- यह बीमारी नर्सरी में दो चरणों में आ सकती है। पहले चरण में अंकुरण से पहले मिर्च का बीज फंगस से सड़ जाता है, दूसरे चरण में अंकुरण के बाद तने का आधार सड़ने लगता है।
- जिससे कमजोर और चिपचिपे तने पर पानी से भरे, कत्थई या काले घाव दिखाई देने लगते है।
- इसके बाद की अवस्था में तना सिकुड़ जाता है और पौधा जमीन पर गिर कर मर जाता है।
- इसके बचाव के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी 5 ग्राम या कार्बोक्सिन 37.5% + थायरम 37.5% WP 3 ग्राम प्रति किलो बीज उपचार करें।
- इसके बचाव के लिए 30 ग्राम थायोफिनेट मिथाइल 70% WP या 30 ग्राम मेटालैक्सील 4% + मैंकोजेब 64% WP नाम की दवा को 15 लीटर पानी में मिलाकर मिट्टी में छिड़काव करें।
महातूफान अम्फान से हो सकती है बारिश और ओलावृष्टि, किसान बरतें ये सावधानियां
बंगाल की खाड़ी से उठे चक्रवाती तूफान अम्फान ने सोमवार को बेहद विकराल रूप ले लिया है। करीब 195 किलोमीटर प्रति घंटे की तीव्र रफ्तार से यह तूफान 20 मई की शाम को पश्चिम बंगाल के तट पर दस्तक देगा। इसका प्रभाव पश्चिम बंगाल के अलावा ओडिशा, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के क्षेत्रों में भी देखने को मिल सकता हैं।
हालांकि मध्यप्रदेश तक पहुँचते पहुँचते तूफान की रफ्तार घटकर 35 से 40 किमी प्रति घंटा रह जाएगी परन्तु इसके बाद भी तेज हवा चलने के साथ बारिश और ओलावृष्टि की संभावना बनी रहेगी। मौसम विभाग का मानना है कि अगले 24 घंटे में यह तूफान मध्यप्रदेश में दस्तक देगा।
बहरहाल 35 से 40 किमी प्रति घंटा वाली तेज हवा के साथ बारिश और ओले कृषि को नुकसान पहुंचा सकते हैं। ग़ौरतलब है की आजकल भारी मात्रा में कृषि उपज मंडी और खरीदी केंद्रों पर पहुँच रही है। खरीदी केंद्रों पर इन दिनों हजारों क्विंटल गेहूं खुले में रखा है जिसे नुकसान हो हो सकता है। साथ तेज हवा के साथ बारिश होने से प्याज सहित अन्य सब्जियों को भी नुकसान हो सकता है।
चक्रवात के असर को देखते हुए किसान बरतें ये सावधानियां
- ग्रीष्म मूंग की फसल के पकने की अवस्था पर तुरंत कटाई शुरू कर दें या जल निकास के उचित प्रबंधन के लिए पास में एक फीट गहरी नाली खोद दें ताकि पानी खेत में ज्यादा देर तक ना ठहरे और ज़मीन जल्दी सुख जाए।
- बारिश होने के बाद या पहले डीकम्पोजर के रूप में 4 किलो स्पीड कम्पोस्ट और 45 किलो यूरिया प्रति एकड़ की दर से खेत में बिखेर दें ताकि फसल अवशेष जल्दी से सड़ कर मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ा सके।
- जहाँ मूंग/उड़द की फसल हरी अवस्था में है वहां इस तूफान के बाद आसमान साफ़ होने पर रोगों से बचाव के लिए 30 ग्राम थायोफिनेट मिथाइल 70% WP या 250 मिली एजॉक्सीस्ट्रोबीन 11% + टेबुकोनाजोल 18.3 SC या 300 ग्राम क्लोरोथेलोनिल 75 WP नामक दवा को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव कर दें।
- इल्ली दिखाई देने पर मूंग/उड़द की फसल 100 मिली लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 4.6% + क्लोरेन्थानिलीप्रोल 9.3% ZC दवा को 200 लीटर पानी में घोल कर प्रति एकड़ छिड़काव कर दें।
- फसल कटाई के बाद उपज को खुले खेत में न रखकर किसी छपरे, कमरे, गोदाम अथवा ऐसी जगह रखें जहाँ बारिश का पानी न आये तथा आसमान साफ होने पर तेज धुप में इन्हे सूखा लें ताकि नमी से मूंग/उड़द के दाने खराब न हों।
- कपास और मिर्च की नर्सरी में भी जल निकास का उचित प्रबंधन करें ताकि खेत में पानी ज्यादा देर तक न रुक सके।
