- प्याज़ की फसल में पत्तों के किनारे जल जाने की समस्या काफी देखने को मिलती है।
- इसका कारण कवक जनित या कीट जनित रोगों का प्रकोप एवं पोषक तत्व की कमी भी हो सकता है।
- यदि मिट्टी या पत्तों पर किसी भी प्रकार के कवक का आक्रमण होता है तो भी प्याज़ के पत्तों के किनारे जलते हैं।
- यदि फसल की जड़ों में किसी प्रकार के कीट का प्रकोप हो तो भी यह समस्या होती है।
- प्याज़ की फसल में नत्रजन या किसी महत्वपूर्ण पोषक तत्व की यदि कमी हो जाती है तो भी पत्ते जलने की समस्या हो जाती है।
- इसके निवारण के लिए निम्र उत्पादों का उपयोग लाभकरी होता है।
- कवक के निवारण के लिए कीटाजिन 48% EC@ 200 मिली/एकड़ या कासुगामाइसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ की दर उपयोग करें।
- कीट निवारण के लिए प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC@ 400 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG@ 80 ग्राम/एकड़ की दर उपयोग करें।
- पोषक तत्वों के कमी की पूर्ति के लिए सीवीड@ 400 मिली/एकड़ या ह्यूमिक एसिड 100 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
सरकार ने क्यों रद्द किए 43 लाख 90 हजार राशन कार्ड, जानें क्या थी वजह?
राशन कार्ड को लेकर सरकार की तरफ से बहुत बड़ा निर्णय लिया गया है। पब्लिक डिस्ट्रीब्युशन सिस्टम से सरकार ने 43 लाख 90 हजार राशन कार्ड को रद्द कर दिया है। बताया जा रहा है की ये राशन कार्ड फर्जी थे और इसी वजह से इन्हे रद्द कर दिया गया।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत सिर्फ योग्य लाभार्थियों को अनाज मिल सके इसी उद्देश्य से सरकार ने यह बड़ा कदम उठाया है। ख़बरों से अनुसार सरकार ने राशन कार्ड पर बड़ा कदम उठाने से पहले पिछले सात साल तक नजर रखा धोखाधड़ी को रोका जा सके। इसे रोकने में डिजिटलीकरण अभियान ने भी काफी मदद की है।
स्रोत: कृषि जागरण
Shareरबी फसलों में उकठा रोग का नियंत्रण
- यह रोग जीवाणु एवं कवक जनित है जो फसल को काफी नुकसान पहुंचाता है।
- बैक्टीरियल विल्ट संक्रमण के लक्षण संक्रमित पौधों के सभी भागों पर देखे जा सकते हैं।
- इसके कारण पत्तियां पीली हो जाती हैं और धीरे धीरे पूरा पौधा सूख कर मर जाता है।
- इसके कारण फसले गोल घेरे में सूखना शुरू हो जाती है।
- इस रोग का मुख्य कारण मौसम में बदलाव भी है।
- इस रोग के निवारण के लिए मिट्टी उपचार सबसे कारगर उपाय है।
- जैविक उपचार के रूप मायकोराइजा @ 4 किलो/एकड़ या ट्राइकोडर्मा विरिडी @ 1 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार करें।
- ट्राइकोडर्मा विरिडी@ 5 ग्राम/किलो बीज़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 5 ग्राम/किलो बीज़ की दर से बीज़ उपचार करें।
- स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव के रूप में उपयोग करें।
लहसुन एवं प्याज़ की फसल पर बदलते मौसम का प्रभाव
- मौसम में लगातार हो रहे परिवर्तन की वजह से प्याज़ एवं लहसुन की फसल बहुत अधिक प्रभावित हो रही है
- इस प्रभाव के कारण सबसे पहले प्याज़ एवं लहसुन की फसल में पत्ते पीले दिखाई देते हैं एवं किनारों से पत्ते सूख जाते हैं।
- इसके कारण कहीं कहीं फसल में सही एवं समान वृद्धि नहीं होती है।
- प्याज़ एवं लहसुन की फसल में इसके कारण पत्तियों पर अनियमित धब्बे दिखाई देते हैं।
- इन सभी समस्याओं के समाधान के लिए एवं मौसम की विपरीत परिस्थिति के कारण फसल को होने वाले नुकसान से फसल को बचने के लिए कासुगामाइसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या थायोफिनेट मिथाइल 70%W/W@ 300 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।
- सीवीड@ 400 मिली/एकड़ या ह्यूमिक एसिड 100 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
गेहूँ समृद्धि किट से गेहूँ की उपज में होगी वृद्धि, ऐसे करें इसका उपयोग
- ग्रामोफ़ोन की ख़ास पेशकश ‘गेहूँ समृद्धि किट’ का उपयोग मिट्टी उपचार के रूप में किया जाता है।
- इस किट की कुल मात्रा 2.2 किलो है और यह मात्रा एक एकड़ के लिए पर्याप्त होती है।
- इसका उपयोग यूरिया, DAP में मिलाकर किया जा सकता है।
- इसका उपयोग 50 किलो पकी हुई गोबर की खाद, कम्पोस्ट या मिट्टी में भी मिलाकर कर सकते हैं।
- इसके उपयोग के समय खेत में पर्याप्त नमी का होना जरूरी होता है।
- अगर बुआई के समय इस किट का उपयोग नहीं कर पाए हैं तो बुआई के बाद 20-25 दिनों के अंदर इसका उपयोग मिट्टी में भुरकाव के रूप में कर सकते हैं।
करेले की फसल में फॉस्फोरस घोलक जीवाणु का महत्व
- ये जीवाणु फास्फोरस के साथ साथ सूक्ष्म पोषक तत्वों को भी पौधे को उपलब्ध करवाने में सहायक होते हैं।
- यह तेजी से जड़ों का विकास करने में सहायक होते है जिससे पानी और पोषक तत्व आसानी से पौधों को प्राप्त हो जाते हैं।
- पीएसबी बैक्टीरिया कुछ खास प्रकार के जैविक अम्ल बनाते हैं जैसे मैलिक, सक्सेनिक, फ्यूमरिक, साइट्रिक, टार्टरिक और एसिटिक एसिड। ये अम्ल फॉस्फोरस की उपलब्धता को बढ़ाते हैं।
- करेले में रोगों और सूखा के प्रति प्रतिरोध क्षमता को भी यह बढ़ा देते हैं।
- इसका उपयोग करने से 25 से 30% फॉस्फेटिक उर्वरक की आवश्यकता कम होती है।
मंडी भाव: मध्य प्रदेश के अलग अलग मंडियों में क्या है सब्जियों और अन्य अनाजों का भाव?
