मटर की फसल में ऐसे करें पाउडरी मिल्ड्यू का नियंत्रण

Prevention of Powdery Mildew in Pea crop
  • इस रोग के लक्षण सबसे पहले पुरानी पत्तियों पर आते हैं और फिर धीरे धीरे पौधे के अन्य भाग पर दिखाई देते हैं ।

  • इसके कारण मटर की पत्तियों की दोनों सतहों पर पाउडर जमा हो जाता है। इसके बाद कोमल तनों, फली आदि पर चूर्णिल धब्बे बनते हैं। फल या तो लगते नहीं है या छोटे रह जाते हैं।

    रासायनिक उपचार:
    हेक्साकोनाज़ोल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ या सल्फर 80% WDG @ 500 ग्राम/एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG@500 ग्राम/एकड़ या मैक्लोबुटानिल 10% WP @ 100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

    जैविक उपचार:
    जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम की दर छिड़काव करें।

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चने में बुवाई के 20-25 दिन में जरूर करें ये आवश्यक छिड़काव

Necessary spraying to be done in gram in 20 -25 days after sowing
  • चना भारत की सबसे महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। इसका उपयोग मानव उपभोग के साथ-साथ जानवरों को खिलाने के लिए भी किया जाता है। ताजी हरी पत्तियों एवं छोले का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है और भूसे का उपयोग मवेशियों के लिए एक उत्कृष्ट चारे के रूप में किया जाता है।

  • चने की फसल में बुवाई के 20-25 दिन में फसल को कीट व कवक जनित रोगों से बचाव के लिए पहला छिड़काव कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% 300 ग्राम + प्रोफेनोफॉस 40% + साइपरमेथ्रिन 4% EC 400 मिली प्रति एकड़ की दर से करें।

  • फसल की वानस्पतिक वृद्धि एवं विकास के लिए समुद्री शैवाल 400 ग्राम या जिब्रेलिक अम्ल 0.001% 300 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • इन सभी छिड़काव के साथ सिलिकॉन आधारित स्टीकर 5 मिली प्रति 15 लीटर पानी का उपयोग अवश्य करें।

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सब्जी वर्गीय फसलों में मल्चिंग लगाने से मिलते हैं कई फायदें

Benefits of applying mulching in vegetable crops

मल्चिंग एक ऐसी तकनीक है जिसमें फसलों के स्वस्थ विकास को बढ़ावा देने के लिए मिट्टी की सतह को एक मोटी परत से ढक दिया जाता है। यह सब्जी वाली फसलों के स्वस्थ विकास के लिए एक उपयोगी तकनीक है। मल्चिंग के उपयोग से निम्नलिखित लाभ होते हैं:

उन्नत पोषक तत्व प्रतिधारण: मल्चिंग से मिट्टी में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे वे पौधों को अधिक उपलब्ध होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप स्वस्थ और अधिक उत्पादक फसलें प्राप्त होती हैं।

जल संरक्षण: मल्चिंग वाष्पीकरण को कम करके, मिट्टी को अधिक समय तक नम रखने और सिंचाई की आवश्यकता को कम करके पानी के संरक्षण में मदद करता है।

खरपतवार नियंत्रण: मल्चिंग खरपतवार की वृद्धि को कम करता है, एक अवरोध प्रदान करता है जो खरपतवार के अंकुरों को बढ़ने से रोकता है और शाकनाशियों की आवश्यकता को कम करता है।

मृदा अपरदन नियंत्रण: मल्चिंग मिट्टी को एक जगह पर रोककर और मिट्टी पर वर्षा के प्रभाव को कम करके मिट्टी के कटाव को रोकने में मदद करता है।

बेहतर मृदा स्वास्थ्य: मल्चिंग कार्बनिक पदार्थ सामग्री को बढ़ाकर, मिट्टी की संरचना में सुधार, और लाभकारी माइक्रोबियल गतिविधि को बढ़ावा देकर मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद करता है।

फसल उत्पादकता में वृद्धि: मल्चिंग को ऐसा वातावरण प्रदान करके फसल उत्पादकता बढ़ाने के लिए दिखाया गया है जो पौधों की वृद्धि और विकास के लिए अनुकूल है।

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टमाटर की फसल में जीवाणु धब्बा रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय!

