गेहूँ की फसल बर्बाद कर सकती है फॉल आर्मी वर्म, जल्द करें नियंत्रण

How to control Fall armyworm in wheat
  • आजकल मौसम में हो रहे परिवर्तन के कारण गेहूँ की फसल में फॉल आर्मी वर्म का प्रकोप देखने को मिल रहा है।

  • यह कीट दिन में मिट्टी के ढेलों, पुआल के ढेर में छिपा रहता है और रात में गेहूँ की फसल को नुकसान पहुंचाता है।

  • यह कीट पत्तियों को खाकर उन पर खिड़कियों के समान छेद कर देते हैं। इसके अधिक प्रकोप की स्थिति में पूरी फसल को खाकर खत्म कर देते हैं।

  • यह कीट गेहूँ की बालियों को भी नुकसान पहुंचाता है। पक्षी भी इस कीट को खा कर इसका नियंत्रण कर सकते हैं।

  • पक्षिओं को खेत में आकर्षित करने के लिए 4-5/एकड़ के ‘’T’’ आकार की खूँटी का उपयोग करें। इन खूँटियों पर बैठकर पक्षी कीटों को खाते हैं।

  • बहरहाल इस कीट का प्रबंधन/नियंत्रण आवश्यक है। जिन क्षेत्रों में सैनिक कीट की संख्या अधिक है उन क्षेत्रों में निम्नांकित किसी एक कीटनाशी का छिड़काव तत्काल किया जाना चाहिए।

  • नोवालूरान 5.25% + इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% SC @ 600 मिली/एकड़ या क्लोरांट्रानिलप्रोल 18.5% SC @ 60 मिली/एकड़ या इमाबेक्टीन बेंजोएट 5% SG @ 100 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।

  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ का इस्तेमाल करें।

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गेहूँ की फसल का पर्ण झुलसा रोग से ऐसे करें बचाव

How to control leaf blight disease in Wheat
  • यह रोग मुख्यतः बाईपोलेरिस सोरोकिनियाना नामक जीवाणु द्वारा होता है। इस रोग के लक्षण पौधे के सभी भागों में पाए जाते हैं तथा पत्तियों पर इसका प्रभाव बहुत अधिक देखने को मिलता है।

  • प्रारम्भ में इस रोग के लक्षण भूरे रंग के नाव के आकार के छोटे धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं, जो कि बड़े होकर पत्तियों के सम्पूर्ण भाग पर फ़ैल जाते हैं।

  • इसके कारण पौधे के ऊतक मर जाते हैं और हरा रंग नष्ट होने लगता है, साथ ही पौधा झुलसा हुआ दिखाई देता है।

  • इससे पौधे में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बुरी तरह प्रभावित होती है, प्रभावित पौधे के बीजों में अंकुरण क्षमता कम होती है l इस रोग के लिए 25 डिग्री सेल्सियस तापमान और उच्च सापेक्ष आर्द्रता अनुकूल रहती है।

  • रासायनिक उपचार के लिए थायोफिनेट मिथाइल 70% W/P  @ 300 ग्राम /एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63%  WP  @ 300  ग्राम /एकड़  या हेक्साकोनाज़ोल 5 % SC  @ 400  मिली, प्रति एकड़ या  टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG  @ 500  ग्राम / एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75% WP  @  400 ग्राम /एकड़ या कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिडकाव करें।

  • जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर छिड़काव करें।

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आलू की फसल में पछेती झुलसा रोग का ऐसे करें निवारण

Prevention of late blight disease in potato crop

  • यह रोग आलू के पौधों की पत्तियों, तने और कंदों को प्रभावित करता है l 

  • इस रोग में पत्तियों पर अनियमित आकार के पानी से भीगे धब्बे बन जाते हैं जो पत्तियों के शीघ्र पतन का कारण बनते हैं।

  • इन धब्बों के कारण पत्तियों पर भूरे रंग की परत बन जाती है जो कि पौधे के भोजन निर्माण की प्रक्रिया को बाधित कर देती है l 

