कपास की फसल में ऐसे करें थ्रिप्स का नियंत्रण

How to control thrips in cotton crop
  • यह छोटे एवं कोमल शरीर वाले हल्के पीले रंग के कीट होते हैं। इस कीट का शिशु एवं वयस्क दोनों ही रूप फसल को नुकसान पहुँचाते हैं।
  • यह पत्तियों की ऊपरी सतह एवं अधिक मात्रा में पत्तियों की निचली सतह पर पाए जाते हैं।
  • ये कीट अपने तेज मुखपत्र के साथ पत्तियों एवं कलियों के साथ फूलो का भी रस चूसते हैं।
  • थ्रिप्स का प्रकोप होने पर पत्तियां किनारे से भूरी होने लग जाती है एवं प्रभावित पौधे की पत्तियां सूखी एवं मुरझाई हुई दिखाई देती है।
  • इसके कारण पत्तियां विकृत हो जाती हैं और ऊपर की ओर कर्ल अर्थात मुड़ जाती हैं।
  • थ्रिप्स के प्रकोप को खत्म करने के लिए फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 300 मिली/एकड़ या स्पिनोसेड 45% SC @ 60 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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मिर्च की फसल में ऐसे करें मकड़ी का प्रबंधन

Mites management in chilli crop
  • मकड़ी के प्रकोप के लक्षण: यह कीट छोटे एवं लाल या सफेद रंग के होते है जो की मिर्च की फसल के कोमल भागों जैसे पत्ती एवं टहनियों पर भारी मात्रा में आक्रमण करते हैं।
  • जिन पौधों पर मकड़ी का प्रकोप होता है उस पौधे पर जाले दिखाई देते हैं। यह कीट पौधे के कोमल भागों का रस चूसकर उनको कमज़ोर कर देते है एवं इसके प्रभाव से पत्तियां मुड़ या सिकुड़ जाती हैं जिसके कारण पौधे की बढ़वार रुक जाती है। अंत में पौधा मर जाता है।
  • मिर्च की फसल में मकड़ी कीट के नियंत्रण के लिए प्रॉपरजाइट 57% EC @ 400 मिली/एकड़ या स्पाइरोमैसीफेन 22.9% SC @200 मिली/एकड़ या एबामेक्टिन 1.9% EC @150 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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मानसून की लुकाछिपी से मध्य प्रदेश के 18 जिले के किसान हो रहे हैं परेशान

Farmers of 18 districts of Madhya Pradesh are getting worried due to the monsoon's Uncertainty

मध्यप्रदेश में मानसून से तय समय पर दस्तक दी थी पर पिछले कुछ दिनों से प्रदेश के कई जिलों में मानसून की आंखमिचौली चल रही है। इस वजह से प्रदेश के लाखों किसान परेशान हैं। किसानों का कहना है की अगर मानसून आने वाले एक हफ्ते में अच्छी बारिश नहीं करवाता है तो उन्हें भारी नुकसान होगा। भोपाल स्थित मौसम विभाग की इकाई की तरफ से बताया गया है की “ग्वालियर-चंबल, बुंदेलखंड और महाकौशल क्षेत्रों में कम बारिश हुई है। गुना में शून्य से 7%, ग्वालियर में शून्य से 45% कम बारिश हुई है।

मध्य प्रदेश के ग्वालियर, भिंड, दतिया, गुना, शिवपुरी, छतरपुर, दमोह, सागर, टीकमगढ़, बालाघाट, जबलपुर, नरसिंहपुर, कटनी, धार, मंदसौर, शाजापुर और होशंगाबाद जैसे जिलों में काफी कम वर्षा हुई है। पिछले साल जुलाई महीने में 643.1 मिमी बारिश मध्यप्रदेश में दर्ज की गई थी वहीं वहीं इस साल 1 जून से अब तक 318.6 मिमी बारिश ही दर्ज की गई है।

स्रोत: लाइव हिंदुस्तान

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मक्का की फसल में सैनिक कीट का प्रबंधन

