- जिस प्रकार मिर्च की रोपाई के समय उर्वरक प्रबंधन आवश्यक होता है ठीक उसी प्रकार रोपाई के 20 से 30 दिनों के बाद भी उर्वरक प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।
- यह प्रबंधन मिर्च की फसल की अच्छी बढ़वार एवं रोगों के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए किया जाता है।
- रोपाई के बाद इस समय में ही पौधे की जड़ ज़मीन में फैलती है और इसीलिए इस समय जड़ों की अच्छी बढ़वार सुनिश्चित करने के लिए उर्वरक प्रबंधन बहुत आवश्यक होता है।
- इस समय उर्वरक प्रबंधन के लिए यूरिया @ 45 किलो/एकड़ DAP @ 50 किलो/एकड़, मैग्नेशियम सल्फेट @15 किलो/एकड़, सल्फर@ 5 किलो/एकड़, जिंक सल्फेट @ 5 किलो/एकड़ की दर से खेत में भुरकाव करें।
- इस बात का भी ध्यान रखें की उर्वरकों के उपयोग के समय खेत में नमी जरूर हो।
मर्ग बहार के समय संतरे में पोषण प्रबंधन
- पेड़ों में फूल धारणा प्रवृत्त करने हेतु फूल आने की अवस्था में बहार उपचार किया जाता है।
- इस हेतु मृदा के प्रकार के अनुसार बगीचे में 1 से 2 माह पूर्व सिंचाई बंद कर देते हैं। इससे कार्बन : नत्रजन अनुपात में सुधार आता है (नत्रजन कम होकर कार्बन की मात्रा बढ़ जाती है)
- कभी कभी सिंचाई बंद करने के बाद भी पेड़ों में फूल की अवस्था नही आती ऐसी अवस्था में वृद्धि अवरोधक रसायन प्लेक्लोबुटराझाल (कलटार) का छिड़काव किया जाना चाहिए।
- मर्ग बहार के समय संतरे के 1 साल के पौधे में यूरिया 325.5 ग्राम, SSP 307.5 ग्राम MOP 40 ग्राम की दर से प्रति पौधा उपयोग करना चाहिए।
- मर्ग बहार के समय संतरे के 2 साल के पौधे में यूरिया 651 ग्राम, SSP 615 ग्राम MOP 80 ग्राम की दर से प्रति पौधा उपयोग करना चाहिए।
- मर्ग बहार के समय संतरे के 3 साल के पौधे में यूरिया 976.5 ग्राम, SSP 922.5 ग्राम MOP 120 ग्राम की दर से प्रति पौधा उपयोग करना चाहिए।
कीटनाशक और कवकनाशी के छिड़काव के लिए घोल बनाते समय बरतें सावधानियाँ
- छिड़काव के लिए घोल तैयार करने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले पानी का उपयोग करें। इसकी तैयारी किसी साफ़ ड्रम या प्लास्टिक की बाल्टियों में करें।
- किसी कीटनाशी एवं कवकनशी को आपस में नहीं मिलाना चाहिए।
- इसके साथ ही दोपहर में दवाओं का छिड़काव न करें और जब हवा चल रही तब भी दवाइयों का छिड़काव न करें। छिड़काव सुबह शाम को ही करें क्योंकि दोपहर में मधुमक्खियों का मूवमेंट होता है, ये बाते ध्यान में रखकर आप न केवल खुद को सुरक्षित रख सकते हैं बल्कि पर्यावरण को भी सुरक्षित रख सकते हैं।
- कीटनाशक का प्रयोग करते समय यह देख लेना चाहिए कि उपकरण में लीकेज तो नहीं है। कभी भी कीटनाशक छिड़कने वाले उपकरण पर मुंह लगाकर घोल खींचने का प्रयास नहीं करना चाहिए। तरल कीटनाशकों को सावधानी पूर्वक उपकरण में डालना चाहिए और यह ध्यान रखना चाहिए कि यह शरीर के किसी अंग में न जाए। अगर ऐसा होता है तो तुरंत साफ पानी से कई बार धोना चाहिए।
- बचे हुए कीटनाशक को सुरक्षित भण्डारित कर देना चाहिए। इसके रसायनों को बच्चों, बूढ़ों और पशुओं की पहुंच से दूर रखें। कीटनाशकों के खाली डिब्बों को किसी अन्य काम में नहीं लेना चाहिए। उन्हें तोड़कर मिट्टी में दबा देना चाहिए। कीटनाशक छिड़कने के बाद छिड़के गए खेत में किसी मनुष्य या जानवरों को नहीं जाने देना चाहिए।
- खेत में छिड़काव की दिशा सुनिश्चित करके एवं सामान मात्रा में छिड़काव करें।
- कीटनाशकों की आवश्यकता से अधिक मात्रा उपयोग ना करें।
धान की नर्सरी में पीलेपन की समस्या
- धान की नर्सरी में बहुत अधिक मात्रा में पीलेपन की शिकायत होती है।
- यह पीलापन पोषण की कमी या किसी कवक के कारण भी हो सकता है।
