प्याज की नर्सरी में पौध गलन रोग

  • खरीफ के मौसम में बारिश के कारण भूमि में अत्यधिक नमी होने के साथ मध्यम तापमान की वजह से इस रोग का प्रकोप होता है।
  • प्याज़ के पौधे मे आर्द्र विगलन (डम्पिंगऑफ) रोग का प्रकोप प्याज़ नर्सरी की अवस्था में देखा जाता है।
  • इस रोग में रोगजनक सबसे पहले पौध के काँलर भाग मे आक्रमण करता है।
  • अतंतः काँलर भाग विगलित हो जाता है और पौध गल कर मर जाते हैं।
  • इस रोग के निवारण के लिए बुआई के समय स्वस्थ बीज का चयन करना चाहिये।
  • इसके अलावा कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 30 ग्राम/पंप या थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W @ 50 ग्राम/पंप या मैनकोज़ेब 64% + मेटालैक्सिल 8% WP @ 60 ग्राम/पंप की दर से छिडकाव करें।
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किसान विकास पत्र में डबल हो जाएगा आपका पैसा, पढ़ें पूरी जानकारी

Your money will be doubled in Kisan Vikas Patra, read full information

डाकघर की तरफ से दी जाने वाली एक छोटी बचत योजना का नाम है किसान विकास पत्र। इसके अंतर्गत किसान अपनी छोटी बचत का निवेश करके अपने पैसे को दोगुना बना सकते हैं।

इस योजना के तहत, आप केवीपी (किसान विकास पत्र) खरीदने के लिए 1,000 रुपये का न्यूनतम निवेश कर सकते हैं और निवेश पर कोई ऊपरी सीमा नहीं है। हालांकि 50,000 रुपये से अधिक के किसी भी निवेश के लिए, पैन डिटेल देना अनिवार्य होता है।

इस योजना के अंतर्गत कोई भी भारतीय नागरिक जिसकी आयु 18 वर्ष से अधिक है, निवेश कर सकता है। इस योजना के लिए कोई ऊपरी आयु सीमा नहीं है।

स्रोत: जागरण

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मध्यप्रदेश में 20 सितम्बर तक सक्रिय रहेगा मानसून, इन जिलों में होगी भारी बारिश

मध्यप्रदेश के लगभग सभी जिलों में पिछले दिनों लगातार हुई बारिश ने जमकर तबाही मचाई है। इस तबाही की वजह से अबतक 11 हजार लोगों का रेस्क्यू किया जा चुका है और 10 की मौत हो चुकी है। इसकी वजह से करीब 7 लाख हेक्टर की फसलों को नुकसान हुआ और राहत बचाव कार्य जारी है। सबसे ज्यादा नुकसान होशंगाबाद, विदिशा, सीहोर, रायसेन और राजगढ़ जिले में हुआ है।

बहरहाल अभी भी बारिश का दौर थमने का नाम नही ले रहा है। सोमवार को फिर मौसम विभाग ने भारी बारिश की चेतावनी जारी की है। अलीराजपुर, बड़वानी, झाबुआ में भारी बारिश की चेतावनी जारी की गई है। रतलाम, नीमच, मंदसौर, धार में गरज-चमक के साथ तेज बौछारें पड़ सकती हैं।

मौसम विभाग की माने तो मानसून 20 सितंबर तक सक्रिय रहने के आसार हैं। अगर सितंबर महीने में 1 दिन भी बारिश न हो तो भी प्रदेश में इस साल पानी की कमी होने की आशंका नहीं है, हालांकि कम दबाव का क्षेत्र रविवार को पश्चिमी मध्य प्रदेश और उससे लगे पूर्वी राजस्थान पर पहुंच गया है। इस सिस्टम से पूर्वी राजस्थान से लगे प्रदेश के कुछ स्थानों पर बरसात हो सकती है।

स्रोत: एमपी ब्रेकिंग न्यूज़

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कपास की फसल में 105 से 115 दिनों में छिड़काव प्रबंधन

