फसल में ब्यूवेरिया बैसियाना के इस्तेमाल से मिलते है कई फ़ायदे

Benefits of Beauveria bassiana in crops

ब्यूवेरिया बैसियाना एक फफूंद पर आधारित जैविक कीटनाशक है। यह कवक दुनिया के अधिकांश हिस्सों में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। साथ ही इस कवक के बीजाणु कीट की त्वचा के संपर्क में आते ही अंकुरित हो जाते हैं, और कीट के शरीर पर फैल जाते हैं, जिससे कीट के पूरे शरीर में कवक फैल जाता है और 48 से 72 घंटे के भीतर कीट मर जाते हैं।

ब्यूवेरिया बैसियाना अधिक आद्रता एवं कम तापमान में भी प्रभावी होते हैं। यह विभिन्न प्रकार की फसलें एवं सब्जियों में लगने वाले कीट जैसे फली छेदक, पत्ती लपेटक, पत्ती खाने वाले कीट, रस चूसने वाले कीट, भूमि में रहने वाले दीमक एवं सफेद लट आदि की रोकथाम के लिए लाभकारी हैं। साथ ही यह कवक के कारण होने वाले कीट को भी नियंत्रित करता है। 

प्रयोग की विधि:

  • मिट्टी से प्रयोग के लिए 1 किलो प्रति एकड़ के दर से लगभग 75 किलो गोबर की खाद में मिलाकर अंतिम जुताई के समय प्रयोग करना चाहिए।

  • खड़ी फसल में अगर कीट का प्रकोप दिखाई दे तब 250-500 ग्राम प्रति एकड़ के दर से 150-200 लीटर पानी में मिलकर छिड़काव करें। 

  • एक बात ध्यान रखने वाली है की ब्यूवेरिया बैसियाना के प्रयोग से पहले एवं बाद में रासायनिक फफूंदीनाशक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। 

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

मिर्च में फली छेदक के प्रकोप से होने वाले नुकसान एवं नियंत्रण के उपाय

Damage and control of pod borer in chilli

यह एक पॉलीफेगस कीट है। इस कीट की इल्ली अक्सर फल में छेद करके फसल को नुकसान पहुंचाती है। शुरूआती अवस्था में युवा लार्वा (इल्लियां) फूलों की कलियों एवं युवा फल को गोलाकार छेद बनाकर खाते हैं। बाद में, यही इल्लियां फल के अंदर अपना सिर डालकर फल को अंदर से खाते हैं। संक्रमण बढ़ने पर फल सड़कर झड़ने लगते हैं।

नियंत्रण:  इस कीट के नियंत्रण के लिए इमानोवा (इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एससी) @ 80 मिली प्रति एकड़ या कवर (क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18. 50 % एससी) @ 60 मिली प्रति एकड़ साथ ही बवे कर्ब (ब्यूवेरिया बेसियाना) @ 250 ग्राम प्रति एकड़ के दर से 150-200 लीटर पानी में छिड़काव करें। 

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे  शेयर करना ना भूलें।

Share

तरबूज की फसल में फल नोक सड़न के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of blossom end rot in watermelon crop

ब्लॉसम एंड रोट पौधे में कैल्शियम की कमी के कारण होता है। जब इसके लक्षण दिखाई देते है, तब यह हो सकता है की मिट्टी में पर्याप्त कैल्शियम नहीं है, या कैल्शियम मौजूद है लेकिन पौधों की जड़ वो कैल्शियम अवशोषित नहीं कर पाती है। इस रोग में फल के सिरे पर गहरा भूरा या काला धब्बा दिखाई देता है, जो बाद में सूख जाता है, या चमड़े जैसा हो जाता है। शुरुआती अवस्था में यह हल्का हरा होता है लेकिन जैसे -जैसे फल परिपक्व होते है यह भूरा एवं काला हो जाता है।

