Nutrient management on garlic after 25 day

    • सूक्ष्म पोषक तत्व लहसुन की फसल की उपज बढ़ाने  के लिये प्रभावकारी होते है अतः फसल के विकास हेतु आप निम्नलिखित पोषक प्रबंधन का क्रम अपनाये |
    •  15 दिन बाद की अवस्था पर – 20 किलो यूरिया + 20 किलो 12:32:16 + 300 ग्राम/एकड़ विगोर का छिड़काव करे | 
    •  30 दिन बाद की अवस्था पर –  20 किलो यूरिया + मेक्सग्रो 8 किग्रा / एकड़ | 

 

  •  50 दिन बाद की अवस्था पर – कैल्शियम नाइट्रेट @ 6 किग्रा/एकड़ + जिंक सल्फेट @ 8 किग्रा/एकड़| 

 

 

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Irrigation management on garlic

  •  रोपण के उपरांत पहली सिचाई देनी चाहिये । 
  •   अंकुरण के तीन दिन पश्चात फिर से सिचाई करनी चाहिये।
  •   वनस्पति वृद्धि के एक सप्ताह बाद सिचाई क रना चाहिये। 
  •   आवश्यकता  अनुसार सिचाई  करते रहे। 
  •   जब कंद परिपक्त हो रहे हो तब सिचाई नही देना चाहिये।
  •   फसल को निकालने के 2-3 दिन पहले सिचाई करनी चाहिये जिससे की फसल को निकालने में आसानी होती है। 
  •   फसल के पकने के दौरान भूमि में नमी कम नही होना चाहिये अन्तः कंद के विकास में विपरीत प्रभाव पड़ता है|
  •  10-15 दिनों में कंद का विकास होता है

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Control of Yellow Mosaic Disease in Okra

  • वायरस से ग्रसित पौधों और पौधों के भागों को उखाड़ के नष्ट कर देना चाहिए|
  • कुछ किस्मे जैसे परभणी क्रांति, जनार्धन, हरिता, अर्का अनामिका और अर्का अभय इत्यादि वायरस के प्रति सहनशील होती है|
  • पौधों की वृद्धि की अवस्था में उर्वरकों का अधिक उपयोग ना करें|
  • जहाँ तक हो सके भिंडी की बुवाई समय से पहले कर दें|
  • फसल में प्रयोग होने वाले सभी उपकरणों को साफ रखें ताकि इन उपकरणों के माध्यम से यह रोग अन्य फसलों में ना पहुँच पाए|
  • जो फसलें इस बीमारीं से प्रभावित होती है उन फसलों के साथ भिंडी की बुवाई ना करें|
  • सफ़ेद मक्खी के नियंत्रण के लिए 4-5 चिपचिपे प्रपंच/एकड़ उपयोग कर सकते है|
  • डाइमिथोएट 30% ई.सी. 250  मिली /एकड़ पानी मे घोल बना कर स्प्रे करें|
  • इमिडाइक्लोप्रिड 17.8% SL 80 मिली /एकड़ की दर से स्प्रे करें|

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Yellow Mosaic Disease in Okra/Bhindi

  • यह बीमारी सफ़ेद मक्खी नामक कीट के कारण होती है|
  • यह बीमारी भिंडी की सभी अवस्था में दिखाई देती है|
  • इस बीमारी में पत्तियों की शिराएँ पीली दिखाई देने लगती हैं|
  • पीली पड़ने के बाद पत्तियाँ मुड़ने लग जाती हैं|
  • इससे प्रभावित फल हल्के पीले, विकृत और सख्त हो जाते है|

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Grading of green peas

  • ताजे सब्जी के रुप में  उपयोग करते समय, ज्यादा पकी पीली फल्लियों, चपटे फल्लियों रोग ग्रस्त व कीट ग्रस्त  फल्लियों को अलग कर देना चाहिये । 
  • मटर को आकार के आधार पर चार  वर्गों में विभाजित किया गया है ।  
  • छोटे मटर की गुणवत्ता अधिक  होती है ।

