बेमिसाल मजबूती वाले HyTarp तिरपाल की विशेषताएं

Features of Gramophone HyTarp Tarpaulin
  • यह तिरपाल पूरी तरह से वर्जिन प्लास्टिक से बनी है और इसमें मिट्टी या फिलर का कंटेंट नहीं है।

  • इस तिरपाल की मोटाई 200 GSM होने के साथ ये 3 लेयर बनी की है जिसकी वजह से तिरपाल काफी मजबूत और टिकाऊ है।

  • ये तिरपाल UV ट्रीटेड भी है जीसकी वजह से कड़ी धूप, ठंढ और बारीश में भी ये तिरपाल लंबे समय तक चलती है।

  • ये तिरपाल एक साईड से आर्मी ग्रीन और दूसरे साईड से ब्लैक कलर की है।

  • इस तिरपाल मे चारों बाजू में विशिष्ट अंतर छोड के अल्युमिनियम के आय लेट्स दिये गए हैं जो तिरपाल को रस्सी से बाँधने मे काम आयेंगे।

  • यह तिरपाल सभी रेग्युलर साईज 11×15, 15×18, 21×30, 24×36, 30×30 में उपलब्ध है।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।

Share

लहसुन की खेती के लिए ऐसे करें खेत की तैयारी

Field preparation for garlic cultivation

लहसुन की खेती के लिए, उचित जल निकास वाली दोमट भूमि अच्छी होती है, क्योंकि भारी भूमि में इसके कंदों का विकास नहीं हो पाता है। खेत की एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें एवं इसके बाद, गोबर की खाद 5 टन + स्पीड कम्पोस्ट 4 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में समान रूप से भुरकाव करें तथा 2-3 जुताई हैरो की सहायता से करें। खेत में मौजूद अन्य अवांछित फसल अवशेषों को हटा दें, अगर मिट्टी में नमी कम हो तो पहले पलेवा करें फिर खेत की तैयारी करें और आखिर में पाटा चला कर खेत समतल बना लें। 

पोषक तत्व प्रबंधन:- फसल बुवाई के समय एसएसपी 50 किलोग्राम + डीएपी 30 किलोग्राम + यूरिया 20 किलोग्राम + पोटाश 40 किलोग्राम + राइजोकेयर (ट्राइकोडर्मा विराइड1.0 % डब्ल्यूपी) @ 500 ग्राम +  टीबी 3 (नाइट्रोजन स्थिरीकरण, फास्फेट घुलनशील, और पोटेशियम गतिशील जैव उर्वरक संघ) @ 3 किलोग्राम +  ताबा जी (जिंक घोलक बैक्टीरिया) @ 4 किलोग्राम +  मैक्सरूट (ह्यूमिक एसिड + पोटेशियम + फुलविक एसिड) @ 500 ग्राम + ट्राई-कोट मैक्स (जैविक कार्बन 3%, हुमिक, फुलविक, जैविक पोषक तत्वों का एक मिश्रण) @ 4 किलोग्राम + बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना) @ 500 ग्राम को आपस में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में समान रूप से भुरकाव करें।

महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। आज की जानकारी पसंद आई हो तो लाइक और शेयर करना ना भूलें।

Share

प्याज की नर्सरी में कवक जनित रोगों का नियंत्रण

Fungus-borne disease control in onion nursery
  • खरीफ सीजन में होने वाले बारिश की वजह से खेत की मिट्टी में अत्यधिक नमी एवं मध्यम तापमान कवक जनित रोगों के विकास का मुख्य कारक होता है।

  • प्याज़ की पौधे में आर्द्र विगलन (डम्पिंग ऑफ), जड़ गलन, तना गलन, पत्तियों के पीले पड़ने की समस्या नर्सरी अवस्था में देखा जाता है।

  • इन रोगों में रोगजनक सबसे पहले पौध के कालर भाग में आक्रमण करते हैं और अतंतः कालर भाग और जड़ विगलित हो जाता है जिसके कारण पौध गिर कर मर जाते हैं।

  • कवक जनित रोगों के निवारण के लिए बुआई के समय स्वस्थ बीज का चयन करना चाहिये।

  • इसके साथ ही इस समस्या के निवारण हेतु कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 30 ग्राम/पंप या थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W @ 60 ग्राम/पंप या मैनकोज़ेब 64% + मेटालैक्सिल 8% WP @ 60 ग्राम/पंप की दर से छिडकाव करें।

महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

जानें प्राकृतिक खेती के महत्वपूर्ण सिद्धांत

Natural farming

प्राकृतिक खेती क्या है? – प्राकृतिक खेती (natural farming) देसी गाय पर आधारित प्राचीन खेती पद्धति है। जिसमें रासायनिक उर्वरकों और रसायनों के दूसरे उत्पाद का विकल्प के रूप में देसी गाय का गोमूत्र और गोबर  का उपयोग फसल उत्पादन में किया जाता है। यह भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है। प्राकृतिक खेती में रासायनिक कीटनाशक का उपयोग नहीं किया जाता है। इस प्रकार की खेती में जो तत्व प्रकृति में पाए जाते है, उन्हीं को कीटनाशक के रूप में काम में लिया जाता है।