नियंत्रण: इसके नियंत्रण के लिए चिलेटेड कैल्शियम @ 1 – 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के दर से छिड़काव करें, या यारा लिवा कैल्सिनेट (कैल्शियम नाइट्रेट) @ 0.5 – 1.25 किलोग्राम प्रति दिन प्रति एकड़ के दर से ड्रिप के माध्यम से एक सप्ताह के लिए उपयोग करें। साथ ही खेत में लगातार पर्याप्त नमी बनाए रखें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे  शेयर करना ना भूलें।

Share

आलू की खुदाई के समय इन सावधानियों से उपज को नहीं होगा नुकसान

The yield will not be harmed by these precautions at the time of potato digging

आलू की खुदाई ज्यादातर फरवरी से शुरू होकर मार्च के दूसरे सप्ताह तक की जाती है और आलू की फसल में खुदाई का सही प्रबंधन बहुत आवश्यक होता है, ताकि आलू के कंद को कम से कम नुकसान पहुंचे। अक्सर खुदाई के दौरान आलू के कंदों के ऊपरी हिस्से पर कई बार कटे का निशान लग जाता है, जिसके कारण भंडारण के दौरान आलू के खराब होने की संभावना बढ़ जाती है। इससे बचने के लिए खुदाई के समय कुछ सावधानियां बरतने की जरुरत होती है। 

सावधानियां:

  • आलू की खुदाई फसल बुवाई के 80 से 90 दिनों के बाद जब फसल परिपक्व हो जाए, एवं पौधों की पत्तियां पीली पड़ जाए तब करनी चाहिए। 

  • तापमान लगभग 30 डिग्री सेंटीग्रेट होने से पहले ही खुदाई कर लेनी चाहिए। 

  • खुदाई करते समय, मौसम सूखा रहना जरुरी होता है।

  • खुदाई के 2 सप्ताह पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए। 

  • खुदाई के बाद आलू के कंदों को कुछ दिनों तक खुली हवा में रखना चाहिए, इससे कंदों के छिलके कड़े हो जाते हैं।

  • अगर खुदाई करते समय कुछ कंद कट जाए तो कटे हुए कंदो को छटाई के दौरान हटा देना चाहिए। 

  • आलू के कंदों को धूप में न सुखाएं, अगर कंदों को धूप में सुखाया तो उनकी भंडारण क्षमता प्रभावित होती है।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

कई प्रकार से होती है मल्चिंग वाली खेती, जानें इसके लाभ

Benefits and types of plastic mulching

प्लास्टिक मल्चिंग दरअसल प्लास्टिक फिल्म के साथ पौधों के चारों ओर की मिट्टी को व्यवस्थित रूप से ढकने की प्रक्रिया है। आइये जानते हैं इस विधि से खेती करने से क्या लाभ आपको मिलते हैं।

प्लास्टिक मल्चिंग के लाभ:

  • प्लास्टिक मल्चिंग से मिट्टी में नमी लंबे समय तक बनी रहती है और इसके कारण पानी की भी बचत होती है।

  • मल्चिंग से मिट्टी के तापमान को नियंत्रित रखने में भी मदद मिलती है।

  • इससे फसल में खरतपवार उगने की संभावना कम होती है और जड़ विकास तेजी से होता है।

  • इससे फसलों को पाले से बचाने में भी मदद मिलती है।

  • इससे मिट्टी का कटाव नहीं होता, साथ ही यह मिट्टी को भुरभुरा एवं मुलायम बनाए रखने में भी मदद करता है।

  • इससे उत्पादन में वृद्धि होती है, साथ ही उपज की गुणवत्ता में सुधार होता है।

प्लास्टिक मल्चिंग के प्रकार:

  • काली मल्चिंग: यह मल्चिंग अधिकतर बागवानी फसलों में खरपतवार नियंत्रण के लिए इस्तेमाल करते हैं। इसके काले रंग के कारण सूर्य का प्रकाश मिट्टी में प्रवेश नहीं करता जिससे खरपतवारों का प्रकाश संश्लेषण नहीं हो पाता है तथा उनकी वृद्धि मल्च के नीचे ही रुक जाती है।

  • नीली मल्चिंग: नीले रंग की मल्च फसलों में माहु तथा थ्रिप्स के प्रकोप को कम करता है। इसके इस्तेमाल से कद्दूवर्गीय फसलों में फलों की अधिक संख्या प्राप्त होती है।

