- प्याज़ के खेत में अनियमित सिंचाई के कारण इस विकार में वृद्धि होती है।
- खेत में ज्यादा सिंचाई, के बाद में पुरी तरह से सूखने देने एवं अधिक सिंचाई दोबारा करने के कारण कंद फटने लगते हैं।
- कंद के फटने के कारण कंदों में मकड़ी (राईज़ोफ़ाइगस प्रजाति) चिपक जाती है।
- प्रथम लक्षण कंद के फटने के बाद आधार पर दिखाई देते हैं।
- प्रभावित कंद फटे उभार के रूप में आधार वाले भाग में दिखाई देते हैं।
सिंचाई के अच्छे प्रबंधन से तरबूज की पैदावार में सुधार कैसे करें
- तरबूज अधिक पानी चाहने वाली फसल है लेकिन पानी का भराव इस फसल के लिए हानिकारक होता है|
- तरबूज की खेती खासकर गर्म मौसम में होती हैं इसलिए इसमें सिंचाई का अंतराल बहुत महत्तवपूर्ण होता हैं|
- तरबूज में 3-5 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए|
- फूल आने के पहले, फूल आने के समय एवं फल की वृद्धि के समय पानी की कमी से उत्पादन में बहुत कमी आ जाती है|
- फल पकने के समय सिंचाई रोक देना चाहिए ऐसा करने से फल की गुणवत्ता बढ़ती है और साथ ही फल फटने की समस्या भी नहीं आती है|
तरबूज की महत्वपूर्ण किस्मे
क्र. | किस्म का नाम | फल का आकार | फल का भार
(किलोग्राम ) |
फसल अवधि
(दिन ) |
फल का रंग |
1. | सागर किंग | अंडाकार | 3-5 | 60 – 70 | फल का रंग काला तथा गुदा लाल रंग का दिखाई देता है |
2. | सागर किंग प्लस | अंडाकार | 3-5 | 60 – 70 | फल का रंग काला तथा गुदा लाल रंग का दिखाई देता है |
3. | काजल | अंडाकार | 3- 3.5 | 60 – 70 | फल का रंग काला तथा गुदा गुलाबी रंग का दिखाई देता है |
4. | 2208 | अंडाकार | 2-4 | 70 – 80 | फल का रंग काला तथा गुदा लाल रंग का दिखाई देता है |
तरबूज की खेती के लिए खेत की तैयारी
- तरबूज की खेती सभी प्रकार की मृदा मे की जा सकती है लेकिन हल्की, रेतीली एवं उर्वर दोमट मृदा उत्तम होती है|
- मृदा में कार्बनिक पदार्थों की उपस्थिति महत्वपूर्ण होती है इसकी पूर्ति के लिए हरी खाद, कम्पोस्ट, केंचुआ की खाद इत्यादि को जुताई के समय मिला देना चाहिये |
- खेत की अच्छी तैयारी के लिए पहले गहरी जुताई करे फिर हैरो चलाये जिससे जमीन भुरभुरी हो जाए|
- हल्का ढाल दक्षिण दिशा की और रखना हैं|
- खेत में से घास फुस साफ़ करें|
तरबूज की बुवाई का समय
- तरबूजे की बुवाई का समय नवम्बर से मार्च तक है।
- नवम्बर-दिसम्बर की बुवाई के बाद पौधों को पाले से बचाना चाहिए तथा अधिकतर बुवाई जनवरी-मार्च तक की जाती है।
- पहाड़ी क्षेत्रों में मार्च-अप्रैल के महीनों में बोया जाता है।
सरसों की फसल पर पेंटेड बग का प्रबंधन
- खेत की गहरी जुताई करें ताकि कीड़ों के अंडे नष्ट हो जाएं|
- कीट के हमले से बचने के लिए समय से पहले बुवाई करे |
- कीट के प्रभाव को कम करने के लिए बुवाई के चार सप्ताह के दौरान फसल की सिंचाई करें
- थाइमेथोक्साम 25% WP (एविडेंस / अरेवा) @ 300 ग्राम/एकड़ का प्रति एकड़ छिड़काव करे | या
- ऐसफेट 75% एसपी (एसेमैन) याका प्रति एकड़ छिड़काव करे |
- स्प्रे बायफेन्थ्रिन (klintop / मार्कर) @ 300 मिली/एकड़ का प्रति एकड़ छिड़काव करे |
सरसो की फसल में पेंटेड बग की पहचान
- इस कीट का व्यस्क काले रंग का होता है ,जिसके ऊपर लाल व पीले रंग की धारिया पायी जाती है |
- इस कीट से प्रभावित पौधा मुरझाकर सूखने लगता है |
- निम्फ तथा व्यस्क दोनों ही अवस्था पौधे को नुकसान पहुँचती हैं|
- ये कीट पौधे का रस चूस कर अपना भोजन प्राप्त करते हैं जिसकी वजह से पौधे की बढ़वार रुक जाती हैं तथा पौधा पीला हो जाता हैं |
- पौधे की फली अवस्था में यह कीट फलियों को नुकसान पहुंचाते हैं ,जिसके वजह से दानो की गुणवत्ता तथा उपज दोनों ही प्रभावित होती हैं |
टमाटर के खेत में कैल्शियम की कमी का उपचार
- रोपाई के 15 दिन पहले मुख्य खेत में गोबर की ठीक से सड़ी हुई खाद का उपयोग करें |
- बचाव हेतु रोपाई के पहले कैल्शियम नाइट्रेट @ 10 किलो/एकड़ की दर से खेत में मिलाये | या
- कमी के लक्षण दिखाई देने पर कैल्शियम EDTA @ 150ग्राम/एकड़ की दर से दो बार छिड़काव करे
सरसो में पोषण प्रबंधन
- सरसो की फसल में फुल वाली अवस्था महत्वपूर्ण हैं |
- इस अवस्था में फूलों की संख्या बढ़ाने एवं फली के विकास के समय हार्मोन देना फ़ायदेमंद होता हैं |
- इसके लिए होमोब्रेसिनीलॉइड 0. 04 % @ 100 ml/एकड़ के साथ 19:19:19 @ 1 किलो प्रति एकड़ का छिड़काव करे |
जाने करेले की फसल में फास्फोरस घोलक जीवाणु का महत्व
- ये जीवाणु फास्फोरस के साथ साथ मैंगनीज, मैगनेशियम, आयरन, मॉलिब्डेनम, जिंक और कॉपर जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों को भी पौधे में उपलब्ध करवाने में सहायक होते है|
- तेजी से जड़ों का विकास करने में सहायक होता है जिससे पानी और पोषक तत्व आसानी से पौधों को प्राप्त होते है |
- पीएसबी कुछ खास जैविक अम्ल बनाते है जैसे मैलिक, सक्सेनिक, फ्यूमरिक, साइट्रिक, टार्टरिक एसिड और एसिटिक एसिड ये अम्ल फॉस्फोरस उपलब्धता बढ़ाते है|
- रोगों और सूखा के प्रति प्रतिरोध क्षमता को बढ़ाता है|
- इसका उपयोग करने से 25 -30% फॉस्फेटिक उर्वरक की आवश्यकता कम होती ।