के नियंत्रण का एक बहुत ही अच्छा तरीका है जिससे कीट के जीवन चक्र को नियंत्रित किया जा सकता है।

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कद्दू वर्गीय फसलों में फूल झड़ने के कारण एवं नियंत्रण के उपाय

Diagnosis of flower dropping problem in cucurbits
  • किसान भाइयों कद्दू वर्गीय फसलों के अंतर्गत मुख्यतः खीरा, लौकी, करेला, गिलकी, तोरई, कद्दू, छप्पन कद्दू, तरबूज एवं खरबूज आदि फसलें आती हैं।  

  • इन फसलों में पुष्प झड़ने की समस्या के कई कारण हो सकते हैं। इनमें फसल में पोषक तत्वों की कमी, कीट तथा बीमारियों का प्रकोप, अधिक नमी, वातावरण परिवर्तन आदि प्रमुख कारण होते हैं। 

  • अधिक मात्रा में फूल गिरने के कारण फसल उत्पादन बहुत प्रभावित होता है। 

  • फसल में पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए पुष्प अवस्था में पोषण प्रबंधन करना बेहद जरूरी होता है। 

  • इस समस्या के निवारण के लिए सूक्ष्म पोषक तत्व [एरीस] @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • फूल गिरने से रोकने के लिए डबल (होमब्रेसिनोलाइड) @ 100 मिली या टाबोली (पिक्लोबूट्राज़ोल 40% एससी) @ 30 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव कर सकते हैं। 

  • प्लानोफिक्स (अल्फा नैफ्थाइल एसिटिक एसिड 4.5% एसएल) @4 मिली प्रति पंप की दर से छिड़काव करें।  

  • फसल में फूलों की संख्या बढ़ाने के लिए 0:52:34 @ 1 किलो प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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खेती प्लस सॉइल मैक्स के तहत मिट्टी परीक्षण के फायदे

Kheti plus soil max
  • किसान भाइयों, खेती प्लस सॉइल मैक्स के अंतर्गत अगर आप मिट्टी परीक्षण करवाएंगे तो इसके तहत ग्रामोफोन के कृषि अधिकारी स्वयं आपके खेत पर आएंगे एवं मिट्टी का नमूना लेने में किसान की मदद करेंगे l

  • मिट्टी के नमूने में उपलब्ध 12 तत्वों, जैसे खनिज, सूक्ष्म पोषक तत्व तथा रासायनिक संरचना की उपलब्ध मात्रा की संपूर्ण सूची दी जाएगी।

  • मिट्टी की जांच और लेबोरेटरी द्वारा दी गयी रिपोर्ट के अनुसार, 12 तत्वों के संतुलन या असंतुलन की स्थिति के अनुरूप, खाद डालने की संपूर्ण सूची दी जाएगी। 

  • स्वस्थ फसलें उगाने के लिए मिट्टी की उर्वरकता बढ़ाने की आधुनिक विधि बताई जायेगी। 

  • रासायनिक उर्वरकों का आवश्यकता अनुसार उपयोग, कम छिड़काव में फसल सुरक्षा के सुझाव मिलेंगे। 

  • मिट्टी की संरचना को सुधारने की विधि बताई जायेगी।  

  • मिट्टी में हो रही खनिज और सूक्ष्म पोषक तत्व की अभाव की जानकारी और निवारण के सुझाव मिलेंगे। 

  • प्रदूषित या दूषित मिट्टी की पहचान और निवारण के सुझाव दिए जाएंगे।

  • बुआई से कटाई तक समय समय पर विशेषज्ञों द्वारा सही सलाह, समाधान के अनुसार साधन की घर पहुंच सेवा, पक्के GST बिल के साथ मिलेगी।  

  • मिट्टी परीक्षण से मिट्टी में उपस्थित तत्वों का सही सही पता लगाया जाता है। इसकी मदद से मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्व की मात्रा के अनुसार संतुलित मात्रा में उर्वरक देकर फसल के लिए उपयोगी बनाया जा सकता है। इससे फसल की पैदावार भी अच्छी होती है।

  • मिट्टी परीक्षण से मिट्टी का पीएच मान, विद्युत चालकता (लवणों की सांद्रता), जैविक कार्बन, उपलब्ध नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, जिंक, बोरोन, सल्फर, आयरन, मैंगनीज़, कॉपर आदि का पता लगाया जाता है। 

मिट्टी परीक्षण कराने के लिए यहाँ क्लिक करें: खेती प्लस सॉइल मैक्स 

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करेले की फसल में पाउडरी मिल्ड्यू रोग की रोकथाम के उपाय

Management of powdery mildew disease in bitter gourd crop
  • किसान भाइयों करेले की फसल में होने वाला यह रोग करेले की पत्तियों, तने एवं कभी कभी फलों को भी प्रभावित करता है। 

  • इसके कारण करेले की पत्तियों की ऊपरी एवं निचली सतह पर पीले से सफेद रंग का चूर्ण दिखाई देता है l जिसके कारण पौधे की प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बाधित होती है। इसके फलस्वरूप पत्तियां पीली हो जाती है और सूख कर झड़ जाती है।  

  • गर्म, शुष्क मौसम की स्थिति इस रोग को बढ़ावा मिलता है l 

  • इनके प्रबंधन के लिए कस्टोडिया (एजेस्ट्रोबिन 11%+ टेबूकोनाज़ोल 18.3% एससी) @ 300 मिली या कर्सर (फ्लुसिलाज़ोल 40% ईसी) @ 60 मिली या इंडेक्स (मायक्लोबुटानिल 10% डब्ल्यूपी) @ 100 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।  

  • जैविक उपचार रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी 500 ग्राम + स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

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