पर्ण कुंचन रोग से मिर्च की फसल को होगा नुकसान, जानें बचाव के उपाय

Chilli crop will be damaged due to leaf curl disease
  • मिर्च के पौधों में पर्ण कुंचन रोग के कारण पत्तियां ऊपर और नीचे की ओर मुड़ने लगती हैं। पत्ती के किनारे हल्के हरे से लेकर पीले रंग के हो जाते हैं, जो आखिर में शिराओं तक फैल जाते हैं। इसके कारण नोड्स और इंटरनोड्स आकार में छोटे हो जाते हैं। संक्रमित पौधे झाड़ीदार दिखाई देते हैं, विकास गंभीर रूप से अवरुद्ध हो जाता है, पीलेपन की समस्या भी दिखाई देती है और संक्रमित पौधों के फल भी छोटे रह जाते हैं।

  • इस रोग का फैलाव सफेद मक्खी की वजह से होता है। यह रोग तापमान और सापेक्ष आर्द्रता में तेजी के साथ बढ़ता है। इसके विषाणु मुख्य रूप से खरपतवारों पर रहते हैं। गर्म और शुष्क मौसम इस रोग-प्रसार का पक्षधर है।

  • इसके नियंत्रण हेतु नायलॉन-नेट कवर (50 मेश) के नीचे नर्सरी उगाएं, खेत से जल्दी संक्रमित पौधों और खरपतवारों को हटा लें, मक्का ज्वार या बाजरा के साथ फसल की दो पंक्तियाँ रोग-प्रसार को कम करती हैं।

  • इसके रासायनिक नियंत्रण के लिए आप  फिपनोवा (फिप्रोनिल 5% SC) 320-400 मिली/एकड़ का उपयोग करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।

Share

कपास की गुलाबी सुंडी है खतरनाक, कर देगी फसल को बर्बाद

Pink bollworm of cotton is dangerous
  • कपास की फसल में गुलाबी सुंडी के कारण कलियों का खुलना बंद हो जाता है, फल झड़ने लगते हैं, लिंट खराब हो जाते हैं और बीज नष्ट हो जाते हैं। ये सुंडी कपास में पाया जाने वाला विश्वव्यापी कीट है और दुनिया के कुछ क्षेत्रों में तो यह कपास का प्रमुख कीट है।

  • गुलाबी सुंडी के अंडे फूल आने के समय कपास के डोडे पर या उसके आस पास जमा हो जाते हैं।

  • युवा लार्वा 3-5 दिनों के बाद निकलते हैं, उभरने के तुरंत बाद कपास के डोडे में प्रवेश करते हैं जहां वे घेटे के भीतर आंतरिक रूप से भोजन करते हैं।

  • लार्वा आमतौर पर चार स्तर से गुजरते हैं। प्यूपेशन जमीन में होता है, सतह से लगभग 50 मिमी नीचे और वयस्क लगभग 9 दिनों के बाद निकलते हैं। वयस्क निशाचर होते हैं और मादाएं उभरने के एक या दो दिन बाद अंडे देना शुरू कर देती हैं, आमतौर पर मादा प्रत्येक 200-400 अंडे देती हैं।

  • इसके नियंत्रण के लिए प्रोफेनोवा सुपर (साइपरमैथिन 4% + प्रोफेनोफॉस 40% EC) @400-600 लीटर/एकर, डैनिटोल (फेनप्रोपेथ्रिन 10% EC) 300-400 लीटर/एकर।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।

Share

मिर्च की फसल में ना होने दें मकड़ी का प्रकोप, ऐसे करें बचाव

Don't let the Mites attack in the chilli crop
  • मकड़ी छोटे एवं लाल रंग के कीट होते हैं जो फसलों के कोमल भागों जैसे पत्तियां, कलिया, फूल एवं टहनियों पर भारी मात्रा में पाए जाते हैं।

