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किसान भाइयों, खेती प्लस सॉइल मैक्स के अंतर्गत अगर आप मिट्टी परीक्षण करवाएंगे तो इसके तहत ग्रामोफोन के कृषि अधिकारी स्वयं आपके खेत पर आएंगे एवं मिट्टी का नमूना लेने में किसान की मदद करेंगे l
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मिट्टी के नमूने में उपलब्ध 12 तत्वों, जैसे खनिज, सूक्ष्म पोषक तत्व तथा रासायनिक संरचना की उपलब्ध मात्रा की संपूर्ण सूची दी जाएगी।
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मिट्टी की जांच और लेबोरेटरी द्वारा दी गयी रिपोर्ट के अनुसार, 12 तत्वों के संतुलन या असंतुलन की स्थिति के अनुरूप, खाद डालने की संपूर्ण सूची दी जाएगी।
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स्वस्थ फसलें उगाने के लिए मिट्टी की उर्वरकता बढ़ाने की आधुनिक विधि बताई जायेगी।
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रासायनिक उर्वरकों का आवश्यकता अनुसार उपयोग, कम छिड़काव में फसल सुरक्षा के सुझाव मिलेंगे।
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मिट्टी की संरचना को सुधारने की विधि बताई जायेगी।
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मिट्टी में हो रही खनिज और सूक्ष्म पोषक तत्व की अभाव की जानकारी और निवारण के सुझाव मिलेंगे।
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प्रदूषित या दूषित मिट्टी की पहचान और निवारण के सुझाव दिए जाएंगे।
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बुआई से कटाई तक समय समय पर विशेषज्ञों द्वारा सही सलाह, समाधान के अनुसार साधन की घर पहुंच सेवा, पक्के GST बिल के साथ मिलेगी।
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मिट्टी परीक्षण से मिट्टी में उपस्थित तत्वों का सही सही पता लगाया जाता है। इसकी मदद से मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्व की मात्रा के अनुसार संतुलित मात्रा में उर्वरक देकर फसल के लिए उपयोगी बनाया जा सकता है। इससे फसल की पैदावार भी अच्छी होती है।
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मिट्टी परीक्षण से मिट्टी का पीएच मान, विद्युत चालकता (लवणों की सांद्रता), जैविक कार्बन, उपलब्ध नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, जिंक, बोरोन, सल्फर, आयरन, मैंगनीज़, कॉपर आदि का पता लगाया जाता है।
करेले की फसल में पाउडरी मिल्ड्यू रोग की रोकथाम के उपाय
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किसान भाइयों करेले की फसल में होने वाला यह रोग करेले की पत्तियों, तने एवं कभी कभी फलों को भी प्रभावित करता है।
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इसके कारण करेले की पत्तियों की ऊपरी एवं निचली सतह पर पीले से सफेद रंग का चूर्ण दिखाई देता है l जिसके कारण पौधे की प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बाधित होती है। इसके फलस्वरूप पत्तियां पीली हो जाती है और सूख कर झड़ जाती है।
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गर्म, शुष्क मौसम की स्थिति इस रोग को बढ़ावा मिलता है l
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इनके प्रबंधन के लिए कस्टोडिया (एजेस्ट्रोबिन 11%+ टेबूकोनाज़ोल 18.3% एससी) @ 300 मिली या कर्सर (फ्लुसिलाज़ोल 40% ईसी) @ 60 मिली या इंडेक्स (मायक्लोबुटानिल 10% डब्ल्यूपी) @ 100 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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जैविक उपचार रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी 500 ग्राम + स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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लौकी की फसल में पर्ण सुरंगक कीट का ऐसे करें नियंत्रण
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किसान भाइयों, पर्ण सुरंगक को लीफ माइनर के नाम से भी जाना जाता है। यह कीट फसलों की पत्तियों में सफेद टेढ़ी मेढी संरचनाएं बनाता है। इस कीट के वयस्क गहरे रंग के होते है।
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इस कीट की मादा पतंगा पत्तियों के अंदर अंडे देती है जिनसे सुंडी निकलकर हरे पदार्थ को खा कर नुकसान पहुंचाती है। इसपर दिखने वाली धारियाँ दरअसल इल्ली के द्वारा पत्ती के अंदर सुरंग बनाने के कारण होती है।
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इस कीट के प्रकोप से पौधे की बढ़वार रुक जाती है एवं पौधे छोटे रह जाते हैं।
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कीट से ग्रसित पौधों की फल एवं फूल लगने की क्षमता पर बहुत प्रभाव पड़ता है।
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इसके नियंत्रण के लिए अबासीन (एबामेक्टिन 1.9 % ईसी) @ 150 मिली या प्रोफेनोवा (प्रोफेनोफोस 50% ईसी) @ 500 मिली या नोवोलेक्सम (थियामेंथोक्साम 12.6%+ लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 9.5% जेडसी) @ 80 मिली या बेनेविया (सायनट्रानिलीप्रोल 10.26% ओडी) @ 250 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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जैविक उपचार के रूप में बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना) @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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सब्जियों में अधिक फूल एवं फल विकास के लिए अपनाएं ये उपाय