प्राकृतिक खेती में खाद के रूप में गोबर, गौ मूत्र, जीवाणु खाद, फ़सल अवशेष द्वारा पौधों को पोषक तत्व दिए जाते हैं। प्राकृतिक खेती में प्रकृति में उपलब्ध जीवाणुओं, मित्र कीट और जैविक कीटनाशक द्वारा फ़सल को हानिकारक सूक्ष्म जीव और कीट से बचाया जाता है।

आइये  जानते है प्राकृतिक खेती के चार सिद्धांत  

👉🏻खेतों में कोई जुताई नहीं करना, यानी न तो उनमें जुताई करना, और न ही मिट्टी को  पलटना है । धरती अपनी जुताई स्वयं स्वाभाविक रूप से पौधों की जड़ों के प्रवेश तथा केंचुओं व छोटे प्राणियों, तथा सूक्ष्म जीवाणुओं के जरिए कर लेती है।

👉🏻किसी भी तरह की तैयार खाद या रासायनिक उर्वरकों का उपयोग न किया जाए। इस पद्धति में हरी खाद और गोबर की खाद को ही उपयोग में लाया जाता है।

👉🏻निराई-गुड़ाई न की जाए। न तो हल से, न शाकनाशियों के प्रयोग द्वारा। खरपतवार मिट्टी को उर्वर  बनाने तथा जैव-बिरादरी में संतुलन स्थापित करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। बुनियादी सिद्धांत यही है कि खरपतवार को पूरी तरह समाप्त करने की बजाए नियंत्रित किया जाना चाहिए।

👉🏻रसायनों पर बिल्कुल निर्भर न करना है। जोतने तथा उर्वरकों के उपयोग जैसी गलत प्रथाओं के कारण जब से कमजोर पौधे उगना शुरू हुए, तब से ही खेतों में बीमारियां लगने तथा कीट-असंतुलन की समस्याएं खड़ी होनी शुरू हुई। छेड़छाड़ न करने से प्रकृति-संतुलन बिल्कुल सही रहता है।

महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

सरसों की बुआई करते समय इन बातों का रखें ध्यान

Keep these things in mind while sowing mustard
  • सरसों की बुआई का सबसे अच्छा समय 5 से 25 अक्टूबर के बीच होता है।

  • इस समय सरसों की बुआई करने से अच्छा उत्पादन मिलता है, इसलिए किसानों को 25 अक्टूबर तक सरसों की बुआई कर देनी चाहिए।

  • सरसों की बुआई के लिए किसानों को एक एकड़ खेत में 1 किलो बीज का प्रयोग करना चाहिए।

  • सरसों को कतारों में बोना चाहिए ताकि निराई करने में आसानी हो।

  • सरसों की बुआई देसी हल या सीड ड्रिल से करनी चाहिए।

  • इसमें पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-12 सेमी रखा जाना चाहिए।

  • सरसों की बुआई करते समय इस बात का ध्यान रखें कि बीज 2-3 सेमी की गहराई में लगाई गई हो।

  • 100 सेमी से अधिक गहराई पर बीज नहीं बोना चाहिए क्योंकि अधिक गहराई पर बीज बोने से बीज के अंकुरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।

Share

मटर की बुवाई के 15 दिनों में जरूर करें ये पोषण प्रबंधन

How to manage nutrition in 15 days of sowing in Peas
  • जिस प्रकार मटर की बुआई के समय पोषण प्रबंधन किया जाता है ठीक उसी प्रकार बुआई के 15 दिनों में भी पोषण प्रबंधन किया जाना बहुत आवश्यक होता है।

  • बुआई के 15 दिनों में पोषण प्रबंधन करने से मटर की फसल को बहुत अच्छी शुरुआत मिलती है।

  • यह पोषण प्रबंधन मटर की फसल को कवक व कीट जनित रोगों एवं पोषण की कमी के प्रति प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करने में सहायता प्रदान करता है।

  • इस समय पोषण प्रबंधन करने के लिए सल्फर 90% @ 5 किलो/एकड़ + जिंक सल्फ़ेट @ 5 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें।

  • यह भी ध्यान रखें की पोषण प्रबंधन के समय खेत में पर्याप्त नमी जरूर होनी चाहिए।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।

Share

प्याज की नर्सरी के लिए जरूरी छिड़काव प्रबंधन

This spraying management is necessary for onion nursery
  • प्याज़ की नर्सरी की बुआई के सात दिनों के अंदर छिड़काव प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।

  • यह छिड़काव कवक जनित बीमारियों एवं कीटों के नियंत्रण एवं पोषण प्रबंधन लिए किया जाता है।

  • इस समय छिड़काव करने से प्याज़ की नर्सरी को अच्छी शुरुआत मिलती है।

  • कवक जनित रोगो लिए करमानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मैन्कोजेब 63% WP) @ 30 ग्राम/पंप की दर से छिड़काव करें।