  • जिन पौधों पर मकड़ी का प्रकोप होता है उनपर जाले दिखाई देते हैं। ये पौधे के कोमल भागों का रस चूसकर उनको कमज़ोर कर देते हैं एवं अंत में पौधा मर जाता है।

  • मिर्च की फसल में मकड़ी किट के नियंत्रण के लिए निम्र उत्पादों का उपयोग किया जाता है।

  • ओमाइट (प्रोपरगाइट 57% EC) @ 400 मिली/एकड़ या ओबेरोन (स्पिरोमिसिफेन 22.9% SC) @ 200 मिली/एकड़ या अबासीन (एबामेक्टिन 1.8% EC) @ 150 मिली/एकड़ का छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के रूप में कालीचक्र (मेथारिज़ियम एनिसपोली) 1 किग्रा/एकड़ की दर से उपयोग करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।

Share

स्प्रेडर के उपयोग से कृषि दवाओं का बढ़ता है असर और मिलते हैं कई फायदे

The use of spreader increases the effect of agricultural drugs and gives many benefits
  • स्प्रेडर का उपयोग करने से किसान जो भी दवाई फसलों में डालते हैं वह लंबे समय तक पौधों में ठहरती है।

  • इससे दवाई का असर ज्यादा दिनों तक फसलों में देखने को मिलता है। यह पौधों के हर हिस्से में दवा को अच्छे से फैलाता है।

  • इसके अलावा कई बार ओस की बूंद गिरने से या बारिश आ जाने के कारण जो भी दवाई का उपयोग हम फसलों में करते हैं वह धुल जाती है अगर हमारे द्वारा स्प्रेडर का उपयोग दवाओं के साथ करेंगे तो दवाई को पौधों से धुलने से बचाया जा सकता हैं।

  • स्प्रेडर की कीमत बहुत ज्यादा नहीं होती है और यह बाकी के महंगे दवाओं की उपयोग क्षमता को भी बढ़ता है इसलिए किसानों को इसे जरूर इस्तेमाल करना चाहिए।

  • आपके क्षेत्र के नजदीकी ग्रामोफ़ोन दुकान पर उपलब्ध सिलिकोमैक्स गोल्ड का उपयोग स्प्रेडर के रूप में कर सकते हैं।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।

Share

धान में बढ़ेगा तना छेदक का प्रकोप, जानें बचाव के सटीक उपाय

Outbreak of stem borer will increase in paddy

धान की फसल में तना छेदक का प्रकोप देखा जा सकता है। इससे बचाव के लिए आप कई तरीके व दवाइयों का इस्तेमाल कर सकते हैं। आइये बारी बारी से जानते हैं इन सभी तरीकों के बारे में।

  • जैविक नियंत्रण: शिकारियों, परजीवियों और रोगजनकों जैसे प्राकृतिक शत्रुओं का उपयोग करके तना छेदक की संकिया को  नियंत्रित किया जा सकता है।

  • खेती के तरीके: समय पर रोपण, उचित सिंचाई और मिट्टी की उर्वरता प्रबंधन जैसे उचित क्षेत्र प्रबंधन प्रथाओं से तना छेदक के संक्रमण को कम किया जा सकता है।

  • इंटरक्रॉपिंग: धान की फसल के साथ-साथ अन्य फसलें लगाने से तना छेदक कीट की संख्या को कम किया जा सकता है।

  • वानस्पतिक कीटनाशकों का उपयोग: नीम, तुलसी और लहसुन जैसे कुछ पौधों में तना छेदक के विकर्षक गुण पाए गए हैं और इन्हें वनस्पति कीटनाशकों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

  • रासायनिक नियंत्रण के उपाय: उपयोग करें प्रोफेनोवा सुपर (साइपरमैथिन 4% EC + प्रोफेनोफॉस 40% EC) @ 400-600 मिली/एकड़ या फिपनोवा (फिप्रोनिल 5% SC) 400-600 मिली/एकड़ की दर से।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।

