मटर की फसल में बुआई के 15-20 दिनों में फसल वृद्धि के उपाय

Measures for crop growth in 15-20 days of sowing in pea crop
  • मटर दलहनी फसल में आती है, इसलिए मटर की फसल को अधिक नाइट्रोज़न उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है।
  • मटर की फसल में 15-20 दिनों की अवस्था सूक्ष्म पोषक तत्वों की पूर्ति बहुत आवश्यक होती है इसी के साथ कवक रोग एवं कीट से फसल की रक्षा करना बहुत आवश्यक है।
  • इन सभी व्याधियों से मटर की फसल की सुरक्षा के लिए सूक्ष्म पोषक मिश्रण @ 8 किलो/एकड़ + सल्फर 90% @ 5 किलो/एकड़ + जिंक सल्फेट @ 5 किलो/एकड़ की दर मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें।
  • कीटों के नियंत्रण के लिए एसिटामिप्रीड 20% SP@ 100 ग्राम/एकड़ या प्रोफेनोफोस 50% EC @ 500 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • कवक रोग के नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% @ 300 ग्राम/एकड़ या हेक्साकोनाज़ोल 5% SC@ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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फेरोमोन ट्रैप के उपयोग के तरीके एवं लाभ

Methods and benefits of using pheromone trap
  • फेरोमोन एक प्रकार का कीट जाल होता है जो कीड़ों को लुभाने के लिए उपयोग किया जाता है।
  • अलग अलग प्रकार के कीटों के लिए अलग अलग फेरोमोन का उपयोग किया जाता है।
  • इसे खेत के चारो कोने पर लगाया जाता है, हर फेरोमोन में एक कैप्सूल लगा होता है जिसमें नर वयस्क कीट कैद हो जाता है।
  • इस नई तकनीक का लाभ यह है कि किसान अपने खेतों पर कीड़ों की संख्या का आंकलन कर इसका उपयोग कर सकता है।
  • फल मक्खी एवं इल्ली वर्गीय कीट से छुटकारा पाने का सबसे सस्ता जैविक तरीका है कीटों के वयस्क का नियंत्रण, इससे कीट के जीवन चक्र को नियंत्रित किया जा सकता है।
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रस चूसक कीटों का इस प्रकार करें प्रबंधन

Management of sucking pests
  • मौसम में हो रहे परिवर्तनों के कारण रबी के मौसम में लगायी गयी सभी फसलों में रस चूसक कीटों का प्रकोप देखने को मिल सकता है।
  • थ्रिप्स, एफिड, जैसिड, मकड़ी, सफ़ेद मक्खी जैसे कीट फसलों की पत्तियों का रस चूसकर फसल को बहुत नुकसान पहुँचाते हैं।
  • थ्रिप्स नियंत्रण के लिए प्रोफेनोफोस 50% EC@ 500 मिली/एकड़ या एसीफेट 75% SP @ 300 ग्राम/एकड़ लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 300 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • एफिड/जैसिड नियंत्रण के लिए एसीफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% SP@ 400 ग्राम/एकड़ या एसिटामिप्रीड 20% SP@ 100 ग्राम/एकड़ या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL@ 100 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • सफ़ेद मक्खी के नियंत्रण हेतु डायफैनथीयुरॉन 50% WP@ 250 ग्राम/एकड़ या फ्लोनिकामिड 50% WG @ 60 ग्राम/एकड़ या एसिटामिप्रीड 20% SP @ 100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • मकड़ी के नियंत्रण मैच प्रॉपरजाइट 57% EC @ 400 मिली/एकड़ या स्पायरोमैसीफेन 22.9% SC @ 250 मिली/एकड़ या एबामेक्टिन 1.9% EC @ 150 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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पशुओं के लिए उपयोगी आहार रिजका घास

Razaka grass
  • प्रोटीन और विटामिन से भरपूर राजका घास पशुओं के लिए एक उत्तम आहार की जरूरत को पूरा करता है।
  • दुधारू पशुओं को लगातार यह घास खिलाने से दूध उत्पादन में भी वृद्धि के साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।
  • इस घास का बीज अत्यंत छोटा होता है, इसलिए इसकी खेती करने के लिए भूमि की गहरी जुताई कर भुरभुरी मिट्टी वाला, समतल व खरपतवार रहित खेत तैयार करें।
  • इस घास के उपयोग से दुधारू पशुओं में दूध की मात्रा बढ़ती है एवं वर्ष भर पशुओं को हरा चारा उपलब्ध होता रहता है।
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फसल की बुआई के बाद अच्छे अंकुरण के लिए क्या उपाय करें?