Spray management in cotton crop
  • कपास की फसल में बहुत अधिक मात्रा में अलग अलग प्रकार के रस चूसक कीटों एवं इल्लियों का आक्रमण होता है। इन इल्लियों में गुलाबी सुंडी, एफिड, जैसिड, मकड़ी आदि शामिल होते हैं।
  • इन कीटों के साथ-साथ कुछ कवक जनित बीमारियाँ भी कपास की फसल को बहुत अधिक प्रभावित करती हैं। इनमे जीवाणु धब्बा रोग, जड़ गलन, तना गलन, अल्टेरनेरिया पत्ती धब्बा रोग आदि प्रकार के रोग शामिल होती हैं जो कपास की फसल को बहुत नुकसान पहुँचाते हैं।
  • गुलाबी इल्ली के प्रबंधन हेतु प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC@ 400 मिली/एकड़ या फेनप्रोप्रेथ्रिन 10% EC @ 400 मिली/एकड़ या नोवालूरान 5.25% + इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% SC @ 600 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • रस चूसक कीट के प्रबंधन हेतु डायफैनथीयुरॉन 50%WP @ 250 ग्राम/एकड़ या पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% EC @ 250 मिली/एकड़ या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL @ 100 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • कवक जनित रोगों के लिए थायोफिनेट मिथाइल 70% WP @300 ग्राम/एकड़ या हेक्साकोनाज़ोल 5% SC @ 300 मिली/एकड़ या मैंकोजेब 75% WP@ 500 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।
  • जीवाणु जनित रोगों के लिए स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड @ 24 ग्राम/एकड़ या कासुगामायसिन 3% SL @ 400 मिली/एकड़ ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।
  • जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • पोषण प्रबंधन के लिए 00:00:50@ 1 किलो/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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मिर्च की 130 से 150 दिनों की फसल में छिड़काव प्रबंधन

  • मिर्च की फसल 130 से 150 दिन तक अपनी पूर्ण अवस्था में होती है।
  • इस समय मिर्च की फसल में फल की तुड़ाई लगातार होती रहती है एवं साथ ही नए फूल भी आते रहते हैं।
  • इस अवस्था में फूलों को गिरने से बचाने के लिए एवं मिर्च के फलों को सड़ने से बचाने के लिए उचित रसायनों का छिड़काव करना बहुत आवश्यक होता है।
  • यह छिड़काव प्रबंधन दरअसल कवक प्रबंधन, कीट प्रबंधन एवं पोषण प्रबंधन लिए किया जाता है।
  • कवक जनित रोगों के नियंत्रण के लिए मेटिराम 55% + पायराक्लोस्ट्रोबिन 5% WG@ 600 ग्राम/एकड़ या थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W @ 300 ग्राम/एकड़ दर से छिड़काव करें।
  • कीटों के नियंत्रण के लिए पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% EC@ 250 मिली/एकड़ या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 300 मिली/एकड़ या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC @ 60 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • पोषण प्रबंधन के तौर पर 00:00:50 @ 1 किलो/एकड़ की दर से छिड़काव करें और जिब्रेलिक एसिड @ 300 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें एवं अपरिपक्व फूलों को गिरने से बचाने के लिए होमोब्रेसिनोलॉइड@ 100 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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खंडवा के सोयाबीन किसान ने ग्रामोफ़ोन एप से की स्मार्ट खेती, 160 से बढ़कर 200 क्विंटल हुई उपज

हर भारतीय किसान की यही ख़्वाहिश रहती है की उसकी खेती की लागत कम हो और मुनाफ़े में बढ़ोतरी हो। पर हमारे देश के ज्यादातर किसान आज भी पारंपरिक खेती करते हैं जिस वजह से उन्हें कम उत्पादन से ही संतोष करना पड़ता है और कृषि लागत भी बहुत ज्यादा हो जाती है। पर आज के आधुनिक दौर में जो किसान आधुनिक विधियों का इस्तेमाल खेती में करते हैं वे स्मार्ट किसान कहलाते हैं। ग्रामोफ़ोन भी किसानों को स्मार्ट तरीके से खेती करवाने के कार्य में पिछले 4 सालों से लगा हुआ है।

ग्रामोफ़ोन एप से जुड़कर कई किसान भाई स्मार्ट खेती कर रहे हैं। खंडवा के शुभम पटेल भी इन्हीं में से एक हैं। शुभम को इस स्मार्ट खेती के परिणाम भी बहुत अच्छे मिल रहे हैं। सोयाबीन की फसल से उन्हें पहले 160 क्विंटल की उपज होती थी, अब यह उपज बढ़कर 200 क्विंटल हो गई है। इससे उनके मुनाफ़े में भी 41% की वृद्धि हुई है। खेती की लागत में भी 10000 रूपये तक की कमी आई है।

अगर आप भी शुभम जी की तरह अपनी कृषि में इसी प्रकार का बड़ा अंतर लाना चाहते हैं और स्मार्ट किसान बनना चाहते हैं तो आप भी ग्रामोफ़ोन के साथ जुड़ सकते हैं। ग्रामोफ़ोन से जुड़ने के लिए आप या तो टोल फ्री नंबर 18003157566 पर मिस्डकॉल करें या फिर ग्रामोफ़ोन कृषि मित्र एप पर लॉगिन करें।

