नोवामाइन 38 में 2,4-डी इथाइल एस्टर 38 ईसी होता है।
यह एक चयनात्मक और उगने / उभरने के बाद उपयोग आने वाला शाकनाशी है।
जब खरपतवार 2 से 4 पत्ती की अवस्था में हो तब इसकी छिड़काव का सही समय होता है।
इसका उपयोग कई फसलों में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण हेतु किया जाता है।
इसकी मात्रा फसल अनुसार इस प्रकार है
गेहूँ – 500-800 मिली
मक्का – 1000 मिली
रोपण धान – 1000 मिली
ज्वार – 1176 मिली
गन्ना 1400 से 2100 मिली
जलीय खरपतवार – 3000 मिली प्रति एकड़
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यह रोग मुख्यतः बाईपोलेरिस सोरोकिनियाना नामक जीवाणु द्वारा होता है। इस रोग के लक्षण पौधे के सभी भागों में पाए जाते हैं तथा पत्तियों पर इसका प्रभाव बहुत अधिक देखने को मिलता है।
प्रारम्भ में इस रोग के लक्षण भूरे रंग के नाव के आकार के छोटे धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं, जो कि बड़े होकर पत्तियों के सम्पूर्ण भाग पर फ़ैल जाते हैं।
इसके कारण पौधे के ऊतक मर जाते हैं और हरा रंग नष्ट होने लगता है, साथ ही पौधा झुलसा हुआ दिखाई देता है।
इससे पौधे में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बुरी तरह प्रभावित होती है, प्रभावित पौधे के बीजों में अंकुरण क्षमता कम होती है l इस रोग के लिए 25 डिग्री सेल्सियस तापमान और उच्च सापेक्ष आर्द्रता अनुकूल रहती है।
रासायनिक उपचार के लिए थायोफिनेट मिथाइल 70% W/P @ 300 ग्राम /एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% WP @ 300 ग्राम /एकड़ या हेक्साकोनाज़ोल 5 % SC @ 400 मिली, प्रति एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG @ 500 ग्राम / एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75% WP @ 400 ग्राम /एकड़ या कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिडकाव करें।
जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर छिड़काव करें।
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यह भिंडी की फसल में आने वाली एक प्रमुख समस्या है जो सफ़ेद मक्खी नामक कीट के कारण होती है।
यह समस्या भिंडी की सभी अवस्था में दिखाई देती है और फसल वृद्धि एवं उपज को प्रभावित करती है।
इस बीमारी में पत्तियों की शिराएँ पीली दिखाई देने लगती हैं एवं बाद में पत्तियां पीली होकर मुड़ने लग जाती हैं।
इससे प्रभावित फल हल्के पीले, विकृत और सख्त हो जाते हैं।
प्रबंधन:
वायरस से ग्रसित पौधों और पौधे के भागों को उखाड़ के नष्ट कर देना चाहिए।
कुछ किस्में जैसे मोना, वीनस प्लस, परभणी क्रांति, अर्का अनामिका इत्यादि विषाणु के प्रति सहनशील होती हैं। इनकी बुआई कर सकते हैं।
पौधों की वृद्धि अवस्था में उर्वरकों का अधिक उपयोग न करें।
जहाँ तक हो सके भिंडी की बुवाई समय से पहले कर दें।
फसल में उपयोग होने वाले सभी उपकरणों को साफ रखें ताकि इन उपकरणों के माध्यम से यह रोग अन्य फसलों में ना पहुंच पाए।
जो फसलें इस बीमारी से प्रभावित होती हैं उन फसलों के साथ भिंडी की बुवाई ना करें।
यांत्रिक विधि से सफ़ेद मक्खी के नियंत्रण के लिए 10 चिपचिपे प्रपंच/एकड़ की दर से उपयोग कर सकते हैं।
रासायनिक नियंत्रण के लिए डाइफेंथियूरॉन 50% WP @ 250 ग्राम या एसिटामिप्रिड 20% SP @ 100 ग्राम या इमिडाइक्लोप्रिड 17.8% SL 80 मिली/एकड़ की दर से स्प्रे करें।
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आमतौर पर शीतकाल की लंबी रातें बहुत ज्यादा ठंडी होती हैं और कई बार तापमान हिमांक पर या इससे भी नीचे चला जाता है। ऐसी स्थिति में जलवाष्प बिना तरल रूप में परिवर्तित हुए सीधे ही सूक्ष्म हिमकणों में परिवर्तित हो जाते हैं इसे पाला कहते हैं पाला फसलों और वनस्पतियों के लिए बहुत हानिकारक होता है।
पाले के प्रभाव से चने की फसल में पत्तियां एवं फूल झुलसे हुए दिखाई देते हैं एवं बाद में झड़ जाते हैं। यहां तक कि अधपके फल सिकुड़ भी जाते हैं, उनमें झुर्रियां पड़ जाती हैं एवं कलिया गिर जाती हैं। इन फलियों में दाने भी नहीं बनते हैं।
