Thrips control in Garlic

थ्रिप्स :- यह कीट छोटे एवं पीले रंग के होते है जो पत्तियों पर सफ़ेद धब्बे बना देते है यह पत्तियों से रस चूसते है |
नियंत्रण :- प्रोफेनोफोस @ 400 मिली /एकड़ या फिप्रोनिल 5% एससी @ 400 मिली प्रति एकड़ या एमामेक्टीन बेंजोएट 80-100 ग्राम/एकड़ या स्पिनोसेड @ 75 मिली/ एकड़ का स्प्रे करे| छिडकाव सिलिकोन आधारित साल्वेंट मिला कर करे और जमीन से फिप्रोनिल 0.03% GR @ 8 किलो प्रति एकड़ या फोरेट 10 G @ 8 किलो प्रति एकड़ देने की अनुशंसा है|

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Subsidy for vegetable production

सब्जी क्षेत्र विस्तार योजना:- सब्जी क्षेत्र विस्तार योजना अंतर्गत उन्नत/संकर सब्जी फसल के लिए इकाई लागत का 50% बीज वाली फसलो हैतु अधिकतम 10000/- रुपये प्रति हेक्टेयर तथा सब्जी की कंदवाली फसल जैसे:- आलू, अरबी के लिए अधिकतम रुपये 30,000/- प्रति हेक्टेयर अनुदान दिये जाने का प्रावधान है योजना में एक कृषक को 0.25 हेक्टेयर से लेकर 2 हेक्टेयर तक का लाभ दिया जा सकता है| सभी वर्ग के कृषक लाभ ले सकते है | आवेदन के लिए ऑन लाईन पंजीयन करवाए और वरिष्ठ उधान विकास अधिकारी से संपर्क करे|

http://www.mphorticulture.gov.in/schemes.php

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Nutrient Management in Pea

मटर में पोषक तत्व प्रबंधन:-

बुआई के समय  30 किलो नाईट्रोजन प्रति हेक्टेयर की आधारीय खुराक प्रारंभिक वृद्धि को उत्तेजित करने के लिए पर्याप्त होती है। नाईट्रोजन की अधिक मात्रा ग्रंथियों के स्थिरीकरण पर बुरा प्रभाव डालती है |फसल फास्फोरस प्रयोग को अच्छी प्रतिक्रिया देती है क्योंकि यह जड़ में ग्रंथ गठन को बढ़ाकर नाइट्रोजन निर्धारण का समर्थन करता है। इससे मटर की उपज और गुणवत्ता भी बढ़ जाती है।पौधे की उपज और नाइट्रोजन निर्धारण क्षमता बढ़ाने में पोटेशिक उर्वरकों का भी प्रभाव होता है।

सामान्य अनुशंसा :-

उर्वरको के प्रयोग की सामान्य अनुशंसा निम्न बातों पर निर्भर करता है-

  • मृदा उर्वरकता एवं दी जाने वाली कार्बनिकखाद/गोबर खाद की मात्रा |
  • सिंचाई की स्तिथि:- वर्षा आधरित या सिंचित
  • वर्षा आधारित फसल में उर्वरको की मात्रा आधी दी जाती है |

कितनी मात्रा में दे, कब देना हे-

  • मटर की भरपूर पैदावार के लिए 10 किलोग्राम यूरिया, 50 किलोग्राम डी.ए.पी, 15 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ  पोटाश और 6 किलोग्राम सल्फर 90% डब्लू.जी. को प्रति एकड़ प्रयोग करते है|
  • खेत की तैयारी के समय यूरिया की आधी मात्रा एवं डी.ए.पी, म्यूरेट ऑफ पोटाश और सल्फर की पूरी मात्रा को प्रयोग करते है| एवं शेष बची हुई यूरिया की मात्रा को दो बार में सिंचाई के समय देना चाहिए|

Source: IIVR, VARANASI and Handbook Of Agriculture

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Role of Calcium in Onion

कैल्शियम प्याज में एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है और यह फसल की पैदावार और गुणवत्ता में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। कैल्शियम से जड़ स्थापना में वृद्धि एवं कोशिकाओं का विस्तार को बढ़ता है जिससे पौधों की ऊँचाई बढ़ती है । यह रोग (ब्लैक रोट) और ठण्ड से सहिष्णुता बढ़ता है यद्यपि प्याज में कैल्शियम की सिफारिश की गई मात्रा उपज, गुणवत्ता और भंडारण क्षमता के लिए अच्छी है। कैल्शियम की अनुशंसित खुराक 10 किलोग्राम / हेक्टेयर या मिट्टी परीक्षण रिपोर्ट के अनुसार है।

