प्याज की नर्सरी में पौध गलन रोग

  • खरीफ के मौसम में बारिश के कारण भूमि में अत्यधिक नमी होने के साथ मध्यम तापमान की वजह से इस रोग का प्रकोप होता है।
  • प्याज़ के पौधे मे आर्द्र विगलन (डम्पिंगऑफ) रोग का प्रकोप प्याज़ नर्सरी की अवस्था में देखा जाता है।
  • इस रोग में रोगजनक सबसे पहले पौध के काँलर भाग मे आक्रमण करता है।
  • अतंतः काँलर भाग विगलित हो जाता है और पौध गल कर मर जाते हैं।
  • इस रोग के निवारण के लिए बुआई के समय स्वस्थ बीज का चयन करना चाहिये।
  • इसके अलावा कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 30 ग्राम/पंप या थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W @ 50 ग्राम/पंप या मैनकोज़ेब 64% + मेटालैक्सिल 8% WP @ 60 ग्राम/पंप की दर से छिडकाव करें।
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कपास की फसल में 105 से 115 दिनों में छिड़काव प्रबंधन

Spray management in cotton crop
  • कपास की फसल में बहुत अधिक मात्रा में अलग अलग प्रकार के रस चूसक कीटों एवं इल्लियों का आक्रमण होता है। इन इल्लियों में गुलाबी सुंडी, एफिड, जैसिड, मकड़ी आदि शामिल होते हैं।
  • इन कीटों के साथ-साथ कुछ कवक जनित बीमारियाँ भी कपास की फसल को बहुत अधिक प्रभावित करती हैं। इनमे जीवाणु धब्बा रोग, जड़ गलन, तना गलन, अल्टेरनेरिया पत्ती धब्बा रोग आदि प्रकार के रोग शामिल होती हैं जो कपास की फसल को बहुत नुकसान पहुँचाते हैं।
  • गुलाबी इल्ली के प्रबंधन हेतु प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC@ 400 मिली/एकड़ या फेनप्रोप्रेथ्रिन 10% EC @ 400 मिली/एकड़ या नोवालूरान 5.25% + इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% SC @ 600 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • रस चूसक कीट के प्रबंधन हेतु डायफैनथीयुरॉन 50%WP @ 250 ग्राम/एकड़ या पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% EC @ 250 मिली/एकड़ या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL @ 100 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • कवक जनित रोगों के लिए थायोफिनेट मिथाइल 70% WP @300 ग्राम/एकड़ या हेक्साकोनाज़ोल 5% SC @ 300 मिली/एकड़ या मैंकोजेब 75% WP@ 500 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।
  • जीवाणु जनित रोगों के लिए स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड @ 24 ग्राम/एकड़ या कासुगामायसिन 3% SL @ 400 मिली/एकड़ ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।
  • जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • पोषण प्रबंधन के लिए 00:00:50@ 1 किलो/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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मिर्च की 130 से 150 दिनों की फसल में छिड़काव प्रबंधन

  • मिर्च की फसल 130 से 150 दिन तक अपनी पूर्ण अवस्था में होती है।
  • इस समय मिर्च की फसल में फल की तुड़ाई लगातार होती रहती है एवं साथ ही नए फूल भी आते रहते हैं।
  • इस अवस्था में फूलों को गिरने से बचाने के लिए एवं मिर्च के फलों को सड़ने से बचाने के लिए उचित रसायनों का छिड़काव करना बहुत आवश्यक होता है।
  • यह छिड़काव प्रबंधन दरअसल कवक प्रबंधन, कीट प्रबंधन एवं पोषण प्रबंधन लिए किया जाता है।
  • कवक जनित रोगों के नियंत्रण के लिए मेटिराम 55% + पायराक्लोस्ट्रोबिन 5% WG@ 600 ग्राम/एकड़ या थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W @ 300 ग्राम/एकड़ दर से छिड़काव करें।
  • कीटों के नियंत्रण के लिए पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% EC@ 250 मिली/एकड़ या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 300 मिली/एकड़ या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC @ 60 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • पोषण प्रबंधन के तौर पर 00:00:50 @ 1 किलो/एकड़ की दर से छिड़काव करें और जिब्रेलिक एसिड @ 300 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें एवं अपरिपक्व फूलों को गिरने से बचाने के लिए होमोब्रेसिनोलॉइड@ 100 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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सोयाबीन की फसल में तना मक्खी का नियंत्रण