  • प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बाधित होने के कारण पौधे भोजन का निर्माण नहीं कर पाते हैं, जिसके कारण पौधे का विकास भी सही से नहीं हो पाता है एवं पौधा समय से पहले ही सूख जाता है l 

  • सफेद वृद्धि पत्तियों की सतह के नीचे, तने एवं नोड्स पर विकसित होती है इन बिंदुओं पर से तना टूट जाता है और पौधा ऊपर गिर जाता है। कंदों में, बैंगनी भूरे रंग के धब्बे जिन्हें काटने पर पूरी सतह पर फैल जाते हैं, प्रभावित कंद सतह से केंद्र तक जंग लगे भूरे रंग के परिगलन हुए दिखाई देते है।

  • रासायनिक उपचार: एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% SC @ 300 मिली या कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम या टेबुकोनाजोल 10% + सल्फर 65% WG @ 500 ग्राम या मेटालैक्सिल 4 % + मैनकोज़ेब 64%WP@ 600 ग्राम या टेबुकोनाजोल 50% + ट्राइफ्लॉक्सीस्ट्रोबिन 25% WG 150 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करे l 

  • जैविक उपचार: स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करे l

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लहसुन की फसल में सफेद सड़न के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय!

Symptoms and control measures of white rot in garlic crops
  • लहसुन की फसल में सफेद सड़न के प्रकोप के कारण पत्तियों के आधार भाग सड़ कर पीले पड़ जाते हैं, एवं मुरझाकर पत्तीयाँ गिरने लगती हैं। 

  • इसकी वजह से जड़ें और कली पर एक रोएँदार सफेद कवकजाल से ढक जाते हैं।

  • प्रभावित कली पानीदार हो जाता है, और कली के सूखने और सिकुड़ने से बाहरी परत फट जाती है। 

  • अंत में छोटे भूरे एवं काले स्क्लेरोटिया/कवक कली के प्रभावित हिस्सों पर या ऊतक के भीतर विकसित होता है।

नियंत्रण के उपाय 

  • इसकी रोकथाम के लिए, फसल चक्र अपनाना चाहिए। 

  • संक्रमित पौधे को नष्ट कर देना चाहिए।

पौधों के आसपास की मिट्टी का उपचार के रूप में, प्याज एवं लहसुन अनुसंधान निदेशालय के अनुसार  धानुस्टिन (कार्बेन्डाजिम 50 % डब्ल्यूपी) @ 15 ग्राम या भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान के अनुसार कर्मानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यूपी) @ 30 ग्राम + मैक्सरुट @10 ग्राम, प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से पौधों के जड़ क्षेत्र के पास ड्रेंचिंग करें या गहरा छिड़काव करें जिससे की पानी पौधों के जड़ तक पहुँच जाए।

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गेहूँ की फसल में पोषक तत्व प्रबंधन एवं जड़ माहू का नियंत्रण

Nutrient management and control measure of root aphid in wheat crops

पोषक तत्व प्रबंधन: गेहूँ की फसल में 20-25 दिन की अवस्था में, अच्छे पौध विकास के लिए, यूरिया 40 किलोग्राम + जिंक सल्फेट @ 5 किलोग्राम + कोसावेट (सल्फर 90% डब्ल्यूजी) @ 5 किलोग्राम + मेजरसोल (फास्फोरस 15% + पोटेशियम 15% + मैंगनीज 15% + जिंक 2.5% + सल्फर 12%) @ 5 किलोग्राम, को आपस में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें एवं भुरकाव के बाद हल्की सिंचाई करें।  

जड़ माहू के क्षति के लक्षण: यह कीट नवंबर से फरवरी माह तक अधिक मिलता है। ये पारदर्शी कीट हैं जो बहुत छोटे और कोमल शरीर वाले पीले भूरे रंग के होते हैं। यह पौधों के आधार के पास या पौधों की जड़ों पर मौजूद होते है एवं पौधों का रस चूसते है। रस चूसने के कारण पत्तियां पीली हो जाती हैं या समय से पहले परिपक्व हो जाती हैं एवं पौधे मर जाते हैं। 

