मध्य प्रदेश की मंडियों में गेहूँ भाव में दिखी कितनी तेजी?

wheat mandi rates

आज मध्य प्रदेश के अलग अलग मंडियों जैसे झाबुआ, श्योपुर, पन्ना, विदिशा, मन्दसौर, राजगढ़, अशोकनगर आदि में क्या चल रहे हैं गेहूँ के भाव? आइये देखते हैं पूरी सूची।

क्रमांक

जिला

मंड़ी

न्यूनतम मूल्य (प्रति क्विंटल)

अधिकतम मूल्य (प्रति क्विंटल)

1

विदिशा

लटेरी

1,850

1975

2

अशोकनगर

ईसागढ़

1,880

2,250

3

सागर

शाहगढ़

1,875

1,955

4

विदिशा

लटेरी

2,375

2,450

5

अनुपपूर

जैथरी

1,850

1,850

6

मन्दसौर

शामगढ़

1,890

2,035

7

विदिशा

लटेरी

2,000

2,255

8

झाबुआ

झाबुआ

2,050

2,050

9

श्योपुर

श्योपुरबड़ोद

1,865

2,021

10

पन्ना

अजयगढ़

1,900

1,930

11

राजगढ़

पचौरी

1,900

2,121

स्रोत: राष्ट्रीय कृषि बाजार

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ऐसे करें, सोयाबीन की फसल के लिए खेत की तैयारी

👉🏻प्रिय किसान, सोयाबीन की फसल के लिए 3 वर्ष में कम से कम एक बार ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई अवश्य करनी चाहिये। 

👉🏻वर्षा प्रारंभ होने पर 2 या 3 बार कल्टीवेटर तथा हैरो चलाकर खेत को तैयार कर लेना चाहिये। अंत में पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए। इससे हानि पहुंचाने वाले कीटों की सभी अवस्थाएं नष्ट होगी। ढेला रहित और भुरभुरी मिट्टी वाले खेत सोयाबीन के लिये उत्तम होते हैं।

👉🏻खेत की तैयारी के समय गोबर की खाद @ 4-5 टन + सिंगल सुपर फॉस्फेट @ 50 किलो प्रति एकड़ की दर से बुवाई से पहले खेत में मिलाना चाहिए।  

👉🏻बुवाई के समय DAP @ 40 किलो + म्यूरेट ऑफ़ पोटाश @ 30 किलो + 2 किलो फॉस्फोरस (घुलनशील बैक्टीरिया) + पोटाश गतिशील बैक्टीरिया का कन्सोर्टिया + 1 किलो राइज़ोबियम कल्चर को प्रति एकड़ की दर से खेत में सामान रूप से मिला देना चाहिए। 

👉🏻खाद एवं उर्वरकों की मात्रा मृदा परीक्षण रिपोर्ट, स्थान एवं किस्मों के अनुसार भिन्न हो सकती है। 

👉🏻सफ़ेद ग्रब की समस्या से बचने के लिए उर्वरकों के पहले डोज़ के साथ कालीचक्र (मेटाराईजियम स्पीसीज) @ 2 किलो की मात्रा को 50 किलो गोबर की खाद/कम्पोस्ट के साथ मिलाकर प्रति एकड़ की दर से खेत में भुरकाव करें।

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जानिए, मिर्च की नर्सरी में कब करें दूसरा छिड़काव

👉🏻प्रिय किसान, मिर्च की फसल में रस चूसक कीट जैसे थ्रिप्स, माहू, सफेद मक्खी एवं फफूंद जनित रोग आर्द्र गलन, जड़ सड़न से सुरक्षा के लिए फसल की 25 – 30 दिनों की अवस्था में या रोपाई के 5 दिन पहले छिड़काव करना अतिआवश्यक है।

👉🏻जिससे की स्वस्थ पौध की मुख्य खेत में रोपाई की जा सके तथा पौधे का उचित वृद्धि-विकास हो सके।  