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किसान भाइयों गर्मियों में सब्जियों की फसल बहुत अधिक लाभकारी होती है परंतु जितनी यह फसलें लाभकारी होती है उतनी ही इनकी देखभाल भी आवश्यक होती है।
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सब्जियों में बेहतर फूल एवं फल विकास से ही उच्च गुणवत्ता वाली उपज प्राप्त की जा सकती है। इसके लिए निम्न छिड़काव उपयोग में ला सकते है।
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डबल (होमब्रेसिनोलाएड) @ 100 मिली प्रति एकड़ की दर से उपयोग कर सकते हैं।
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पौधों में फूल आने के पहले एवं बाद में नोवामैक्स (जिब्रेलिक एसिड 0.001% एल) @ 300 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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Shareमिट्टी का नमूना लेते समय रखी जाने वाली सावधानियां
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किसान भाइयों मिट्टी की जांच कराना हमारे लिए बहुत ही आवश्यक होता है। जिससे मिट्टी में उपस्थित पोषक तत्वों का पता लगाकर खाद एवं उर्वरकों के खर्च को बचाया जा सकता है। मिट्टी की जाँच कराने के लिए नमूना लेते समय निम्न बातों का विशेष ध्यान रखें –
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पेड़ के नीचे, मेड़ के पास से, निचले स्थानों से, जहां खाद का ढेर हो, जहां जल भराव होता हो आदि स्थानों से नमूना नहीं लेना चाहिए।
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मिट्टी परीक्षण के लिए नमूना इस तरीके से लें कि वह स्थान पूरे खेत का प्रतिनिधित्व करता हो, इसके लिए कम से कम 500 ग्राम नमूना अवश्य लेना चाहिए।
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मिट्टी की ऊपरी सतह से कार्बनिक पदार्थों जैसे टहनियाँ, सूखे पत्ते, डंठल एवं घास आदि को हटाकर खेत के क्षेत्र के अनुसार 8-10 स्थानों का नमूना लेने हेतु चुनाव करें।
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चयनित स्थानों पर लगाई जाने वाली फसल की जड़ की गहराई जितनी गहराई से ही मिट्टी का नमूना लेना चाहिए।
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मिट्टी का नमूना किसी साफ बाल्टी या तगारी में एकत्रित करना चाहिए। मिट्टी के इस नमूने की लेबलिंग ज़रूर कर लें।
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यदि नमूना लेने वाला क्षेत्र बड़ा है तो नमूने की संख्या उसी के अनुरूप बढ़ा देनी चाहिए l
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ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती के हैं कई फायदे
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प्रिय किसान भाइयों ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती आपके लिए काफी लाभकारी होगी।
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मूगं की फसल खरपतवारों को नियंत्रित करती है और गर्मियों में हवा के कटाव को रोकती है।
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फसल पर कीट एवं रोगों का प्रकोप बहुत कम होता है।
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फसल कम समय में पक कर तैयार हो जाती है।
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ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल कम समय एवं कम खर्च में आसानी से उगाई जा सकती है।
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मूंग की फसल नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सहायक होती है, यह लगभग 10-15 किलोग्राम प्रति एकड़ नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करती है जिसे अगली खरीफ फसल में उर्वरकों को देते समय समायोजित किया जा सकता है।
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खरीफ मौसम के दौरान उगाई जाने वाली अनाज की फसल को छोड़े बिना दलहन के तहत क्षेत्र और उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।
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आलू, गेहूँ, सर्दियों में लगाई जाने वाली मक्का, गन्ना आदि अधिक उर्वरक की मांग वाली फसलों के बाद इस कम उर्वरक मांग वाली फसल को लगाना लाभप्रद रहता है।
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तरबूज की फसल में लगने वाले रोगों का ऐसे करें प्रबंधन
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किसान भाइयों तरबूज की फसल से अच्छा उत्पादन लेने के लिए फसल बुवाई से फसल कटाई तक पौध संरक्षण पर ध्यान रखना चाहिए। तरबूज की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कुछ प्रमुख रोगों की पहचान व प्रबंधन निम्नलिखित प्रकार से कर सकते हैं।
