मिर्च की नर्सरी लगाने वाले किसान, इन बातों का रखें ख़ास ध्यान

How to manage a chilli nursery

जरूरत के हिसाब से मिर्च की नर्सरी में फव्वारे या हजारे की सहायता से पानी देते रहना चाहिए। गर्मियों में दोपहर के बाद एक दिन के अंतर पर पानी का छिड़काव कर देना चाहिए, क्योंकि गर्मी के मौसम में एग्रो नेट का प्रयोग करने से भी भूमि की नमी जल्दी उड़ जाती है। जल भराव अधिक मात्रा में होने की स्थिति में, उचित निकास की व्यवस्था होनी चाहिए।

इसके अलावा क्यारियों में से घास कचरा साफ करते रहना चाहिए। अत्यधिक गर्मी होने पर रोपणी को घास के आवरण से ढक कर रखें, बीज के अंकुरण के 4 से 5 दिन बाद घास के आवरण को हटायें। क्यारियाँ साफ करने के बाद पौध गलन और रस चूसक कीट के नियंत्रण के लिए करमानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP) 25 ग्राम/पंप और थियानोवा -25 (थियामेथोसाम 25% WG) 10 ग्राम/पंप और मैक्सरुट 10 ग्राम/पंप को 15 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

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भिंडी में सर्कोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग की पहचान एवं नियंत्रण के उपाय

Identification and control of Cercospora leaf spot disease in okra

इस रोग की शुरूआती अवस्था में पत्तियों की निचली सतह पर भूरे धब्बे दिखाई देते हैं। ख़ास कर के पुरानी पत्तियां जो कि भूमि के समीप होती हैं, इस रोग से ज्यादा प्रभावित होती हैं। जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, पत्तियां सूख कर भूरी हो कर मुड़ जाती हैं। गंभीर संक्रमण की स्थिति में पत्तियां पूरी तरह झड़ जाती हैं और पत्तियों की ऊपरी सतह पर भी धब्बे देखे जा सकते हैं। यह रोग नीचे से ऊपर की पत्तियों की तरफ बढ़ता है और तना और फलों को भी संक्रमित करता है।  

नियंत्रण: यदि इसका हमला देखा जाए तो एम -45 (मैनकोजेब 75% WP) 400 ग्राम/एकड़ की दर 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

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बैंगन की फसल में बैक्टीरियल विल्ट रोग की पहचान एवं नियंत्रण के उपाय

Identification and control of bacterial wilt disease in brinjal crop

विल्ट रोग फसल की 50-55 दिनों की अवस्था में देखा जाता है। इससे प्रभावित पौधे अचानक मुरझा कर धीरे-धीरे सूख जाते हैं। ऐसे पौधे हाथ से खींचने पर आसानी से उखड़ जाते हैं। विल्ट रोग के कारण रोगी पौधों की जड़ें अंदर से भूरी व काली हो जाती हैं। रोगी पौधों को चीर कर देखने पर उतक काले दिखाई देते हैं। पौधों की पत्तियां मुरझाकर नीचे गिर जाती हैं। जमीन में ज्यादा नमी व गर्मी होने के कारण यह रोग बढ़ता है। 

नियंत्रण: इससे बचाव के लिए रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए। यह एक मिट्टी जनित रोग है इसलिए मिट्टी उपचार करना अति आवश्यक है। इसके लिए कॉम्बैट (ट्राइकोडर्मा विरिडी 1% WP) 2 किग्रा/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार करें या फिर फसल लगने के बाद रोग के लक्षण दिखने पर, ब्लू कॉपर (कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% WP) का उपयोग 300 ग्राम/एकड़ पानी में मिलाकर ड्रिप के माध्यम से करें।

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मिर्च की एक बेहतरीन किस्म है राफेल, जानें इसकी खूबियां