नियंत्रण के उपाय: इस कीट के नियंत्रण के लिए, सिंचाई से पहले उर्वरक, रेत या मिट्टी में भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान करनाल के अनुसार  थियानोवा 25 (थियामेथोक्सम 25 % डब्ल्यूजी) @ 100 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से भुरकाव करें एवं मीडिया (इमिडाक्लोप्रिड 17.80% एसएल) @ 60 से 70 मिली + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 50 मिली + मैक्सरुट (ह्यूमिक एसिड + पोटेशियम + फुलविक एसिड) @ 100 ग्राम, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। 

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मटर की फसल में अधिक फूल धारण के लिए जरूरी छिड़काव!

Necessary spraying for more flowers in the pea crop!

मटर की फसल में अच्छे फूल धारण के लिए न्यूट्रीफुल मैक्स (फुलविक एसिड का अर्क– 20% + कैल्शियम, मैग्नीशियम और पोटैशियम ट्रेस मात्रा में 5% + अमीनो एसिड) @ 250 मिली या डबल (होमोब्रासिनोलाइड 0.04% डब्ल्यू/डब्ल्यू) @ 100 मिली + बोरोन @ 150 ग्राम प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। 

छिड़काव के फायदे 

  • इससे फूल अधिक लगते है एवं फलो की रंग एवं गुणवत्ता को बढ़ाता है। 

  • सूखे, पाले आदि के खिलाफ पौधो की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।

  • जड़ से पोषक तत्वों के परिवहन को भी बढ़ाता है। 

  • डबल एक हार्मोन है जो फूल के साथ साथ पौधो की भी वृद्धि करता है। 

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गेहूँ में ट्राई कोट मैक्स के उपयोग से तेज होगी फसल ग्रोथ की रफ़्तार

The use of Tri-Coat Maxx in wheat will speed up the growth of the crop
  • ट्राई-कोट मैक्स में जैविक कार्बन 3%, ह्यूमिक, फुलविक, कार्बनिक पोषक तत्वों का एक मिश्रण है।

  • यह अच्छे बीज अंकुरण के लिए प्रभावी है।

  • इससे उर्वरक दक्षता बढ़ती है और तीव्र जड़ विकास भी मिलता है। 

  • यह फसल में विभिन्न पोषक तत्वों के अवशोषण को बढ़ाता है।

  • यह पौधों की वानस्पतिक विकास एवं प्रजनन क्षमता बढ़ाने में मदद करता है। 

  • इससे फसल हरी भरी एवं स्वस्थ रहती है।

  • यह एक जैविक उत्पाद है इसलिए यह मिट्टी की संरचना में सुधार करता है।

ह्यूमिक एसिड: ह्यूमिक एसिड बीज के अंकुरण एवं जड़ विकास को बढ़ाता है। मिट्टी में पहले से मौजूद पोषक तत्वों की उपलब्धता को बढ़ाता है एवं सूखा के प्रति सहनशील बनाता है। मिट्टी में उपलब्ध सूक्ष्म जीवों की गतिविधि को बढ़ाता है। जिससे यह एक उत्कृष्ट जड़ उत्तेजक बन जाता है।

फुलविक एसिड: फुलविक एसिड से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया तीव्र होती है। मिट्टी में मौजूद पोषक तत्व को अवशोषित करने में मदद करता है।

मात्रा: ट्राई-कोट मैक्स @ 4 किग्रा प्रति एकड़ के हिसाब से भूमि की तैयारी या खाद के साथ जमीन में भुरकाव करें एवं बुवाई के 21 से 35 दिन बाद ट्राई-कोट मैक्स 4 किग्रा प्रति एकड़ के हिसाब से एक बार फिर से भुरकाव कर सिंचाई करें और पाएं बेहतरीन उत्पादन।

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मक्के की फसल में फॉल आर्मी वर्म के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय!