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डाउनी मिल्ड्यू रोग में पत्तियों की ऊपरी सतह पर पीला धब्बा एवं निचली सतह पर भूरा चूर्ण जमा हो जाता है एवं पाउडरी मिल्ड्यू रोग में पत्तियों की ऊपरी एवं निचली सतह पर सफेद रंग का चूर्ण दिखाई देता है। इन दोनों रोगों के प्रबंधन के लिए कस्टोडिया (एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11%+ टेबुकोनाजोल 18.3% एससी) @ 300 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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गमी स्टेम ब्लाइट रोग जिसे गमोसिस ब्लाइट के नाम से भी जानते हैं। इस रोग का एक मुख्य लक्षण यह है कि इस रोग से ग्रसित तने से गोंद जैसा चिपचिपा पदार्थ निकलता है l इसके प्रबंधन के लिए जटायु (क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यूपी) @ 300 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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एन्थ्रेक्नोज रोग में फल बिना पके ही गिरने लगते हैं जिससे उपज में भारी नुकसान होता है। इसके प्रबंधन के लिए कोनिका (कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% डब्ल्यूपी) @ 300 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल में शून्य जुताई से मिलेंगे कई लाभ
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किसान भाइयों शून्य जुताई या नो टिल फार्मिंग, खेती करने का वह तरीका है जिसमें भूमि को बिना जोते ही बार-बार कई वर्षों तक फसलें उगाई जाती है।
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शून्य जुताई द्वारा पूरे फसल चक्र में लगभग 50 -60 दिन की बचत होती है इस समय किसान खेत में मूंग जैसी फसलें लगाकर अतिरिक्त आय ले सकते हैं।
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इस समय किसान भाई गेहूँ की कटाई के बाद फसल अवशेष हटाए बिना हल्की सिंचाई कर हैप्पी सीडर, पंच प्लांटर, जीरो टिलेज सीड ड्रिल आदि मशीनों द्वारा मूंग की बुवाई कर निम्न लाभ उठा सकते हैं –
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शून्य जुताई प्रक्रिया अपनाने से जुताई की लागत, सिंचाई जल एवं समय की बचत होती है।
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इसके साथ ही ऊर्जा, इंधन व बिजली की लागत में भी कमी आती है।
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उर्वरक, कीटनाशक एवं अन्य रसायनों के उपयोग में बचत होती है।
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मिट्टी की भौतिक, जैविक संरचना एवं रासायनिक स्थिति में सुधार होता है।
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उपज एवं गुणवत्ता में भी वृद्धि होती है।
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इस योजना से मध्यप्रदेश के किसान विदेश जाकर सीख सकते हैं आधुनिक कृषि तकनीक
मध्य प्रदेश के किसानों को विकसित देशों में आधुनिक कृषि तकनीकों से रूबरू करवाने और इसकी प्रायोगिक जानकारी दिलवाने के लिए मध्य प्रदेश सरकार द्वारा एक योजना चलाई जाती है जिसका लाभ किसान भाई प्राप्त कर सकते हैं। इस योजना का नाम है मुख्यमंत्री किसान विदेश अध्ययन यात्रा योजना।
इस योजना का लाभ मध्यप्रदेश के सभी वर्ग के लघु तथा सीमांत किसान उठा सकते हैं। इस योजना के अंतर्गत चयनित होने पर कुल व्यय का 90%, अजजा एवं अजा वर्ग के किसानों को 75% तथा अन्य किसानों को 50% तक का अनुदान सरकार प्रदान करती है।
पिछले कुछ वर्षों में इस योजना के अंतर्गत किसानों के विभिन्न दल विदेश यात्रा पर गए। इस दौरान उन्होंने उन्नत कृषि, उद्धनिकी कृषि अभियांत्रिकी, पशुपालन, मत्स्य पालन से जुड़ी आधुनिक तकनीकें ब्राजील – आर्जेन्टीना, फिलिपिन्स – ताईवान जैसे देशों में सीखी।
अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर जाएँ http://mpkrishi.mp.gov.in/hindisite_New/pdfs//Videsh_Yatra.pdf
स्रोत: किसान समाधान
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मिलेगी मूंग की उच्च पैदावार, उचित समय पर करें बुवाई का कार्य
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किसान भाइयों ग्रीष्मकालीन मूंग की बुवाई फरवरी से 10 अप्रैल तक कर सकते हैं। वहीं खरीफ के मौसम में जून जुलाई माह इसकी बुवाई के लिए उपयुक्त रहता है।
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बुवाई में देरी होने से उच्च तापमान एवं गर्म हवाएं मूंग के फूल एवं फली अवस्था पर विपरीत प्रभाव डालती है, फलस्वरूप पैदावार कम होती है।
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इसी प्रकार देर से बोई गई फसल के परिपक्व होने के साथ ही समय से पूर्व आ जाने वाली मानसूनी वर्षा पत्तों से संबंधित अनेक बीमारियों का कारण बनती है।
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ग्रीष्मकालीन मूंग गेहूँ कटाई के बाद बिना जुताई के फसल अवशेषों की उपस्थिति में भी हैप्पी सीडर द्वारा बोई जा सकती है।
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यदि खेत में गेहूँ के अवशेष ना हो तो जीरो टिल ड्रिल से बुवाई की जा सकती है।
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जीरो टिलेज द्वारा समय, धन, ऊर्जा तीनों की बचत होती है।
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