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- प्याज़ की 50-60 दिनों की फसल में कीटों के प्रकोप एवं कवक रोगों से बचाव के साथ साथ पोषक तत्वों की पूर्ति की भी जरूरत पड़ती है।
- कीटों से सुरक्षा के लिए थियामेंथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 9.5% ZC@ 80 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- रोगों से सुरक्षा के लिए क्लोरोथालोनिल 75% WP@ 400 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- प्याज़ की फसल में 50-60 दिनों में पोषण प्रबंधन करने के लिए कैल्शियम नाइट्रेट @ 10 किलो/एकड़ + पोटाश@ 25 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें।
- प्याज़ की फसल में पोषक तत्व प्रबधन छिड़काव के रूप में करने के लिए सूक्ष्म पोषक तत्व @ 250 मिली/एकड़ के रूप में करें।
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- लहसुन की फसल से अच्छे उत्पादन के लिए उर्वरकों का प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।
- सही समय पर उर्वरकों की पूर्ति करने से लहसुन की फसल में कंद का निर्माण बहुत अच्छा होता है।
- लहसुन की फसल में 50 दिनों में उर्वरक प्रबंधन करने के लिए कैल्शियम नाइट्रेट @ 10 किलो/एकड़ + पोटाश@ 20 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें।
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- टमाटर की खेती में पौधों की बँधायी प्रक्रिया काफी फ़ायदेमंद साबित होती है।
- टमाटर की खेती में पौधों की बँधायी के लिए बांस के डंडे, लोहे के पतले तार और सुतली की आवश्यकता होती है।
- मेड़ के किनारे-किनारे दस फीट की दूरी पर दस फीट ऊंचे बांस के डंडे खड़े कर दिए जाते हैं। इन डंडों पर दो-दो फीट की ऊंचाई पर लोहे का तार बांधा जाता है।
- इसके बाद पौधों को सुतली की सहायता से तार से बांध दिया जाता है जिससे ये पौधे ऊपर की ओर बढ़ते हैं। इन पौधों की ऊंचाई आठ फीट तक हो जाती है।
- इससे न सिर्फ पौधा मज़बूत होता है बल्कि फल भी बेहतर होता है। साथ ही फल सड़ने से भी बच जाता है।
- टमाटर की खेती में पौधों की बँधायी के समय इस बात का विशेष ध्यान रखे की पौधे टूटे ना।
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- गेहूँ की फसल की 25 से 30 दिनों की अवस्था में फसल सुरक्षा हेतु पोषक तत्वों की पूर्ति करना बहुत आवश्यक होता है।इस अवस्था में पोषक तत्वों का प्रबंधन दो तरीकों से किया जाता है। ये दो तरीके हैं मिट्टी उपचार एवं छिड़काव प्रबंधन।
- मिट्टी उपचार के रूप में यूरिया@ 40 किलो/एकड़ + जिंक सल्फेट@ 5 किलो/एकड़ + सल्फर 90% WG@ 5 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार करें।
- ज़मीन के अंदर पाए जाने वाले कीटों के नियंत्रण के लिए थियामेंथोक्साम 25% WG@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार के लिए उपयोग करें।
- छिड़काव के रूप में जिब्रेलिक एसिड @ 300 मिली/एकड़ या ह्यूमिक एसिड @ 100 ग्राम/एकड़ या अमीनो एसिड @ 250 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- 19:19:19 @ 1 किलो/एकड़ या 20:20:20 @ 1 किलो/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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- आलू की 40-45 दिनों की फसल में कंद बनने की शुरुआत होने लगती है।
- रबी के मौसम की फसल होने के कारण कवक जनित रोग एवं कीट प्रकोप बहुत होता है।
- कीट निवारण के लिए बायफैनथ्रिन 10% EC@ 300 मिली/एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG@ 100 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।
- कवक जनित रोगों के लिए थायोफिनेट मिथाइल 70% WP @ 300 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।
- पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए 00:52:34 @ 1 किलो/एकड़ + सूक्ष्मपोषक तत्व@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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- भिंडी की फसल में फूल अवस्था में पोषण प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।
- इस अवस्था में भिंडी की फसल में पोषक तत्वों की कमी के कारण फूल गिरने की समस्या बढ़ जाती है।
- अधिक मात्रा में फूल गिरने के कारण फसल की उपज पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
- इस समस्या के निवारण के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- फूल गिरने से रोकने के लिए होमब्रेसिनोलाइड @ 100 मिली/एकड़ या पिक्लोबूट्राज़ोल 40% SC @ 30 मिली/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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- आलू की फसल में मकड़ी के प्रकोप के कारण पत्तियां चारों ओर एक जाल बना कर पौधे को नुकसान पहुँचाती हैं।
- मकड़ी के प्रकोप के कारण आलू की फसल बीच बीच में पीली दिखाई देती है।
- रस चूसने के कारण पत्तियां ऊपरी भाग से पीली दिखाई देती हैं। धीरे-धीरे ये पत्तियां पूरी तरह मुड़कर सूख जाती हैं।
- इसके नियंत्रण के लिए स्पैरोमेसीफेन 22.9% SC @ 250 मिली/एकड़ या एबामेक्टिन 1.9% EC @ 150 मिली/एकड़ या प्रॉपरजाइट 57% EC@ 400 मिली/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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- गाजर की फसल में बुआई के 40 दिनों बाद कंद का आकार बढ़ने के लिए उपाय किये जाने चाहिए।
- कंद बढ़ने के लिए सबसे पहला छिड़काव 00:52:34 @ 1 किलो/एकड़ की दर से छिड़काव किया जाना चाहिए।
- इसके बाद दूसरा छिड़काव गाजर निकलने के 10-15 दिन पहले 00:00:50 @ 1 किलो/एकड़ एवं इसके साथ पिक्लोबूट्राज़ोल 40% SC @ 30 मिली/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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- मौसम में हो रहे परिवर्तनों के कारण जैसे जैसे सर्दी बढ़ रही है वैसे वैसे ओस की बूँदे भी फसलों पर गिरने लगी है।
- ओस की इन बूंदों के कारण फसलों में कई प्रकार के रोग लगने का खतरा बढ़ गया है।
- इन दिनों में सुबह के समय अक्सर फसल पर बर्फ जैसी ओस जमी हुई दिखाई देती है।
- ऐसे समय में फसलों पर बहुत अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
- अधिक ओस गिरने के कारण फसलें चौपट हो जाती हैं, पत्तियां काली पड़ जाती हैं और फसल की बढ़वार भी रुक जाती है।
- कई बार इस रोग में फसल की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और धीरे धीरे पूरी फसल बर्बाद होने लगती है।
- इसके निवारण के लिए जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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- आलू की फसल में की जाने वाली एक मुख्य प्रक्रिया है मिट्टी पलटने की प्रक्रिया।
- इस प्रक्रिया को करने के कारण मिट्टी भुरभुरी हो जाती है एवं खरपतवार भी नष्ट हो जाते हैं।
- ऐसा करने से पौधे में कंद का विकास अच्छा होता है क्योंकि मिट्टी हवादार हो जाती है है और मिट्टी का तापमान भी बाहरी तापमान के बराबर हो जाता है।
- जब तक पौधे की ऊंचाई 15-22 सेंटीमीटर ना हो जाये तब तक एक से दो बार हर 20-25 दिनों के अंतर से मिट्टी पलटना बहुत आवश्यक होता है।
- बेहतर फसल की उपज के लिए मिट्टी पलटने की प्रक्रिया बहुत आवश्यक होती है।
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