- पुरानी फसल के अवशेष को नष्ट कर दें।
- यदि फसल की प्रारंभिक अवस्था में, कीट दिखाई दे तो उसे हाथ से पकड़कर नष्ट कर दें।
- साईपरमेथ्रिन 25% ईसी 150 मि.ली.प्रति एकड़ + डायमिथोएट 30% ईसी 300 मि.ली. प्रति एकड़ की दर से घोल बना कर छिडकाव करें। या
- कार्बारिल 50% डब्लू पी 450 ग्राम प्रति एकड़ की दर से घोल बना कर छिड़काव करें। पहला छिडकाव रोपण के 15 दिन व दूसरा इसके 7 दिन बाद करें।
- डाइक्लोरवास (डीडीवीपी) 76% ईसी का 250-350 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव कर के इस कीट का नियंत्रण किया जा सकता है |
कद्दू व तुरई की फसल में लाल कीट की पहचान
- अंडे से निकले हुये ग्रब ‘जड़ों, भूमिगत भागों एवं जो फल भूमि के संपर्क में रहते हैं उनको खा जाते हैं।
- इन प्रभावित पौधे के खाये हुए जड़ों एवं भूमिगत भागों पर मृतजीवी फंगस का आक्रमण हो जाता है जिसके फलस्वरूप अपरिपक्व फल व लताएँ सुख जाती है।
- बीटल पत्तियों को खाकर उनमें छेद कर देते है।
- पौध अवस्था में बीटल का आक्रमण मुलायम पत्तियों को खाकर हानि पहुँचाते है जिसके कारण पौधे मर जाते हैं।
- संक्रमित फल मनुष्य के खाने योग्य नहीं रहते हैं।
अधिक उत्पादन पाने के लिए तरबूज, खरबूज और कद्दू की फसल में फूलों की संख्या ऐसे बढ़ाएं
नीचे दिए गए कुछ उत्पादों के द्वारा फसल में फूलों की संख्या को बढ़ाया जा सकता हैं।
- होमोब्रासिनोलॉइड 0.04% डब्लू/डब्लू 100-120 मिली/एकड़ का स्प्रे करें।
- समुद्री शैवाल का सत् 180-200 मिली/एकड़ का उपयोग करें।
- सूक्ष्म पोषक तत्त्व 300 ग्राम/एकड़ का स्प्रे करें।
- इस छिड़काव का असर पौधे पर 80 दिनों तक रहता है।
कद्दू, तरबूज एवं खरबूजे की फसल में गम्मी तना झुलसा रोग का प्रबंधन
- रोपाई का निरीक्षण करें एवं संक्रमित पौधों को उखाड़ कर खेत से बाहर फेंक दें।
- क्लोरोथालोनि
- स्वस्थ बीजों का चयन करें।
- ल 75% WP @ 350 ग्राम/एकड़ का घोल बना कर छिड़काव करें। या
- टेबुकोनाज़ोल 25.9% EC @ 200 मिली/एकड़ का घोल बना कर छिड़काव करें।
कद्दू, तरबूज और खरबूज में बदलते मौसम के प्रभाव से होने वाली गम्मी तना झुलसा रोग की पहचान कैसे करें?