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Subsidy on Onion Storage House

परियोजना अंतर्गत NHRDF नासिक की ड्राईंग- डिज़ाईन अनुसार 25-50 मीट्रिक टन के प्याज भण्डार गृह निर्माण का प्रावधान है | MIDH नार्मस अनुसार 25 मीट्रिक टन हैतु निर्धारित इकाई लागत राशि रु. 1.75 लाख पर 50% अनुदान अधिकतम राशि रु. 0.875 लाख एवं 50 मीट्रिक टन हैतु निर्धारित इकाई लागत राशि 3.50 लाख 50% अनुदान अधिकतम राशि रु. 1.75 लाख देय है| परियोजना समस्त जिलो में लागू है | सभी वर्ग के कृषक लाभ ले सकते है | आवेदन के लिए ऑन लाईन पंजीयन करवाए और वरिष्ठ उधान विकास अधिकारी से संपर्क करे|

http://www.mphorticulture.gov.in/schemes.php

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Soil and its preparation in Garlic

मिट्टी और उसकी तैयारी: – विभिन्न मृदाओ पर लहसुन उगाया जा सकता है। लेकिन रेतीली दोमट, चिकनी दोमट और गहरी भुर भूरी मिट्टी लहसुन की फसल के लिए सबसे उपयुक्त हैं। 5-6 जुताई के द्वारा भूमि तैयार की जाती है। अधिकतम पीएच श्रेणी 5.8 और 6.5 के बीच हो। पीएच स्तर को बनाए रखने के लिए प्रति हेक्टेयर 50 किलोग्राम जिप्सम का उपयोग करें। (मिट्टी पीएच स्तर के अनुसार) भूमि को ऐसे तरीके से तैयार किया जाना चाहिए कि अत्यधिक पानी आसानी से बाहर निकाला जा सकता है और खरपतवार मुक्त बन सके| आखरी जुताई से पहले 15-20 टन अच्छी तरह से सड़ी गोबर की खाद खेत में देनी है |

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Fertilizer application for Chickpea

चने की फसल दलहनी होने के कारण इसको नाइट्रोजन की कम आवश्यकता होती है क्योंकि चने के पौधों की जड़ों में ग्रन्थियां पाई जाती है। ग्रन्थियों में उपस्थित जीवाणु वातावरण की नाइट्रोजन का जड़ों में स्थिरीकरण करके पौधे की नाइट्रोजन की पूर्ति कर देती है। लेकिन प्रारम्भिक अवस्था में पौधे की जड़ों में ग्रंन्थियों का पूर्ण विकास न होने के कारण पौधे को भूमि से नाइट्रोजन लेनी होती है। अतः नाइट्रोजन की आपूर्ति हेतु 20 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। इसके साथ 40 कि.ग्रा. फॉस्फोरस प्रति हैक्टेयर की दर से देना चाहिये। नाइट्रोजन की मात्रा यूरिया या डाई अमोनियम फास्फेट (डीएपी) तथा गोबर खाद व कम्पोस्ट खाद द्वारा दी जा सकती है। जबकि फास्फोरस की आपूर्ति सिंगल सुपर फास्फेट या डीएपी या गोबर व कम्पोस्ट खाद द्वारा की जा सकती है। एकीकृत पोषक प्रबन्धन विधि द्वारा पोषक तत्वों की आपूर्ति करना लाभदायक होता है। एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिए 2.50 टन गोबर या कस्पोस्ट खाद को भूमि की तैयारी के समय अच्छी प्रकार से मिट्‌टी में मिला देनी चाहिये। बुवाई के समय 22 कि.ग्रा. यूरिया तथा 125 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट या 44 कि.ग्रा. डीएपी में 5 किलो ग्राम यूरिया मिलाकर प्रति हैक्टेयर की दर से पंक्तियों में देना पर्याप्त रहता है।