- आसमान के साफ़ होने पर कपास और मिर्च नर्सरी में कवकनाशी (फफूंदनाशी) का प्रयोग करें। जिसमें 30 ग्राम थायोफिनेट मिथाइल 70% WP या 30 ग्राम मेटालैक्सील 4% + मैंकोजेब 64% WP नाम की दवा को 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। और कीट आक्रमण न हो इसके लिए 100 ग्राम थायोमेथोक्सोम 25% WG या 100 ग्राम एसिटामिप्रिड 20% SP प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें।
- सब्जियों के खेत में भी जल निकास का अच्छा प्रबंधन कर लें और रोग से बचाव के लिए 300 ग्राम थायोफिनेट मिथाइल 70% WP या 250 मिली एजॉक्सीस्ट्रोबीन 11% + टेबुकोनाजोल 18.3 SC या 300 ग्राम क्लोरोथेलोनिल 75 WP नामक दवा को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव कर दें।
- सब्जियों की फसल में इल्ली दिखाई देने पर 100 मिली लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 4.6% + क्लोरेन्थानिलीप्रोल 9.3% ZC दवा को 200 लीटर पानी में घोल कर प्रति एकड़ खेत में छिड़काव कर दें।
मध्यप्रदेश में टिड्डी दल की दस्तक, फ़सलों को हो सकता है भारी नुकसान, बरतें सावधानियां
फ़सलों का सबसे बड़ा दुश्मन टिड्डी दल राजस्थान से अब मध्यप्रदेश आने लग गया है। यह जानकारी मंदसौर के कृषि कल्याण विभाग के उप संचालक अजीत राठौर ने दी है। बता दें की मध्यप्रदेश के नीमच जिले में इसका प्रकोप फ़सलों पर देखने को मिलने लग गया है।
बता दें की ये टिड्डियां फ़सलों की हरी पत्तियों को तुरंत खा जाती है। ये टिड्डियां एक साथ बहुत अधिक मात्रा में हमला करती हैं और फसल को बहुत ज्यादा नुकसान पहुँचाती हैं।
ये टिड्डियां दिन में इधर उधर उड़ती रहती है और रात में बैठती है। टिड्डी दल के प्रकोप से बचने के लिए अजीत राठौर ने सभी किसानों से अनुरोध किया है, कि अगर वे टिड्डियों को एक साथ झुंड में अपने खेतों में बैठते हुए शाम के समय देखें तो रात के समय ही खेत में कल्टीवेटर चला दे। इसके अलावा उन्होंने बताया की कल्टीवेटर के पीछे खंबा, लोहे की पाइप या ऐसी ही कोई अन्य वस्तु बांध के चलाएं। ऐसा करने से पीछे की भूमि पुनः समतल हो जायेगी और टिड्डी उसमें दब कर मर जाएंगे।
बता दें की अगर यह टिड्डियां जिंदा रहेंगी तो खेतों की हरियाली खत्म कर देंगी। यह सारे हरे हरे पत्ते खाकर नष्ट कर देते हैं।
Shareग्रीष्मकालीन मूंग की कटाई एवं गहाई कैसे करें?
- मूंग की फसल 65 से 70 दिन में पक जाती है, अर्थात मार्च- अप्रैल माह में बोई गई फसल मई-जून माह तक तैयार हो जाती है।
- इसकी फलियाँ पक कर हल्के भूरे रंग की अथवा काली होने पर कटाई योग्य हो जाती हैं।
- पौधें में फलियाँ असमान रूप से पकती हैं। यदि पौधे की सभी फलियों के पकने की प्रतीक्षा की जाये तो ज्यादा पकी हुई फलियाँ चटकने लगती हैं। अतः फलियों की तुड़ाई हरे रंग से काला रंग होते ही 2-3 बार में कर लें एंव बाद में फसल को पौधें के साथ काट लें।
- अपरिपक्व अवस्था में फलियों की कटाई करने से दानों की उपज एवं गुणवत्ता दोनो खराब हो जाते हैं।
- हॅंसिए से फसल काटकर खेत में एक दिन सुखाने के उपरान्त खलियान में लाकर सुखाते हैं। सुखाने के उपरान्त डडें से पीट कर या वर्तमान में थ्रेसर का उपयोग कर गहाई कार्य किया जा सकता है।
- फसल अवशेष को रोटावेटर चलाकर भूमि में मिला दें ताकि यह हरी खाद का काम करें। इससे मृदा में लगभग 10 से 12 किलो प्रति एकड़ नाइट्रोजन की पूर्ति आगामी फसल के लिए हो जाती है।
अगेती फूलगोभी की नर्सरी में मिट्टी उपचार कैसे करें?