Complete information of the Chilli variety Rafale

मिर्च की इस किस्म के पौधे बेहद मजबूत होते हैं। इन पौधों की शाखाएं घनी और अर्ध फैलाव लिए हुए होती हैं। इस किस्म में बेहतर गुणवत्ता वाले फल और बेहतरीन वृद्धि विकास की क्षमता होती है। इस किस्म के फल की लम्बाई लगभग 7 सेमी एवं मोटाई लगभग 1.2 सेमी होती है। इसके फल गहरे हरे रंग के एवं चिकनी त्वचा और मध्यम चमक वाले होते हैं। पकने पर इसके फल आकर्षक चमकदार गहरे लाल रंग में बदल जाते हैं। यह किस्म लीफ कर्ल वायरस के प्रति उत्कृष्ट सहनशील किस्म मानी जाती है। इसके फल की तुड़ाई आसानी से की जा सकती है और इस दौरान पौधों को किसी प्रकार की क्षति नहीं होती है। चमकदार, आकर्षक फल होने के कारण इस किस्म के मिर्च को बाजार भाव भी अच्छा मिलता है। यह अधिक तीखापन और बेहतर रंग के साथ बहुत अधिक उपज देने वाली संकर किस्म है। बीजदर 60-80 ग्राम/एकड़ की दर से इसकी नर्सरी तैयार कर सकते हैं। इसकी पहली तुड़ाई 60-65 दिन में कर सकते है। इस किस्म का रोपण करते समय कतार से कतार की दूरी 4 सेमी और पौधे से पौधे कि दूरी 2 सेमी रखनी चाहिए। 

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ऐसे तैयार करें फूलगोभी की नर्सरी, इन बातों का रखें ध्यान

Method of nursery preparation for Cauliflower
  • फूलगोभी की नर्सरी में बीजो की बुआई क्यारियों में की जाती है और इन क्यारियों की ऊचाई 10 से 15 सेंटीमीटर तथा आकार 3*6 मीटर होना चाहिए। 

  • दो क्यारियों के बीच की दूरी 70 सेंटीमीटर होनी चाहिए, जिससे अंतरासस्य क्रियाएं आसानी से की जा सके।

  • नर्सरी की क्यारियों की सतह भुरभुरी एवं समतल होनी चाहिए ताकि जल का भराव न हो सके। 

  • क्यारियों को बनाते समय गोबर की खाद 8-10 किलो/वर्ग मीटर की दर से मिलाना चाहिए।

  • भारी भूमि में ऊंची क्यारियों का निर्माण करके जलभराव की समस्या को दूर किया जा सकता है। 

  • पौध को आद्रगलन जैसी घातक बीमारी से बचाने के लिए धानुस्टीन (कार्बेन्डाजिम 50% WP) को 15-20 ग्राम/10 लीटर पानी में घोल बनाकर अच्छी तरह से भूमि में मिलाना चाहिए। पौधों को कीटों के आक्रमण से बचाने के लिए थियानोवा-25 (थायोमेथोक्सम 25% WG) का 0.3 ग्राम/वर्ग मीटर की दर से नर्सरी की तैयारी करते समय डालें। 

  • फूलगोभी की नर्सरी तैयार होने में 25 से 30 दिन का समय लगता है इसके बाद मुख्य खेत में पौधों की रोपाई कर देनी चाहिए।

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करेले की फसल में पाउडरी मिल्ड्यू रोग की पहचान व निवारण के उपाय

Identification and prevention of powdery mildew disease in bitter gourd

इस रोग के शुरुआत में ऊपरी पत्तियों की सतह पर सफेद धब्बे दिखाई देते हैं। इन धब्बों को हाथ लगाने से सफ़ेद पाउडर हाथ पर दिखाई देता है। पत्तियों की निचली सतह पर गोलाकार धब्बे दिखाई देते हैं। गंभीर मामलों में, ये फैलते हैं और आपस में मिलकर पत्तियों की दोनों सतहों को ढक लेते हैं और तने तक भी फैल जाते हैं। गंभीर रूप से प्रभावित पत्तियाँ भूरी और सिकुड़ी हुई नजर आती हैं और पत्ते झड़ने भी लगते हैं। प्रभावित पौधों के फल पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाते और छोटे रह जाते हैं।

नियंत्रण: इससे बचाव के लिए एम -45 (मैनकोजेब 75% WP) 400 ग्राम/एकड़ या जटायु क्लोरोथालोनिल 75% WP 400 ग्राम/एकड़ 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें। दस से पंद्रह दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव करके पाउडरी मिल्ड्यू  को नियंत्रित किया जा सकता है।

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तोरई में बढ़ रहा पीला मोजेक रोग, जल्द करें पहचान व अपनाएं बचाव के उपाय