  • पारदर्शी मल्चिंग: इस प्रकार के मल्चिंग का उपयोग अधिकतर मिट्टी में सौर उपचार के लिए किया जाता है। साथ ही सर्दियों के मौसम में सब्जियों की खेती के लिए इसका उपयोग  किया जा सकता है।

प्लास्टिक मल्चिंग की मोटाई: मल्च फिल्म की मोटाई फसल के प्रकार एवं उम्र के अनुसार निश्चित किया जाता है। मल्च की मोटाई फसल के जीवन चक्र को पूरा करने वाली होनी चाहिए। अधिकतर सब्जी वाली फसलों में पलवार की मोटाई 25 माइक्रोन और फल वाली फसलों में 100 माइक्रोन की होनी चाहिए।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे  शेयर करना ना भूलें।

Share

टमाटर में जीवाणु पत्ती धब्बा रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of bacterial leaf spot disease in tomato

इस रोग का जीवाणु ज्यादातर वातावरण में नमी और हलकी-हलकी बारिश होने पर या उच्च आद्रता के कारण सक्रिय होता है। प्रभावित पौधों की पत्तियों पर पीले घेरे वाले छोटे, भूरे, पानी से भरे, गोलाकार धब्बे दिखाई देते हैं। पुरानी पत्तियां झड़ने लगती हैं साथ हीं हरे फलों पर छोटे, पानी से भरे धब्बे बन जाते हैं और इन धब्बों का केंद्र अनियमित, हलके भूरे रंग का और पपड़ीदार सतह वाला हो जाता है।

नियंत्रण: इस रोग के नियंत्रण के लिए जैसे हीं रोग का प्रकोप दिखाई दे तब, स्ट्रेप्टोसाइक्लिन (स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90% + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10% एसपी) @ 20-24 ग्राम प्रति एकड़ के दर से 150-200 लीटर पानी में  मिलाकर छिड़काव करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे  शेयर करना ना भूलें।

Share

गोभी वर्गीय फसल में डायमंड बैक मोथ के लक्षण एवं नियंत्रण

Symptoms and control of Diamond back moth in cabbage crop

डायमंड मोथ नाम का यह कीट गोभी वर्गीय सब्जियों को सबसे अधिक नुकसान होता है, ख़ासकर फ़रवरी माह में देर से बुआई की जाने वाली फसल में यह अत्याधिक नुकसान पहुंचाता है।  

लक्षण: इस कीट के पतंगे रात के समय ज्यादा सक्रिय होते हैं और पत्तियों के निचली सतह पर मध्य नस के पास पीले रंग के अंडे देते हैं। इस कीट की सूंडी हानिकारक होती है जो शुरूआती अवस्था में हरे-पीले रंग की होती है और बाद में पत्तों के रंग जैसी हो जाती है। ये इल्लिया प्रारंभिक अवस्था में पत्तियों की निचली सतह को खुरचती हैं जिससे पत्तियों पर सफेद धब्बे बन जाते हैं। बाद की अवस्था में यही इल्लिया पत्तों में छेद कर नुकसान पहुंचाती हैं। 

नियंत्रण: डायमंड बैक मोथ के नियंत्रण एवं निगरानी के लिए, डीबीएम लूर @ 10 ट्रैप प्रति एकड़ के दर से खेत में लगाएं एवं प्रकोप दिखाई देने पर इमानोवा (इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एससी) @ 60-80 मिली प्रति एकड़ या कवर (क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.50% एससी) @ 20 मिली प्रति एकड़ के दर से 150-200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो लाइक और शेयर करना ना भूलें।

Share

गोभी वर्गीय फसल में डाऊनी मिलड्यू रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of downy mildew disease in cabbage crop