- नाइट्रोजन की कमी चावल में सबसे अधिक पाया जाने वाला पोषक तत्व विकार है और कवक से ग्रसित पौध के नए एवं पुराने पत्ते और कभी-कभी सभी पत्ते हल्के हरे रंग या पीले रंग के हो जाते हैं। गंभीर तनाव में पत्तियां मर जाती हैं। पूरी नर्सरी में पीलापन दिखाई दे सकता है।
- इस समस्या में कवक जनित रोगों के समाधान के लिए टेबुकोनाज़ोल 50% + ट्रायफ्लॉक्सीस्ट्रोबिन 25% WG @ 15 ग्राम/पंप या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ब 63% WP 30 ग्राम/पंप @ हेक्साकोनाजोल 5% SC @ 40 मिली/पंप या ट्रायकोडर्मा विरिडी + स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 10 ग्राम/पंप की दर से उपयोग करें।
- पोषण की कमी की पूर्ति के लिए ह्युमिक एसिड @ 10 ग्राम/पंप या जैव पोषक तत्व + माइक्रोराएज़ा @ 15 ग्राम/पंप की दर से उपयोग करें।
20 राज्यों में मौसम विभाग का अलर्ट, हो सकती है भारी बारिश, जानिए मौसम का पूर्वानुमान
धीरे धीरे पूरे देश में मानसून सक्रिय हो रहा है। मुंबई तथा गुजरात में मानसून की तेज बारिश की शुरुआत हो गई है वहीं मध्य और उत्तर भारत के कई राज्यों में भी बारिश होने की संभावना है। मौसम विभाग के अनुसार आने वाले 24 घंटे में देश भर के 20 से अधिक राज्यों में भारी बारिश हो सकती है और खासकर के बिहार और झारखंड में आकाशीय बिजली गिर सकती है।
अगले 24 घंटों में मुंबई समेत कोंकण और गोवा में मूसलाधार बारिश जारी रह सकती है। अगर बात करें, पंजाब, हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश और पश्चिमी राजस्थान कि तो वहां मौसम शुष्क ही बना रहेगा।
वर्तमान में मानसून की अक्षीय रेखा बीकानेर, अजमेर, गुना, सतना, डाल्टनगंज और मालदा से गुज़र रही है। इसके अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश पर भी एक चक्रवाती हवाओं का क्षेत्र सक्रिय है। इस सिस्टम से पूर्वी मध्य प्रदेश होते हुए विदर्भ तक एक ट्रफ बना हुआ है।
अगले 24 घंटों में मुंबई समेत कोंकण और गोवा में मूसलाधार वर्षा हो सकती है। इसके अलावा तटीय कर्नाटक, केरल, अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह, असम, मेघालय, मणिपुर, नागालैंड, बिहार के उत्तरी भागों, दक्षिण-पश्चिमी मध्य प्रदेश, दक्षिण-पूर्वी राजस्थान के कुछ हिस्सों में हल्की से मध्यम बारिश के साथ कुछ स्थानों पर भारी बारिश हो सकती है।
स्रोत: कृषि जागरण
Shareअदरक में ऐसे करें राइज़ोम उपचार
- अदरक का बीज प्रकन्द होता है। अच्छी तरह परिरक्षित प्रकन्द को 2.5 से 5.0 से. मीटर लम्बाई के 20 से 25 ग्राम के टुकड़े करके बीज बनाया जाता है।
- बीजों की दर खेती के लिए अपनाये गए तरीके के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों के लिए अलग-अलग होती है।
- बीज प्रकन्द को 30 मिनट तक मेटलैक्सिल-एम (मेफेनोक्सम) 4% + मैनकोज़ब 64% WP @ 2.5 ग्राम/किलो बीज या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोजेब 63% WP@ 2.5 ग्राम/किलो बीज या कार्बोक्सिन 37.5% + थायरम 37.5% 2.5 ग्राम/किलो बीज उपयोग करें।
- जैविक उपचार के रूप में ट्राइकोडर्मा विरिडी या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @5-10 ग्राम/किलो बीज का उपयोग करें।
- पंक्तियों के बीच की दूरी 20-25 सेमी रखना चाहिए। बीज प्रकन्द के टुकड़ों को हल्के गड्ढे खोद कर उसमें रख कर तत्पश्चात खाद (एफ वाई एम) तथा मिट्टी डालकर सामानांतर करना चाहिए।
सोयाबीन की फसल में पत्ती धब्बा रोग
- इस बीमारी के लक्षण सर्वप्रथम घनी बोयी गयी फसल में तथा पौधे के निचले हिस्सों में दिखाई देते है। रोगग्रस्त पौधे पर्णदाग, पत्ती झुलसन अथवा पत्तियों का गिरना जैसे कई लक्षण प्रदर्शित करते हैं।
- इसके कारण पत्तियों पर असामान्य पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, जो बाद में भूरे या काले रंग में परिवर्तित हो जाते है एवं संपूर्ण पत्ती को झुलसा देते हैं।
