- कपास के पौधों का मुरझाना इस रोग का पहला लक्षण है।
- इसके कारण गंभीर मामलों में सारी पत्तियां झड़ सकती हैं या पौधा गिर सकता है।
- इस रोग में जड़ की छाल पीली पड़ने के बाद फट जाती है जिससे पानी और पोषक तत्व ठीक से पौधे तक नहीं पहुँच पाते हैं।
- इससे पूरा जड़ तंत्र सड़ जाता है और पौधे को आसानी से उखाड़ा जा सकता है।
- शुरुआत में खेत में केवल कुछ पौधें प्रभावित होते हैं, फिर समय के साथ रोग का प्रभाव इन पौधों के चारों तरफ बढ़ता है और धीरे धीरे पूरे खेत में फैल जाता है।
- रोग से बचाव के लिए जैविक माध्यम से 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी या 10 ग्राम स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस प्रति किलो की दर से बीज उपचारित करना चाहिए। या
- बीजों को 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP प्रति किलो की दर से उपचारित करें।
- बचाव हेतु जैविक माध्यम से 4 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में 2 किलो ट्राइकोडर्मा विरिडी मिलाकर एक एकड़ के खेत में बिखेरें।
- रोग नियंत्रण हेतु 400 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मेंकोजेब 63% WP या 300 ग्राम थायोफिनेट मिथाइल 75% WP या 600 ग्राम मेटालैक्सिल 4% + मैन्कोजेब 64% WP 200 लीटर पानी में मिलाकर दवा को पौधे के तने के पास डालें (ड्रेंचिंग करें)।
मित्र फफूंद ट्राइकोडर्मा का कब, कैसे और क्यों करें उपयोग?
- यह एक जैविक फफूंदनाशी/कवकनाशी है जो कई प्रकार के रोगजनकों को मारता है। जिससे फसलों में लगने वाले जड़ सड़न, तना सड़न, उकठा, आर्द्र गलन जैसे रोगों से सुरक्षा होती है।
- ट्राइकोडर्मा सभी प्रकार की फसलों में बीज उपचार, मिट्टी उपचार, जड़ों का उपचार और ड्रेंचिंग के लिए उपयोग किया जा सकता है।
- बीज उपचार के लिए 5-10 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलो दर से काम आता है। यह बीज उपचार बुआई से पहले किया जाता है।
- जड़ों के उपचार के लिए 10 किलो अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद तथा 100 लीटर पानी मिला कर घोल तैयार करें फिर इसमें 1 किलो ट्राइकोडर्मा पाउडर मिला कर तीनों का मिश्रण तैयार कर लें। अब इस मिश्रण में पौध की जड़ों को रोपाई के पहले 10 मिनट के लिए डुबोएं।
- मिट्टी उपचार हेतु 2 किलो ट्राइकोडर्मा पाउडर प्रति एकड़ की दर से 4 टन अच्छी सड़ी गोबर की खाद के साथ मिला खेत में मिलाया जाता है।
- खड़ी फसल में उपयोग करने के लिए एक लीटर पानी में 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर मिलाकर तना क्षेत्र के पास की मिट्टी में ड्रेंचिंग करें।
ग्रामोफ़ोन की सलाह ने किसान को कपास की खेती से दिलवाया डबल प्रॉफिट
भारत की भूमि काफी उपजाऊ है और शायद इसीलिए भारत हमेशा से कृषि प्रधान देश रहा है। किसान भाइयों को उचित मार्गदर्शन मिले तो इसी उपजाऊ भूमि से 100% तक लाभ उठाया जा सकता है। कुछ ऐसा ही लाभ ग्रामोफ़ोन के द्वारा मिले मार्गदर्शन से बड़वानी के किसान भाई श्री शिव कुमार चौहान ने उठाया।
ग्रामोफ़ोन के कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर शिव कुमार ने कपास की उन्नत खेती की और फसल से ज़बरदस्त उत्पादन प्राप्त किया। इस उत्पादन से उन्हें कुल 22 लाख रूपये की कमाई हुई। यहाँ आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की इससे पहले कपास की खेती से इनकी कमाई 11 लाख तक ही रहती थी। पर ग्रामोफ़ोन के साथ जुड़ाव और कृषि विशेषज्ञों के मार्गदर्शन ने कमाई को एक ही साल में दोगुना कर दिया।
ग़ौरतलब है की कपास की खेती के दौरान शिव कुमार ने कई बार ग्रामोफ़ोन के कृषि विशेषज्ञों से सलाह ली और साथ ही बीज, उर्वरक और दवाइयाँ भी मंगाई। आखिर में जब उन्होंने उत्पादन देखा तो वे आश्चर्यचकित रह गए। उनका उत्पादन तो दोगुना हुआ ही साथ ही साथ उनकी उपज की क्वालिटी भी पहले से काफी बेहतर थी।
आज शिव कुमार ग्रामोफ़ोन को धन्यवाद करते हुए सभी किसानों को ग्रामोफ़ोन से जुड़ने की सलाह देते हैं ताकि उनकी ही तरह अन्य किसान भी लाभ उठा पाएं और अपनी कृषि को उन्नत कर पाएं।