Stem fly
  • सोयाबीन की फसल में तना मक्खी/तना छेदक के प्रकोप का मुख्य कारण फसल का बहुत घना बोया जाना, कीटनाशकों का सही समय एवं सही मात्रा में उपयोग न होना और फसल चक्र ना अपनाना होता है।
  • सोयाबीन की फसल में तना मक्खी के इल्ली का प्रकोप की शुरूआती अवस्था में ही नियंत्रण करना बहुत जरूरी होता है।
  • तना मक्खी के नियंत्रण के लिए बवे कर्ब का छिड़काव समय समय पर करना बहुत आवश्यक होता है।
  • सोयाबीन की फसल में तना मक्खी के नियंत्रण के लिए निम्र उत्पादों का छिड़काव आवश्यक है।
  • थियामेंथोक्साम 25% WG @ 100 ग्राम/एकड़ + फेनप्रोप्रेथ्रिन 10% EC @ 400 मिली/एकड़ या थियामेंथोक्साम 25% WG @ 100 ग्राम/एकड़ + बवेरिया बेसियाना @250 ग्राम/एकड़ या फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ या फेनप्रोप्रेथ्रिन 10% EC @ 400 मिली/एकड़ + बवेरिया बेसियाना @250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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जैविक कवकनाशकों का महत्त्व

Importance of organic fungicides
  • जैविक कवकनाशक रोगकारक कवकों की वृद्धि को रोकते है या फिर उन्हें मारकर पौधों को रोग मुक्त कर देते हैं।
  • यह पौधों की रासायनिक प्रक्रियाओं को उत्तेजित कर पौधे में रोगरोधी क्षमता को बढ़ाते हैं।
  • इसके प्रयोग से रासायनिक दवाओं, विशेषकर कवकनाशी पर निर्भरता कम होती है।
  • यह मिट्टी में उपयोगी कवकों की संख्या में वर्द्धि करके मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं।
  • जैविक कवकनाशकों का उपयोग करने से फसलों में पोषक तत्वों की अधिकता पायी जाती है।
  • इनका उपयोग मिट्टी उपचार द्वारा किया जाता है। ये कीटनाशकों, वनस्पतिनाशकों से दूषित मिट्टी के जैविक उपचार (बायोरिमेडिएशन) में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
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बीज उपचार का रबी फसलों के लिए महत्व

Importance of seed treatment in Rabi crops
  • छोटे दाने की फसलों, सब्जियों, बड़े बीज़ एवं कंद वाली फसलें जैसे आलू, लहसुन, प्याज़ आदि में बीज जनित रोंगो के नियंत्रण हेतु बीज उपचार बहुत प्रभावकारी होता है।
  • मृदा जनित कवक, जीवाणु व सूत्रकृमि से बीज व तरुण पौधों को बचाने के लिए बीजों को कवकनाशी रसायन से उपचारित किया जाता है, जिससे बीज जमीन में सुरक्षित रहते हैं। बीज उपचार करने से रसायन बीज के चारों ओर रक्षक लेप के रूप में चढ़ जाता है।
  • बीजों को उचित कवकनाशी से उपचारित करने से उनकी सतह कवकों के आक्रमण से सुरक्षित रहती है, जिससे उनकी अंकुरण क्षमता बढ़ जाती है और भण्डारण के दौरान भी उपचारित सतह के कारण उनकी अंकुरण क्षमता बनी रहती है।
  • भंडार में रखने से पूर्व बीज को किसी उपयुक्त कीटनाशक से उपचारित कर देने से भंडारण के दौरान एवं बुआई के बाद मिट्टी भी बीजों को सुरक्षित रखता है। कीटनाशक का चयन संबंधित फसल बीज के प्रकार और भंडारण अवधि के आधार पर किया जाता है।
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मिर्च की फसल में सफेद ग्रब का प्रबंधन कैसे करें?

How to protect the cotton crop from the white grub
  • सफ़ेद ग्रब सफेद रंग का कीट है जो खेत में सुप्तावस्था में ग्रब के रूप में रहता है।
  • आमतौर पर प्रारंभिक रूप में ये जड़ों में नुकसान पहुंचाते हैं। सफेद ग्रब के प्रकोप मिर्च के पौधे एकदम से मुरझा जाते हैं, पौधे की बढ़वार रूक जाती है और बाद में पौधा मर जाता है।
  • इस कीट के नियंत्रण हेतु मेट्राजियम (kalichakra) 2 किलो + 50-75 किलो FYM/कम्पोस्ट के साथ मिलाकर प्रति एकड़ की दर से खाली खेत में भुरकाव करें।
  • लेकिन यदि मिर्च की फसल की अपरिपक्व अवस्था में भी इस कीट का प्रकोप दिखाई दे रहा हो तो सफेद ग्रब के नियंत्रण के लिए रासायनिक उपचार भी किया जा सकता है।
  • इसके लिए फेनप्रोप्रेथ्रिन 10% EC @ 500 मिली/एकड़, क्लोथियानिडिन 50.00% WG @ (डोन्टोटसु) 100 ग्राम/एकड़ को मिट्टी में मिला कर उपयोग करें।
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सोयाबीन की फसल में पीलेपन की समस्या का क्या है समाधान?