- इसके कारण पर्णवृंत, तना फली पर भी भूरे धब्बे दिखाई देते हैं। वहीं फली एवं तने के ऊतक इस संक्रमण के पश्चात भूरे अथवा काले रंग के होकर सिकुड़ जाते हैं।
- पौधों के रोगग्रस्त भाग पर नमी की उपस्थिति के कारण सफेद और भूरे रंग की संरचनाएं दिखाई देती हैं।
- इस रोग के निवारण क्लोरोथियोनिल @ 400 ग्राम/एकड़ या कार्बेन्डाज़िन 12% + मैनकोज़ब 63% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या कीटाजीन @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उत्पाद के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी 500 ग्राम/एकड़ + स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
15 जुलाई है फसल बीमा करवाने की अंतिम तिथि, ऐसे करें आवेदन
बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि, सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं की वजह से अक्सर किसानों की फसल प्रभावित होती है। किसानों को होने वाले इन्हीं नुकसानों से बचाता है प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना। कृषि विभाग ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना की अधिसूचना जारी कर दी है। खरीफ-2020 और रबी 2020-21 सीजन के लिए मंगलवार को यह अधिसूचना जारी की गई है। इसके मुताबिक खरीफ-2020 के लिए फसल बीमा करवाने की अंतिम तिथि 15 जुलाई रखी गई है।
कैसे करें आवेदन?
इसका आवेदन आप बैंक के माध्यम से और ऑनलाइन भी कर सकते हैं। ऑनलाइन आवेदन देने के लिए https://pmfby.gov.in/ लिंक पर जाकर फॉर्म भरें। इसके आवेदन के लिए एक फोटो और पहचान पात्र हेतु पैन कार्ड, ड्रायविंग लाइसेंस, वोटर आईडी कार्ड या आधार कार्ड की जरुरत होती है। इसके अलावा एड्रेस प्रूफ के लिए भी एक दस्तावेज़ जरूरी होता है जिसके लिए किसान को खेती से जुड़े दस्तावेज़ और खसरा नंबर दिखाने होते हैं। फसल की बुआई हुई है इसकी सत्यता हेतु प्रधान, पटवारी या फिर सरपंच का पत्र देना होता है। एक कैंसिल चेक भी देना होता है ताकि क्लेम की राशि खाते में सीधे आए।
स्रोत: न्यूज़ 18
Shareसोयाबीन की फसल में 20 से 25 दिनों बाद छिड़काव प्रबंधन
- सोयाबीन की फसल की बुआई के समय जिस प्रकार उर्वरक प्रबंधन बहुत आवश्यक होता है ठीक उसी प्रकार बुआई के 20 से 25 दिनों बाद भी छिड़काव प्रबंधन बहुत आवश्यक होता है।
- इस छिड़काव को करने से सोयाबीन की फसल में लगने वाले कीटों एवं कवकों से फसल की सुरक्षा हो जाती है।
- इसके लिए लैंबडा-साइफलोथ्रिन 4.9%CS @ 200 मिली/एकड़ या प्रोफेनोफॉस 50% SC @ 500 मिली/एकड़।
- कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ब 63% WP@ 300 ग्राम/एकड़ और समुद्री शैवाल @ 400 मिली/एकड़ और एमिनो एसिड @ 300 मिली/एकड़ या G A 0.001%@ 300 मिली/एकड़ का उपयोग करें।
मक्का की फसल में पोषण प्रबंधन
- भारत में मक्का की खेती ख़रीफ़ (जून से जुलाई), रबी (अक्टूबर से नवम्बर) एवं ज़ायद (फ़रवरी से मार्च) तीनों ऋतुओं में की जाती है।
- अधिकतम लाभ के लिए इसकी बुआई से पहले मिट्टी की जांच करवाना आवश्यक है। भूमि की तैयारी करते समय 5 से 8 टन अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद खेत मे मिलानी चाहिए।
- खेतों में डाले जाने वाले खाद व उर्वरक की मात्रा भी चुनी हुई किस्म पर ही निर्भर करती है। मक्का की खेती के दौरान खाद व उर्वरक प्रबंधन की सही विधि अपनाने से मक्का के फसल की वृद्धि और उत्पादन दोनों को ही अच्छा होता है।
- मक्का की बुआई से 10-15 दिन बाद मक्का की संकर एवं संकुल किस्मों द्वारा अधिकतम उपज लेने के लिए खाद एवं उर्वरक की पर्याप्त मात्रा उपयुक्त समय पर ही देनी चाहिए।
- मक्का की बुआई से 10-15 दिन बाद यूरिया 35 किलो/एकड़ + मैगनेशियम सल्फेट 5 किलो/एकड़ + जिंक सल्फेट 5 किलो/एकड़ की दर से देना बहुत आवश्यक है।