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- प्याज का मेगट सफेद रंग का बहुत छोटा कीट होता है।
- यह प्याज़ के कंद को बहुत नुकसान पहुँचाता है।
- बड़े कंदो में 9 से 10 मैगट एक साथ हमला करते हैं और उसे खोखला बना देते हैं।
- इसके कारण प्याज़ का कंद पूरी तरह सड़ जाता है।
- इस कीट के निवारण के लिए फिप्रोनिल 0.3% 7.5 या कारटाप हाइड्रोक्लोरइड 7.5 किलो प्रति एकड़ की दर से मिट्टी में मिलाएं।
- फेनप्रोप्रेथ्रिन 10% EC @ 400 मिली/एकड़ या क्लोरोपायरीफॉस 20% EC@ 1 लीटर/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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- गेहूँ की फसल में परिपक्वता की अवस्था में पीलेपन की समस्या दिखाई दे रही है।
- इस समस्या का कारण गेहूँ की फसल में पोषक तत्वों की कमी के कारण होती है।
- इस समस्या के निवारण के लिए जिब्रेलिक एसिड @ 300 मिली/एकड़ या ह्यूमिक एसिड@ 100 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- इसके अलावा 19:19:19 @ 1 किलो/एकड़ या 20:20:20 @ 1 किलो/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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- नीम खली दरअसल एक जैविक उर्वरक है और इसमें NPK, नाइट्रोज़न, फॉस्फोरस, पोटैशियम, ज़िंक, कॉपर, सल्फर, कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन और सूक्ष्म पोषक तत्व पाए जाते हैं।
- नीम खली के उपयोग से खेती की मिट्टी में नमी बनी रहती है।
- इसके प्रयोग से पौधों की पत्तियों एवं तने में चमक आ जाती है।
- इसके प्रयोग से पौधे कीटाणु मुक्त होकर फल – फूल देने लगते हैं।
- नीम खली के प्रयोग से पौधे मजबूत और टिकाऊ होते हैं नीम खली को शोभाकार पौधों के अतिरिक्त खेतों में भी डाला जा सकता है।
- नीम खली के प्रयोग से पौधों में अमीनो एसिड का लेवल बढ़ता है जो क्लोरोफिल का लेवल बढ़ाती है। इस वजह से पौधा हरा भरा नजर आता है।
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- आमतौर पर तरबूज की फसल में होने वाला यह रोग पत्तियों को प्रभावित करता है, जिससे पत्तियों के निचले एवं ऊपरी भाग ग्रषित हो जाते हैं।
- यह पत्तियों की ऊपरी एवं निचली सतह पर पीले से सफेद रंग के पावडर के रूप में दिखाई देती है।
- इनके प्रबंधन के लिए एजेस्ट्रोबिन 11% + टेबूकोनाज़ोल 18.3% SC @ 300 मिली/एकड़ या एजेस्ट्रोबिन@ 300 मिली/एकड़ का उपयोग करें।
- जैविक उपचार रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी 500 ग्राम/एकड़ + स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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- फसलों में उग आने वाला अनचाहा खरपतवार गाजर घास वैसे तो किसानों के लिए एक बहुत बड़ी समस्या है परंतु इसका कृषि में बहुत महत्व होता है।
- गाजर घास नाइट्रोज़न का बहुत अच्छा स्रोत है और इसके उपयोग से फसलों में जैविक रूप से नाइट्रोज़न की पूर्ति की जा सकती है।
- गाजर घास से तैयार कम्पोस्ट एक ऐसी जैविक खाद है, जिसके प्रयोग से फसलों, मनुष्यों ओर पशुओं पर कोई भी बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है।
- कम्पोस्ट बनाने पर गाजर घास में जीवित अवस्था में पाया जाने वाले विषाक्त रसायन “पार्थेनिन” का पूर्णतः विघटित हो जाता है।
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- प्याज की फसल की इस अवस्था में तीन अलग-अलग रूपों में फसल प्रबंधन करना आवश्यक होता है।
- कवक रोगों से रक्षा के लिए: पत्ती झुलसा रोग एवं बैगनी धब्बा रोग के निवारण के लिए क्लोरोथालोनिल 75% WP@ 400 ग्राम/एकड़ या कीटाजिन 48% EC @ 400 मिली/एकड़ छिड़काव के रूप में उपयोग करें।
जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- कीटों से रक्षा के लिए: रस चूसक कीटों एवं मकड़ी जैसे कीटों के नियंत्रण के लिए थियामेंथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 9.5% ZC@ 80 मिली/एकड़ या एबामेक्टिन 1.9% EC @ 150 मिली/एकड़ की दर से उपयोग करें।
जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- पोषण प्रबंधन: प्याज़ की इस अवस्था में पोषण प्रबंधन के लिए 00:52:34@ 1 किलो/एकड़ और साथ ही सूक्ष्म पोषक तत्व @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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- मिश्रित खेती की प्रक्रिया को कृषि की तकनीकी भाषा में अंतरसस्य (इंटरक्रॉपिंग) कहते हैं।
- इस प्रकार की खेती खेतों की विविधता और स्थिरता को बनाए रखने में मददगार होती है।
- इस प्रक्रिया का इस्तेमाल करने पर रासायनिक/उर्वरक के अनुप्रयोग में कमी आती है ।
- मिश्रित फसल में खरपतवार, कीड़े और बीमारी की समस्या कम होती है।
- अंतरसस्य (इंटरक्रोपिंग) में सब्जियों की फसलें कम अवधि में उच्च उत्पादन देती है।
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- एज़ोटोबैक्टर स्वतंत्रजीवी नाइट्रोजन स्थिरिकरण वायवीय जीवाणु हैंं।
- यह जीवाणु वातावरण के नाइट्रोजन को लगातार जमीन में जमा करता रहता है।
- इसका उपयोग करने पर 20% से 25% तक कम नाइट्रोजन उर्वरक की आवश्यकता होती है।
- ये जीवाणु बीजों का अंकुरण प्रतिशत बढ़ा देते हैंं।
- तने एवं जड़ों की संख्या और लंबाई बढ़ाने में भी यह सहायक होते हैं।
- रोग आने की संभावना को भी यह कम करते हैं।
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- धतूरा एक पादप है जो लगभग 1 मीटर तक ऊँचा होता है। इसके पेड़ काले-सफेद दो रंग के होते हैं।
- धतूरा आम तौर पर ज़हरीला और जंगली फल माना जाता है।
- इसके औषधीय गुणों के कारण इसका कृषि में भी काफी महत्व होता है।
- इसकी पत्तियों को गोमूत्र एवं पानी में गलाकर उपयोग करने पर यह कीटनाशक की तरह कार्य करता है।
- धतूरे का उपयोग पंचगव्य बनाने में भी किया जाता है।
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- जिस प्रकार नाडेप विधि, वर्मीकम्पोस्ट, बायो गैस आदि खाद बनने की विधि है ठीक उसी प्रकार मटका खाद बनने की भी एक सामान्य एवं सरल विधि है।
- इस विधि के द्वारा अच्छी गुणवत्ता वाला खाद बनता है एवं यह कम खर्च में तैयार हो जाता है।
- इसे तैयार करने के लिए गाय-भैंस का मूत्र, गुड़, एक मटका, पानी एवं गोबर की आवश्यकता होती है।
- इन सभी सामग्रियों को आपस में मिलाकर मटके में डाल कर रखें एवं हर 2-3 दिनों में लकड़ी की सहायता से इसे हिलाते रहें।
- इस प्रकार 7 से 10 दिनों में मटका खाद बनकर तैयार हो जाता है।
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