Symptoms and control measures of bacterial spot disease in tomato crops!
  • टमाटर की फसल में जीवाणु धब्बा एक विनाशकारी रोग है। यह टमाटर के पौधे के सभी हिस्सों को प्रभावित कर सकता है, जिसमें पत्तियां, तना और फल शामिल हैं।

  • इसके प्रकोप की शुरुआती अवस्था में टमाटर के पत्ती पर पानी से लथपथ गोलाकार धब्बे दिखाई देते हैं।

  • सामान्य तौर पर ये गोलाकार धब्बे गहरे भूरे से काले रंग के पत्तियों और तनों पर होते हैं।  धीरे धीरे ये धब्बे आपस में जुड़कर बड़ा आकार लेते हैं और पत्ती पीली पड़ जाती है।

  • हरे फलों पर यह धब्बे आमतौर पर छोटे, उभरे हुए और छाले जैसे होते हैं। जैसे-जैसे फल पकते हैं, धब्बे बड़े हो जाते हैं और भूरे, खुरदुरे हो जाते हैं। जिससे फल की क्वालिटी ख़राब हो जाती है।

नियंत्रण के उपाय 

इस रोग के नियंत्रण के लिए तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के अनुसार धानुकोप (कॉपर ऑक्सिक्लोराइड 50% डब्ल्यूपी) @ 1 किग्रा + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 50 मिली प्रति एकड़, 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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सिंचाई की नई तकनीक ड्रिप सिंचाई से पानी की हर बूँद का खेतों में होगा इस्तेमाल

Drip irrigation
  • फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने में पानी की उपलब्धता एक महत्वपूर्ण कारक होता है। पर लगातार बढ़ती हुई आबादी और जलवायु परिवर्तन के कारण ज़मीन में उपलब्ध जल की मात्रा कम होती जा रही है।

  • पानी की कमी के कारण लगातार फसलों के उत्पादन में कमी हो रही है। इसी समस्या के समाधान के लिए ड्रिप सिंचाई पद्धति की शुरुआत हुई जो कि, किसानों के लिए एक वरदान साबित हुआ है।

  • इस विधि में पानी को स्रोतों से प्लास्टिक की नलियों द्वारा सीधा पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है और साथ ही उर्वरकों को भी इनके माध्यम से पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है। ऐसा करने की प्रक्रिया फर्टिगेशन कहलाती है।

  • अन्य सिंचाई प्रणाली की तुलना में यह पद्धति 60-70% पानी की बचत करती है।

  • ड्रिप सिंचाई के माध्यम से पौधों को अधिक दक्षता के साथ पोषक तत्त्व उपलब्ध करवाने में मदद मिलती है।

  • ड्रिप सिंचाई के माध्यम से पानी का अप-व्यय (वाष्पीकरण एवं रिसाव के कारण) को रोका जा सकता है।

  • ड्रिप सिंचाई में पानी सीधे फसल की जड़ों में दिया जाता है। जिस कारण आस-पास की जमीन सूखी रहने से खरपतवार विकसित नहीं हो पाते हैं।

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सरसों में विरल अर्थात थिनिंग करना है बेहद जरूरी, जानें इसके फायदे!

Why thinning is necessary in mustard crops
  • सरसों की फसल की बुवाई के 3 से 4 सप्ताह बाद पौधे से पौधे के बीच की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर तक बनाए रखने के लिए अतिरिक्त जन्में पौधों को निकाल देने की प्रक्रिया विरल या थिनिंग कहलाती है।

  • यह प्रक्रिया फसलों में अधिक शाखा आने एवं स्वस्थ पौध विकास के लिए बहुत जरूरी होती है और सभी किसानों को यह जरूर करना चाहिए।

  • इससे प्रक्रिया के उपयोग से फसल में बीमारी एवं कीटों का प्रकोप कम होता है तथा फसल में फली एवं दाने का आकार बड़ा होता है।

  • जो फसलें एक दूसरे से सही दूरी पर नहीं बोई जाती हैं, उनमें पतला करने की यह प्रक्रिया बेहत आवश्यक होती है।

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मटर में पाउडरी मिल्ड्यू की समस्या एवं नियंत्रण के उपाय!