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सोयाबीन की फसल में तना मक्खी का नियंत्रण

Stem fly
  • सोयाबीन की फसल में तना मक्खी/तना छेदक के प्रकोप का मुख्य कारण फसल का बहुत घना बोया जाना, कीटनाशकों का सही समय एवं सही मात्रा में उपयोग न होना और फसल चक्र ना अपनाना होता है।
  • सोयाबीन की फसल में तना मक्खी के इल्ली का प्रकोप की शुरूआती अवस्था में ही नियंत्रण करना बहुत जरूरी होता है।
  • तना मक्खी के नियंत्रण के लिए बवे कर्ब का छिड़काव समय समय पर करना बहुत आवश्यक होता है।
  • सोयाबीन की फसल में तना मक्खी के नियंत्रण के लिए निम्र उत्पादों का छिड़काव आवश्यक है।
  • थियामेंथोक्साम 25% WG @ 100 ग्राम/एकड़ + फेनप्रोप्रेथ्रिन 10% EC @ 400 मिली/एकड़ या थियामेंथोक्साम 25% WG @ 100 ग्राम/एकड़ + बवेरिया बेसियाना @250 ग्राम/एकड़ या फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ या फेनप्रोप्रेथ्रिन 10% EC @ 400 मिली/एकड़ + बवेरिया बेसियाना @250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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खराब फसल देख मुख्यमंत्री ने दिया फसल बीमा का आश्वासन

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों की खराब हुई फ़सलों का जायजा लिया और कहा कि जब किसान संकट में हो तो ऐसे में मैं बैठ नहीं सकता। उन्होंने फसल बीमा की तारीख बढ़ाकर 31 अगस्त कर दी साथ ही उन्होंने कहा संकट की इस घड़ी में किसानों की पूरी मदद करेंगे।

प्रदेश के खातेगांव क्षेत्र मे खराब हुई सोयाबीन की फसल देखने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि फसल बीमा 31 अगस्त तक किया जाएगा। उन्होंने कहा कि कोरोना ने अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है। मैं किसानों के साथ हूं। दो-तीन दिन में फ़सलों का ज्यादा नुकसान हुआ है। ऐसे में किसान संकट में हैं और मैं घर पर नहीं बैठ सकता था, इसीलिए यहां आया हूं। कल दूसरे जिलों में भी जाकर फ़सलों की स्थिति देख लूंगा।

स्रोत: नई दुनिया

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मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों होगी मूसलाधार बारिश, जानें मौसम पूर्वानुमान

Possibility of heavy rains in many states, Orange alert issued

देश के ज्यादातर हिस्सों में मानसून की बारिश हो रही है और मौसम विभाग ने कहा है कि बारिश की प्रक्रिया अभी कुछ दिन जारी रहेगी। बीते 24 घंटों के दौरान छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के पूर्वी तथा मध्य भागों में भीषण मॉनसून वर्षा दर्ज की गई है।

अगर बात करें अगले 24 घंटों की तो मौसम विभाग के अनुसार आने वाले 24 घंटों के दौरान छत्तीसगढ़ में बारिश की गतिविधियाँ कम हो जाएंगी। हालांकि अगले 12 घंटों तक अच्छी बारिश कुछ स्थानों पर बनी रहेगी।  मध्य प्रदेश के मध्य और पूर्वी हिस्सों में मूसलाधार वर्षा जारी रहने की संभावना है। 

स्रोत: कृषि जागरण

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जैविक कवकनाशकों का महत्त्व

Importance of organic fungicides
  • जैविक कवकनाशक रोगकारक कवकों की वृद्धि को रोकते है या फिर उन्हें मारकर पौधों को रोग मुक्त कर देते हैं।
  • यह पौधों की रासायनिक प्रक्रियाओं को उत्तेजित कर पौधे में रोगरोधी क्षमता को बढ़ाते हैं।
  • इसके प्रयोग से रासायनिक दवाओं, विशेषकर कवकनाशी पर निर्भरता कम होती है।
  • यह मिट्टी में उपयोगी कवकों की संख्या में वर्द्धि करके मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं।
  • जैविक कवकनाशकों का उपयोग करने से फसलों में पोषक तत्वों की अधिकता पायी जाती है।
  • इनका उपयोग मिट्टी उपचार द्वारा किया जाता है। ये कीटनाशकों, वनस्पतिनाशकों से दूषित मिट्टी के जैविक उपचार (बायोरिमेडिएशन) में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
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