What measures taken to increase germination after sowing the crop
  • अधिकतर क्षेत्रों में रबी के मौसम की फसल बुआई लगभग पूरी हो चुकी है।
  • मौसम में हो रहे परिवर्तनों के कारण कई जगहों पर फसल का अंकुरण बहुत अच्छे से नहीं हो पा रहा है।
  • किसान कुछ सरल उपाय अपनाकर फसल के अंकुरण प्रतिशत को बहुत हद तक बढ़ा सकते हैं।
  • बुआई के समय खेत में अंकुरण के लिए पर्याप्त नमी होना बहुत आवश्यक होता है। पर्याप्त नमी में पौधे का अंकुरण अच्छा होता है और पौधों में नई जड़ें बनने लगती हैं।
  • जड़ों के अच्छे विकास एवं बढ़वार के लिए बुआई के 15 -20 दिनों के अन्दर जैविक उत्पाद मैक्समायको 2 किलो/एकड़ का उपयोग मिट्टी उपचार के रूप में करें।
  • इसी के साथ सी वीड @ 300 मिली/एकड़ या ह्यूमिक एसिड @ 100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • यदि मिट्टी में किसी भी प्रकार के कवक जनित रोगों का प्रकोप दिखाई देता है तो उचित कवकनाशी का उपयोग करें।
  • इन उपायों को अपनाकर फसलों का अंकुरण बहुत हद तक बढ़ाया जा सकता है।
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आलू की फसल में बुआई के बाद जड़ सड़न एवं तना गलन रोग से बचाव

How to prevent root rot and stem rot disease after sowing in the potato crop
  • आलू की फसल में कवक जनित एवं जीवाणु जनित रोगों का बहुत अधिक प्रकोप होता है।
  • आलू की फसल इस समय 20 -25 दिनों की अवस्था में है और इस समय फसल में जड़ गलन तना गलन जैसे रोगों का प्रकोप बहुत अधिक होता है।
  • जड़ गलन रोग तापमान के अचानक गिरने व बढ़ने के कारण होता है।
  • जड गलन रोग की फंगस जमीन में पनपती है जिसके प्रकोप से आलू की फसल की जड़ें काली पड़ जाती हैं, जिससे पौधे आवश्यक पोषक तत्व नहीं ले पातें हैं तथा पौधे पीले होकर और मुरझा जाते हैं।
  • तना गलन रोग एक मृदा जनित रोग है और इस रोग में आलू के पौधे का तना काला पड़ कर गल जाता है। इस रोग में तना मध्य भाग से चिपचिपा पानी निकालता है जिसके कारण मुख्य पोषक तत्व पौधे के ऊपरी भाग तक नहीं पहुंच पाते हैं एवं पौधा मर जाता है।
  • इन रोगों के निवारण के लिए एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाजोल 18.3% SC@ 300 मिली/एकड़ या कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75% WP@ 400 ग्राम/एकड़ या थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W@ 300 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।
  • जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
  • फसल की बुआई हमेशा मिट्टी उपचार एवं बीज़ उपचार करने के बाद ही करें।
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गेहूँ की उन्नत खेती के लिए गेहूँ की उन्नत किस्मों का करें चुनाव

Choose advanced varieties of wheat for improved cultivation of wheat

महिको Lok-1: इस किस्म की फसल अवधि 105-115 दिन होती है, पौधे की ऊंचाई माध्यम होती है, बीज़ दर 30-35 किलो/एकड़ तक रहती है, कल्लो की संख्या अच्छी होती है, बाली की लम्बाई अधिक होती है, दानों का आकार बड़ा एवं यह रस्ट रोग के प्रति प्रतिरोधी किस्म होती है। गेहूँ की यह पुरानी प्रजाति जो किसानों में अधिक लोकप्रिय है, इसकी कुल उपज 15-18 कुन्टल/एकड़ तक रहती है।