Management of fall army worm in Maize Crop
  • यह कीट दिन में मिट्टी के ढेलों और पुआल के ढेर में छिप जाता है और रात भर फसलों को खाता रहता है। प्रभावित खेत/फसल में इसकी काफी संख्या देखी जा सकती है। यह कीट बहुत तेज़ी से फसलों को खाता है और काफी कम समय में पूरे खेत की फसल को खाकर ख़त्म कर सकता है। अतः इस कीट का प्रबंधन/नियंत्रण आवश्यक है।
  • जिन क्षेत्रों में सैनिक कीट की संख्या अधिक है उस खेत में इसका प्रबंधन/नियंत्रण तत्काल किया जाना बहुत आवश्यक होता है।
  • इसके नियंत्रण के लिए लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 5% EC 4.6% + क्लोरानिट्रानिलीप्रोल 9.3% ZC 100 मिली/एकड़, या क्लोरानिट्रानिलीप्रोल 18.5% SC @ 60 मिली/एकड़, या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @ 100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना 1.15% WP @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • जिन खेतो में इसका प्रकोप थोड़ी कम मात्रा में हो, तब ऐसी स्थिति में किसान अपने खेत के मेड़ पर या खेत के बीच में पुआल के छोटे छोटे ढेर लगा कर रखें। जब बहुत अधिक धूप पड़ती है तब आर्मी वर्म (सैनिक कीट) छाया की खोज में इन पुआल के ढेर में छिप जाते हैं। शाम को इन पुआल को इकट्ठा करके जला देना चाहिए।

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सोयाबीन की फसल में 20 से 50 दिनों में खरपतवारनाशी का उपयोग

Weed Management in Soybean Crop
  • सोयबीन की फसल खरीफ सीजन की एक मुख्य फसल है एवं लगातार बारिश होने के कारण सोयाबीन की फसल में बुआई के बाद समय समय पर खरपतवार का नियंत्रण करना बहुत आवश्यक हो जाता है।
  • सोयबीन की फसल में बुआई के बाद चौड़ी पत्ती एवं सकरी पत्ती वाले खरपतवार बहुत अधिक मात्रा में उग जाते है।
  • 20 से 50 दिन की अवस्था में सकरी पत्ती वाले खरपतवार ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं अतः इसका रोकथाम करना अतिआवश्यक हो जाता है। इन खरपतवारों के नियंत्रण के लिए निम्र उत्पादों का उपयोग किया जा सकता है।
  • प्रोपेक्यूजाफ़ॉप का इस्तेमाल 10% EC @ 400 मिली/एकड़ की दर से करें। यह एक चुनिंदा खरपतवार नियंत्रक है और इसका उपयोग सकरी पत्ती के खरपतवारों के लिए किया जाता है।
  • क्विज़ालोफ़ॉप इथाइल का इस्तेमाल 5% EC @ 400 मिली/एकड़ की दर से करें। यह एक चुनिंदा खरपतवार नियंत्रक है और इसका उपयोग सकरी पत्ती के खरपतवारों के लिए किया जाता है।

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मध्यप्रदेश के किसानों ने अब तक कर दी 118 लाख हेक्टेयर में खरीफ फ़सलों की बुआई

Monsoon effect: 104% increase in cotton sowing with pulses, oilseed crops

रबी सीजन के मुख्य फसल गेहूं के उपार्जन में सबसे आगे रहने के बाद अब मध्यप्रदेश के किसान खरीफ सीजन में भी बुआई के लिए तय किये गए लक्ष्य को पाते हुए नजर आ रहे हैं। प्रदेश के किसानों ने अब तक 118 लाख हेक्टेयर भूमि में खरीफ फ़सलों की बुआई कर दी है। यह आंकड़ा संपूर्ण निर्धारित लक्ष्य का 80% है। जल्द ही किसान न सिर्फ अपने लक्ष्य को 100% तक प्राप्त करेंगे बल्कि लक्ष्य से आगे भी बढ़ेंगे। ग़ौरतलब है की इस साल प्रदेश में खरीफ सीजन के लिए 146.31 लाख हेक्टेयर बुआई का लक्ष्य रखा गया है।

प्रदेश में खरीफ की मुख्य फसल सोयाबीन की बुआई 97% तक पूर्ण हो चुकी है। सोयाबीन के लिए बुआई के लक्ष्य 57.70 लाख हेक्टेयर निर्धारित किया गया है और अब तक 56.42 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बुआई हो चुकी है। इसके अलावा मूंगफली, तिल, कपास जैसी फ़सलों के भी निर्धारित लक्ष्य को लगभग प्राप्त कर लिया गया है।

स्रोत: नई दुनिया

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कपास की फसल में डेंडू बनते समय उर्वरक प्रबंधन