आप भी ग्रामोफ़ोन के साथ जुड़ कर अपनी फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। ग्रामोफ़ोन से जुड़ने के लिए आप हमारे टोल फ्री नंबर 18003157566 पर मिस्डकॉल कर सकते हैं या फिर ग्रामोफ़ोन कृषि मित्र एप पर लॉगिन कर सकते हैं।
Shareऑपरेशन ग्रीन के तहत 500 करोड़ का प्रावधान, जानें किन किसानों को मिलेगा फायदा
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना त्रासदी से पैदा हुए हालात से निपटने के लिए आत्मनिर्भर भारत पैकेज के अंतर्गत 20 लाख करोड़ रूपये की घोषणा की थी। इस बड़े पैकेज़ का एक बड़ा हिस्सा कृषि क्षेत्र में लगाया जाने वाला है जिसकी घोषणा बाद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने की। इसी कड़ी में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि ऑपरेशन ग्रीन को और ज्यादा बढ़ावा दिया जाएगा।
बता दें की इस योजना के अंतर्गत पहले टमाटर, प्याज और आलू आते थे पर अब इसके अंतर्गत बाकी सभी फल और सब्जियों को भी लाया जाएगा। इसके अलावा इस योजना के लिए 500 करोड़ रुपए का प्रावधान भी किया जाएगा जो बहुत सारे किसानों को लाभ पहुँचाएगा।
इस योजना से जो खाद्य पदार्थ नष्ट हो जाते हैं उन्हें बचाया जा सकेगा साथ ही साथ किसानों को विपरीत परिस्थितियों में कम मूल्य पर अपनी फसल नहीं बेचनी पड़ेगी। इस योजना के अंतर्गत सभी फल सब्जियों के परिवहन पर 50% और स्टोरेज पर भी 50% की सब्सिडी दी जाएगी।
Shareकपास के फसल की शुरुआती अवस्था में रस चूसक कीटों का प्रबंधन
- कपास की फसल के अंकुरण के 10 से 12 दिनों के बाद रसचूसक कीट थ्रिप्स व एफिड्स का आक्रमण हो सकता है।
- ये कीट कोमल तनों और पत्तियों पर चिपक कर रस चूसते रहते हैं जिससे पौधा कमजोर रह जाता है और वृद्धि नहीं कर पाता है।
- इन थ्रिप्स व एफिड्स से बचाव हेतु 100 ग्राम थायोमेथोक्सोम 25% WG या 100 ग्राम एसिटामिप्रिड 20% SP प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें।
- जैविक माध्यम से बवेरिया बेसियाना 1 किलो प्रति एकड़ का उपयोग करें या उपरोक्त कीटनाशक के साथ मिला कर भी प्रयोग कर सकते हैं।
टमाटर की फसल को नोक की सड़न रोग (ब्लॉसम एन्ड रॉट) से कैसे बचाएं?
- यह एक दैहिक विकार है जो कैल्शियम की कमी से फलों में होता है।
- रोपाई के 15 दिन पहले मुख्य खेत में गोबर की ठीक से सड़ी हुई खाद का उपयोग करें।
- कमी के लक्षण दिखाई देने पर कैल्शियम EDTA @ 150 ग्राम/एकड़ की दर से दो बार छिड़काव करें। या
- मेटालैक्सिल 4% + मैन्कोजेब 64% डब्लू.पी 30 ग्राम और कासुगामायसिन 3% एस.एल 25 मिली प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें तथा चौथे दिन चिलेटेड कैल्सियम 15 ग्राम + बोरोन 15 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
क्या अम्फान का मानसून पर भी होगा असर, वैज्ञानिकों में मतभेद, जानें कब आएगा मानसून
अंफन (अम्फान) चक्रवात इस सदी के पहले सुपर साइक्लोन में परिवर्तित हो गया है और इसके कारण भारत के पूर्वी हिस्से में भीषण बरसात और तूफानी हवाएं चलीं। इस सुपर साइक्लोन का कितना असर आने वाले मानसून पर पड़ेगा इसको लेकर मौसम वैज्ञानिकों के बीच थोड़े मतभेद हैं।
जहाँ कुछ मौसम वैज्ञानिकों ने इस तूफ़ान की वजह से मानसून के आगमन में 4 दिन के देरी की संभावना व्यक्त की थी वहीं मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाली निजी एजेंसी स्काइमेट के वैज्ञानिकों का मनना है कि मॉनसून इस साल भी अपनी रफ्तार पर रहेगा और तय तारीख 1 जून से दो दिन पहले यानी 28 मई को केरल तट पर दस्तक देगा।
स्काइमेट के प्रबंध निदेशक जतिन सिंह ने इस विषय पर कहा की, “दक्षिण-पश्चिम मॉनसून अंडमान सागर और आसपास के इलाकों में अपने समय से 5 दिन पहले पहुंच चुका है। इसको केरल के तट पर पहुंचने में अमूमन 10 दिन और लगते हैं। हालांकि, अंडमान सागर और केरल में मॉनसून के आगमन का देश के बाकी हिस्सों में आने से संबंध नहीं है।”
स्रोत: आजतक
Shareथ्रिप्स के हमले से मिर्च की पौध को कैसे रखें सुरक्षित?
