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- लहसुन की फसल में पुनः अंकुरण की समस्या का कारण एवं समाधान
- लहसुन की फसल में आजकल पुनः अंकुरण की समस्या देखने को मिल रही है .
- यह समस्या अधिक सिंचाई या फिर अनियमित सिंचाई करने के कारण होती है।
- नाइट्रोज़न युक्त उर्वरकों का अधिक उपयोग करने से भी यह समस्या लहसुन की फसल में दिखाई देती है।
- इसके निवारण के लिए बोरान 20% @ 200 ग्राम/एकड़ के साथ 00:00:50 @ 1 किलो/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- लहसुन को निकालने के 15 दिनों पहले पेक्लोबूट्राज़ोल 23% WW @ 50 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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- मिलीबग एक प्रकार का रस चूसक कीट है जो पत्तियों या टहनियों पर आक्रमण करके उनका रस चूसता है।
- यह कीट सफ़ेद रुई के तरह का होता है और इस कीट के वयस्क बहुत अधिक संख्या में पौधों से आवश्यक पोषक तत्वों को चूसकर फसल विकास को प्रभावित कर देते हैं।
- इस कीट के नियंत्रण के लिए थियामेंथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 9.5% ZC@ 80 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG @ 200 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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- मूंग की जडों की ग्रंथिकाओं में राइज़ोबियम नामक जीवाणु पाया जाता है जो वायुमंडलीय नत्रजन का स्थिरीकरण कर फसल की उपज बढ़ाता है।
- राइज़ोबियम कल्चर के इस्तेमाल से दलहनी फ़सलों की जड़ों में तेजी से गांठे बनती है जिससे मूंग, चना, अरहर व उड़द की उपज में 20-30 फीसदी व सोयाबीन की उपज में 50-60 फीसदी तक का इज़ाफा होता है।
- राइजोबियम कल्चर के प्रयोग से भूमि में लगभग 30-40 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर तक बढ़ जाती है।
- राइजोबियम कल्चर 5 से 10 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीज उपचार तथा मिट्टी के उपचार बुआई पूर्व के लिए 1 किलो/एकड़ प्रति 50 किलो गोबर खाद में मिलाकर किया जाता है।
- दलहनी फ़सलों की जड़ों में मौजूद राइजोबियम जीवाणुओं द्वारा जमा की गई नाइट्रोजन अगली फसल में इस्तेमाल हो जाती है, जिससे अगली फसल में भी नत्रजन कम देने की आवश्यकता होती है।
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- मिट्टी परीक्षण से मिट्टी में उपस्थित तत्वों का सही सही पता लगाया जाता है। इनकी जानकारी के बाद मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्व के अनुसार ही खाद व उर्वरक की मात्रा सम्बन्धी सिफारिश की जाती है।
- यानी मिट्टी परीक्षण जाँच के बाद संतुलित मात्रा में उर्वरक देकर खेती में अधिक लाभ लिया जा सकता है और उर्वरक लागत को कम किया जा सकता है।
- मिट्टी परीक्षण से मिट्टी पीएच, विघुत चालकता, जैविक कार्बन के साथ साथ मुख्य पोषक तत्वों और सूक्ष्म पोषक तत्वों का पता लगाया जा सकता है।
- मिट्टी पी.एच.मान से मिट्टी की सामान्य, अम्लीय या क्षारीय प्रकृति का पता लगाया जा सकता है। मिट्टी पी.एच. घटने या बढ़ने से पादपों की वृद्धि पर असर पड़ता है।
- मिट्टी पी.एच. पता चल जाने के बाद समस्या ग्रस्त क्षेत्रों में फसल की उपयुक्त उन किस्मों की सिफारिश की जाती है जो अम्लीयता और क्षारीयता को सहन करने की क्षमता रखती हो।
- मिट्टी पी.एच. मान 6.5 से 7.5 के बीच होने पर पौधों द्वारा पोषक तत्वों का सबसे अधिक ग्रहण किया जाता है तथा अम्लीय भूमि के लिए चूने एवं क्षारीय भूमि के लिए जिप्सम डालने की सलाह दी जाती है।
- मिट्टी परीक्षण से विद्युत चालकता जानी जा सकती है, इससे यह जानकारी मिल जाती है कि मिट्टी में लवणों की सांद्रता या मात्रा किस स्तर पर है।
- मिट्टी में लवणों की अधिक सान्द्रता होने पर पौधों द्वारा पोषक तत्वों के अवशोषण में कठिनाई आती है।
- मिट्टी परीक्षण से जैविक कार्बन जाँच कर मिट्टी की उर्वरता का पता चलता है।
- मिट्टी के भौतिक गुण जैसे मृदा संरचना, जल ग्रहण शक्ति आदि जैविक कार्बन से बढ़ते है।
- जैविक कार्बन पोषक तत्वों की लीचिंग (भूमि में नीचे जाना) को भी रोकता है।
- इसके अतिरिक्त पोषक तत्वों की उपलब्धता स्थानांतरण एवं रुपांतरण और सूक्ष्मजीवों की वृद्धि के लिए भी जैविक कार्बन बहुत उपयोगी होता है।