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Subsidy for Fruit Planting

प्रदेश की भूमि, जलवायु, तथा सिंचाई सुविधा की उपलब्धता के आधार पर यह योजना प्रदेश में संचालित है | योजना में कृषकों को आम, अमरुद, संतरा, मोसम्बी, सीता फल, बेर, चीकू एवं अंगूर, टिशु कल्चर पध्दति से उत्पादित अनार, स्ट्राबेरी एवं केला, संकर बीज से उत्पादित मुनगा एवं पपीता तथा बीज से उत्पादित नीम्बू के उच्च एवं अति उच्च सघनता के ड्रिप सहित फल पौध रोपण पर कृषकों को इकाई लागत का 40% अनुदान 60:20:20 के अनुपात में तीन वर्षो में देय है| योजना के अंतर्गत प्रत्येक कृषक को 0.25 से 4.00 हेक्टेयर तक फल पौध रोपण पर अनुदान देय है|

अधिक जानकारी के लिए उधानिकी विभाग में वरिष्ठ उधान विकास अधिकारी से संपर्क करे |

स्त्रोत:- http://www.mphorticulture.gov.in/schemes.php

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Management of Purple Blotch in Onion

प्याज में बैगनी धब्बा रोग का प्रबंधन:

शुरुआत में छोटे, अंडाकार घाव ओर धब्बे जो आगे चल कर बैगनी भूरे हो जाते है पीले किनारों के चारो ओर दिखाई देते है | जब धब्बे बड़े होने लगते है पीले किनारे फ़ैल कर ऊपर नीचे घाव बनाते है| घाव पत्ति के बीच में बने होते है जिससे वो गिर जाता है | घाव पुरानी पत्तियों के सिरे से शुरू होते है |

रोग को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए स्वस्थ बीज का उपयोग किया जाना चाहिए। गैर-संबंधित फसलों के साथ 2-3 साल का फसल चक्र का पालन करना चाहिए। फफुदीनाशक का छिड़काव, मैन्कोज़ेब 75% WP @ 45 ग्राम/ 15 लीटर पानी या हेक्साकोनोजोल 5% एससी @ 20 मिलीलीटर / 15 लीटर पानी या प्रोपिकोनाज़ोल 25% ईसी @ 15 मिलीलीटर / 15 लीटर पानी 30 दिन से 10-15 दिनों के अंतराल पर रोपण के बाद या जैसे ही बीमारी दिखाई देती है करना चाहिए |

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Thrips management in Onion

थ्रिप्स (तैला) प्याज का सबसे ज्यादा नुकसान करने वाला कीट है | यह देश सभी क्षेत्रो जहा प्याज उगाया जाता है पाया जाता है | थ्रिप्स (तैला) से ग्रसित प्याज की पत्तियों पर धब्बे रस चूसने के कारण विकसित होते हे जो पीले सफेद के क्षेत्रो में बदलते है | थ्रिप्स के कारण कभी कभी 50-60% उपज में कमी देखी गई है| थ्रिप्स के हमले के कारण बीज की जीवन क्षमता सहित बीज उत्पादन में बाधा आती है।यह कीट बहुत छोटा पीले से गहरे भूरे रंग का होता है| इसका जीवन काल 8-10 दिन होता है| यह हरी पत्तियों के जोड़ पाए जाते जहा यह नई निकलती पत्तियों का रस चूसते है| व्यस्क प्याज के खेत में जमीन में, घास पर और अन्य पौघो पर सुसुप्ता अवस्था में रहते है | सर्दियों में थ्रिप्स (तैला) कंद में चले जाते है और अगले वर्ष संक्रमण के स्त्रोत का कार्य करते है | वे मार्च-अप्रैल के दौरान भारत के उत्तरी हिस्सों में बीज उत्पादन और प्याज कंद पर बड़ी संख्या में प्रजननते हैं| ग्रसित पौधों की वृद्धि रुक जाती है जिनकी पत्तियाँ घूमी हुई होती है | यदि प्रकोप वृद्धि की छोटी अवस्था में लगता है तो कंद निर्माण पुरी तरह बंद हो जाता है और पौधा धीरे धीरे मर जाता है| भंडारण के दोरान भी इसका प्रकोप कंदों पर रहता है| प्रोफेनोफोस @ 45 मिली. / पम्प या एमामेक्टीन बेंजोएट 15 ग्राम/पम्प या स्पिनोसेड @ 10 मिली. का स्प्रे करे| छिडकाव सिलिकोन आधारित साल्वेंट मिला कर करे और जमीन से फिप्रोनिल 0.03% GR @ 5 किलो प्रति एकड़ या फोरेट 10 G @ 4 किलो प्रति एकड़ या कार्बोफ्युरोन 3% G @ 4 किलो प्रति एकड़ देने की अनुशंसा है|

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