👉🏻जरुरी छिड़काव:- 1.अबासिन (एबामेक्टिन 1.9% ईसी) @ 15 मिली + संचार (मेटालैक्सिल 4 % +  मैनकोज़ेब 64% डब्ल्यूपी) @ 60 ग्राम + मैक्सरुट 15 ग्राम, प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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सोयाबीन में बीज उपचार कर स्वस्थ फसल पाएं

👉🏻किसान भाइयों, सोयाबीन की फसल में बुवाई से पहले बीजों का उपचार करना बहुत आवश्यक होता है।

👉🏻सोयाबीन की फसल में बीज उपचार जैविक एवं रसायनिक दोनों विधियों से किया जा सकता है।  

👉🏻सोयाबीन में बीज उपचार फफूंदनाशी एवं कीटनाशी दोनों से किया जाता है। 

👉🏻फफूंदनाशी से बीज उपचार करने के लिए करमानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% डब्ल्यूपी) @ 2.5 ग्राम/किलो बीज या वीटा वैक्स अल्ट्रा (कार्बोक्सिन 17.5%+ थायरम 17.5% एफएफ) @ 2.5 मिली/किलो बीज या कॉम्बैट (ट्रायकोडर्मा विरिडी) @ 5-10 ग्राम/किलो बीज की दर से उपचारित करें। 

👉🏻कीटनाशी से बीज उपचार करने के लिए थायो नोवा सुपर (थायोमिथोक्साम 30% एफएस) @ 4 मिली/किलो बीज या गौचो (इमिडाक्लोरोप्रिड 48% एफएस) @ 1.25 मिली/किलो बीज से बीज उपचार करें। 

👉🏻सोयाबीन फसल में नाइट्रोज़न स्थिरीकरण को बढ़ाने के लिए राइजोबियम [जैव वाटिका -आर सोया] @ 5 ग्राम किलो बीज से उपचारित करें।  

👉🏻फफूंदनाशी से बीज उपचार करने से सोयाबीन उकठा रोग, जड़ सड़न रोग से सुरक्षित रहती है। 

बीज का अंकुरण सही ढंग से होता है अंकुरण प्रतिशत बढ़ता है, फसल का प्रारंभिक विकास समान रूप से होता है।

👉🏻राइज़ोबियम से बीज़ उपचार सोयाबीन की फसल की जड़ो में गाठो (नॉड्यूलेशन) को बढ़ाता है एवं अधिक नाइट्रोज़न का स्थिरीकरण करती है।  

👉🏻कीटनाशकों से बीज उपचार करने से मिट्टी जनित कीटो जैसे-सफ़ेद ग्रब, चींटी, दीमक आदि से सोयाबीन की फसल की रक्षा होती है। 

👉🏻प्रतिकूल परिस्थितियों (कम/उच्च नमी) में भी अच्छी फसल प्राप्त होती है।

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ग्रीष्मकालीन मूंग की कटाई एंव गहाई

👉🏻मूंग की फसल 65-70 दिन में पक जाती है। अर्थात मार्च- अप्रैल माह में बोई गई फसल मई-जून माह में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।

👉🏻फलियाँ पक कर, हल्के भूरे रंग की अथवा काली होने पर कटाई योग्य हो जाती है।

👉🏻पौधें में फलियाँ असमान रूप से पकती हैं, यदि पौधे की सभी फलियों के पकने की प्रतीक्षा की जाये तो ज्यादा पकी हुई फलियाँ चटकने लगती है। अतः फलियों की तुड़ाई हरे रंग से काला रंग होते ही 2-3 बार में कर लें और बाद में फसल को पौधें के साथ काट लें। 

👉🏻अपरिपक्वास्था में फलियों की कटाई करने से दानों की उपज एवं गुणवत्ता दोनों खराब हो जाते हैं। 

👉🏻हॅंसिए से फसल काटकर खेत में एक दिन सुखाने के उपरान्त खलियान में लाकर सुखाते है। सुखाने के उपरान्त डंडे से पीट कर या थ्रेसर का उपयोग कर गहाई कार्य किया जा सकता है।

