- आलू की फसल में मकड़ी के प्रकोप के कारण पत्तियां चारों ओर एक जाल बना कर पौधे को नुकसान पहुँचाती हैं।
- मकड़ी के प्रकोप के कारण आलू की फसल बीच बीच में पीली दिखाई देती है।
- रस चूसने के कारण पत्तियां ऊपरी भाग से पीली दिखाई देती हैं। धीरे-धीरे ये पत्तियां पूरी तरह मुड़कर सूख जाती हैं।
- इसके नियंत्रण के लिए स्पैरोमेसीफेन 22.9% SC @ 250 मिली/एकड़ या एबामेक्टिन 1.9% EC @ 150 मिली/एकड़ या प्रॉपरजाइट 57% EC@ 400 मिली/एकड़ की दर से उपयोग करें।
गाजर की फसल में कंद का आकार बढ़ाने के लिए उपाय
- गाजर की फसल में बुआई के 40 दिनों बाद कंद का आकार बढ़ने के लिए उपाय किये जाने चाहिए।
- कंद बढ़ने के लिए सबसे पहला छिड़काव 00:52:34 @ 1 किलो/एकड़ की दर से छिड़काव किया जाना चाहिए।
- इसके बाद दूसरा छिड़काव गाजर निकलने के 10-15 दिन पहले 00:00:50 @ 1 किलो/एकड़ एवं इसके साथ पिक्लोबूट्राज़ोल 40% SC @ 30 मिली/एकड़ की दर से उपयोग करें।
ओस गिरने से फसल को होने वाले नुकसान को कैसे रोकें?
- मौसम में हो रहे परिवर्तनों के कारण जैसे जैसे सर्दी बढ़ रही है वैसे वैसे ओस की बूँदे भी फसलों पर गिरने लगी है।
- ओस की इन बूंदों के कारण फसलों में कई प्रकार के रोग लगने का खतरा बढ़ गया है।
- इन दिनों में सुबह के समय अक्सर फसल पर बर्फ जैसी ओस जमी हुई दिखाई देती है।
- ऐसे समय में फसलों पर बहुत अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
- अधिक ओस गिरने के कारण फसलें चौपट हो जाती हैं, पत्तियां काली पड़ जाती हैं और फसल की बढ़वार भी रुक जाती है।
- कई बार इस रोग में फसल की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और धीरे धीरे पूरी फसल बर्बाद होने लगती है।
- इसके निवारण के लिए जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
आलू की फसल में 30-35 दिनों में मिट्टी पलटना होता है आवश्यक
- आलू की फसल में की जाने वाली एक मुख्य प्रक्रिया है मिट्टी पलटने की प्रक्रिया।
- इस प्रक्रिया को करने के कारण मिट्टी भुरभुरी हो जाती है एवं खरपतवार भी नष्ट हो जाते हैं।
- ऐसा करने से पौधे में कंद का विकास अच्छा होता है क्योंकि मिट्टी हवादार हो जाती है है और मिट्टी का तापमान भी बाहरी तापमान के बराबर हो जाता है।
- जब तक पौधे की ऊंचाई 15-22 सेंटीमीटर ना हो जाये तब तक एक से दो बार हर 20-25 दिनों के अंतर से मिट्टी पलटना बहुत आवश्यक होता है।
- बेहतर फसल की उपज के लिए मिट्टी पलटने की प्रक्रिया बहुत आवश्यक होती है।
खेतों से मिट्टी का कटाव होने से खेती पर पड़ता है बुरा प्रभाव
- मिट्टी का कटाव एक प्राकृतिक प्रक्रिया है।
- जब वर्षा के माध्यम से जल की बुँदे बहुत तेज़ी से मिट्टी पर गिरती है तो मिट्टी के छोटे छोटे कण बिखर जाते हैं और इसी के कारण मिट्टी में कटाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
- मिट्टी का अधिक कटाव होने के कारण मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है।
- मिट्टी के कटाव के कारण फसल की उपज पर भी बहुत प्रभाव पड़ता है।
आपकी फसल के लिए बहुत लाभकारी है केंचुआ खाद
- केंचुआ खाद या वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost) एक उत्तम जैव उर्वरक है।