अपनी फसल को पाले से बचाने के लिए आप अपने खेत के चारो तरफ धुंआ करें। इससे तापमान संतुलित हो जाता है एवं पाले से होने वाली हानि से बचा जा सकता है।
जिस दिन पाला पड़ने की संभावना हो उस दिन फसल पर गंधक का 0.1 प्रतिशत घोल बनाकर छिड़काव करें।
ध्यान रखें कि पौधों पर घोल की फुहार अच्छी तरह गिरे। छिड़काव का असर दो सप्ताह तक रहता है। यदि इस अवधि के बाद भी शीतलहर व पाले की संभावना बनी रहे तो गंधक का छिड़काव 15 से 20 दिन के अंदर से दोहराते रहें।
जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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अंडे: इस कीट के अंडे आकार में गोलाकार होते हैं और क्रीम से सफेद रंग के होते हैं।
प्यूपा: प्यूपा भूरे रंग का होता है, जो मिट्टी, पत्ती, फली और पुरानी फसल के अवशेष में पाया जाता है।
वयस्क: हल्के पीले से भूरे पीले रंग का दिखाई देता है। इसके अग्र पंखों का रंग हल्के भूरे से गहरा भूरा होता है जिसके ऊपर वी के आकार की संरचना पाई जाती है। इसके पिछले पंख मटमैले सफेद रंग के होते हैं, जिनके बाहरी मार्जिन काले रंग के होते हैं।
क्षति के लक्षण:
इसका लार्वा पत्ती में उपस्थित हरे भाग (क्लोरोफिल) को खाना शुरू कर देता है, जिससे अंत में पत्ते की केवल शिराए ही दिखाई देती हैं। इसके बाद ये लार्वा फूलों और हरी फली को खाना शुरू कर देते हैं। लार्वा फली में छेद कर अंदर प्रवेश कर फली के अंदर उपस्थित सारे भाग को खा कर उसे खोखला कर देता है।
प्रबंधन:
रासायनिक नियंत्रण के लिए प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिली/एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी @ 100 ग्राम/एकड़ या क्लोरेंट्रानिलिप्रोएल 18.5% एससी @ 60 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
“T” आकार की 20-25 खपच्चियाँ प्रति एकड़ की दर से खेत में लगाएं। यह खपच्चियाँ चने की ऊँचाई से 10-20 सेंटीमीटर अधिक ऊंची लगाना लाभदायक रहता है। इन खपच्चियो पर मित्र कीट जैसे चिड़िया, मैना, बगुले आदि आकर बैठते हैं जो फली छेदक का भक्षण कर फसल को नुकसान से बचाते हैं।
फेरोमोन ट्रैप हेलिकोवर्पा आर्मीजेरा 10 प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें l
बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें।
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आजकल मौसम में हो रहे परिवर्तन के कारण गेहूँ की फसल में फॉल आर्मी वर्म का प्रकोप देखने को मिल रहा है।
यह कीट दिन में मिट्टी के ढेलों, पुआल के ढेर में छिपा रहता है और रात में गेहूँ की फसल को नुकसान पहुंचाता है।
यह कीट पत्तियों को खाकर उन पर खिड़कियों के समान छेद कर देते हैं। इसके अधिक प्रकोप की स्थिति में पूरी फसल को खाकर खत्म कर देते हैं।
यह कीट गेहूँ की बालियों को भी नुकसान पहुंचाता है। पक्षी भी इस कीट को खा कर इसका नियंत्रण कर सकते हैं।
पक्षिओं को खेत में आकर्षित करने के लिए 4-5/एकड़ के ‘’T’’ आकार की खूँटी का उपयोग करें। इन खूँटियों पर बैठकर पक्षी कीटों को खाते हैं।
बहरहाल इस कीट का प्रबंधन/नियंत्रण आवश्यक है। जिन क्षेत्रों में सैनिक कीट की संख्या अधिक है उन क्षेत्रों में निम्नांकित किसी एक कीटनाशी का छिड़काव तत्काल किया जाना चाहिए।
नोवालूरान 5.25% + इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% SC @ 600 मिली/एकड़ या क्लोरांट्रानिलप्रोल 18.5% SC @ 60 मिली/एकड़ या इमाबेक्टीन बेंजोएट 5% SG @ 100 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।
जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ का इस्तेमाल करें।
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रबी मौसम के लिए दिसंबर का महीना सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, इस महीने में अगेती फसलों की देखभाल से लेकर पछेती किस्मों की बुवाई तक का काम किया जाता है।
इस महीने तापमान में गिरावट आने लगती है, इसलिए फसल को पाले से बचाने के लिए बेहद सजगता बरतनी पड़ती है।
