कपास में थ्रिप्स का प्रबंधन:-
- थ्रिप्स के शिशु एवं वयस्क पत्तियों के ऊपर एवं नीचे से उत्तकों को फाड़ कर रस चूसते हैं | वे लार उत्तकों में छोड़ते हैं और पौधों की कोशिकाओं का रस को चूसते हैं जिसके परिणामस्वरूप चांदी जैसे या भूरे रंग के उत्तकक्षय धब्बे बनते हैं।
- थ्रिप्स से ग्रसित छोटे पौधे की बढ़वार धीमे हो जाते हैं और पत्तियां के ऊपर चमकदार कर्ल बन जाती हैं और सफेद चमकदार पैच के साथ विकृत हो जाती हैं। पत्तियों की सतह के नीचे जंग जैसे पेंच विकसित होती है|
- फसल के वनस्पति विकास के दौरान अधिक प्रकोप होने पर कली देर से बनती हैं|
- फल वाली अवस्था में अधिक थ्रिप्स लगने से घेटे गिरते हैं और फसल देर से आती है और उपज काम होती है | घेंटे बनते समय थ्रिप्स लगने से रेशे के गुणवत्ता कम हो जाती है |
प्रबंधन:-
- बीज उपचार :- कपास के बीज को इमिडाक्लोप्रिड 60 एफएस @ 10 मिलीग्राम / किलोग्राम या थायोमेथॉक्सम 70 डब्ल्यूएस @ 5 ग्राम / किलोग्राम बीज से उपचारित करने से रस चूसक कीटों का प्रकोप शुरुआती अवस्था में कम हो जाता है |
- कपास की फसल को खरपतवार मुक्त रखने से थ्रिप्स का फैलाव कम होता हैं|
- जब थ्रिप्स का प्रकोप अधिक हो एवं मौसम साफ़ हो तब कीटनाशी का प्रयोग करना चाहिए|
- फसल की शुरुआती अवस्था में खेत पर तैयार नीम सीड करनैल एक्सट्रेक्ट या नीम तेल @ 75 ml प्रति पंप तथा अच्छे फैलाव के लिए इसमें वाशिंग पाउडर 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के अनुसार मिला कर स्प्रे करने से थ्रिप्स की संख्या को रोका हैं|
- कीटनाशक का प्रयोग:- निम्न में से किसी एक कीटनाशक का स्प्रे करें |
- प्रोफेनोफॉस 50% @ 50 मिली प्रति पम्प
- ऐसीटामाप्रीड 20% @ 15 ग्राम प्रति पम्प
- इमीडाक्लोरप्रिड 17.8% @ 7 मिली प्रति पम्प
- थायोमेथॉक्सम 25% @ 5 ग्राम प्रति पम्प
- फिप्रोनिल 5% @ 50 मिली प्रति पम्प
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