डाऊनी मिलड्यू रोग के लक्षण: इस रोग के प्रकोप से पत्तियों की निचली सतह पर बैंगनी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, जबकि ऊपरी सतह पर पीले भूरे रंग के धब्बे एवं रोयेंदार कवक की वृद्धि पाई जाती है, साथ ही तनों में काले से भूरे रंग के धब्बे या लकीरें दिखाई देते हैं। फूलगोभी का फूल अंदर और बाहर दोनों तरफ से काला पड़ जाता है। इस रोग के गंभीर रूप में पूरा पौधा नष्ट हो जाता है।

नियंत्रण के उपाय: इस रोग के नियंत्रण के लिए नोवैक्सिल @ (मेटालैक्सिल 8% + मैनकोज़ेब 64% डब्ल्यूपी) @ 60 ग्राम + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 5 मिली + नोवामैक्स (जिबरेलिक ऍसिड 0.001% L) @ 30 मिली, प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।  

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

जानिए कैसे स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस फसलों के लिए है एक लाभकारी जीवाणु

How Pseudomonas fluorescens is a beneficial bacteria

स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस एक मित्र जीवाणु है जो जीवाणु एवं फफूंद से होने वाले रोग को  मिट्टी और हवा में फैलाने से रोकने में मदद करते हैं। साथ ही यह पौध वृद्धि कारक तत्वों का निर्माण करता है जिससे उपज में भी वृद्धि होती है। यह अंतरदेहि जैव नियंत्रण के रूप में काम करता है।

जब स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस का छिड़काव करते है तब ये कुछ द्वितीयक मेटाबोलाइट्स (चयापचय तत्वों) जैसे जिब्रेलिक, ऑक्सिस का निर्माण करते हैं जिससे पौधे में हरापन रहने में मदद होती है। साथ हीं यह पौधे में तनाव, रोग आदि के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।

इसका उपयोग हम ज़मीन से या छिड़काव से साथ ही बीज प्रक्रिया के लिए कर सकते है। यह विभिन्न प्रकार की फसलों, फलों और सब्जियों में जड़ सड़न, तना सड़न, डैम्पिंग ऑफ़, उकठा, लाल सड़न, जीवाणु झुलसा आदि रोगों के नियंत्रण के लिए प्रभावी है। 

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

प्याज़ की फसल में सूक्ष्म पोषक तत्वों के कमी के लक्षणों को पहचानें

Symptoms of Micronutrient Deficiency in Onions

प्याज़ की फसल में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं पोटाश के अलावा सूक्ष्म पोषक तत्व भी बेहद आवश्यक होते हैं, और इनकी कमी होने पर उत्पादन एवं उत्पादकता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। प्याज़ में तीखापन, एलाइल प्रोपाइल डाईसल्फाइड नामक तत्व के कारण होता है इस तीखेपन को बढ़ाने व उत्पादन में वृद्धि के लिए, सल्फर की आवश्यकता होती है।

सल्फर: सभी पत्तियां नई तथा पुरानी एक समान पीली दिखाई देती है, साथ ही सल्फर (गंधक) की कमी वाले पौधे में पत्तियों का हरा रंग समाप्त हो जाता है।

मैंगनीज: पत्तियों की शिराएँ पीली पड़के जलने लगती हैं, पत्तियों का रंग फीका पड़ता है साथ ही वे ऊपर की ओर मुड़ने लगती है। फसल की वृद्धि रुक जाती है, प्याज़ के कंद देर से बनते हैं और कंद का ऊपरी भाग (गर्दन) मोटी हो जाती है।

कॉपर: प्याज की फसल में कंद के ऊपरी आवरण विकास के लिए फसल में कॉपर की उचित मात्रा होना आवश्यक है। कॉपर के कमी से नई पत्तियां नोक से सफ़ेद होती है और सर्पिले आकार में मुड़ जाती हैं, या पौधे के दाये भाग में मुड़ते है, साथ ही कंद का आवरण नरम होके हल्का पीला और पतला हो जाता है।

कैल्शियम: फसल में वृद्धि एवं भंडारण गुणवत्ता के लिए कैल्शियम एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है। इसके कमी से नई पत्तिया बिना पीली पड़े अचानक से सुखने लगती है साथ ही पत्तियाँ बहुत संकरी हो जाती है।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share