जिन किसान भाइयों ने गेहूँ की बुवाई अभी तक नहीं की है वो इस माह के प्रथम पखवाड़े तक बुवाई (पछेती किस्म) कर लें।
इस माह में सरसों में फूल आने का समय होता है इसलिए इस समय सिंचाई अवश्य करें।
जिन किसानों ने मटर लगाई है वह फूल आने के पहले हल्की सिंचाई कर दें एवं छाजया रोग के लिए उचित प्रबंध करें।
किसान भाई अगर मसूर की फसल लेना चाहते हैं तो पछेती किस्मों का चुनाव कर बुवाई कर सकते हैं।
आलू की फसल लेने वाले किसान भाइयों को झुलसा रोग एवं विषाणु जनित रोग से फसल बचाव का विशेष ध्यान रखना होगा।
बागवानी वाले किसान अपनी फसलों जैसे अमरूद आदि में फल मक्खी के प्रबंधन के लिए उपाय अपनाएं।
नींबू, संतरा, अमरूद की उचित समय पर तुड़ाई कर मंडी पहुंचाएं।
चारे के लिए बोई गई फसलें जैसे बरसीम आदि की कटाई कर सकते हैं।
आपकी जरूरतों से जुड़ी ऐसी ही अन्य महत्वपूर्ण सूचनाओं के लिए प्रतिदिन पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख और अपनी कृषि समस्याओं की तस्वीरें समुदाय सेक्शन में पोस्ट कर प्राप्त करें कृषि विशेषज्ञों की सलाह।
अगर आप रबी सीजन में धान की खेती करने जा रहे हैं और इसकी नर्सरी तैयार कर रहे हैं तो इसके लिए एक एकड़ खेत में रोपाई हेतु जल स्रोत के पास 400 वर्ग मीटर क्षेत्र का चयन करें।
इसके बाद मिट्टी पलटने वाले हल से 2-3 सूखी जुताई करें और 400 वर्ग मीटर नर्सरी क्षेत्र में 4 क्विंटल गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद डालें एवं सिंचित करके 2 दिन के लिए छोड़ दें।
इसके बाद इसमें दो बार कल्टीवेटर का उपयोग करें और खेत तैयार करें साथ हीं डीएपी 16 किग्रा को समान रूप से मिलाएं।
इसके बाद खेत को पलेवा करें, पलेवा लगाने के बाद, छोटी छोटी क्यारियां बना लें। इन क्यारी की लंबाई 8-10 मीटर एवं चौड़ाई 2.5 मीटर रखें।
दो क्यारियों के बीच में 30-50 सेमी का चैनल छोड़ दें और बीजों को क्यारियों में समान रूप से बोयें।
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पौधे द्वारा मुख्य एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों की ग्रहण क्षमता में इससे सुधार होता है।
यह फसल उत्पादन को बढ़ाने में मदद करता है।
इससे उत्पादित फसलों की गुणवत्ता में सुधार होता है।
मैक्सरूट का उपयोग गेहूँ, धान, आलू, मिर्च, अदरक, प्याज़, तम्बाकू, पुदीना, टमाटर, सरसों, मूंगफली, गन्ना, बैंगन और अन्य सभी सब्जियों वाली फसलों में कर सकते हैं।
स्मार्ट कृषि एवं उन्नत कृषि उत्पादों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख।
पोषक तत्व प्रबंधन: गेहूँ की फसल में 20-25 दिन की अवस्था में, अच्छे पौध विकास के लिए, यूरिया 40 किलोग्राम + जिंक सल्फेट @ 5 किलोग्राम + कोसावेट (सल्फर 90% डब्ल्यूजी) @ 5 किलोग्राम + मेजरसोल (फास्फोरस 15% + पोटेशियम 15% + मैंगनीज 15% + जिंक 2.5% + सल्फर 12%) @ 5 किलोग्राम, को आपस में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें एवं भुरकाव के बाद हल्की सिंचाई करें।
जड़ माहू के क्षति के लक्षण: यह कीट नवंबर से फरवरी माह तक अधिक मिलता है। ये पारदर्शी कीट हैं जो बहुत छोटे और कोमल शरीर वाले पीले भूरे रंग के होते हैं। यह पौधों के आधार के पास या पौधों की जड़ों पर मौजूद होते है एवं पौधों का रस चूसते है। रस चूसने के कारण पत्तियां पीली हो जाती हैं या समय से पहले परिपक्व हो जाती हैं एवं पौधे मर जाते हैं।
नियंत्रण के उपाय: इस कीट के नियंत्रण के लिए, सिंचाई से पहले उर्वरक, रेत या मिट्टी में भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान करनाल के अनुसार थियानोवा 25 (थियामेथोक्सम 25 % डब्ल्यूजी) @ 100 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से भुरकाव करें एवं मीडिया (इमिडाक्लोप्रिड 17.80% एसएल) @ 60 से 70 मिली + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 50 मिली + मैक्सरुट (ह्यूमिक एसिड + पोटेशियम + फुलविक एसिड) @ 100 ग्राम, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
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