तरबूज में पाउडरी मिल्ड्यू रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of powdery mildew disease in watermelon

इस रोग से पौधों के ऊपरी पत्ते, तने और नए बढ़ते भागों पर सफेद चूर्ण का विकास होता है, और जैसे ही संक्रमण बढ़ता है संपूर्ण पत्ते कवक के ढक जाते हैं। ग्रासित पौधों की पत्तियां समय से पहले झड़ने लगती हैं। अगर संक्रमण फल अवस्था के समय हो तो फल अविकसित रह जाते हैं एवं विकृत हो जाते हैं।

नियंत्रण: इस रोग के नियंत्रण के लिए रोग के लक्षण दिखाई देते ही नोवाकोन (हेक्साकोनाज़ोल 5% एससी) @ 400 मिली प्रति एकड़ के दर से 150-200 लीटर पानी में छिड़काव करें। साथ हीं अच्छे फूल एवं फल विकास के लिए न्युट्रीफुल मैक्स (फुलविक एसिड + एमिनो एसिड+ ट्रेस घटक) @ 250 मिली प्रति एकड़ से छिड़काव करें।

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प्याज़ में बेसल रॉट की समस्या के लक्षण एवं निवारण के उपाय

Symptoms and prevention of basal rot problem in onions

इस रोग के प्रारंभिक लक्षण में पीली पड़ती पत्तियां नजर आती हैं एवं पौधों की वृद्धि रुक जाती है, और बाद में पत्तियां सिरे से नीचे की ओर सूख जाती हैं। संक्रमण की शुरूआती अवस्था में पौधों की जड़ गुलाबी रंग की हो जाती है और बाद में सड़ने लगती है। जैसे ही संक्रमण बढ़ता है, कंद निचले सिरे से सड़ने लगता है और अंत में पूरा पौधा मर जाता है।

निवारण: इसके नियंत्रण के लिए, रोग के लक्षण दिखाई देते ही धानुकॉप (कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्ल्यूपी) @ 500 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के दर से ड्रेंचिंग करें।

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टमाटर की फसल में फल छेदक से होने वाले नुकसान एवं नियंत्रण के उपाय

Damage and control of fruit borer in tomato crop

फल छेदक कीट की इल्ली या सुंडी सबसे ज्यादा हानिकारक होती है। शुरुआई अवस्था में यह इल्ली पत्तियों को खाती है, और बाद में फल में छेद करके फलों को नुकसान भी पहुँचाती है। इल्ली द्वारा किए गए छेद गोलाकार होते हैं। इस कीट की एक इल्ली 2-8 फल को नुकसान पहुंचा सकती है, और इसके कारण फसल की गुणवत्ता तथा उपज भी घटती है।

नियंत्रण: फली छेदक के नियंत्रण एवं निगरानी के लिए, हेलिको-ओ-लूर @ 10 फनेल ट्रैप प्रति एकड़ के दर से खेत में लगाएं। प्रकोप दिखाई देने पर कोस्को (क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.50% एससी) @ 60 मिली प्रति एकड़ या लैमनोवा (लैम्ब्डा सायहॅलोथ्रिन 04.90% सी एस) @ 120 मिली प्रति एकड़ 150 -200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 

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फूलगोभी की फसल में तंबाकू इल्ली की पहचान एवं नियंत्रण के उपाय

Identification and control of tobacco caterpillar in cauliflower

इस कीट के वयस्क गहरे भूरे रंग के होते हैं, और इनके आगे के पंख पर सफ़ेद धारियां बनी होती हैं जिसके बीच में काले धब्बे होते हैं। इस कीट के वयस्क समूह में अंडे देते हैं जो एक सफ़ेद परत से ढके रहते हैं और एक समूह में 40 से 200 तक अंडे हो सकते हैं। अंडे से निकली इल्ली प्रारंभिक अवस्था में हरे रंग की होती है जो की पत्तियों को खुरच कर खाती है, और बाद में यह इल्ली गहरे हरे या भूरे रंग की हो जाती है। बड़ी अवस्था की इल्लियां, पत्तियों में गोल छेद बना कर खाती हैं, साथ हीं यह गोभी के फूल में ऊपर से घुसकर नुकसान पहुंचाती हैं। 

