- PDM139 सम्राट (प्रसाद), PDM139 सम्राट (ईगल), PDM139 सम्राट (अवस्थी): ये तीनो मूंग की बेहद उन्नत किस्में मानी जाती हैं। इनकी फसल अवधि 55 से 60 दिनों की होती है। ये किस्में गर्मी एवं बसंत ऋतू की मुख्य किस्में हैं। इन किस्मों का कुल उत्पादन 5 से 6 क्विण्टल की दर से होता है। ये किस्में येलो मोजेक वायरस के प्रति प्रतिरोधी होती हैं एवं इनका दाना चमकीले हरे रंग का होता है।
- IPM205 विराट: यह किस्म भी मूंग की एक उन्नत किस्म है और इसकी फसल अवधि 52 से 55 दिनों की होती है। यह किस्म गर्मी एवं बसंत ऋतू की मुख्य किस्म है और इसका कुल उत्पादन 4 से 5 क्विण्टल तक होता है। इस किस्म के पौधे सीधे तथा बौने होते हैं तथा इसके दाने बड़े होते हैं।
- Hum-1(अरिहंत): यह मूंग की बहुत उन्नत किस्म है। इसकी फसल अवधि 60 से 65 दिन की होती है। यह किस्म गर्मी एवं बसंत ऋतू की मुख्य किस्म है और इसका कुल उत्पादन 3 से 4 क्विण्टल तक रहता है।
भिंडी की फसल में जरूर करें मिट्टी उपचार, मिलेंगे कई फायदे
- बुआई के समय भिंडी की फसल में मिट्टी उपचार करने से मिट्टी जनित रोगों एवं कीटों से फसल की रक्षा होती है।
- बुआई के समय यह प्रक्रिया अपनाने से अंकुरण के समय भिंडी के बीजों का अंकुरण प्रतिशत बहुत अच्छा हो जाता है।
- FYM या वर्मी कम्पोस्ट से मिट्टी उपचार करने से मिट्टी हवादार हो जाती है।
- किसी भी रासायनिक या जैव उर्वरक से मिट्टी उपचार करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की पूर्ति आसानी से हो जाती है।
- इससे फसल उत्पादन बहुत हद तक बढ़ जाता है एवं फसल रोगरहित पैदा होती है।
- साथ ही अंकुरण अवस्था में लगने वाले कवक रोगों से अंकुरित पौध को सुरक्षा भी मिलती है।
भिंडी की फसल से अच्छी उपज प्राप्ति के लिए जरूरी है बीज उपचार
- बुआई के पूर्व भिंडी की बीजों का बीज़ उपचार करने से कई प्रकार के कीट तथा रोगों के प्रकोप से बीजों का बचाव होता है।
- बीज़ उपचार करने से भिंडी के बीजों का अंकुरण बहुत अच्छा होता है।
- रासायनिक उपचार: बुआई से पहले भिंडी के बीजों को कवकनाशी कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% WP@ 2.5 ग्राम/किलो बीज या कार्बोक्सिन 37.5% + थायरम 37.5% DS @ 2.5 ग्राम/किलो बीज या कीटनाशी इमिडाक्लोप्रिड 48% FS @ 4 मिली/किलो बीज या थियामेंथोक्साम 30% FS@ 4 मिली/किलो बीज से बीज उपचार करें।
- जैविक उपचार: ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 5 ग्राम + PSB बैक्टेरिया @ 2 ग्राम/किलो बीज या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ @ 5 ग्राम/किलो बीज की दर से बीज उपचार करें।
- इस बात का विशेष ध्यान रखें की बीज उपचार के बाद उपचारित बीजों को उसी दिन बुआई के लिए उपयोग करें। उपचारित बीजों को संगृहीत करके ना रखें।
तरबूज़ की फसल में अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग का नियंत्रण कैसे करें?
- अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग तरबूज़ की फसल में बुआई के बाद से ही दिखाई देने लगता है।
- इस रोग के कारण पत्तियों पर भूरे रंग के सकेंद्रिय गोल धब्बे दिखाई देते हैं। यह धब्बे धीरे धीरे बढ़ते जाते है और आखिर में ग्रसित पत्तियाँ सूख कर गिर जाती हैं।
- इस रोग के निवारण के लिए कार्बेडेंजियम 12% + मैंकोजेब 63% WP @ 300 ग्राम/एकड़ या कीटाजिन@ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ की दर छिड़काव करें।
मूंग समृद्धि किट से मिलेगी बम्पर उपज, जाने इसके उपयोग की पूरी प्रक्रिया
- मूंग की फसल के लिए ख़ास तौर पर तैयार की गई ‘मूंग समृद्धि किट’ आपकी फसल का सुरक्षा कवच बनेगी।
- इस किट में कई उत्पाद संलग्न हैं जिसमे पीके बैक्टीरिया का कंसोर्टिया, राइज़ोबियम बैक्टेरिया, ट्राइकोडर्मा विरिडी, ह्यूमिक एसिड, समुद्री शैवाल, अमीनो एसिड एवं मायकोराइज़ा शामिल हैं।
- इस किट का कुल वज़न 5 किलो है जो एक एकड़ के लिए पर्याप्त है।
- फसल की बुआई के पहले इस किट को 50-100 किलो FYM के साथ मिलाकर खाली खेत में भुरकाव करें।
- इस बात का ध्यान रखें की जब इस किट का उपयोग किया जा रहा हो तब खेत में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है।