- नर्सरी की क्यारियों को बनाते समय गोबर की खाद 8-10 किलो प्रति वर्ग मीटर की दर से भूमि में मिला दें। आद्रगलन रोग से बचाव हेतु 25 ग्राम ट्राईकोडर्मा विरिडी प्रति वर्ग मीटर की दर से मिलाना चाहिये। या
- आद्रगलन बीमारी द्वारा पौध को होने वाली हानि से बचाने के लिए मेटालैक्सिल 4% + मैन्कोजेब 64% WP का 3 ग्राम या थायोफिनेट मिथाइल 75 WP का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर ड्रेंचिंग करें।
- पौधों को रसचूसक कीटों के आक्रमण से बचाने के लिए थायोमेथोक्सम 25% WG का 0.5 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से नर्सरी तैयारी के समय डालें।
भारतीय कृषि की आधारभूत संरचना के विकास पर खर्च होंगे एक लाख करोड़ रुपये
भारत हमेशा से कृषि प्रधान देश रहा है और आज भी भारत कई फ़सलों के उत्पादन में पूरी दुनिया में नंबर एक का स्थान रखता है। ऐसा तब है जब भारतीय कृषि क्षेत्र का इंफ्रास्ट्रक्चर यानी आधारभूत ढ़ांचा अन्य विकसित देशों की तरह आधुनिक नहीं है। बहरहाल सरकार अब इसी कृषि के आधारभूत ढांचे को और ज्यादा आधुनिक और विकसित बनाने के लिए अग्रसर होने वाली है।
कोरोना महामारी से उपजे आर्थिक संकट से निपटने के लिए पीएम मोदी द्वारा घोषित आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कृषि के आधारभूत ढाँचे के विकास के लिए एक लाख करोड़ रुपये के पैकेज का पिछले शुक्रवार को ऐलान किया है।
एक लाख करोड़ रुपये के इस बड़े पैकेज से देश भर में कृषि क्षेत्र का विकास किया जाएगा। इसके अंतर्गत कोल्ड चेन, वैल्यू चेन विकसित करने में मदद मिलेगी। इसका लाभ किसान उत्पादन संघ, कृषि उद्यमी, स्टार्टअप आदि को फार्मगेट पर मिल सकेगा।
वित्त मंत्री सीतारमण ने पिछले कुछ दिनों में कृषि को लेकर कई बड़ी घोषणाएँ की हैं जो किसानों के मन में नया विश्वास जगा रही हैं। यह घोषणाएँ अगर घरातल पर साकार होती हैं तो इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को भी अच्छी रफ़्तार मिल जायेगी।
Shareकपास की फसल के साथ अंतर फसलों की खेती होगी फायदेमंद
कपास की फसल अन्तरसस्य फसलों के लिए अच्छी मानी जाती हैं क्योंकि कपास की फ़सल शुरुआत में धीरे-धीरे बढ़ती हैं एवं खेत में लम्बे समय तक रहती हैं जो अन्य अन्तरसस्य फसलों के लिए अच्छा माना जाता हैं। अन्तरसस्य का मुख्य उद्देश्य अतिरिक्त फसल के साथ कपास की फसल की अधिकतम उपज प्राप्त करना होता है।
सिंचित क्षेत्रों के लिए अन्तरसस्य फसलें:
- कपास + मिर्च (1: 1 पंक्ति के अनुपात में)
- कपास + प्याज़ (1: 5 पंक्ति के अनुपात में)
- कपास + सोयाबीन (1: 2 पंक्ति के अनुपात में)
- कपास + सनई (हरी खाद के रूप में) (1: 2 पंक्ति के अनुपात में)
अन्तरसस्य फसलें को वर्षा आधारित क्षेत्रों में लगाने के लिए:
- कपास + प्याज़ (1: 5 पंक्ति के अनुपात में)
- कपास + मिर्च (1: 1 पंक्ति के अनुपात में)
- कपास + मूंगफली (1: 3 पंक्ति के अनुपात में)
- कपास + मूंग (1: 3 पंक्ति के अनुपात में)
- कपास + सोयाबीन (1: 3 पंक्ति के अनुपात में)
- कपास + अरहर (1:1 पंक्ति के अनुपात में)
बी.टी. कपास में रिफ्यूजिया का क्या है महत्व
- भारत सरकार की अनुवांशिक अभियांत्रिकी अनुमोदन समिति (जी. ई.ए.सी.) की अनुशंसा के अनुसार कुल बी.टी. क्षेत्र का 20 प्रतिशत अथवा 5 कतारें मुख्य फसल के चारों उसी किस्म का नॉन बी.टी. वाला बीज (रिफ्यूजिया) लगाना अत्यंत आवश्यक है।
- प्रत्येक बी.टी. किस्म के साथ उसका नान बी.टी. (120 ग्राम बीज) या अरहर का बीज उसी पैकेट के साथ आता है।
