- प्याज़ की पौध को मुख्य खेत में लगाने से पहले पोषण प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।
- अतः इस बात का विशेष ध्यान रखते हुए रोपाई के समय खेत में सभी पोषक तत्वों की पूर्ति होना आवश्यक है।
- इस समय पोषण प्रबधन करने के लिए युरिया @ 25 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें।
- युरिया का उपयोग नाइट्रोज़न स्रोत के रूप एवं फसल एवं मिट्टी में नाइट्रोज़न की कमी की पूर्ति के लिए किया जाता है। यह फसल की बढ़वार के लिए आवश्यक है।
- इसी के साथ ग्रामोफ़ोन की पेशकश प्याज़ समृद्धि किट का उपयोग अच्छी वृद्धि एवं प्याज़ की फसल के अच्छे विकास के लिए किया जा सकता है।
प्याज़ की खेत में रोपाई से पहले ऐसे करें पौध उपचार
- जिस प्रकार प्याज़ की रोपाई के पूर्व मिट्टी उपचार आवश्यक होता है ठीक उसी प्रकार रोपाई के समय पौध उपचार करना भी बहुत आवश्यक होता है।
- इससे जमीन में मौजूद अनुपलब्ध तत्व प्याज़ की फसल को प्राप्त होते है जो की प्याज़ की सामान एवं जल्दी वृद्धि के लिए सहायक होते हैं।
- जड़ों की अच्छी वृद्धि एवं विकास तथा सफ़ेद जड़ों की संख्या में बढ़ोतरी के साथ साथ प्याज़ की फसल को अच्छी शुरुआत देने में भी पौध उपचार मददगार होता है।
- पौध उपचार करने के लिए माइकोराइजा @ 5 ग्राम प्रति लीटर का घोल तैयार करें। पौध को खेत से उखाड़ने के बाद, 10 मिनट के लिए इस घोल में डुबोएं और इसके बाद खेत में बुआई करें।
प्याज़ की नर्सरी से खेत में रोपाई से पहले मुख्य खेत की तैयारी और मिट्टी उपचार
- प्याज़ की पौध को मुख्य खेत में लगाने से पहले मुख्य खेत की तैयारी करना बहुत आवश्यक होता है।
- खेत की तैयारी के समय इस बात का विशेष ध्यान रखें की खेत में सभी पोषक तत्वों की पूर्ति होना आवश्यक है।
- खेत की तैयारी के लिए FYM @ 4-6 टन/एकड़ की दर से मिट्टी में कार्बन तत्व की पूर्ति के लिए खेत में भुरकाव करें।
- एसएसपी @ 60 किलो/एकड़ की दर से फॉस्फोरस, कैल्शियम, सल्फर तत्वों की पूर्ति लिए खेत में भुरकाव करें।
- DAP@ 25 किलो/एकड़ की दर से जड़ों के अच्छे वृद्धि एवं विकास के लिए खेत में भुरकाव करें।
- पोटाश @ 40 किलो/एकड़ की दर से फसल में एवं मिट्टी में पोटाश की पूर्ति के लिए खेत में भुरकाव करें।
- इसी के साथ ग्रामोफ़ोन की खास पेशकश प्याज़ समृद्धि किट का उपयोग अवश्य करें।
मौसम परिवर्तन से फसलों में कवक जनित रोग का है खतरा, जानें सुरक्षा उपाय
मौसम में लगातार होने वाले परिवर्तन के कारण प्याज़, लहसुन, आलू एवं सब्ज़ी वर्गीय फसलें बहुत अधिक प्रभावित होती हैं। इस प्रभाव के कारण सबसे पहले फसल में पत्ते पीले दिखाई देते हैं और किनारों से सूखने लग जाते हैं। आलू एवं सब्जी वर्गीय फसलों में छेती अंगमारी, पत्ती धब्बा रोग, डाउनी मिल्डू जैसे रोगों का प्रकोप होता है। मौसम की विपरीत परिस्थिति के कारण फसल को होने वाले नुकसान से फसल को बचाने के लिए निम्न उत्पादों का उपयोग बहुत आवश्यक होता है।
प्रबंधन:
- कासुगामाइसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़
- या मैनकोज़ेब 64% + मेटालैक्सिल 4% WP @ 500 ग्राम/एकड़ या एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% SC @ 300 मिली/एकड़
- या थायोफिनेट मिथाइल 70% W/P@ 300 ग्राम/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75% WP@ 400 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- इसी के साथ हर छिड़काव के साथ स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें। स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस को कासुगामाइसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP के साथ उपयोग ना करें।
मौसम परिवर्तन से होने वाले इल्लीवर्गीय कीटों के प्रकोप से फसलों का ऐसे करें बचाव
मौसम में अचानक हुए परिवर्तन के कारण रबी सीजन की सब्जी वर्गीय फ़सलों के साथ साथ आलू, गेहू, चना आदि फसलों में इल्लियों का प्रकोप बहुत अधिक मात्रा में होने की सम्भावना रहती है। कम तापमान एवं अधिक नमी वाले मौसम में इल्लियां अंडो से बाहर निकलती है एवं इनके शिशु फसलों की पत्तियों, तने, फलों, फूलों आदि को कुतर कर फसलों को बहुत नुकसान पहुँचाती है।
इस तरह के मौसम में हरी इल्ली, तम्बाकू की इल्ली, फल छेदक आदि इनके नियंत्रण के लिए निम्र उत्पादों का उपयोग बहुत प्रभावशाली होता है।
नियंत्रण: इन इल्ली वर्गीय कीटों के निवारण के लिए क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC @ 60 मिली/एकड़ या नोवालूरान 5.25% + इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% SC @ 600 मिली/एकड़ या प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC@ 400 मिली/एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG@ 100 ग्राम/एकड़ की दर छिड़काव करें।