नियंत्रण: इसके नियंत्रण के लिए इल्लियों का प्रकोप दिखाई देते ही, इमानोवा (इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी) @ 100 ग्राम प्रति एकड़ या कोस्को (क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.50% एससी) @ 20 मिली प्रति एकड़ के दर से छिड़काव करें।

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रबी सीजन की धान में उगने के बाद ऐसे करें खरपतवारों का खात्मा

Pre-emergence weed management in summer paddy!

धान की फसल में रोग और कीटों के अलावा खरपतवार भी काफी नुकसान पहुंचाते हैं। साथ ही धान की फसल में हानिकारक खरपतवारों के कारण विभिन्न कीट भी आकर्षित होते हैं। इसलिए समय रहते खरपतवारों को नष्ट करना बहुत जरूरी होता है। 

उगने के बाद खरपतवार प्रबंधन:

उगने के बाद खरपतवार प्रबंधन रोपाई के 10 से 12 दिनों के बाद और खरपतवारों के अंकुरण के बाद करना चाहिए। धान की फसल में खरपतवार निकलने के बाद नॉमिनी गोल्ड (बिसपायरीबैक-सोडियम 10% एससी) @ 80-100 मिली प्रति एकड़ 150-200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। बिस्पायरीबैक-सोडियम एक चयनात्मक, उगने के बाद का शाकनाशी है, जो धान में घास और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों जैसे साँवा, मोथा, भांगरा/भृंगराज को नियंत्रित करता है

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जानें लहसुन की फसल में समय से पहले कंद अंकुरण के कारण

Know the reasons for premature tuber sprouting in the main field in garlic crop

लहसुन की फसल में कभी-कभी बल्ब की परिपक्व होने की अवस्था के शुरुआत में लहसुन के बल्ब खेत में ही अंकुरित होते देखे जाते है, यह स्थिति खासकर के सर्दियों के मौसम में बारिश होने पर या फिर मिट्टी में अधिक नमी होने से एवं नाइट्रोजन की आपूर्ति के कारण होती है। साथ हीं लहसुन में यह समस्या फसल में सामान्य आवश्यकता की तुलना में अधिक बार सिचाई करने से भी होती है। 

इस समस्या से लंबी अवधि की किस्मों की तुलना में कम अवधि वाली किस्में अधिक संवेदनशील होती हैं। बारिश के मौसम में देरी से कटाई करने से कंदों का समय से पहले अंकुरण और फूटना बढ़ जाता है। साथ ही रोपण के समय कलियों में अधिक दूरी होने से एक-एक पौधों द्वारा नाइट्रोजन और पानी का शोषण बढ़ता है जिसके परिणामस्वरूप समय से पहले अंकुरण की समस्या होती है।

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तरबूज की फसल में में एन्थ्रक्नोस रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of anthracnose disease in watermelon

एन्थ्रक्नोस के लक्षण पत्तियों एवं फल दोनों पर दिखाई देते हैं। शुरूआती अवस्था में पत्तियों पर पीले, गोल जलयुक्त धब्बे दिखाई देते हैं, बाद में यह धब्बे आपस में मिलकर बड़े व भूरे रंग के हो जाते हैं। ग्रसित पत्तियां सूख जाती है, और फलों पर भी गोलाकार जलयुक्त एवं हल्के भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं तथा फल कठोर हो जाते हैं।

नियंत्रण: इस रोग के नियंत्रण के लिए बुआई के लिए उपचारित बीज का हीं उपयोगकरें। बीज उपचार बाविस्टिन (कार्बेन्डाझिम 50 डब्लू पी) @ 2 ग्राम पर किलो बीज के दर से करें एवं रोग का प्रकोप दिखाई देने पर एम-45 (मैन्कोजेब 75% डब्लू पी) @ 2 ग्राम/लीटर पानी के दर से छिड़काव करें।