- यह केंचुए के द्वारा गोबर, वनस्पतियों एवं भोजन के कचरे आदि को विघटित करके बनाया जाता है।
- केंचुआ खाद संपूर्ण पोषक तत्वों से परिपूर्ण खाद माना जाता है।
- इस खाद के उपयोग से फसलों की उपज बहुत ज्यादा बढ़ाई जा सकती है।
- इस खाद में बदबू नहीं होती है एवं यह मिट्टी एवं वातावरण प्रदूषण भी नहीं करती है।
- केंचुआ खाद में 2.5 से 3% नाइट्रोजन, 1.5 से 2% सल्फर तथा 1.5 से 2% पोटाश पाया जाता है।
असमय बारिश से फसल विकास होगा अवरुद्ध, जानें फसल वृद्धि के उपाय
रबी फसलों फसलों की बुआई के बाद ज्यादातर किसान अपनी फसलों की सिंचाई कर ही रहे थे पर अचानक हुई बारिश के कारण खेतो में नमी की मात्रा बहुत अधिक हो गई होगी जिसके कारण फसलों का विकास बहुत प्रभावित होगा। इसके कारण जड़े जमीन से आवश्यक तत्वों का अवशोषण कम करेंगी या बिलकुल भी नहीं कर पाएंगी। इस वजह से पौधे पीले पड़ सकते हैं और फसल का विकास रुक जाएगा।
इन संभावित समस्याओं के समाधान हेतु आप निम्न उत्पादों का उपयोग कर सकते हैं
प्रबंधन: प्रो एमिनोमेक्स @ 250 मिली/एकड़ या मेक्सरूट @ 100 ग्राम/एकड़ छिड़काव के रूप में, 250 ग्राम/एकड़ ड्रिप उपचार के रूप में एवं 500 ग्राम/एकड़ मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें या विगरमैक्स जेल@ 400 ग्राम/एकड़ छिड़काव के रूप में उपयोग करें।
Shareआलू की फसल को एफिड एवं जेसिड के प्रकोप से ऐसे बचाएं
- एफिड एवं जैसिड रस चूसक कीटों की श्रेणी में आते हैं।
- यह कीट आलू की फसल की पत्तियों का रस चूसकर पौधे के विकास को बहुत प्रभावित करते हैं।
- इससे ग्रसित पौधे की पत्तियां पीली होकर सिकुड़ कर मुड़ जाती हैं। इसके अत्यधिक प्रकोप की अवस्था में पत्तियाँ सूख जाती हैं और इसके परिणामस्वरूप धीरे-धीरे पूरा पौधा भी सूख जाता है।
- इसके नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL@ 100 मिली/एकड़ या एसीफेट 75% SP@ 300 ग्राम/एकड़ या थियामेंथोक्साम 25% WG@ 100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
टमाटर की फसल में लाल मकड़ी के प्रकोप की पहचान एवं नियंत्रण
- लाल मकड़ी टमाटर के पत्ते के निचले हिस्से में धागे नुमा संरचना बनाकर पत्तियों का रस चूसती हैं।
- रस चूसने के कारण पत्तियों का ऊपरी भाग पीला हो जाता है और धीरे-धीरे पूरी तरह मुड़कर सूख जाता है।
- इसके नियंत्रण के लिए स्पैरोमेसीफेन 22.9% SC @ 250 मिली/एकड़ या एबामेक्टिन 1.9% EC @ 150 मिली/एकड़ या प्रॉपरजाइट 57% EC@ 400 मिली/एकड़ की दर से उपयोग करें।
श्री विधि तकनीक से करें गेहूँ की बुआई, मिलेंगे कई फायदे
- गेहूँ की खेती श्री विधि से करना लघु और सीमांत किसानों के लिए विशेष लाभदायक साबित हुई है।
- यह गेहूँ की खेती करने का एक तरीका है, जिसमें श्री विधि के सिद्धांतों का पालन करके अधिक उपज प्राप्त कि जाती है।
- इसमें कम बीज दर, यानि सिर्फ 10 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज़ की आवश्यकता होती है।
- इस विधि में बीजों को बीज उपचार करके ही बोया जाता है।
- पौधों के बीच दूरी 8 इंच रखी जाती है।
- 2 से 3 बार खरपतवार प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।
- फसल की देखभाल सामान्य (परंपरागत) गेहूँ की फसल की ही तरह की जाती है।