आलू की फसल में 30-35 दिनों में मिट्टी पलटना होता है आवश्यक

Earthing up in potato crop in 30-35 days
  • आलू की फसल में की जाने वाली एक मुख्य प्रक्रिया है मिट्टी पलटने की प्रक्रिया।
  • इस प्रक्रिया को करने के कारण मिट्टी भुरभुरी हो जाती है एवं खरपतवार भी नष्ट हो जाते हैं।
  • ऐसा करने से पौधे में कंद का विकास अच्छा होता है क्योंकि मिट्टी हवादार हो जाती है है और मिट्टी का तापमान भी बाहरी तापमान के बराबर हो जाता है।
  • जब तक पौधे की ऊंचाई 15-22 सेंटीमीटर ना हो जाये तब तक एक से दो बार हर 20-25 दिनों के अंतर से मिट्टी पलटना बहुत आवश्यक होता है।
  • बेहतर फसल की उपज के लिए मिट्टी पलटने की प्रक्रिया बहुत आवश्यक होती है।
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खेतों से मिट्टी का कटाव होने से खेती पर पड़ता है बुरा प्रभाव

Effect of soil erosion on farming
  • मिट्टी का कटाव एक प्राकृतिक प्रक्रिया है।
  • जब वर्षा के माध्यम से जल की बुँदे बहुत तेज़ी से मिट्टी पर गिरती है तो मिट्टी के छोटे छोटे कण बिखर जाते हैं और इसी के कारण मिट्टी में कटाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  • मिट्टी का अधिक कटाव होने के कारण मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है।
  • मिट्टी के कटाव के कारण फसल की उपज पर भी बहुत प्रभाव पड़ता है।
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आपकी फसल के लिए बहुत लाभकारी है केंचुआ खाद

Earthworm manure
  • केंचुआ खाद या वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost) एक उत्तम जैव उर्वरक है।
  • यह केंचुए के द्वारा गोबर, वनस्पतियों एवं भोजन के कचरे आदि को विघटित करके बनाया जाता है।
  • केंचुआ खाद संपूर्ण पोषक तत्वों से परिपूर्ण खाद माना जाता है।
  • इस खाद के उपयोग से फसलों की उपज बहुत ज्यादा बढ़ाई जा सकती है।
  • इस खाद में बदबू नहीं होती है एवं यह मिट्टी एवं वातावरण प्रदूषण भी नहीं करती है।
  • केंचुआ खाद में 2.5 से 3% नाइट्रोजन, 1.5 से 2% सल्फर तथा 1.5 से 2% पोटाश पाया जाता है।
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असमय बारिश से फसल विकास होगा अवरुद्ध, जानें फसल वृद्धि के उपाय

Crop development will be blocked due to untimely rains, know measures for crop growth

रबी फसलों फसलों की बुआई के बाद ज्यादातर किसान अपनी फसलों की सिंचाई कर ही रहे थे पर अचानक हुई बारिश के कारण खेतो में नमी की मात्रा बहुत अधिक हो गई होगी जिसके कारण फसलों का विकास बहुत प्रभावित होगा। इसके कारण जड़े जमीन से आवश्यक तत्वों का अवशोषण कम करेंगी या बिलकुल भी नहीं कर पाएंगी। इस वजह से पौधे पीले पड़ सकते हैं और फसल का विकास रुक जाएगा।

इन संभावित समस्याओं के समाधान हेतु आप निम्न उत्पादों का उपयोग कर सकते हैं

प्रबंधन: प्रो एमिनोमेक्स @ 250 मिली/एकड़ या मेक्सरूट @ 100 ग्राम/एकड़ छिड़काव के रूप में, 250 ग्राम/एकड़ ड्रिप उपचार के रूप में एवं 500 ग्राम/एकड़ मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें या विगरमैक्स जेल@ 400 ग्राम/एकड़ छिड़काव के रूप में उपयोग करें।

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आलू की फसल को एफिड एवं जेसिड के प्रकोप से ऐसे बचाएं

How to control aphid and jassid in potato crop
  • एफिड एवं जैसिड रस चूसक कीटों की श्रेणी में आते हैं।
  • यह कीट आलू की फसल की पत्तियों का रस चूसकर पौधे के विकास को बहुत प्रभावित करते हैं।
  • इससे ग्रसित पौधे की पत्तियां पीली होकर सिकुड़ कर मुड़ जाती हैं। इसके अत्यधिक प्रकोप की अवस्था में पत्तियाँ सूख जाती हैं और इसके परिणामस्वरूप धीरे-धीरे पूरा पौधा भी सूख जाता है।
  • इसके नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL@ 100 मिली/एकड़ या एसीफेट 75% SP@ 300 ग्राम/एकड़ या थियामेंथोक्साम 25% WG@ 100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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टमाटर की फसल में लाल मकड़ी के प्रकोप की पहचान एवं नियंत्रण