  • कीट प्रबंधन के लिए थियानोवा (थियामेथोक्साम 25% WG) @10 ग्राम/पंप की दर से छिड़काव करें।

  • पोषण प्रबंधन के लिए (मैक्सरूट) ह्यूमिक एसिड @ 10 ग्राम/पंप की दर से छिड़काव करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।

Share

प्याज की नर्सरी के लिए ऐसे करें बेड की तैयारी

Prepare beds for onion nursery like this
  • नर्सरी बेड के लिए खेत को तैयार करने में मोल्डबोर्ड हल से गहरी जुताई करनी चाहिए और मिट्टी के ढेलों को कल्टीवेटर से 2-3 बार तोड़ना चाहिए।

  • नर्सरी बेड तैयार करने से पहले पिछली फसल के अवशेष, खरपतवार और पत्थरों को हटा देना चाहिए।

  • आसान सिंचाई के लिए नर्सरी क्षेत्र को जल स्रोत के नजदीक तैयार करना चाहिए।

  • एक हेक्टेयर खेत में रोपाई के लिए लगभग 0.05 हेक्टेयर नर्सरी क्षेत्र की आवश्यकता होती है।

  • अंतिम जुताई के समय 500 किलोग्राम अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद (FYM) और 1.25 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी मिलाकर मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएं।

  • बेड पूर्व एवं पश्चिम दिशा में तैयार करना चाहिए तथा बेड पर लाइन उत्तर से दक्षिण की ओर बनानी चाहिए।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।

Share

लहसुन की फसल के लिए ऐसे करें खेत की तैयारी

Prepare the field for garlic crop like this

लहसुन के खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली भुरभुरी मिट्टी, जिसमें ऑर्गेनिक कार्बन अधिक मात्रा में हो, जिसका pH स्तर 6-7 हो आदर्श मानी जाती है। अत्यधिक अम्लीय एवं भारी मिट्टी इस फसल के लिए उपयुक्त नहीं होती है। लहसुन की बुवाई का इष्टतम समय सितंबर से अक्टूबर तक होता है।

खेत की तैयारी के लिए पिछली फसल की कटाई के बाद खेत में एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 जुताई हैरो की सहायता से करें। अगर मिट्टी में नमी कम हो तो पहले पलेवा करें फिर खेत की तैयारी करें और आखिर में पाटा चला कर खेत समतल बना लें। पौधे से पौधे की दूरी एवं पंक्ति से पंक्ति की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर रखें। बीजदर 5-6 क्विंटल/हेक्टेयर की दर से रखें।

उर्वरक और अन्य पोषक तत्व प्रबंधन के लिए यूरिया- 20 किलो + एसएसपी- 50 किलो + डीएपी- 30 किलो + एमओपी- 40 किलो + समुद्री शैवाल, अमीनो, ह्यूमिक (ट्राई-कोट मैक्स) 4 किग्रा + एनपीके कंसोर्टिया (टीबी 3) 3 किलो + जिंक सोल्यूब्लाज़िंग बैक्टेरिया (ताबा G) 4 किलो + फिपनोवा जीआर (FIPRONIL 0.6%)@ 4 किग्रा + सूक्ष्म पोषक मिश्रण (एग्रोमीन) 5 किलो + मैग्नीशियम सल्फेट 5 किग्रा प्रति एकड़ का उपयोग करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।

Share

अमरूद में उकठा रोग के लक्षणों को पहचाने व करें जल्द नियंत्रण

Symptoms and Prevention of Wilt Disease in Guava
  • उकठा रोग के कारण अमरूद की पत्तियों का रंग हल्का पीला हो जाता है साथ ही साथ इसकी शीर्ष शाखाओं की पत्तियाँ घुमावदार होकर मुड़ जाती हैं। पत्तियां पीली से लाल में बदल जाती हैं और समय से पहले झड़ जाती हैं। इसके कारण नई पत्तियों का निर्माण नहीं हो पाता है एवं टहनियाँ खाली हो जाती हैं और अंत में सूख जाती हैं।

  • इस रोग के नियंत्रण के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी 5 -10 ग्राम या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 2.5-5 ग्राम प्रति 5 किलो की दर से गोबर की खाद में मिलाकर, पौधा लगाते समय तथा 10 किलोग्राम प्रति गढ्ढा या पुराने पौधों में गुड़ाई कर के डालें।

  • ट्राइकोडर्मा विरिडी 5-10 ग्राम या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 2.5-5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर पौधे पर छिड़काव करें।

  • अमरूद के पौधे के चारों ओर थाले बनाएं और उसमें कार्बेन्डाजिम 45% WP @ 2 ग्राम/लीटर पानी या कॉपर हाइड्रॉक्साइड 50% WP @ 2.5 ग्राम/लीटर पानी में घोल कर उससे थाले में ड्रेंचिंग करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।

Share