  • सोयाबीन की फसल में बहुत अधिक मात्रा में पीलेपन की शिकायत होती है।
  • सोयाबीन के पत्तों का पीलापन सफ़ेद मक्खी के कारण होने वाले वायरस एवं मिट्टी के पीएच और अन्य पोषक तत्वों की कमी, कवक जनित बीमारियों सहित कई अन्य कारकों के कारण हो सकता है।
  • सोयाबीन की फसल को एवं इसकी उपज को कोई नुकसान पहुँचाये बिना इस समस्या के प्रबंधन के उपाय करना बहुत आवश्यक है।
  • सोयाबीन की फसल में नए एवं पुराने पत्ते और कभी-कभी सभी पत्ते हल्के हरे रंग या पीले रंग के हो जाते हैं, टिप पर क्लोरोटिक हो जाती है एवं गंभीर तनाव में पत्तियां मर भी जाती है। इसकी वजह से पूरे खेत में फसल पर पीलापन दिखाई दे सकता है।
  • इस समस्या में कवक जनित रोगों के समाधान लिए टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG @ 500 ग्राम/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% WP@ 300 ग्राम/एकड़ हेक्साकोनाज़ोल 5% SC @400 मिली/एकड़ का उपयोग करें।
  • जैविक उपचार के लिए ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
  • पोषण की कमी की पूर्ति के लिए 00:52:34 @ 1 किलो/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • कीट प्रकोप के कारण यदि पीलापन हो तो एसिटामिप्रीड 20% SP@ 100 ग्राम/एकड़ या थियामेंथोक्साम 25% WG@ 100 ग्राम/एकड़ या फेनप्रोप्रेथ्रिन 10% EC @ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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मिर्च के पौधों के पत्ती मुड़ने की समस्या और निवारण के उपाय

  • सफेद मक्खी जैसे रस चूसक कीट मिर्च के पौधों में पत्ते मुड़ने की समस्या के वाहक होते हैं।
  • सफेद मक्खी वायरस फैलाने का कार्य करती है जिससे चुरा-मुरा (लीफ कर्ल वायरस) के नाम से जाना जाता है। इस वायरस के कारण भी पत्तियाँ क्षतिग्रस्त होती हैं।
  • इसके कारण परिपक्व पत्तियों पर उभरे हुऐ धब्बे बन जाते हैं एव पत्तियां छोटी कटी – फटी सी हो जाती हैं।
  • इसके कारण पत्तियाँ सूख सकती हैं या गिर भी सकती हैं एवं मिर्च की फसल के विकास को भी अवरुद्ध कर सकती हैं।
  • वायरस जनित इस समस्या के लिए प्रीवेंटल BV @ 100 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।
  • वायरस के वाहक कीटों के नियंत्रण के लिए फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • एसीफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% SP @ 400 ग्राम/एकड़ या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 250 मिली/एकड़ या एसिटामिप्रीड 20% SP @ 400 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • मेट्राजियम @ 1 किलो/एकड़ या बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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कपास की फसल में सफेद मक्खी के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Protection of whitefly in cotton
  • यह कीट शिशु एवं वयस्क दोनों ही अवस्था में कपास की फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुँचाते हैं।
  • यह पत्तियों का रस चूसकर पौधे के विकास को बाधित कर देते हैं।
  • यह कीट पौधे पर उत्पन्न होने वाली काली कवक नामक हानिकारक कवक के संक्रमण का कारण भी बनती है।
  • इसके अधिक प्रकोप की स्थिति में कपास की फसल पूर्णतः संक्रमित हो जाती है।
  • फसल के पूर्ण विकसित हो जाने पर भी इस कीट का प्रकोप होता है और इसके कारण कपास के पौधों की पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं।
  • प्रबंधन: इस कीट के नियंत्रण के लिए डायफैनथीयुरॉन 50% WP @250 ग्राम/एकड़ या फ्लोनिकामिड 50% WG @ 60 मिली/एकड़ या एसिटामिप्रीड 20% SP @ 100 ग्राम/एकड़ या पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% EC @ 250मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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