Share

डैम्पिंग ऑफ से प्याज में होगी 60 से 75 प्रतिशत तक की हानि

Damping off will cause 60 to 75 percent loss in onion

यह रोग खरीफ मौसम/बरसात के मौसम में अधिक होता है और प्याज की फसल में लगभग 60-75% तक की हानि का कारण बनता है। मिट्टी की नमी और उच्च आर्द्रता के साथ मध्यम तापमान इस रोग को  विकास की ओर ले जाता है। इसके दो तरह के लक्षण देखे जाते हैं। 

  • डैम्पिंग-ऑफ अंकुरण से पहले: बीज और अंकुर मिट्टी से निकलने से पहले ही सड़ जाते हैं।

  • पोस्ट-अंकुरण डैम्पिंग-ऑफ: रोगज़नक़ मिट्टी की सतह पर अंकुरों के निचले  क्षेत्र पर हमला करता है। नीचे वाला हिस्सा सड़ जाता है और अंततः अंकुर गिर कर मर जाता है।

रोग नियंत्रण

अनाज की फसलों के साथ फसल चक्रीकरण और मिट्टी की धूमीकरण या सौरीकरण से खेतों में नमी कम करने में मदद मिल सकती है। उठी हुई क्यारियों का उपयोग करके मिट्टी की जल निकासी में सुधार, और अत्यधिक सिंचाई से बचकर मिट्टी की नमी को नियंत्रित करने से बीमारी को कम करने में मदद मिलती है। कुछ कवकनाशी बीज उपचार या मिट्टी की खाई गंभीर नमी को रोकने में मदद कर सकती है।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।

Share

जानिए मक्के की फसल में ट्राई डिसोल्व मैक्स उपयोग के फायदे और विधि

Tri Dissolve Max in maize crop

ट्राई डिसॉल्व मैक्स में पोषक तत्व का संघटन होता है, इसमें कार्बनिक पदार्थ के साथ ही सूक्ष्म पोषक तत्व भी पाएं जाते हैं, जो फसल विकास के लिए आवश्यक हैं। ट्राई-डिसॉल्व मैक्स में ह्यूमिक एसिड, जैविक कार्बन, समुद्री शैवाल, कैल्शियम, मैग्नीशियम, बोरॉन, मॉलिब्डेनम पाएं जाते हैं। 

मक्के की फसल में ट्राई डिसॉल्व मैक्स के उपयोग  के फायदे

  • यह स्वस्थ और वानस्पतिक फसल वृद्धि को बढ़ावा देता है। 

  • जड़ विकास में मदद करता है। 

  • साथ ही मिट्टी में  विभिन्न पोषक तत्वों की मात्रा भी बढ़ाता है।

उपयोग की विधि 

मिट्टी में आवेदन – ट्राई डिसॉल्व मैक्स @ 400 ग्राम प्रति एकड़, के हिसाब से भुरकाव करें। 

छिड़काव –  ट्राई डिसॉल्व मैक्स  @ 200 ग्राम, प्रति एकड़ के हिसाब से 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

सोयाबीन में गर्डल बीटल का प्रकोप होगा घातक, जानें बचाव के उपाय

Outbreak of girdle beetle will be fatal in soybean
  • सोयाबीन की फसल में अंकुरण की अवस्था में गर्डल बीटल का प्रकोप देखा जाता है। इसके कारण शाखा या तने पर 2 गोलाकार कट की आकृति उभरती है जो इस कीट का एक विशिष्ट लक्षण है।

  • इसका लार्वा सोयाबीन के तने में छेद कर देता है। तने के अंदर का भाग लार्वा द्वारा खा लिया जाता है जिससे तने के भीतर सुरंग बन जाता है। 

  • इसी वजह से पौधे के सभी हिस्से तक पोषक तत्व नहीं पहुँच पाते और पोषण की कमी की वजह से पौधे सूखने लगते हैं।

  • पौधे को जमीन से लगभग 15 से 25 सेमी ऊपर काटा जाता है। मुख्य नुकसान कीट के लार्वा के कारण होता है।