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तरबूज में रेड पम्पकिन बीटल से होने वाले नुकसान एवं रोकथाम के उपाय

Damage caused by red pumpkin beetle in watermelon and preventive measures

इस कीट की नवजात एवं वयस्क दोनों ही अवस्था फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। नवजात पौधों की जड़, भूमिगत तना एवं जमीन से लगे फल खाते है, जिससे पौधे मुरझाने लगते हैं या पौधों में सड़न भी हो सकती है। वयस्क कीट पौधों की पत्तियों में छेद करते हैं जिसके कारण पौधे का विकास नहीं होता एवं प्रकोप बढ़ने पर पौधे भी जाते हैं। इससे खेत में फसलों पर जले जले से धब्बे दिखाई पड़ते हैं। यह कीट फूल की अवस्था में भी नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे फल धारणा कम होती है, और गंभीर अवस्था में उत्पादन में 90 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। 

रोकथाम के उपाय: इस कीट के रोकथाम के लिए फसल की कटाई के तुरंत बाद खेतों की जुताई करें और सुप्तावस्था में रहने वाले वयस्क कीटों को नष्ट कर दें। प्रकोप दिखाई देने पर इमानोवा (इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी) @ 100 ग्राम/एकड़ या टफगोर (डायमेथोएट 30% इसी) @ 200 मिली प्रति एकड़ के दर से 150-200 लीटर पानी में छिड़काव करें। 

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लूज़ स्मट से गेहूँ की फसल को होगा नुकसान, जानें लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of loose smut in wheat crop

लूज़ स्मट गेहूँ की फसल में लगने वाला एक बीज़ जनित रोग है। इस रोग के लक्षण बाली आने पर ही दिखाई देते हैं। रोगी पौधों की बालियों में दानों की जगह रोग जनक के बीजाणु काले पाउडर के रूप पाए जाते हैं एवं ये बीजाणु एक पतली झिल्ली से ढके होते हैं। ग्रसित पौधे आमतौर पर पहले परिपक्व होते हैं और उनकी ऊंचाई कम होती है।  

लूज़ स्मट रोग के रोकथाम के उपाय 

इस रोग के नियंत्रण का सबसे अच्छा उपाय बीज़ उपचार है। पत्तियों के पीले पड़ने पर संक्रमित बालियों को निकाल दें। इसके आलावा इस रोग के नियंत्रण के लिए करमानोवा  (कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63%) @ 600 ग्राम/एकड़ या टेसूनोवा (टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG)@ 500 ग्राम, प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

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भिंडी की फसल में पाउडरी मिल्डू रोग की पहचान एवं नियंत्रण के उपाय

Identification and control of powdery mildew disease in okra crop

पाउडरी मिल्डू रोग के लक्षण पौधे की पुरानी पत्तियों एवं तने दोनों पर साफ दिखाई देते हैं। प्रभावित पौधों की पत्तियों एवं तने पर इसके कारण सफ़ेद रंग के चूर्णीले धब्बे बन जाते हैं।संक्रमण बढ़ने पर पत्तियां पीली पड़ कर झड़ने लगती हैं। ग्रसित पौधों के फल आकार में छोटे रह जाते हैं, और इससे उत्पादन भी बहुत कम होता है। वातावरण में अधिक आद्रता होने पर रोग का प्रकोप बढ़ जाता है। 

नियंत्रण:  इसके नियंत्रण के लिए बाविस्टिन (कार्बेन्डाझिम 50% डब्लू पी) @ 200 ग्राम प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी या सल्फर 80% डब्लू पी @ 1.2 किलो प्रति एकड़ के दर से 300-400 लीटर पानी में छिड़काव करें।

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