आलू की फसल में अगेती झुलसा रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय!

Symptoms and control measures of early blight in potato crops

क्षति के लक्षण

  • अगेती झुलसा रोग के लक्षण आलू के तने, पत्ते और कंदों पर दिखाई देते हैं। 

  • पत्तियों पर प्रारंभिक लक्षण के तौर पर छोटे 1-2 मिमी काले या भूरे घाव दिखाई देते हैं। 

  • अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों में घाव बड़े हो जाते हैं। 10 मिमी से अधिक व्यास वाले घावों में अक्सर गहरे छल्ले होते हैं। जैसे-जैसे घाव बढ़ते हैं, पूरी पत्तियां हरिमाहीन हो जाती हैं। 

  • तनों पर होने वाले घाव अक्सर धंसे हुए होते हैं। इसमें पौधे की मृत्यु हो सकती है।

  • गंभीर रूप से संक्रमित पत्तियाँ पीली होकर गिर जाती हैं। संक्रमित कंदों में भूरी, कार्क जैसी सूखी सड़न दिखाई देती है।

नियंत्रण के उपाय 

  • इस रोग के नियंत्रण के लिए, नोवाक्रस्ट (एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकनाज़ोल 18.3% एससी) @ 300 मिली या करमानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यूपी) @ 700 ग्राम + नोवामैक्स (जिब्रेलिक एसिड 0.001% एल) 300 मिली + सिलिकोमैक्स गोल्ड 50 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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मिर्च की बढ़िया उपज के लिए जानें नर्सरी तैयार करने का सही तरीका

Know the right way to prepare nursery for good yield of chilli
  • मिर्च की नर्सरी डालने का सही समय दिसंबर माह के अंतिम सप्ताह से फरवरी माह तक होता है।

  • एक एकड़ क्षेत्र में रोपण के लिए, 40 वर्ग मीटर के नर्सरी क्षेत्र की आवश्कता होती है।  

  • बीज के अच्छे अंकुरण एवं पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए, मिट्टी का भुरभुरा होना आवश्यक है।

  • दोमट मिट्टी वाली कार्बनिक पदार्थ से भरपूर क्षेत्र जिसका पीएच रेंज 6.5-7.5 हो और वहां अच्छी जल निकासी की व्यवस्था हो तो यह सबसे अच्छा होगा। 

  • तैयारी के लिए एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें तथा 2-3 जुताई हैरो की सहायता से करें। खेत में मौजूद अन्य अवांछित सामग्री को हटा दें। 

  • अगर मिट्टी में नमी कम हो तो पहले हल्की सिंचाई करें, फिर खेत की तैयारी करें और आखिर में पाटा चला कर खेत को समतल कर लें।

  • बीज एवं मिट्टी जनित रोग जैसे आद्र गलन, से बचाने के लिए बीज को,  कॉम्बैट (ट्राइकोडर्मा विरिडी 1.00% डब्ल्यूपी) @ 4 ग्राम या मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 1.00% डब्ल्यूपी) @ 10 ग्राम, प्रति किग्रा बीज के हिसाब से उपचारित कर बुवाई करें। 

  • खेत की तैयारी होने के बाद, गोबर की खाद – 10 किग्रा + स्पीड कम्पोस्ट 200 ग्राम  + मैक्सरूट – 50 ग्राम  + डीएपी – 1 किग्रा, को आपस में मिलाकर 40 वर्ग मीटर नर्सरी क्षेत्र के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें। 

  • बीज दर – 80 से 100 ग्राम बीज प्रति एकड़ के लिए पर्याप्त है। 

  • तैयार किये गए बेड में बीज की बुवाई करें एवं झारे की सहायता से हल्की सिंचाई करें। 

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आलू की फसल में पछेती झुलसा रोग का ऐसे करें निवारण

Prevention of late blight disease in potato crop

  • यह रोग आलू के पौधों की पत्तियों, तने और कंदों को प्रभावित करता है l 

  • इस रोग में पत्तियों पर अनियमित आकार के पानी से भीगे धब्बे बन जाते हैं जो पत्तियों के शीघ्र पतन का कारण बनते हैं।

  • इन धब्बों के कारण पत्तियों पर भूरे रंग की परत बन जाती है जो कि पौधे के भोजन निर्माण की प्रक्रिया को बाधित कर देती है l 

  • प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बाधित होने के कारण पौधे भोजन का निर्माण नहीं कर पाते हैं, जिसके कारण पौधे का विकास भी सही से नहीं हो पाता है एवं पौधा समय से पहले ही सूख जाता है l 