हर छिड़काव के साथ जैविक उपचार रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से अवश्य उपयोग करें।
Shareटमाटर की फसल में थ्रिप्स के प्रकोप की रोकथाम जरूर करें
- थ्रिप्स: ये छोटे एवं कोमल शरीर वाले कीट होते है, जो पत्तियों की ऊपरी सतह एवं अधिक मात्रा में पत्तियों की निचली सतह पर पाए जाते हैं।
- ये अपने तेज मुखपत्र के साथ पत्तियों, कलियों एवं फूलो का रस चूसते हैं। इसके प्रकोप के कारण पत्तियां किनारों की तरफ से भूरी हो जाती हैं।
- प्रभावित पौधे की पत्तियां सुखी एवं मुरझाई हुई दिखाई देती हैं या फिर पत्तियां विकृत हो जाती हैं और ऊपर की ओर मुड़ जाती हैं।
- थ्रिप्स के नियंत्रण के लिए रसायनों को अदला बदली करके ही उपयोग करना आवश्यक है।
- प्रबंधन: थ्रिप्स के प्रकोप के निवारण के लिए फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 200 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG @ 40 ग्राम/एकड़ या थियामेंथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 9.5% ZC @ 80 मिली/एकड़ या स्पिनोसेड 45% SC @ 75 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार: जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
अपनी फसल में करें नैनो उर्वरक का उपयोग, मिलेंगे कई फायदे
- नैनो फर्टिलाइजर एक ऐसा उत्पाद है जो नैनोकणों के साथ बनाया जाता है।
- इन्हें पोषक तत्वों की दक्षता में सुधार करने के लिए तैयार किया गया है।
- यह उर्वरक उत्पादन दर और उपज में वृद्धि करने में सहायक होते हैं।
- यह उर्वरक अपशिष्ट उत्पादन को भी कम करते हैं।
- यह उर्वरक फसलों को पोषक तत्व प्रदान करता है।
- नैनो उर्वरक अघुलनशील पोषक तत्वों को बेहतर रूप से घुलनशील रूप में परिवर्तित करने में सहायक होता है।
फलविक एसिड के उपयोग से फसलों को मिलते हैं कई फायदे
- फलविक एसिड का सबसे महत्वपूर्ण काम ये है कि ये मिट्टी को भुरभुरा बनाने में मदद करता है।
- इससे जड़ों का विकास अधिक होता है। ये प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को तेज करता है।
- जिससे पौधे में हरापन और शाखाओं में वृद्धि होती है। ये पौधे की तृतीयक जड़ों का विकास करता है जिससे की जमीन से पोषक तत्वों का अवशोषण अधिक हो सके।
- यह पौधे में फलों और फूलों की वृद्धि करता है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति में वृद्धि करता है।
- पौधे की चयापचयी क्रियाओं में वृद्धि करता है। इससे उपज में भी वृद्धि होती है।
तरबूज की इन उन्नत किस्मों की खेती कर प्राप्त करें अच्छी उपज
- सागर किंग: यह एक उच्च उपज एवं जल्दी पकने वाली किस्म है जिसके बीज छोटे, फल का आकार अंडाकार, फल का वज़न 3 से 5 किलो, फल का ऊपरी रंग गहरा काला एवं अंदर के गूदे का रंग गहरा लाल होता है। यह 60-70 दिनों में पकने वाली किस्म है।
- सीमन्स बाहुबली: इस किस्म के फल का आकार अंडाकार, वज़न 3 से 7 किलो, रंग गहरा काला एवं चमकीला होता है। यह 65-70 दिनों में पकने वाली किस्म है तथा यह किस्म उकठा रोग के प्रति प्रतिरोध शक्ति रखती है।
- नेनेसम मैक्स: इस किस्म के फल का आकार अंडाकार, फल का वज़न 7 से 10 किलो, ऊपरी रंग गहरा काला एवं अंदर का गूदा चमकीला होता है। यह किस्म 70-80 दिनों में पक जाती है।
- ऑगस्टा: इस किस्म के फल का आकार अंडाकार, वज़न 7 से 10 किलो, ऊपरी रंग गहरा काला एवं अंदर का गूदे चमकीला होता है। यह 85-90 दिनों में पकने वाली किस्म है।
- मेलोडी F-1: यह किस्म उच्च यातायात गुणवत्ता और लंबी जीवन अवधि वाली है। इसके फल का आकार अंडाकार, रंग गहरा काला, वज़न 4-5 किलो होता है। यह 65-70 दिनों में पकने वाली किस्म है।
प्याज़ में लगने वाले बैंगनी धब्बा रोग के लक्षण एवं नियंत्रण की विधि
- अल्टरनेरिया पोरी की वजह से होने वाली यह बीमारी मिट्टी में पैदा होने वाली फंगस है।
- शुरुआत में इस रोग के लक्षण प्याज की पत्तियों पर सफेद भूरे रंग के धब्बे बनाते हैं एवं उनका मध्य भाग बैंगनी रंग का होता है।
- इस रोग का संक्रमण उस समय अधिक होता है, जब वातावरण का तापक्रम 27 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तथा आर्द्रता अधिक रहती है।
रासायनिक उपचार:
थायोफिनेट मिथाइल 70% W/P @ 300 ग्राम/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% WP @ 300 ग्राम/एकड़ या हेक्सकोनाज़ोल 5% SC @ 400 मिली प्रति एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG @ 500 ग्राम/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75% WP @ 400 ग्राम/एकड़ या कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिडकाव करें।
जैविक उपचार:
जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ या ट्राइकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ के रूप में उपयोग करें।