👉🏻फसल अवशेष को रोटावेटर चलाकर भूमि में मिला दें ताकि यह हरी खाद का काम करें। इससे मृदा में लगभग 10 से 12 किलो प्रति एकड़ नाइट्रोजन की पूर्ति आगामी फसल के लिए हो जाती है।

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खीरे में पर्ण सुरंगक (लीफ माइनर) कीट के रोकथाम के उपाय

👉🏻किसान भाइयों लीफ माइनर कीट के शिशु कीट बहुत छोटे, पैर विहीन, पीले रंग के व प्रौढ़ कीट हल्के पीले रंग के होते है। 

👉🏻इसकी क्षति के लक्षण सबसे पहले पत्तियों पर दिखाई देते है। 

👉🏻इस कीट का इल्ली पत्तियों के अंदर प्रवेश कर हरित पदार्थ को खाकर सुरंग बनाते हैं। जिसके कारण पत्तियों पर सफेद लकीरें दिखाई देती है। 

👉🏻प्रभावित पौधे पर फल कम लगते है और पत्तियां समय से पहले गिर जाती है। पौधों की बढ़वार रुक जाती है एवं पौधे छोटे रह जाते है। 

👉🏻इस कीट के आक्रमण के कारण पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया भी प्रभावित होती है।  

👉🏻इस कीट के नियंत्रण के लिए अबासीन (एबामेक्टिन 1.9 % ईसी) @ 150 मिली या ट्रेसर (स्पिनोसेड 45% एससी) @ 60 मिली या बेनेविया (सायनट्रानिलीप्रोल 10.26% ओडी) @ 250 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

👉🏻जैविक उपचार के लिए बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना) @ 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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कपास की वृद्धि अवस्था में कीट एवं रोगों प्रबंधन के उपाय

👉🏻किसान भाइयों, कपास फसल की शुरुआती अवस्था में अनेक प्रकार के कीट एवं फफूंदी जनित रोगों का प्रकोप होने की संभावनाएं होती है l इनके बचाव के उपाय यदि सही समय पर किये जाये तो इनका नियंत्रण बहुत अच्छी तरह से किया जा सकता है। 

👉🏻फफूंदी जनित रोगों के प्रभावी नियंत्रण के लिए कोनिका (कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% डब्ल्यूपी) @ 300 ग्राम/एकड़ या मिल्ड्यू विप (थियोफैनेट मिथाइल 70% डब्ल्यूपी) @ 300 ग्राम/एकड़ या कीटाजिन @ 200 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें या कॉम्बैट (ट्राइकोडर्मा विरिडी) @ 1 किलो/एकड़ की दर से पकी हुई गोबर के साथ मिलाकर उपयोग करें।

👉🏻कीटों के प्रभावी नियंत्रण के लिए असाटाफ (ऐसीफेट 75% एसपी) @ 300 ग्राम/एकड़ + फॉसकील (मोनोक्रोटोफॉस 36% एसएल) @ 400 मिली/एकड़ या मीडिया (इमिडाक्लोरोप्रिड 17.8% एसएल) @ 100 मिली/एकड़ या नोवासीटा (एसिटामेंप्रिड 20% एसपी) @ 100 ग्राम/एकड़ या बवे कर्ब (बेवेरिया बेसियाना) @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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देश के प्रमुख मंडियों में 3 जून को क्या रहे लहसुन के भाव?

Indore garlic Mandi bhaw

लहसुन भाव में कितनी तेजी या मंदी देखने को मिल रही है? वीडियो के माध्यम से देखें अलग अलग मंडियों में क्या चल रहा है लहसुन का भाव !