  • सफेद वृद्धि पत्तियों की सतह के नीचे, तने एवं नोड्स पर विकसित होती है इन बिंदुओं पर से तना टूट जाता है और पौधा ऊपर गिर जाता है। कंदों में, बैंगनी भूरे रंग के धब्बे जिन्हें काटने पर पूरी सतह पर फैल जाते हैं, प्रभावित कंद सतह से केंद्र तक जंग लगे भूरे रंग के परिगलन हुए दिखाई देते है।

  • रासायनिक उपचार: एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% SC @ 300 मिली या कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम या टेबुकोनाजोल 10% + सल्फर 65% WG @ 500 ग्राम या मेटालैक्सिल 4 % + मैनकोज़ेब 64%WP@ 600 ग्राम या टेबुकोनाजोल 50% + ट्राइफ्लॉक्सीस्ट्रोबिन 25% WG 150 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करे l 

  • जैविक उपचार: स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करे l

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भिंडी की इन उन्नत किस्मों की खेती से किसानों को होगा अच्छा मुनाफा

Advanced varieties of Okra whose cultivation will give good yield
  • आज हम बता रहे हैं भिंडी की कुछ मुख्य किस्में जिनकी खेती से किसान अच्छी उपज की प्राप्ति कर सकते हैं। 

  • ये किस्में हैं स्वर्ण |  राधिका, महिको NO-10, नुनहेम्स सिंघम 7000 सीड्स।  

  • इन किस्मों के पौधे मध्यम आकार के एवं पत्ते कटे हुए होते हैं।  

  • इन किस्मों में शाखाएं 2 से 4 होती हैं एवं 45-51 दिनों में फलों की पहली तुड़ाई ली जा सकती है। 

  • इनके फलों का आकार 5 लकीरों के साथ 12 से 14 या 12 से 16 सेमी और व्यास 1.5 से 1.8 सेमी होता है। 

  • इस किस्म में अच्छी शेल्फ लाइफ के साथ गहरे हरे रंग के कोमल फल होते जिनका वज़न 12 से 15 ग्राम होता है।

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ऐसी फसल ग्रोथ और कहाँ, आ गया थर्ड जेनरेशन ग्रोथ बूस्टर जीवा मैक्स

Accelerate crop growth with the third generation growth booster Jiva Maxx
  • जीवा मैक्स थर्ड जेनरेशन यानी तीसरी पीढ़ी का फसलों का ग्रोथ बूस्टर (पौध वृद्धि कारक) है। यह हाइड्रोलाइज्ड प्रोटीन कॉम्प्लेक्स का एक अच्छी तरह से संतुलित उत्तेजित क्लोरोफिल उत्पाद है।

  • जीवा मैक्स का उपयोग फसलों के वानस्पतिक विकास, सफेद जड़ विकास, उपज की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसकी मदद से फसल अच्छी उपज की भी प्राप्ति होती है।

  • यह फसलों में पोषक तत्वों की मात्रा और चयापचय गतिविधि को बढ़ाने के लिए भी काम करता है।

  • फसलों में इसका उपयोग 2 मिली प्रति लीटर पानी के साथ छिड़काव के रूप में करें। अगर फसल में ड्रिप सिंचाई सिस्टम हो तो ड्रिप के माध्यम से 500 मिली प्रति एकड़ का उपयोग करें। 

  • आप जीवा मैक्स का उपयोग बीज उपचार के रूप में भी कर सकते हैं इसके लिए आप 2 मिली प्रति किग्रा बीज का उपयोग करें। 

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रबी धान के लिए मुख्य खेत की तैयारी एवं पोषण प्रबंधन

Main field preparation and nutrition management for rabi paddy crop
  • रबी धान की रोपाई के लिए, मुख्य खेत की तैयारी करते समय, जुताई से 1 या 2 दिन पूर्व गोबर की खाद @ 4 टन + स्पीड कम्पोस्ट @ 4 किग्रा + + कॉम्बैट – ट्राईकोडर्मा विरिडी 1.0% डब्ल्यूपी @ 2 किग्रा, प्रति एकड़ के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें, एवं खेत में पानी भर दें और मिट्टी को पानी सोखने दें। 

  • जुताई के समय पानी की गहराई 2.5 सेमी रखें। धान की फसल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें तथा 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करें। इसके बाद, खेत को मचाकर एक समान कर ले, इससे समान खेत में पानी की सामान्य गहराई बनी रहती है।