- बी.टी. किस्म के पौधों में बेसिलस थुरेनजेसिस नामक जीवाणु का जीन समाहित रहता जो कि एक विषैला प्रोटीन उत्पन्न करता हैं। इस कारण इनमें डेन्डू छेदक (बॉल वर्म) कीटों से बचाव की क्षमता विकसित होती हैं।
- रिफ्यूजिया कतार लगाने पर डेन्डू छेदक कीटों का प्रकोप उन तक ही सीमित रहता हैं और यहाँ उनका नियंत्रण आसान होता हैं।
- यदि रिफ्यूजिया नहीं लगाते तो डेन्डू छेदक कीटों में प्रतिरोधकता विकसित हो सकती हैं ऐसी स्थिति में बीटी किस्मों की सार्थकता नहीं रह जाएगी।
म.प्र. में मंडी अधिनियम बदला, किसानों के लिए खुले नए विकल्प, बिचौलियों से मिला छुटकारा
किसानों के पास अपनी उपज को बेचने के लिए बहुत अधिक विकल्प नहीं होते हैं और उन्हें सरकारी मंडियों में ही अपना उत्पादन बेचने को मजबूर होना पड़ता है। इस कारण कई बार उन्हें अपनी उपज के लिए अच्छा दाम भी नहीं मिल पाता है। मध्यप्रदेश सरकार ने किसानों की इन्हीं परेशानियों को समझ कर अब निजी क्षेत्र में मंडियां और नए खरीदी केंद्र आरंभ करने की घोषणा की है। इस घोषणा के साथ साथ अब प्रदेश में मंडी अधिनियम भी बदल गया है।
मंत्रालय में मंडी नियमों में संशोधन पर चर्चा के दौरान प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि ‘किसान भाइयों को उनकी फसल का सही मूल्य दिलाना सरकार का कर्तव्य है। ऐसा करने से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और किसानों को इसका सीधा लाभ मिलेगा। इससे दलालों और बिचौलियों से किसानों को छुटकारा भी मिलेगा। किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए कई विकल्प मिलेंगे। किसान जहां चाहेगा वहां अपनी सुविधानुसार फसल बेच सकेगा।’
स्रोत: मध्यप्रदेश कृषि मंत्रालय
Shareशाकनाशी (चारामार) रसायनों का प्रयोग करते समय रखें ये सावधानियाँ
- उचित नोजल फ्लड जेट या फ्लैट फैन का ही उपयोग करना चाहिए।
- शाकनाशी रसायनों की उचित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। यदि संस्तुति दर से अधिक शाकनाशी का प्रयोग किया जाता है तो खरपतवारों के अतिरिक्त फसल को भी क्षति पहुँच सकती है।
- शाकनाशी रसायनों को उचित समय पर छिड़कना चाहिए। अगर छिड़काव समय से पहले या बाद में किया जाता है तो लाभ की अपेक्षा हानि की संभावना रहती है।
- शाकनाशी रसायनों का घोल तैयार करने के लिए रसायन व पानी की सही मात्रा का उपयोग करना चाहिए।
- एक ही रसायन का बार-बार फसलों पर छिड़काव न करें बल्कि बदल-बदल कर करें अन्यथा खरपतवारों में लगातार उपयोग में लाने वाले शाकनाशी के प्रति प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो सकती है।
- छिड़काव के समय मृदा में पर्याप्त नमी होना चाहिए तथा पूरे खेत में छिड़काव एक समान होना चाहिए।
- छिड़काव के समय मौसम साफ़ होना चाहिए।
- यदि दवा इस्तेमाल से ज्यादा ख़रीद ली गई है तो उसे ठंडे, शुष्क एवं अंधेरे स्थान पर रखें तथा ध्यान रखें कि बच्चे एवं पशु इसके सम्पर्क में न आये।
- प्रयोग करते समय ध्यान रखिए कि रसायन शरीर पर न पड़े। इसके लिए विशेष पोशाक दस्ताने, चश्में का प्रयोग करें अथवा उपलब्ध न होने पर हाथ में पॉलीथीन लपेट लें तथा चेहरे पर गमछा (तौलिया) बांध लें।
- प्रयोग के पश्चात खाली डिब्बों को नष्ट कर मिट्टी में दबा दें। इसे साफ़ कर इसका प्रयोग खाद्य पदार्थों को रखने के लिए कतई न करें।
- छिड़काव समाप्त होने के बाद दवा छिड़कने वाले व्यक्ति साबुन से अच्छी तरह हाथ व मुँह अवश्य धो लें।