श्रीराम सुपर 111: इस किस्म की फसल अवधि 115-120 दिन की होती है, पौधे की ऊंचाई 107 सेमी होती है, बीज़ दर 40 किलो/एकड़ तक रहती है, कल्लो की संख्या अधिक होती है, बाली लम्बी तथा प्रति बाली दानो की संख्या अधिक एवं दानों का आकार बड़ा रहता है। यह किस्म रस्ट रोग के प्रति प्रतिरोधी होती है एवं इसमें कुल उपज 22-25 कुन्टल/एकड़ प्राप्त होती है।

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गेहूँ की उन्नत किस्में तथा इनके गुण एवं विशेषताएं

Improved varieties of wheat

महिको गोल: इस किस्म की फसल अवधि 130-135 दिन होती है तथा कुल उपज 18-20 कुन्टल/एकड़ तक रहती है। इस किस्म के पौधे की ऊंचाई 100-110 सेमी होती है, बीज़ दर 40 किलो/एकड़, कल्लो की संख्या 8 से 12, बाली की लम्बाई 14 से 16 सेमी, प्रति बाली दानो की संख्या 70-90 दाने, आकार में बड़े एवं रस्ट रोग के प्रति प्रतिरोधी होते हैं।

महिको मुकुट प्लस MWL 6278: इस किस्म में फसल अवधि 110-115 दिन, बीज़ दर 40 किलो, पौधे की ऊंचाई 105-110 सेमी, कल्लो की संख्या अधिक, अधिक एवं लम्बी बाली, प्रति बाली दानो की संख्या अधिक, दानो का आकार मध्यम बड़ा, चमकदार दाना, रस्ट रोग के प्रति प्रतिरोधी तथा इसकी कुल उपज 15-18 कुन्टल/एकड़ तक प्राप्त होती है।

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चने की फसल कीट प्रबंधन कैसे करें?

Insect management in Gram crop
  • चने की फसल कीट प्रकोप के प्रति बहुत अधिक संवेदनशील होती है क्योंकि चने की फसल रबी के कम तापमान वाले मौसम में लगायी जाती है।
  • चने की फसल में हेलिकोवरपा आर्मीजेरा (पोड बोरर) के प्रकोप का अभी अनुकूल समय है।
  • इसके प्रकोप के कारण चने की पत्तियों को बहुत अधिक नुकसान होता है एवं अविकसित फलों एवं फूलों को भी यह कीट बहुत अधिक नुकसान पहुंचाते हैं।
  • इस कीट के निवारण के लिए क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC@ 60मिली/एकड़ या नोवालूरान 5.25% + इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% SC@ 600 मिली/एकड़ या प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC@ 400 मिली/एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG@ 100 ग्राम/एकड़ की दर छिड़काव करें।
  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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चने की फसल में बुआई पूर्व राइज़ोबियम का उपयोग एवं लाभ

Use and benefits of Rhizobium before sowing in gram crops
  • दलहनी फसलों में राइज़ोबियम बैक्टेरिया का बहुत महत्व है। इस कल्चर में नाइट्रोज़न फिक्सिंग बैक्टीरिया को शामिल किया गया है।
  • यह दलहनी फसल के पौधों की जड़ों में सहजीवी के रूप में रहता है और वायुमंडलीय नाइट्रोजन को सरल रूप में परिवर्तित करता है जिसे पौधे द्वारा इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • यह किसानों की मदद करता है क्योंकि यह पौधों को अच्छी तरह से विकसित करने में मदद करता है। यह पौधों को श्वसन जैसी विभिन्न जीवन प्रक्रियाओं में अच्छा प्रदर्शन करने में मदद करता है।
  • इसका उपयोग बुआई से पहले मिट्टी उपचार एवं बीज़ उपचार के रूप में किया जाता है।
  • 1 किलो राइज़ोबियम कल्चर को 50 किलो FYM या खेत की मिट्टी में मिलाकर उपयोग करें या 5 ग्राम/किलो की दर से बीज़ उपचार करें।
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