Measures for the problem of fall armyworm pest in maize crop

यह कीट मक्के की फसल की सभी अवस्थाओं में आक्रमण करते हैं। सामान्यतः यह मक्के की पत्तियों पर आक्रमण करते हैं परंतु अधिक प्रकोप होने पर यह भुट्टे को भी नुकसान पहुंचाने लगते हैं। इल्ली पौधे के ऊपरी भाग या कोमल पत्तियों पर अधिक आक्रमण करते हैं। ग्रसित पौधे की पत्तियों पर छोटे – छोटे छेद दिखाई देते हैं। नवजात इल्ली पौधे की पत्तियों को खुरच कर खाते हैं, जिससे पत्तियों पर सफेद धारियां दिखाई देते हैं। जैसे-जैसे इल्लियां बड़ी होती हैं, पौधे की ऊपरी पत्तियों को पूर्ण रूप से खाती जाती हैं। अंत में भुट्टे पर हमला करते है जिससे  गुणवत्ता और उपज दोनों में कमी आती है।

नियंत्रण के उपाय

भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान के अनुसार इसके नियंत्रण के लिए इमानोवा (इमामेक्टिन बेंजोएट 5 एसजी) @ 80 ग्राम या कोस्को (क्लोरोट्रानिलिप्रोले 18.5% एससी) 80 मिली + सिलिकोमैक्स गोल्ड  @ 50 मिली प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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आलू में मिट्टी चढ़ाने के पहले कंद विकास के लिए पोषण प्रबंधन

Nutrient management for tuber development in potato crop

आलू की बुवाई के 20-25 दिन बाद एवं मिट्टी चढ़ाने के पहले, यूरिया 45 किलोग्राम + एमओपी 50 किलोग्राम + कोसावेट (सल्फर 90% डब्ल्यूडीजी) @ 6 किलोग्राम + जिंक सल्फेट @ 5 किलोग्राम + मैग्नीशियम सल्फेट @ 5 किलोग्राम + कैलबोर (बोरॉन 4 + कैल्शियम 11 + मैग्नीशियम 1 + पोटैशियम 1.7 + सल्फर 12 %) @ 5 किलोग्राम, इन सभी को आपस में मिलाकर एक एकड़ के हिसाब से भुरकाव करें।

उपयोग के फायदे 

  • इससे पौधों को आवश्यक पोषक तत्व, सूक्ष्म एवं मुख्य पोषक तत्व मिलता है जो पौध वृद्धि के साथ साथ कंद विकास में भी मदद करता है। 

  • साथ ही प्रकाश संश्लेषण, शर्करा के परिवहन में और कोशिका भित्ति के निर्माण में सहायक होता है।

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आलू की फसल में खरपतवार नियंत्रण कर पाएं बंपर उपज

Weed control in potato crops!

आलू रबी मौसम की मुख्य नकदी फसल है। आलू की जबरदस्त उपज प्राप्ति के लिए इस समय फसल में होने वाले खरपतवारों का नियंत्रण बेहद जरूरी होता है। खरपतवार मुख्य फसल के साथ पोषक तत्वों, पानी, स्थान, प्रकाश के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। जिस कारण से पौधों में पोषक तत्व की कमी हो जाती है तथा कई प्रकार के कीट एवं बीमारी का भी प्रकोप होता है। 

खरपतवार नियंत्रण 

आलू की फसल जब 15 से 20 दिन (पौधे की उचाई 5 सेमी) की हो जाए तब खरपतवार नियंत्रण के लिए, बैरियर (मेट्रिब्यूजिन 70% डब्ल्यूपी) @ 300 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

  • यह कई घासों और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करता है।

  • जड़ों और पत्तियों के माध्यम से कार्य करता है।

  • इसका प्रयोग अंकुरण से पूर्व एवं बुवाई के 15 से 20 दिन बाद, जब पौधे की ऊंचाई 5 सेमी की हो जाये दोनों अनुप्रयोगों के लिए उपयोग किया जा सकता है।

  • व्यापक स्पेक्ट्रम गतिविधि और कम खुराक होने के कारण यह खरपतवारनाशी लागत प्रभावी होता है।

  • बाद की फसलों पर इसका कोई बुरा प्रभाव नहीं होता है।

  • इससे खरपतवार नियंत्रण करके आलू की फसल को खरपतवारो से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है एवं उत्पादन को भी बढ़ाया जा सकता है।

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