  • कपास की फसल में डेंडु का निर्माण 50 से 70 दिनों में शुरू हो जाता है।
  • इस अवस्था में पोषण प्रबंधन उचित तरीके से करना बहुत जरूरी होता है।
  • इस हेतु यूरिया- 30 किग्रा/एकड़, MoP(पोटाश) 30 किग्रा/एकड़, मैगनेशियम सल्फेट- 10 किग्रा प्रति एकड़ की दर से उपयोग करना बहुत आवश्यक होता है।
  • डेंडु बनते समय पोषण प्रबंधन करने से डेंडु का बनना एवं फसल की वृद्धि अच्छी होती है और किसान को फसल का सही और ज्यादा उत्पादन प्राप्त होता है।
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प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर क्या होता है, जानें इनका महत्व

Plant growth regulator and its importance
  • प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर फ़सलों के लिए वृद्धि नियामक की तरह कार्य करते हैं।  
  • यह जड़ों के विकास, फलों के विकास, फूलों एवं पत्तियों के विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
  • फ़सलों को विकास के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इनकी पूर्ति प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर के द्वारा की जाती है। 
  • फ़सलों को इनकी बहुत कम मात्रा की आवश्यकता होती है। 
  • यह फ़सलों के उन भागों पर अपना प्रभाव दिखाते हैं जो जड़ विकास, फल विकास, फूल उत्पादन आदि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • जो फसलें छोटी रह जाती हैं उनके विकास में यह सहायक होते हैं और उन फ़सलों के तने की लंबाई में वृद्धि करके फसल की बढ़वार को बढ़ाते हैं।    
  • यह कोशिका विभाज़न को प्रेरित कर बीजों में उत्पन्न प्रसुप्ति को तोड़ने में सहायक होते हैं।
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खरीफ की खेती के लिए किसानों को नाबार्ड देगा 5000 करोड़ रूपये का ऋण

NABARD to provide Rs. 5000 crore loan to farmers for Kharif farming

किसानों को ऋण मुहैया करवाने के लिए अलग अलग वित्तीय संस्थान सामने आती रहती है। इसी कड़ी में नाबार्ड यानी नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट की तरफ से खरीफ फ़सलों की खेती के पूरे देश के किसानों को ऋण मुहैया करवाया जाएगा। इस ऋण के लिए नाबार्ड 5000 करोड़ रुपए का बड़ा फंड मंजूर किया है।

5000 हजार करोड़ रुपए का यह ऋण देश भर के किसानों को सहकारी बैंक, ग्रामीण बैंक, माइक्रो फिननांस संस्था और एनबीएफसी के माध्यम से मिलेगा। ग़ौरतलब है की नाबार्ड ने हाल ही में अपनी 59वीं सालगिरह मनाई है। इसी अवसर पर आयोजित एक समारोह में संस्थान के मुख्य महा प्रबंधक सुब्रत मंल ने यह बातें कही।

सुब्रत मंल ने इस दौरान कहा कि “लॉकडाउन के कारण कर्जदारों से छह माह तक के लिए किस्त वसूलने पर रोक लगा दी गई है। इससे किसानों को राहत मिलेगी। खरीफ मौसम में किसानों को खेती के लिए नकदी का अभाव न हो इसके लिए नाबार्ड ने 5000 हजार करोड़ रुपए मंजूर किए है। यह राशि देश भर के किसानों में कर्ज के तौर पर विभिन्न वित्तीय संस्थाओं के मार्फत वितिरत की जाएगी।

स्रोत: कृषि जागरण

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फसलों की पत्तियों के जलने और झुलसने का कारण

Causes of burning and scorching of crop leaves
  • फसलों की पत्तियाँ जलने के बहुत से कारण हो सकते हैं। 
  • पत्तियाँ जलने का कारण कीट, रोग एवं पोषण की कमी भी हो सकती है।
  • जड़ों में किसी भी प्रकार के कीट जैसे निमेटोड, कटवर्म आदि का प्रकोप होने से जड़ें कट जाती हैं और इस कारण भी पत्तियाँ झड़ने और झुलसने लगती हैं। 
  • पत्तियों के जलने और झुलसने के सबसे आम कारणों में से एक है जड़ों का रोग ग्रस्त हो जाना। कवक के आक्रमण के कारण भी जड़ें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं एवं पत्तियां जलने तथा झुलसने लगती हैं। 
  • पत्तियों के जलने और झुलसने का एक और सामान्य कारण मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी है। इसके कारण पत्तियों के किनारे सूखने लगते हैं। 
  • हवा में कुछ ऐसे प्रदूषक भी पाए जाते हैं जो पत्तियों की सतह पर चिपक जाते हैं और पत्ती के किनारों को जला सकते हैं।   
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