स्रोत: ऑल इनफार्मेशन

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कपास की फसल में खरपतवार प्रबंधन के उपाय

👉🏻किसान भाइयों कपास में पहली बारिश के बाद खरपतवार निकलने लगते हैं।

👉🏻इसके नियंत्रण के लिए हाथ से निराई गुड़ाई करें।

👉🏻रासायनिक प्रबंधन में संकरी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए टरगा सुपर (क्विज़ालोफॉप एथिल 5% ईसी) @ 400 मिली/एकड़ की दर से उपयोग करें।

👉🏻पहली बारिश के 3-5 दिन बाद या 2-3 पत्ती अवस्था में हिटविड मैक्स (पाइरिथायोबैक सोडियम 10% + क्विजालीफॉप इथाइल 4% ईसी) @ 400 मिली/एकड़ की दर से उपयोग कर सकते हैं। 

👉🏻जब फसल छोटी हो तो इस समस्या से बचने के लिए मिट्टी की सतह पर छिड़काव करें। खरपतवारनाशी का उपयोग नोजल के ऊपर हुड लगाकर उपयोग करें।

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धान की यह उन्नत किस्में लगाएं बंपर पैदावार पाएं

👉🏻किसान भाइयों धान, खरीफ की प्रमुख फसलों में से एक फसल है, इसकी बुवाई के लिए उन्नत किस्मों का चयन कर किसान भाई उच्च उपज प्राप्त कर सकते है। आइये जानते हैं धान की उन्नत किस्मों के बारे में –

👉🏻अराइज तेज:- मध्य अवधि 125-130 दिनों में तैयार होने वाली किस्म, खाने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाला लंबा पतला दाना, 70% से अधिक उच्च मिलिंग प्रतिशत। 

👉🏻अराइज 6444 गोल्ड:- 12-15 प्रति पौधा कल्लों की संख्या, सीधी बुवाई के लिए उपयुक्त, फसल अवधि 135 -140 दिन, बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी किस्म। 

👉🏻अराइज धानी:- बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट रोग प्रतिरोधी किस्म, 140-145 दिनों में तैयार होने वाली किस्म, गैर सुगंधित, मध्यम पतला दाना, उच्च उपज संकर किस्म, व्यापक अनुकूलन क्षमता l 

👉🏻अराइज AZ 8433 DT:-  भूरा पौध फुदका (BPH) और बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति सहिष्णु, मध्यम अवधि 130-135 दिनों में पककर तैयार होने वाली किस्म। मध्यम पतला दाना, 13-15 प्रति पौधा कल्लों की संख्या, 70% से अधिक मिलिंग l 

👉🏻पायनियर P27P31:- उच्च उपज देने वाला हाइब्रिड किस्म, बारिश की स्थिति में अत्यधिक प्रभावी, तनाव सहिष्णु, मध्यम परिपक्वता (128-132 दिन), मध्यम मोटे अनाज, प्रति वर्ग मीटर अधिक पौधों की संख्या (40-42 पौधे/वर्ग मी.)

👉🏻एडवांटा पीएसी 837:- फसल अवधि 120 -125 दिनों में तैयार होने वाली किस्म, वजनदार दाने, उच्च उपज l 

👉🏻एमपी 3030:- प्रारंभिक अवधि 120-125 दिनों में तैयार होने वाली किस्म, प्रति पौधा अधिक कल्लों की संख्या, कम पानी में आवश्यकता के साथ व्यापक अनुकूलन क्षमता।

👉🏻एमसी13:– खरीफ मौसम में फसल अवधि 115-120 दिन और रबी में 130-135 दिन, मोटा और भारी अनाज, उच्च उपज फसल रोटेशन के लिए उपयुक्त l 

👉🏻पीबी 1121:- यह भारत के बासमती उत्पादक क्षेत्रों में 140-145 दिनों में पक जाती है। इसकी उपज क्षमता 5.5 टन प्रति हेक्टेयर तक है।

👉🏻पूसा बासमती -1:-  एक अर्ध-बौना पौधा है जिसमें क्षार सामग्री, अनाज बढ़ाव और समृद्ध सुगंध सहित पारंपरिक बासमती की लगभग सभी विशेषताएं शामिल हैं। इसका परिपक्वता समय – आम तौर पर लगभग 125 से 135 दिन एवं औसत उपज- 45 क्विंटल / हेक्टेयर रहती है l बिना पकाए अनाज का आकार- 7.2 मिमी और पकाने के बाद 13.91 मिमी रहता है l

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