  • पोषण प्रबंधन: रोपाई के दिन कीचड़ में, यूरिया- 20 किग्रा + एसएसपी- 50 किग्रा + डीएपी- 25 किग्रा + एमओपी- 20 किलो + धान समृद्धि किट – 11 किग्रा, किट में शामिल तत्व (ट्राई-कोट मैक्स @ 4 किलोग्राम + टीबी 3 @ 3 किलोग्राम + ताबा जी, @ 4 किलोग्राम) इन सभी को आपस में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें। पौध रोपण के लिए कतार से कतार एवं पौध से पौध की दूरी 20×15 सेमी रखें।  

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जान लें रबी धान की खेती के लिए खेत की तैयारी एवं पोषण प्रबंधन!

Know about field preparation and nutrition management for rabi paddy cultivation

वैसे तो ज्यादातर किसान धान की खेती खरीफ मौसम में हीं करते हैं जब पूरे देश में मानसून की बारिश होती है। पर आजकल बहुत सारे किसान रबी सीजन में भी धन की खेती करते हैं और अच्छा मुनाफा कमाते हैं। इस सीजन में अगर आप भी धान की खेती करने की प्लानिंग कर रहे हैं तो आपको इसके लिए खेत की तैयारी से लेकर पोषण प्रबंधन आधी का ख़ास ख्याल रखने की जरूरत है। इस लेख में आइये विस्तार से जानते हैं इन्हीं विषयों की जानकारी। 

खेत की तैयारी: ऐसे खेत का चयन करें जिसकी मिट्टी अच्छी तरह से तैयार खरपतवार रहित हो तथा जल धारण क्षमता भी अधिक हो। मिट्टी में में पाए जाने वाले जैविक तत्व एवं जीव अच्छी तरह से काम करते हों। इससे पौध का जड़ विकास सही से होता है। खेत में चारों तरफ से मजबूत मेढ़ बंदी कर दें। इससे पानी खेत में लंबे समय तक संचित रखा जाता है। एक अच्छी जुताई से खेती योग्य भूमि में ऑक्सीजन की उपलब्धता बनी रहती है। एवं खरपतवार भी कम उगते हैं। धान की रोपण के लिए, मुख्य खेत की तैयारी के समय, जुताई से 1 या 2 दिन पूर्व गोबर की खाद @ 4 टन + स्पीड कम्पोस्ट @ 4 किग्रा + कॉम्बैट – ट्राईकोडर्मा विरिडी 1.0% डब्ल्यूपी @ 2 किग्रा, प्रति एकड़ के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें एवं खेत में सिंचाई कर दें और पानी को सोखने दें। जुताई के समय पानी की गहराई 2.5 सेमी रखें। धान की फसल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें तथा 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करें, इसके बाद खेत को मचाकर समतल कर ले। समतल खेत में पानी की सामान्य गहराई बनी रहती है।

पोषण प्रबंधन: रोपाई के दिन कीचड़ में यूरिया- 20 किग्रा + एसएसपी- 50 किग्रा + डीएपी- 25 किग्रा + एमओपी- 20 किलो + धान समृद्धि किट – 11 किग्रा, समृद्धि किट में शामिल उत्पाद (ट्राई कोट मैक्स – जैविक कार्बन 3%, ह्यूमिक, फुल्विक, जैविक पोषक तत्वों का एक मिश्रण, @ 4 किलोग्राम + टीबी 3 – नाइट्रोजन स्थिरीकरण बैक्टीरिया, फास्फेट घुलनशील बैक्टीरिया और पोटेशियम गतिशील बैक्टीरिया, @ 3 किलोग्राम + ताबा जी – जिंक घुलनशील बैक्टीरिया, @ 4 किलोग्राम) को आपस में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें। पौध रोपण के लिए कतार से कतार एवं पौध से पौध की दूरी 20×15 सेमी रखें।  

किसान भाई रबी मौसम में भी काफी जगहों पर धान की कीचड़ मचाकर सीधी बुवाई करते हैं। तो आइये जानते है, बुवाई से पूर्व खेत की तैयारी एवं बीज को अंकुरित व उपचारित कैसे करें!

