कपास की फसल में डेंडू बनते समय उर्वरक प्रबंधन

  • कपास की फसल में डेंडु का निर्माण 50 से 70 दिनों में शुरू हो जाता है।
  • इस अवस्था में पोषण प्रबंधन उचित तरीके से करना बहुत जरूरी होता है।
  • इस हेतु यूरिया- 30 किग्रा/एकड़, MoP(पोटाश) 30 किग्रा/एकड़, मैगनेशियम सल्फेट- 10 किग्रा प्रति एकड़ की दर से उपयोग करना बहुत आवश्यक होता है।
  • डेंडु बनते समय पोषण प्रबंधन करने से डेंडु का बनना एवं फसल की वृद्धि अच्छी होती है और किसान को फसल का सही और ज्यादा उत्पादन प्राप्त होता है।
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प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर क्या होता है, जानें इनका महत्व

Plant growth regulator and its importance
  • प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर फ़सलों के लिए वृद्धि नियामक की तरह कार्य करते हैं।  
  • यह जड़ों के विकास, फलों के विकास, फूलों एवं पत्तियों के विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
  • फ़सलों को विकास के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इनकी पूर्ति प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर के द्वारा की जाती है। 
  • फ़सलों को इनकी बहुत कम मात्रा की आवश्यकता होती है। 
  • यह फ़सलों के उन भागों पर अपना प्रभाव दिखाते हैं जो जड़ विकास, फल विकास, फूल उत्पादन आदि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • जो फसलें छोटी रह जाती हैं उनके विकास में यह सहायक होते हैं और उन फ़सलों के तने की लंबाई में वृद्धि करके फसल की बढ़वार को बढ़ाते हैं।    
  • यह कोशिका विभाज़न को प्रेरित कर बीजों में उत्पन्न प्रसुप्ति को तोड़ने में सहायक होते हैं।
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खरीफ की खेती के लिए किसानों को नाबार्ड देगा 5000 करोड़ रूपये का ऋण

NABARD to provide Rs. 5000 crore loan to farmers for Kharif farming

किसानों को ऋण मुहैया करवाने के लिए अलग अलग वित्तीय संस्थान सामने आती रहती है। इसी कड़ी में नाबार्ड यानी नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट की तरफ से खरीफ फ़सलों की खेती के पूरे देश के किसानों को ऋण मुहैया करवाया जाएगा। इस ऋण के लिए नाबार्ड 5000 करोड़ रुपए का बड़ा फंड मंजूर किया है।

5000 हजार करोड़ रुपए का यह ऋण देश भर के किसानों को सहकारी बैंक, ग्रामीण बैंक, माइक्रो फिननांस संस्था और एनबीएफसी के माध्यम से मिलेगा। ग़ौरतलब है की नाबार्ड ने हाल ही में अपनी 59वीं सालगिरह मनाई है। इसी अवसर पर आयोजित एक समारोह में संस्थान के मुख्य महा प्रबंधक सुब्रत मंल ने यह बातें कही।

सुब्रत मंल ने इस दौरान कहा कि “लॉकडाउन के कारण कर्जदारों से छह माह तक के लिए किस्त वसूलने पर रोक लगा दी गई है। इससे किसानों को राहत मिलेगी। खरीफ मौसम में किसानों को खेती के लिए नकदी का अभाव न हो इसके लिए नाबार्ड ने 5000 हजार करोड़ रुपए मंजूर किए है। यह राशि देश भर के किसानों में कर्ज के तौर पर विभिन्न वित्तीय संस्थाओं के मार्फत वितिरत की जाएगी।

स्रोत: कृषि जागरण

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फसलों की पत्तियों के जलने और झुलसने का कारण