Red mite identification on tomato crop
  • लाल मकड़ी टमाटर के पत्ते के निचले हिस्से में धागे नुमा संरचना बनाकर पत्तियों का रस चूसती हैं।
  • रस चूसने के कारण पत्तियों का ऊपरी भाग पीला हो जाता है और धीरे-धीरे पूरी तरह मुड़कर सूख जाता है।
  • इसके नियंत्रण के लिए स्पैरोमेसीफेन 22.9% SC @ 250 मिली/एकड़ या एबामेक्टिन 1.9% EC @ 150 मिली/एकड़ या प्रॉपरजाइट 57% EC@ 400 मिली/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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श्री विधि तकनीक से करें गेहूँ की बुआई, मिलेंगे कई फायदे

What is the Shree vidhi technique of sowing wheat
  • गेहूँ की खेती श्री विधि से करना लघु और सीमांत किसानों के लिए विशेष लाभदायक साबित हुई है।
  • यह गेहूँ की खेती करने का एक तरीका है, जिसमें श्री विधि के सिद्धांतों का पालन करके अधिक उपज प्राप्त कि जाती है।
  • इसमें कम बीज दर, यानि सिर्फ 10 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज़ की आवश्यकता होती है।
  • इस विधि में बीजों को बीज उपचार करके ही बोया जाता है।
  • पौधों के बीच दूरी 8 इंच रखी जाती है।
  • 2 से 3 बार खरपतवार प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।
  • फसल की देखभाल सामान्य (परंपरागत) गेहूँ की फसल की ही तरह की जाती है।
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चने को फूल अवस्था में दें बेहतर पोषण तो मिलेगा बम्पर उत्पादन

Nutrition management at flowering stage in gram crop
  • चने का पौधा एवं उसमें लगने वाले फल दोनों का ही सब्ज़ी के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • इसी कारण से चने की फसल में फूल अवस्था में पोषण प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।
  • बदलते मौसम के कारण कई बार फसल में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है और चने की फसल में फूल गिरने की समस्या शुरू हो जाती है।
  • अधिक मात्रा में फूल गिरने के कारण चने की फसल में फल उत्पादन बहुत प्रभावित होता है।
  • इस समस्या के निवारण के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
  • फूल गिरने से रोकने के लिए होमब्रेसिनोलाइड @ 100 मिली/एकड़ या पिक्लोबूट्राज़ोल 40% SC @ 30 मिली/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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फसलों के लिए काफी लाभदायक होता है जैविक उत्प्रेरक का उपयोग

Use of organic catalysts is very beneficial for crops
  • जैविक उत्प्रेरक दरअसल ऐसे उत्पाद होते हैं जो फसलों में होने वाली वृद्धि एवं विकास की क्रिया को उत्तेजित करने का कार्य करते हैं।
  • फसलों में फूल अवस्था या फल अवस्था के समय यदि किसी प्रकार का अवरोध उत्पन्न होता है तो इन उत्प्रेरको के उपयोग से इसका निवारण करने में सहायता मिलती है।
  • यह फसलों में चयापचय की क्रिया को बढ़ने में मददगार साबित होते है।
  • बहु वर्षीय फसलों एवं पौधों में कोशिका विभाजन एवं ऊतकों को भोजन बनाने की प्रक्रिया में सहायता करते हैं।
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लीफ माइनर कीट की ऐसे करें पहचान एवं नियंत्रण

How to identify and control leafminer
  • लीफ माइनर (पत्ती सुरंगक) कीट बहुत ही छोटे होते हैं। ये पत्तियों के अंदर जाकर सुरंग बनाते हैं। इससे पत्तियों पर सफेद लकीरें दिखती हैं।
  • लीफ माइनर का वयस्क कीट हलके पीले रंग का एवं शिशु कीट बहुत छोटा एवं पैर विहीन पीले रंग का होता है।
  • कीट का प्रकोप पत्तियों पर शुरू होता है। यह कीट पत्तियों में सर्पिलाकार सुरंग बनाता है।
  • यह पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया में बाधा पैदा करता है जिससे अततः पत्तियां गिर जाती है।
  • इस कीट के नियंत्रण के लिए एबामेक्टिन 1.9% EC@ 150 मिली/एकड़ या क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 8.8% + थायोमेथोक्जाम 17.5 SC @ 200 मिली/एकड़ या सायनट्रानिलीप्रोल 10.26% OD@ 300 मिली/एकड़ का उपयोग करें।
  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ दर से छिड़काव करें।
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