धान की कीचड़ मचाकर सीधी बुवाई विधि 

सबसे पहले जिस किस्म का चुनाव किया गया है बुवाई के लिए, उसे किसी पात्र में पानी में डुबा दें और इसे डुबो कर अच्छी तरह से हिलाएं जिससे ख़राब बीज ऊपर तैरने लगेगा। ख़राब बीज को पात्र से निकाल कर बाहर कर दें, एवं शुद्ध बीज को 18 से 20 घंटे के लिए पानी में डूबा कर छाया में रखें। 18 से 20 घंटे पूरा हो जाने के बाद, धान को बोरे में या साफ सूती कपड़े में पानी से बाहर निकाल लें और बीज उपचार के रूप में, स्प्रिंट (कार्बेन्डाजिम 25%+ मैंकोजेब 50% डब्ल्यूएस) @ 35 ग्राम, प्रति 10 किग्रा के हिसाब से समान रूप से भुरकाव कर बीजों को अच्छी तरह से मिला लें। इसके बाद इसे पुवाल या बोरे के माध्यम से ढक कर रख दें। उचित नमी बनाए रखने के लिए, समय समय पर ऊपर से पानी का हल्का छिड़काव करते रहें। इससे अंकुरण अच्छा होता है। पर्याप्त नमी एवं तापमान मिलने पर 24 घंटे में अच्छा अंकुरण हो जायगा। फिर इसे मचाकर तैयार किये गए, भूमि में समान रूप से बुवाई कर दें एवं खेत में अधिक पानी हो तो उसे खेत से बाहर निकाल दें। 

धान की गीली सीधी बुवाई के लिए, खेत की तैयारी के समय जुताई के 2 दिन पूर्व गोबर की खाद @ 4 टन + स्पीड कम्पोस्ट @ 4 किग्रा + कॉम्बैट – ट्राईकोडर्मा विरिडी 1.0% डब्ल्यूपी @ 2 किग्रा, प्रति एकड़ के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें एवं खेत में पानी भर दें और पानी को सोखने दें। जुताई के समय पानी की गहराई 2.5 सेमी रखें। धान की फसल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें तथा 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करें एवं पाटा चलाकर खेत को अच्छी तरह से मचाकर समतल कर ले। बुवाई के दिन कीचड़ में, एसएसपी- 50 किग्रा + डीएपी- 25 किग्रा + एमओपी- 20 किलो + धान समृद्धि किट – 11 किग्रा, किट में शामिल तत्व (ट्राई कोट मैक्स – जैविक कार्बन 3%, ह्यूमिक, फुल्विक, जैविक पोषक तत्वों का एक मिश्रण, @ 4 किलोग्राम + टीबी 3 – नाइट्रोजन स्थिरीकरण बैक्टीरिया, फास्फेट घुलनशील बैक्टीरिया और पोटेशियम गतिशील बैक्टीरिया, @ 3 किलोग्राम + ताबा जी – जिंक घुलनशील बैक्टीरिया, @ 4 किलोग्राम) को आपस में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र के हिसाब से समान रूप से भुरकाव कर,  एक पाटा चलाकर खाद को कीचड़ में अच्छी तरह से मिला दें एवं बीज की बुवाई करें साथ ही अतिरिक्त पानी को बाहर निकाल दे। 

कीचड़ मचाकर सीधी बुवाई विधि से 25% तक श्रम की बचत होती है। रोपण पद्धति की अपेक्षा 7 से 10 दिन पहले इसकी फसल पक कर तैयार हो जाती है। वहीं सीधी बुवाई में नर्सरी उगाने एवं रोपाई करने की जरुरत नहीं होती है।

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तरबूज एवं खरबूज़ की बुवाई से पहले खेत की तैयारी में इन बातों का रखें ध्यान!

Watermelon and Muskmelon field preparation

तरबूज़ एवं खरबूज़ की बुवाई के लिए रेतीली तथा रेतीली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है। पौधों की अच्छी बढ़वार एवं जड़ विकास के लिए, मिट्टी का भुरभुरा होना आवश्यक है। सामान्यतः पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें एवं इसके बाद, गोबर की खाद @ 4 टन + स्पीड कम्पोस्ट @ 4 किग्रा + नीम की खली/केक @ 100 किग्रा, प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में समान रूप से भुरकाव करें। इसके बाद 2-3 जुताई हैरो की सहायता से करें। खेत में मौजूद, अन्य अवांछित सामग्री को हटा दें, अगर मिट्टी में नमी कम हो तो पहले पलेवा करें, फिर खेत की तैयारी करें, और आखिर में पाटा चलाकर खेत समतल बना लें। 