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Harvesting of green pea

  • हरी फल्लियों की तुड़ाई उस समय करना चाहिये जब उसमें दाना अच्छी तरह से भर जाये । 
  • सब्जी के लिये, जब  फल्लियों का रंग गहरे हरे से हल्के हरे रंग में बदलना शुरु हो तब तुड़ाई करनी  चाहिये ।  
  • फल्लियों की तुड़ाई सावधानी पूर्वक करना चाहिये जिससे पौधों को नुकसान न हो अन्यथा पैदावार में कमी आती है । 

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Control of Stemphylium Blight in Onion

  • चोपाई के 30 दिन बाद 10-15 दिन के अंतराल पर या बीमारी के लक्षण दिखाई देने पर फफूंदनाशियों 
  • मेन्कोजेब 75%WP @ 500 ग्राम प्रति एकड़  
  • हेक्सकोनाज़ोल @ 400  मिली,प्रति एकड़ या  
  • प्रोपिकोनाज़ोल @ 200  मिली एकड़ का छिडकाव करे |

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Symptoms of Stemphylium Blight in Onion

स्टेमफाईटम झुलसा रोग:- 

  • छोटे पीले से नारंगी धब्बे या धारियां पत्ती के बीच में बनती है
  •  जो बाद में बड़ी धुरी के आकार से अंडाकार हो जाती है जो धब्बे के चारो ओर गुलाबी किनारे इसका लक्षण है| 
  • धब्बे पत्तियों के किनारे से नीचे की और बढ़ते है| धब्बे आपस में मिलकर बड़े क्षेत्र बनाते है पत्तियां झुलसी दिखाई है पौधे की सभी पत्तियां प्रभावित होती है| 

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Drip irrigation and Advantages of Drip Irrigation

अच्छी फसल के सफल उत्पादन के लिए पानी की उपलब्धता एक महत्वपूर्ण कारक है| लगातार बढ़ती हुई आबादी और जलवायु परिवर्तन के कारण ज़मीन में उपलब्ध जल की मात्रा कम होती जा रही है, जिस कारण लगातार फसलों के उत्पादन में कमी होते जा रही है| इसी समस्या के समाधान के लिए ड्रिप सिंचाई का आविष्कार किया गया जो कि, किसानों के लिए एक वरदान साबित हुई है| इस विधि में पानी को स्रोतों से प्लास्टिक की नलियों  द्वारा सीधा पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है और साथ ही यदि उर्वरकों को भी इनके माध्यम से पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है तो यह प्रक्रिया फर्टिगेशन कहलाती है|

लाभ –

  • अन्य सिंचाई प्रणाली की तुलना में 60-70% पानी की बचत होती है|  

  • ड्रिप सिंचाई के माध्यम से पौधों को अधिक दक्षता के साथ पोषक तत्त्व उपलब्ध करने में मदद मिलती है|

  • ड्रिप सिंचाई के माध्यम से पानी का अप-व्यय (वाष्पीकरण एवं रिसाव के कारण)  को रोक सकते हैं |

  • ड्रिप सिंचाई में पानी सीधे फसल की जड़ों में दिया जाता है। जिस कारण आस-पास की जमीन सूखी रहने से खरपतवार विकसित नहीं हो पाते हैं|

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Post Calving Challenges In Milk Cattles

  • प्रसव के बाद पशु की शारीरिक शक्ति कम हो जाती है इसके साथ-साथ कैल्शियम की कमी भी सामान्यता देखने को मिलती है जिसकी वजह से पशुओं में दूध का उत्पादन तो कम होता ही है, पशु को मिल्क फीवर होने की भी सम्भावना बढ़ जाती है, कुछ पशुओं को जेर गिराने में भी समस्या होती है| इस समय पशुओं का अच्छे से ख्याल रखना तथा सही मात्रा में और सही पशु आहार का देना चाहिये| साथ ही इसे शक्ति वर्धक पेय देना भी जरूरी होता है|

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