Identification and prevention of yellow mosaic disease in ridge gourd

पीला मोजेक रोग तोरई की फसल के लिए एक गंभीर समस्या है। यह एक विषाणुजनित रोग है और इसके लक्षण पौधों की नई पत्तियों पर पीले धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं। इसका प्रकोप अधिक होने के कारण पौधों की पत्तियां छोटी व विकृत हो जाती हैं। यह रोग सफेद मक्खी के द्वारा फैलता है, इस कीट के निम्फ व वयस्क दोनों हीं पौधों का रस चूसते हैं। 

नियंत्रण: इसकी रोकथाम के लिए नीमगोल्ड नीम तेल 1000 मीली/एकड़ या ब्लू स्टिकी ट्रैप 10 प्रति एकड़ 10 की दर से लगाएं या बवे कर्व (बवेरिया बेसियाना 5% WP) 500 ग्राम/एकड़ की दर 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

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बैंगन की फसल में लाल मकड़ी कीट का ऐसे करें नियंत्रण

Control of Red Mites in Brinjal Crop

लाल मकड़ी छोटे-छोटे कीट होते हैं जो पत्तियों की निचली सतह पर समूह बना कर रहते हैं और पत्तियों से रस चूसते हैं। इससे पौधों में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है और पत्तियां मुरझा कर नीचे की ओर मुड़ जाती हैं जिससे पौधों का विकास रुक जाता है। इसके प्रकोप से फल कम पकते हैं या अधपकी अवस्था में ही गिर जाते हैं। अधिक संक्रमण होने पर पौधों में जाले दिखाई देते हैं।

नियंत्रण: इसकी रोकथाम के लिए फसल चक्र अपनाएं या प्रभावित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें। इसके अलावा ओमाइट (प्रोपार्जाइट 57% EC) 400 मिली/एकड़ या ओबेरोन (स्पाइरोमेसिफेन 22.90% EC) 160 मिली की दर से 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

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बैंगन की फसल में एफिड कीट की पहचान एवं निवारण के उपाय

Identification and prevention of Aphid pests in brinjal crops

एफिड एक सूक्ष्म कीट होता है जो देखने में पीला, भूरा या काले रंग का होता है। आमतौर पर यह कीट बैंगन की पत्तियों की निचली सतह पर पाई जाती है जो समूह बनाकर पत्तियों से रस चूसते हैं। इससे पत्तियों का आकार बिगड़ जाता है। यह कीट पत्तियों पर चिपचिपा मधुरस (हनीड्यू) छोड़ते हैं जिससे फफूंदजनित रोगों की संभावनाएं बढ़ जाती है। गंभीर संक्रमण के कारण पत्तियां मुरझा जाती हैं और पौधे का विकास रुक जाता है। 

निवारण: कीट का प्रकोप दिखने पर सोलोमोन (बीटा-सायफ्लुथ्रिन 08.49% + इमिडाक्लोप्रिड 19.81% OD) 80 मिली/एकड़ या टाफगोर (डाइमेथोएट 30% EC) 300 मिली/एकड़ 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

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अच्छी उपज प्राप्ति के लिए कपास की फसल में ऐसे करें खाद का प्रबंधन

How to manage fertilizer in a cotton crop

ज्यादातर किसान बुआई के समय खाद का प्रयोग नहीं करते हैं, वे अक्सर ये धारणा रखते हैं कि अभी गर्मी ज्यादा है तो खाद देना उचित नहीं होगा, और बारिश होने पर खाद देंगे, लेकिन यह सोच गलत है। जड़ और शाखाओं के शुरूआती विकास के लिए प्रारंभिक अवस्था में आधार खाद डालना अतिआवश्यक होता है अन्यथा उत्पादन में भारी कमी होती है। इसलिए उपलब्ध होने पर, अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद/कम्पोस्ट को 4 से 5 टन प्रति एकड़ की दर से, अवश्य देना चाहिए।

कपास की अच्छी वृद्धि विकास के लिए (यूरिया -30 किलो) (डीएपी-50 किलो) (म्यूरेट ऑफ पोटाश-30 किलो) ट्राई-कोट मैक्स 4 किलो प्रति एकड़ की दर से आखरी जुताई या खेत की तैयारी करते समय दें। 

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