Powdery mildew problem and control measures in pea crop

क्षति के लक्षण: पाउडरी मिल्ड्यू रोग के लक्षण पत्तियों, कलियों, टहनियों व फूलों पर सफेद पाऊडर के रूप में दिखाई देता हैं। पत्तियों की दोनों सतह पर सफेद रंग के छोटे-छोटे धब्बे नजर आते हैं जो धीरे-धीरे फैलकर पत्ती की दोनों सतह पर फैल जाते है। रोगी पत्तियां सख्त होकर मुड़ जाती हैं। अधिक संक्रमण होने पर पत्तियां सूख कर झड़ जाती हैं।

नियंत्रण के उपाय: इस रोग के नियंत्रण के लिए, धानुस्टीन (कार्बेन्डाजिम 50% डब्ल्यूपी) @ 100 ग्राम या वोकोविट (सल्फर 80% डब्ल्यूडीजी) @ 1 किलो + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 50 मिली प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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आलू में सिंचाई प्रबंधन एवं क्रांतिक अवस्थाओं को समझें

Know irrigation management and critical stages in potato crop
  • आलू की फसल में एक बार में थोड़ा पानी कम अंतराल पर देना उपज के लिए अधिक लाभदायक है। 

  • रोपनी के 10 दिन बाद परन्तु 20 दिन के अंदर ही प्रथम सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। ऐसा करने से अकुरण शीघ्र होगा तथा प्रति पौधा कंद की संख्या बढ़ जाती है जिसके कारण उपज में दोगुनी वृद्धि हो जाती है। 

  • प्रथम सिंचाई समय पर करने से खेत में डाले गए खाद का उपयोग फसलों द्वारा प्रारंभ से ही आवश्यकतानुसार होने लगता है। 

  • दो सिंचाई के बीज का समय खेत की मिट्टी की दशा एवं अनुभव के आधार पर घटाया बढ़ाया जा सकता है। फिर भी दो सिंचाई के बीच 20 दिन से ज्यादा का अंतर न रखें।

  • खुदाई के 10 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर दें। ऐसा करने से, खुदाई के समय कंद स्वच्छ निकलेंगे। ध्यान रखें, प्रत्येक सिंचाई में आधी नाली तक ही पानी दें l 

  • वृद्धि के कुछ चरणों (क्रांतिक अवस्थाएँ) में जल प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण है-

1) अंकुरण अवस्था

2) कंद स्थापित अवस्था

3) कंद बढ़वार अवस्था

4) अंतिम फसल अवस्था

5) खुदाई के पूर्व 

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खेत में भूल कर भी न जलाएं पराली, मिट्टी को होंगे कई नुकसान

Damage to soil due to burning in stubble field

  • पराली जलाने से पर्यावरण को बहुत नुकसान होता है और प्रदूषण बढ़ता है।

  • फसल का कचरा जलाने के कारण खेत में पाए जाने वाले लाभकारी सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं।

  • इससे फसलों की पैदावार कम हो जाती है और मिट्टी की उर्वरता में कमी आती है।

  • पराली जलाने कारण वातावरण में मीथेन, कार्बन मोनो ऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड आदि जैसे गैसों का काफी उत्सर्ज़न होता है जिसके कारण वायुमंडल में कोहरा सा छा जाता है।

  • पराली जलाने के कारण मिट्टी में कार्बनिक पदार्थो की सरचना गड़बड़ा जाती है।

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धान की फसल में ब्राउन प्लांट हॉपर यानी भूरा माहू का नियंत्रण

Brown plant hopper will cause heavy loss in paddy crop
  • इस कीट का निम्फ और व्यस्क जो की भूरे से सफेद रंग का होता है पौधे के तने के आधार के पास रहता हैं तथा वहां से पौधे को नुकसान पहुँचाता है।

  • इसके अंडे व वयस्क द्वारा पत्तियों के मुख्य शिरा के पास दिए जाते हैं।

  • अंडो का आकार अर्ध चंद्राकार होता है एवं निम्फ का रंग सफ़ेद से हल्का भूरा रहता है।

  • भूरे माहू द्वारा किया गया नुकसान पौधे में पीलेपन के रूप में दिखाई देता है।

  • ये पौधे का रस चूसते हैं और इसके कारण फसल घेरे में सूख जाती है जिसे हॉपर बर्न कहते हैं।

  • इसके नियंत्रण के लिए थियामेंथोक्साम 75% SG @ 60 ग्राम/एकड़ या बुप्रोफिज़िन 15% + एसीफेट 35 % WP@ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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