इंदौर डिविज़न के अंतर्गत आने वाले बडवानी जिले के सेंधवा मंडी में बिना ओटी हुई कपास का भाव 5610 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। इसके अलावा इसी मंडी में टमाटर, पत्ता गोभी, फूलगोभी, बैंगन, भिण्डी, लौकी आदि सब्जियों का भाव क्रमशः 950, 950, 1050, 1100, 1050,1050 रुपये प्रति क्विंटल है।
इसके अलावा उज्जैन डिविज़न के अंतर्गत आने वाले शाजापुर जिले के शुजालपुर कृषि उपज मंडी में गेहूं 1530 रुपये प्रति क्विंटल, कांटा चना 4500 रुपये प्रति क्विंटल, काबुली चना 5000 रुपये प्रति क्विंटल, मौसमी चना 4650 रुपये प्रति क्विंटल, हरा चना 5000 रुपये प्रति क्विंटल और मसूर 5100 रुपये प्रति क्विंटल है।
स्रोत: किसान समाधान
Shareभिंडी की फसल में नाइट्रोज़न बैक्टेरिया का होता है विशेष महत्व
- एज़ोटोबैक्टर एक नाइट्रोज़न बैक्टेरिया है जो स्वतंत्रजीवी नाइट्रोजन स्थिरिकरण वायवीय जीवाणु है।
- यह जमीन में उपलब्ध नाइट्रोज़न को सरल रूप में परिवर्तित करके पौधे को प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं।
- उपलब्ध नाइट्रोज़न का उपयोग भिंडी की फसल के द्वारा किया जाता है जिसके कारण 20% से 25% तक कम नाइट्रोजन उर्वरक की आवश्यकता होती है।
- ये जीवाणु बीजों के अंकुरण प्रतिशत को बढ़ाने में भी मदद करते हैं।
- भिंडी की फसल में तना और जड़ की संख्या और लंबाई बढ़ाने में भी यह सहायक होता है।
गेंदे के फूलों की बढ़ती माँग ने बनाया है इसे एक फायदे की फसल
- गेंदे की फसल कम समय और कम लागत की फसल है इसी वजह से यह एक काफी लोकप्रिय फसल बन गई है।
- इसकी खेती आसान होने के कारण किसानों द्वारा इसे व्यापक रूप से अपनाया जा रहा है। यह दो अलग-अलग रंगो नारंगी एवं पीला होता है। रंग एवं आकर के आधार पर इसकी दो किस्में होती हैं- अफ्रीकी गेंदा और फ्रैंच गेंदा।
- गेंदा की खेती लगभग हर क्षेत्र में की जाती है। यह सबसे महत्त्वपूर्ण फूल की फसल है। इसका उपयोग व्यापक रूप से धार्मिक और सामाजिक कार्यों में किया जाता है।
- गेंदे की खेती कैरोटीन पिगमेंट को प्राप्त करने के लिए भी की जाती है। इसका उपयोग विभिन्न खाद्य पदार्थों में पीले रंग के लिए किया जाता है।
- गेंदे के फूल से प्राप्त तेल का उपयोग इत्र तथा अन्य सौंदर्य प्रसाधन बनाने में किया जाता है साथ ही यह अपने औषधीय गुणों के लिए भी विशेष पहचान रखता है।
- दूसरे फ़सलों में कीटों के प्रकोप को कम करने के लिए इसे फ़सलों के बीच एक रक्षा कवच के रूप में भी लगाया जाता है।
कद्दू वर्गीय फ़सलों में मृदुल आसिता (डाउनी मिल्ड्यू) की पहचान एवं नियंत्रण
- कद्दू वर्गीय सब्जियों में इस बीमारी के प्रभाव से पत्तियों की निचली सतह पर राख के रंग के धब्बे पड़ जाते हैं।
- इसके कारण ऊपरी सतह पर पीले-पीले धब्बे बनते हैं। इससे खीरा, तोरई तथा खरबूज की फसल को ज्यादा हानि होती है।
- इसके अलावा इसके कारण पत्तियों पर भूरापन लिए हुए काले रंग की पर्ते भी चढ़ जाती हैं। यदि गर्मियों के मौसम में बरसात हो जाए तो यह बीमारी बहुत आम हो जाती है।
- इस रोग के नियंत्रण लिए मेटालैक्सिल 4% + मैनकोज़ेब 64% WP @ 600 ग्राम/एकड़ या सल्फर 80% WDG @ 500 ग्राम/एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG@ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम की दर छिड़काव करें।