Causes of burning and scorching of crop leaves
  • फसलों की पत्तियाँ जलने के बहुत से कारण हो सकते हैं। 
  • पत्तियाँ जलने का कारण कीट, रोग एवं पोषण की कमी भी हो सकती है।
  • जड़ों में किसी भी प्रकार के कीट जैसे निमेटोड, कटवर्म आदि का प्रकोप होने से जड़ें कट जाती हैं और इस कारण भी पत्तियाँ झड़ने और झुलसने लगती हैं। 
  • पत्तियों के जलने और झुलसने के सबसे आम कारणों में से एक है जड़ों का रोग ग्रस्त हो जाना। कवक के आक्रमण के कारण भी जड़ें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं एवं पत्तियां जलने तथा झुलसने लगती हैं। 
  • पत्तियों के जलने और झुलसने का एक और सामान्य कारण मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी है। इसके कारण पत्तियों के किनारे सूखने लगते हैं। 
  • हवा में कुछ ऐसे प्रदूषक भी पाए जाते हैं जो पत्तियों की सतह पर चिपक जाते हैं और पत्ती के किनारों को जला सकते हैं।   
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मिट्टी में जिप्सम का महत्व

Importance of gypsum in soil
  • जिप्सम मिट्टी के pH मान को स्थिर करने में सहायक है एवं क्षारीय भूमि को सुधारने का कार्य करता है। 
  • यह फ़सल एवं पौधे की जड़ों के अच्छे विकास के लिए भी आवश्यक माना जाता है।  
  • जिप्सम का उपयोग करने से मिट्टी में नाइट्रोज़न, फॉस्फोरस, पोटैशियम, कैल्शियम तथा सल्फर की उपलब्धता  सुनिश्चित होती है।
  • जिप्सम कैल्शियम तथा सल्फर का एक अच्छा स्रोत है।
  • जिप्सम का उपयोग फसल उत्पादन को बढ़ाने के लिए किया जाता है। 
  • इसका उपयोग बुआई के पहले करें और उपयोग करने के बाद खेत में हलकी जुताई अवश्य करें। 
  • जिप्सम की कितनी मात्रा का उपयोग किया जाये यह मिट्टी की प्रकृति पर निर्भर करता है।
  • जिप्सम के उपयोग के समय खेत में अधिक नमी नहीं होना चाहिए तथा इसके भुरकाव के समय हाथ पूरी तरह सूखे होने चाहिए।

 

 

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इन राज्यों में हो सकती है भारी बारिश, जानें अगले 24 घंटे का मौसम पूर्वानुमान

Take precautions related to agriculture during the weather changes

देश के ज्यादातर राज्यों में मानसून सक्रिय हो गया है और इसका प्रभाव भी नजर आने लगा है। मुंबई और गुजरात में पिछले कुछ घंटे से भारी बारिश हुई है। इसके साथ ही केरल के कई इलाकों में भी लगातार बारिश हो रही है। असम में तो बारिश के कारण बाढ़ की स्थिति बन गई है।

मॉनसून की अक्षीय रेखा वर्तमान में फलौदी, अजमेर, उमरिया, अंबिकापुर, जमशेदपुर और दिघा होते हुए बंगाल की खाड़ी के उत्तरी हिस्सों तक बनी हुई है। मध्य प्रदेश के भीतरी भागों पर एक चक्रवाती हवाओं का क्षेत्र भी बना हुआ है।

मौसम विभाग के अनुसार अगले 24 घंटों में तटीय कर्नाटक, केरल और उप-हिमालयी पश्चिम बंगाल में मध्यम से भारी बारिश। कोंकण गोवा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्रों, असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और उत्तरी तटीय आंध्र प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में हल्की से मध्यम बारिश। वहीं जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, गिलगित-बाल्टिस्तान, मुज़फ़्फ़राबाद, उत्तर प्रदेश, उत्तरी बिहार, गंगीय पश्चिम बंगाल, ओडिशा, दक्षिणी और दक्षिण-पश्चिमी मध्य प्रदेश, गुजरात, दक्षिण-पूर्वी राजस्थान, तेलंगाना, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के कुछ हिस्सों में हल्की से मध्यम बारिश हो सकती है।

स्रोत: कृषि जागरण

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बोरॉन का फसलों के लिए महत्व

Boron's importance for crops
  • बोरॉन पौधों में कार्बोहाइड्रेट के निर्माण में सहायक होता है 
  • दलहनी फ़सलों में यह जड़ों में ग्रन्थियों के निर्माण में सहायक होता है।
  • फूलों में परागण निर्माण में भी बोरॉन सहायक होता है। 
  • प्रोटीन संश्लेषण में भी यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
  • इसकी कमी से पौधे बौने रह जाते हैं एवं फ़सलों का विकास बहुत धीरे होता है
  • इसकी कमी से तने में इन्टरनोड अर्थात दो गांठों के बीच की लम्बाई कम रह जाती है, जड़ों का विकास रुक जाता है एवं जड़ तथा तना खोखले रह जाते हैं। 
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कपास की फसल के लिए फॉस्फोरस का महत्व