- यह किट मूंग की फसल को सभी जरुरी पोषक तत्व प्रदान करती है।
गर्मियों में गोबर खाद के उपयोग से पहले इन बातों का जरूर रखें ध्यान
- गर्मियों के मौसम में किसान अक्सर खेत में गोबर की खाद डालता है, परंतु इसका उपयोग करने से पहले यह जरूर ध्यान रखना चाहिए की गोबर खाद अच्छे से पकी हुई हो।
- कभी कभी किसान खेत में डालने के लिए जिस गोबर खाद का उपयोग करता है वह अधपकी एवं पूर्ण पोषित भी नहीं होती है। जिसका नुकसान फसल को उठाना पड़ता है।
- गोबर की खाद को खेत में डालने से पहले उसे पूरी तरह से डिकम्पोज़्ड कर लेना चाहिए।
- गोबर की खाद में नमी की मात्रा पर्याप्त रखने के लिए इसे खेत में डालने के बाद हल्की सिंचाई करना बहुत आवश्यक होता है।
- गोबर की खाद डालने के बाद खेत की जुताई भी अवश्य करें। ऐसा करने से गोबर खाद अच्छे से मिट्टी में मिल जाती है।
अफरा रोग से पशुओं में आ सकती है सांस लेने में परेशानी, जानें बचाव की विधि
- जुगाली करने वाले पशुओं में अफरा रोग होना एक आम समस्या है।
- इसके कारण पशुओं के पेट में बनी गैस मुँह के रास्ते से निकलती रहती है, परन्तु जब पशुओं में अपचन की समस्या के कारण गैस बहार नहीं निकलती है तो अफरा जैसी समस्या होती है।
- इसके कारण पशुओं को सांस लेने में कठिनाई हो सकती है।
- साथ ही पशु द्वारा जुगाली करने की प्रक्रिया भी बंद हो जाती है।
- इसके कारण पशु का पेट बायीं ओर कुछ अधिक फूल जाता है।
- पशु खाना और पानी पीना बंद कर देता है साथ ही ज़मीन पर लेट कर पाँव पटकने लगता है।
- इसके निवारण के लिए पशु को 400 से 500 मिली सरसों तेल के साथ 30-60 मिली तारपीन का तेल मिलाकर पिलाने से इस रोग का निवारण किया जा सकता है।
दीमक जैसे जमीनी कीड़े से फसल का करें बचाव, अपनाएं जैविक नियंत्रण विधि
- दीमक जैसे जमीनी कीड़े सभी प्रकार की फसलों को बर्बाद कर सकते हैं। ये पौधों की जड़ों को बहुत अधिक नुकसान पहुँचाते हैं।
- आलू, टमाटर, मिर्च, बैंगन, फूल गोभी, पत्ता गोभी, सरसों, राई, मूली, गेहूँ आदि फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान होता है।
इन कीटों के नियंत्रण हेतु निम्र प्रबंधन उपायों का उपयोग करें
- बीजों को कीटनाशकों के द्वारा बीज़ उपचार करके ही बोना चाहिए।
- कीटनाशी मेट्राजियम से मिट्टी उपचार अवश्य करना चाहिए।
- कच्ची गोबर की खाद का उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि कच्चा गोबर इस कीट का मुख्य भोजन होता है।
- अतः गोबर का उपयोग करने से पहले उसे अच्छी तरह सड़ा कर ही उपयोग करें।
मध्य प्रदेश समेत इन क्षेत्रों में आने वाले कुछ दिनों में हो सकती है बारिश
दक्षिण पूर्वी एवं पूर्वी मध्यप्रदेश के साथ साथ छत्तीसगढ़, झारखंड, तटीय पश्चिम बंगाल, ओडिशा, विदर्भ, मराठवाड़ा जैसे क्षेत्रों में कल से आने वाले कुछ दिनों तक बारिश की संभावना बन रही है। इसके साथ ही पहाड़ों पर हल्की बर्फबारी के भी आसार बन रहे हैं। उत्तर भारत में घना कोहरा छाये रहने की संभावना है। हालाँकि अब सर्दी के जल्द विदाई की संभावना बन गई है।
वीडियो स्रोत: स्काईमेट वेदर
Shareकरेले की फसल में फल मक्खी का प्रबंधन
- फल मक्खी प्रायः कोमल फलों पर ही अण्डे देती है और अपने अंडे देने वाले भाग से फलों में छेंद करके उन्हे हानि पहुंचाती है।
- मेगट (लार्वा) फलों में छेंद करने के बाद उनके भीतरी भाग को खाते है। इनसे ग्रसित फल खराब होकर गिर जाते हैं।
- इन छेदों से फलों का रस निकलता हुआ दिखाई देता है। अंततः छेद ग्रसित फल सड़ने लगते हैं।
- इस समस्या से ग्रसित फलों को इकठ्ठा करके नष्ट कर देना चाहिये।
- इन मक्खीयों का नियंत्रण करने के लिये करेले के खेत में कतारों के बीच में मक्के के पौधों को उगाया जाना चाहिये, पौधे की उचाई ज्यादा होने के कारण मक्खी पत्तों के नीचे अंडे देती है।
- गर्मी के दिनों में गहरी जुताई करके भूमि के अंदर की मक्खी की सुप्त अवस्था को नष्ट करना चाहिये।
- कीट के प्रभावी नियंत्रण के लिए लाइट ट्रैप और फेरामोन ट्रैप का उपयोग करें।
- इसके नियंत्रण के लिए फेनप्रोप्रेथ्रिन 10% EC @ 400 मिली/एकड़ या प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिली/एकड़ या स्पिनोसेड 45% SC @ 60 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।