  • कीट का आक्रमण प्रारंभ में जुलाई के अंतिम सप्ताह से अगस्त के पहले पखवाड़े तक शुरू होता है।  कीट जुलाई से अक्टूबर तक सक्रिय रहता है, जिससे फसल को सबसे ज्यादा नुकसान होता है।

  • अगस्त और सितंबर के दौरान इसका भारी प्रकोप से 40% तक उपज में की कमी आ सकती है। 

  • नियंत्रण के लिए प्रोफेनोवा (प्रोफेनोफॉस 50% EC) @ 400 मिली या नोवालक्सम (थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% ZC) @ 50 मिली + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 50 मिली, प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।

Share

धान की फसल में ना होने दें जिंक की कमी, होगी भारी क्षति

Is there zinc deficiency in your paddy crop
  • जिंक की कमी के कई लक्षण होते हैं जो आमतौर पर धान की रोपाई के 2 से 3 सप्ताह बाद दिखाई देते हैं।

  • जिंक की कमी अक्सर बारिश के ठंडे मौसम में होती है और लक्षण आमतौर पर धान की फसल में सिंचाई के तुरंत बाद दिखाई देने लगते हैं।

  • इसकी कमी से पौधों का विकास रुक सकता है, परिपक्वता में देरी होती है और उपज में भी कमी आती है। यह पत्तियों को प्रकाश और गर्मी के प्रति बहुत संवेदनशील बनाता है।

  • इसके लक्षण ज्यादातर नई पत्तियों में देखे जाते हैं जिन पर भूरे रंग के धब्बे और लकीरें विकसित हो जाती हैं।

  • जो पुरानी पत्तियों को पूरी तरह से ढकने के लिए फ्यजू हो सकती हैं, पौधे छोटे रह जाते हैं और गंभीर मामलों में पौधे मर भी सकते हैं।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।

Share

कम समय में पूरी फसल बर्बाद कर देगा फॉल आर्मीवर्म, जानें बचाव के उपाय

Fall armyworm will ruin the entire crop in a short time

फॉल आर्मीवर्म फसलों का खराब करने वाला बहु भक्षी कीड़ा है, जो तंबाकू की इल्लियों की प्रजाति में शामिल है। ये कीड़े टिड्डियों की तरह खाने की तलाश में 100 किलोमीटर से भी ज्यादा का सफर करते हैं। ये कीड़े खेतों में खड़ी फसलों की पत्तियों और भुट्टों को ढकने वाले खोल पर घर बनाते हैं और उन्हें खुरचकर खा जाते हैं। इनके प्रकोप से मक्के की पत्तियों पर सफेद रंग की धारियां भी बनने लगते हैं। वैसे तो ये सिर्फ 30-35 दिनों तक ही जीते हैं, लेकिन एक ही रात में ये फसलों को नुकसान पहुंचाने की ताकत भी रखते हैं। खासकर मादा आर्मीवर्म फसलों में अंडे देकर समस्या को और बढ़ा देती हैं।

फ़ॉल आर्मीवॉर्म की पहचान कैसे करें?

  • वे हरे, गुलाबी, भूरे या काले रंग के होते हैं।

  • उनकी आंखों के बीच एक सफेद रंग का अंग्रेजी के उल्टे Y अक्षर जैसा पैटर्न बना होता है।

  • उनके शरीर के प्रत्येक खंड में ट्रेपेज़ॉइड पैटर्न के धब्बे होते हैं।

रासायनिक नियंत्रण

रासायनिक नियंत्रण में नोवलक्सम (थियामेथोक्सम 12.60% + लैम्ब्डा-साइहलोथ्रिन 09.50% ZC) @ 80 मिली/एकड़ या इमानोवा (एमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG) @ 100 ग्राम/एकड़ या कवर (क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5% W/W SC) @ 60 मिली/एकड़ की दर से इस्तेमाल करें। 

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।

Share