- इस बीमारी के कारण पौधे की जड़ को छोड़कर अन्य सभी भाग संक्रमित हो जाते हैं।
- पौधे की पत्ती के किनारों पर पीलापन और सतह पर जल भरे हुए धब्बे दिखाई देते हैं।
- इस रोग से ग्रसित पौधे के तने पर घाव बन जाते हैं जिससे लाल-भूरे, काले रंग का चिपचिपा पदार्थ (गम) निकलता है।
- तने पर भूरे-काले रंग के धब्बे बन जाते जो बाद में आपस में मिलकर बड़े हो जाते हैं।
- प्रभावित पौधे के बीजों पर मध्यम-भूरे, काले धब्बे पड़ जाते हैं।
खरबूजे की फसल को फ्यूसैरियम क्राउन और फुट रोट रोग से कैसे बचाएँ
- इन रोगों से संक्रमित पौधों को नष्ट करें।
- रोग मुक्त बीज का उपयोग करें।
- बुआई से पहले कार्बेन्डाजिम @ 2 ग्राम/किलोग्राम बीज के साथ बीजोपचार करें।
- जब खरबूजे के पौधे पर बीमारी दिखाई दे तो प्रोपिकोनाजोल @ 80-100 मिली/एकड़ का प्रयोग करें।
खरबूजे की फसल मे फ्यूसैरियम क्राउन और फुट रोट रोग को कैसे पहचाने
- रेतीली मिट्टी में यह रोग अधिक पाया जाता है।
- पौधे के ऊपरी भाग तथा तने के पास वाली जड़ के ऊपर भूरे रंग के संकेन्द्रीय धब्बे दिखाई देते हैं।
- इसकी वजह से सड़न धीरे – धीरे तने के आसपास तथा पौधे के अन्य भागो में फैलने लगती है।
- पौधे का प्रभावित भाग हल्का नरम तथा शुष्क दिखाई देने लगता है।
- प्रभावित पौधा मुरझाकर सूखने लगता है।
गिलकी में मोज़ेक वायरस रोग का प्रबंधन:
- मोजेक वायरस से बचाव के लिए खेत में उपस्थित खरपतवार आदि को उखाड़कर नष्ट करें।
- फसल चक्र अपनाएँ।
- मोज़ेक वायरस से बचाव के लिए सवेंदनशील मौसम व क्षेत्रों में फसल को ना उगायें।
- 10-15 दिन के अंतराल पर एसिटामिप्रिड 20% एसपी @ 100 ग्राम/एकड़ का स्प्रे करें साथ ही स्ट्रेप्टोमाईसीन 20 ग्राम प्रति पम्प का स्प्रे करें तथा शुरुआती संक्रमण से फसल को बचाएँ।
- 10-15 दिन के अंतराल पर ऐसीफेट 75% एसपी @ 80-100 ग्राम/एकड़ प्रति पम्प स्प्रे करें साथ ही स्ट्रेप्टोमाईसीन 20 ग्राम प्रति एकड़ का स्प्रे करें तथा शुरुआती संक्रमण से फसल को बचाएँ।
गिलकी में मोज़ेक वायरस से होने वाले रोग की पहचान:
- यह वायरस जनित रोग एफिड कीट द्वारा फैलती है, जो पौधे का रस चूसकर बीमारी फैलाते हैं।
- इससे ग्रसित पौधे की नयी पत्तियों की शिराओं के बीच में पीलापन आ जाता है, एवं पत्तियाँ बाद में ऊपर की तरफ मुड़ जाती हैं।
- पुरानी पत्तियों के ऊपर उभरे हुए गहरे रंग की फफोलेनुमा संरचना दिखाई देती है। प्रभावित पत्तियाँ तन्तुनुमा हो जाती हैं।
- पौधा आकार में छोटा हो जाता है बीमारी से पौधे की वृद्धि, फल-फूल के विकास एवं उपज पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
- इसके समस्या से ज्यादा प्रभावित पौधे पर फल नहीं लगते हैं।
तरबूज की फसल में मृदुरोमिल आसिता रोग का नियंत्रण
- प्रभावित पत्तियों को तोड़कर नष्ट कर दें।
- रोग प्रतिरोधी किस्मों को लगाएं।
- फसल चक्र को अपना कर एवं खेत की सफाई कर रोग की आक्रामकता को कम कर सकते हैं।
- मेटालैक्सिल 4% + मैंकोजेब 64% WP @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से घोल बना कर जड़ों के पास छिड़काव करें।
- थायोफनेट मिथाइल 70% WP 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- सूडोमोनास फ्लोरसेंस 500 ग्राम/एकड़ की दर से प्रति एकड़ छिड़काव करें।