- मिट्टी की उर्वरा क्षमता के आधार पर कृषि उत्पादन एवं अन्य उपयोगी योजनाओं को लागू करने में सहायता मिलती है।
- अतः इन सभी जानकारियों से मालूम होता है कि मिट्टी परीक्षण कितना आवश्यक है।
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| फसल |
न्यूनतम भाव |
अधिकतम भाव |
| डॉलर चना |
3500 |
6795 |
| गेहु |
1501 |
2061 |
| चना मौसमी |
3800 |
5300 |
| सोयाबीन |
2100 |
5095 |
| मक्का |
1200 |
1365 |
| मसूर |
5150 |
5180 |
| मूंग |
6650 |
6650 |
| उड़द |
4005 |
5250 |
| बटला |
3805 |
3905 |
| तुअर |
5955 |
6805 |
| मिर्ची |
5000 |
13700 |
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- पित शिरा विषाणु भिंडी में लगने वाला प्रमुख विषाणु जनित रोग है।
- यह सफ़ेद मक्खी के कारण फैलता है एवं इसके कारण भिंडी की फसल को 25 से 30% तक का नुकसान होता है।
- इस रोग के लक्षण पौधे की सभी अवस्था में देखा जाता है।
- इसके कारण पत्तियों की शिराएं पीली पड़ जाती हैं एवं पत्तियों पर जाल जैसी संरचना बन जाती है।
- इसके निवारण के लिए एसिटामिप्रीड 20% SP @ 100 ग्राम/एकड़ या डायफैनथीयुरॉन 50% WP @ 250 ग्राम/एकड़ या पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% EC@ 300 मिली/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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- गेहूँ की फसल में यदि दानों का आकार एवं चमक अच्छी होती है तो उस फसल का बाजार भाव बहुत अच्छा मिलता है।
- गेहूँ की फसल में दानो में चमक बेहतर करने के लिए दाना भरने की अवस्था के समय 00:00:50 @ 1 किलो/एकड़ के साथ प्रोपिकोनाज़ोल 25% EC@ 200 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- इन उत्पादों के उपयोग से गेहूँ के दानो में चमक के साथ-साथ कवक जनित रोगों से फसल की रक्षा होती है एवं पोषण सम्बन्धी आवश्यकता की भी पूर्ति हो जाती है।
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- उपज के सुरक्षित भंडारण के समय इन बातों का रखें ध्यान
- फसल के कटाई के बाद सबसे जरूरी काम उपज भंडारण का होता है।
- उपज के सुरक्षित भंडारण के लिए वैज्ञानिक विधि अपनाने की जरूरत होती है, इससे अनाज को लम्बे समय तक भंडारित करके रखा जा सकता है।
- उपज में भंडारण के समय लगने वाले मुख्य कीटों में अनाज का छोटा बेधक, खपड़ा बीटल, आटे का लाल भृंग, दालों का भृंग, अनाज का पतंगा, चावल का पतंगा आदि शामिल हैं।
- यह सभी कीट भंडारण के दौरान अनाज को खाकर खोखला कर देते हैं।
- इन कीटों से अनाज को सुरक्षित रखने के लिए भंडारण करने के पहले भण्डार गृह की सफाई अच्छे से जरूर कर लें।
- इसके साथ ही अनाज को अच्छी तरह से सुखाकर ही भंडारित करें।
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- ज़िंक सोलुब्लाइज़िंग बैक्टीरिया एक बहुत ही महत्वपूर्ण बैक्टीरिया कल्चर है।
- यह बैक्टीरया मिट्टी में मौजूद अघुलनशील ज़िंक को घुलनशील रूप में पौधों को उपलब्ध कराता है। यह पौधों के विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्वों में से एक है।
- इसका उपयोग मिट्टी उपचार, बीज़ उपचार एवं छिड़काव के रूप में भी कर सकते हैं।
- मिट्टी उपचार करने के लिए 1 किलो/एकड़ की दर से 50-100 किलो पकी हुई गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट में मिलाकर बुआई के पहले खेत में भुरकाव करें।
- बीज़ उपचार के लिए 5-10 ग्राम/किलो बीज़, बीज़ उपचार के लिए उपयोग करें।
- बुआई के बाद छिड़काव के रूप में 500-1 किलो/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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- बेसल रॉट रोग एक कवक जनित रोग है और इसका सबसे ज्यादा प्रभाव प्याज के कंद के आधार भाग पर दिखाई देता है।
- इसके कारण कंद के आधार पर सफेद या गुलाबी रंग के कवक दिखाई देते हैं।
- इससे प्याज की जड़ों के साथ-साथ कंद को भी बहुत नुकसान पहुँचता है।
- इस रोग के निवारण के लिए थायोफिनेट मिथाइल 70% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या कीटाजिन 48% EC@ 400 मिली/एकड़ की दर से जड़ों के पास से पौधे को दें।
- जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ जड़ों के पास दें।
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