पोषक तत्व प्रबंधन 

फसल रोपाई/बुवाई के समय, डीएपी 50 किग्रा + बोरोनेटेड एसएसपी दानेदार 75 किग्रा + एमओपी 75 किग्रा +  मल्टीज़िंक (जिंक सल्फेट 10 किग्रा) + मैग्नीशियम सल्फेट 10 किग्रा + तरबूज़/खरबूज़ समृद्धि किट – टीबी 3 (एनपीके कंसोर्टिया) @ 3 किलोग्राम +  ताबा जी (जिंक सोल्यूब्लाज़िंग बैक्टेरिया) @ 4 किलोग्राम + ट्राई-कोट मैक्स (समुद्री शैवाल, अमीनो, ह्यूमिक) @ 4 किलोग्राम + कॉम्बैट (ट्राईकोडर्मा विरिडी 1.0 % डब्ल्यूपी) @ 2 किलोग्राम, इन सभी को आपस में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र के हिसाब से, समान रूप से भुरकाव करें।

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लहसुन की फसल में सफेद सड़न के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय!

Symptoms and control measures of white rot in garlic crops
  • लहसुन की फसल में सफेद सड़न के प्रकोप के कारण पत्तियों के आधार भाग सड़ कर पीले पड़ जाते हैं, एवं मुरझाकर पत्तीयाँ गिरने लगती हैं। 

  • इसकी वजह से जड़ें और कली पर एक रोएँदार सफेद कवकजाल से ढक जाते हैं।

  • प्रभावित कली पानीदार हो जाता है, और कली के सूखने और सिकुड़ने से बाहरी परत फट जाती है। 

  • अंत में छोटे भूरे एवं काले स्क्लेरोटिया/कवक कली के प्रभावित हिस्सों पर या ऊतक के भीतर विकसित होता है।

नियंत्रण के उपाय 

  • इसकी रोकथाम के लिए, फसल चक्र अपनाना चाहिए। 

  • संक्रमित पौधे को नष्ट कर देना चाहिए।

पौधों के आसपास की मिट्टी का उपचार के रूप में, प्याज एवं लहसुन अनुसंधान निदेशालय के अनुसार  धानुस्टिन (कार्बेन्डाजिम 50 % डब्ल्यूपी) @ 15 ग्राम या भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान के अनुसार कर्मानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यूपी) @ 30 ग्राम + मैक्सरुट @10 ग्राम, प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से पौधों के जड़ क्षेत्र के पास ड्रेंचिंग करें या गहरा छिड़काव करें जिससे की पानी पौधों के जड़ तक पहुँच जाए।

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बेस्ट सरसों बीज के साथ पाएं शानदार उपज व ज्यादा तेल उत्पादन

Get great yield and more oil production with the best mustard seeds

सरसों एक प्रमुख तिलहनी फसल है, यदि प्रमाणित किस्मों का चयन बुआई के लिए किया जाए तो इसका उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। आइये जानते हैं इस बार सरसों की प्रमाणित बीज किस्में कौन सी हैं।

पायनियर 45S46: यह मोटे दाने और बेहतर तेल उत्पादन के साथ उच्च उपज देने वाली किस्म है। यह मध्यम परिपक्वता वाली संकर प्रजाति के रूप में किसानों के बीच प्रसिद्ध है। यह एक काले बीज वाली संकर किस्म है। इसकी परिपक्वता अवधि 125-130 दिन है।

ADV 414: यह एक उच्च उपज देने वाली एवं मध्यम परिपक्वता वाली संकर किस्म है जिसमें मोटा दाना, उच्च तेल उत्पादन प्राप्त होता है। अन्य किस्मों की तुलना में 20% तक अधिक उपज देती है। इस किस्म की परिपक्वता अवधि 120 से 125 दिन की होती है।

श्रीराम 1666: सरसों की इस किस्म कि परिपक्वता अवधि लगभग 120 से 130 दिन होती है। इस किस्म का उपयोग सिंचित एवं असिंचित दोनों क्षेत्रों में किया जाता है। असिंचित क्षेत्रों में इसकी उपज कम रहती है। इस किस्म को 1 से 2 पानी में आसानी से उगाया जा सकता है। या किस्म सिंचित क्षेत्रों में 10 से 12 क्विंटल प्रति एकड़ और असिंचित क्षेत्रों में 8 से 10 क्विंटल प्रति एकड़ की उपज आसानी से दे सकती है। लेकिन इस किस्म से 12 क्विंटल से भी ज्यादा पैदावार मिल सकती है।

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