Importance of phosphorus in cotton crop
  • कपास की फसल के अच्छे उत्पादन के लिए फॉस्फोरस बहुत महत्वपूर्ण तत्व है 
  • फसल के चयापचय क्रिया में यह बहुत अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है 
  • कपास की फसल में फॉस्फोरस के उपयोग से जड़ों का विकास तेज़ी से होता है और पत्तियों में हरापन बना रहता है  
  • कपास की फसल में डेंडू निर्माण के समय फॉस्फोरस की उचित मात्रा की बहुत अधिक आवश्यकता होती है इसके उपयोग से डेंडू का निर्माण बहुत अच्छा एवं समय से होता है। 
  • फॉस्फोरस की कमी के कारण जड़ें कमज़ोर हो जाती हैं कभी कभी तो इसकी कमी से जड़ें सुख भी जाती हैं
  • इसकी कमी से पौधे बौने रह जाते हैं एवं पत्तियां बैगनी रंग की दिखाई देती है
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किसानों की एक-एक इंच भूमि तक पहुँचाई जाएगी पानी, सीएम शिवराज का ऐलान

Water will be delivered to every inch of farmers' land, CM Shivraj announced

किसानों को उन्नत खेती के लिए जो सबसे प्रमुख जरुरत होती है वो है बेहतर सिंचाई साधन की। इसी जरुरत को ध्यान में रखते हुए मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा है की “हम प्रदेश में किसानों की एक-एक इंच भूमि तक पानी पहुंचाने के प्रभावी प्रयास करेंगे।”

मुख्यमंत्री ने इस दौरान कहा की “मध्यप्रदेश में सिंचाई क्षमताएं बढ़ाने के लिए विशेष कार्य हुए हैं। गत वर्षों में हमने प्रदेश में सिंचाई क्षमता को 7.5 लाख हेक्टेयर से 42 लाख हेक्टेयर तक पहुंचाया है, इसमें नाबार्ड का महत्वपूर्ण योगदान है।” इसके बाद ही उन्होंने कहा की आने वाले वक़्त में किसानों की एक-एक इंच भूमि तक सिंचाई की व्यवस्था की जायेगी।

दरअसल मुख्यमंत्री ने ये बातें नाबार्ड के 39वें स्थापना दिवस पर आयोजित किये गए कार्यक्रम में वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से कही। इस कार्यक्रम में मध्यप्रदेश के कई जिले के महिला स्व-सहायता समूह, कृषक उत्पादक संघ के प्रतिनिधि तथा बहुत सारे किसानों शामिल थे।

मुख्यमंत्री ने इस दौरान कहा कि “यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि नाबार्ड द्वारा आज मध्यप्रदेश के लिए 1425 करोड़ रूपये की लिफ्ट इरीगेशन को स्वीकृति दी गई है। साथ ही अन्य परियोजनाओं के लिए 4 हजार करोड़ का ऋण भी स्वीकृत किया है। इसके लिए मैं नाबार्ड की पूरी टीम का पूरे हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।

स्रोत: भास्कर

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मूंगफली की फसल में टिक्का रोग प्रबंधन

Tikka disease management in groundnut crop
  • यह मूंगफली में लगने वाला मुख्य रोग है और यह एक कवक जनित रोग है 
  • इस रोग के लक्षण सबसे पहले पत्तियों पर दिखाई देते हैं 
  • इस रोग के कारण पत्तियों की ऊपरी सतह पर अनियमित आकार के धब्बे बन जाते हैं 
  • कुछ समय बाद पत्तियों की निचली सतह पर भी यह धब्बे बन जाते हैं 
  • संक्रमण के कुछ समय बाद पत्तियां सूख जाती हैं 
  • इस रोग के प्रबंधन के लिए टेबूकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG@ 500 ग्राम/एकड़ या कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या पायरोक्लोस्ट्रोबिन + एपोक्सिकोनाज़ोल @ 300 मिली/एकड़ की दर  से छिड़काव करें
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