- थ्रिप्स कीट के वयस्क (एडल्ट) और शिशु (निम्फ) दोनों ही रूप पौधें को नुकसान पहुँचाते हैं। इनके वयस्क रूप छोटे, पतले और भूरे रंग के पंख वाले होते है, वही निम्फ सूक्ष्म आकार के पीलापन लिए हुए होते है।
- थ्रिप्स से संक्रमित मिर्च की पत्तियों में झुर्रियां दिखाई देती हैं तथा ये पत्तियाँ ऊपर की ओर मुड़ जाती हैं।
- इसके प्रभाव के प्रारंभिक अवस्था में पौधों का विकास, फूल का उत्पादन एवं फलों का बनना रुक जाता है।
- इसके नियंत्रण के लिए प्रोफेनोफॉस 50% EC @ 30 मिली या एसीफेट 75% SP @ 18 ग्राम या फिप्रोनिल 5% SC @ 25 मिली प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।
जानें क्या है हर्बल खेती जिसे आत्मनिर्भर पैकेज से मिलेंगे 4000 करोड़ रुपये
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना त्रासदी से पैदा हुए हालात से निपटने के लिए आत्मनिर्भर भारत पैकेज के अंतर्गत 20 लाख करोड़ रूपये की घोषणा की थी। इस बड़े पैकेज़ का एक बड़ा हिस्सा कृषि क्षेत्र में लगाया जाने वाला है जिसकी घोषणा बाद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने की। सरकार कृषि के अंतर्गत आने वाले हर छोटे बड़े क्षेत्र पर बड़ी रकम खर्च करने जा रही है। इसी कड़ी में सरकार की तरफ से हर्बल खेती के क्षेत्र में 4000 करोड़ रुपये खर्च करने की बात कही गई है।
क्या है हर्बल खेती?
हर्बल खेती के अंतर्गत किसान उन पौधों की खेती करते हैं जिनका उपयोग आयुर्वेदिक दवाइयों और पर्सनल केयर उत्पाद बनाने में होता है। इसके अंतर्गत अश्वगंधा, तुलसी, एलोवेरा, अतीश, कुठ, कुटकी, करंजा, कपिकाचु, शंखपुष्पी आदि जैसे औषधीय पौधों की खेती होती है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हर्बल खेती की चर्चा करते हुए बताया कि इस क्षेत्र को और बढ़ावा देने के लिए 4000 करोड़ रुपए मंजूर किए गए हैं। उन्होंने बताया की अगले दो साल में 10 लाख हेक्टेयर ज़मीन पर हर्बल फ़सलों की खेती की जाएगी।
Shareजानें कपास की फसल में अंतर-फसल (इंटर क्रॉपिंग) पद्धति के क्या हैं फायदे?
- एक ही खेत में दो या दो से अधिक फ़सलों की अलग-अलग कतारों में एक साथ एक ही समय में खेती करना इंटर क्रॉपिंग या अंतर-फसल पद्धति कहलाती है।
- कपास की पंक्तियों के बीच जो खाली जगह रहती है उनके बीच उथली जड़ वाली और कम समय में तैयार होने वाली मूंग या उड़द जैसी फसल उगाई जा सकती है।
- अंतर-फसल करने से अतिरिक्त मुनाफ़ा भी बढ़ेगा और खाली जगह पर खरपतवार भी नहीं लगेंगे।
इंटरक्रॉपिंग से बरसात के दिनों में मिट्टी का कटाव रोकने में मदद मिलती है। - इस पद्धति द्वारा फ़सलों में विविधता से रोग व कीट प्रकोप से फसल सुरक्षित रहती है।
- यह पद्धति अधिक या कम बारिश में फ़सलों की विफलता के खिलाफ एक बीमा के रूप में कार्य करती है। जिससे किसान जोखिम से बच जाते हैं, क्योंकि एक फसल के नष्ट हो जाने के बाद भी सहायक फसल से उपज मिल जाती है।