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आलू की फसल में रस चूसक कीटों के कारण भारी नुकसान होता है, साथ ही फसल की गुणवत्ता पर भी प्रतिकूल असर होता है। आलू की फसल में मुख्यतः माहू, हरा तेला तथा चेपा, सफ़ेद मक्खी, मकड़ी आदि का प्रकोप होता है। समय रहते इन कीटों पर नियंत्रण करना आवश्यक है।
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माहू, हरा तेला: इसके शिशु एवं वयस्क पत्तियों का रस चूस कर पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं।
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चेपा: यह अति सूक्ष्म कीट काले अथवा पीले रंग के होते हैं। इनके वयस्क तथा शिशु पत्तियों को खुरचकर पत्तियों से रस चूसते हैं।
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सफ़ेद मक्खी: यह आकार में छोटे एवं सफेद रंग के होते हैं जो पत्तियों का रस चूसते हैं। इससे पौधों के विकास में बाधा आती है। सफ़ेद मक्खी विषाणु के लिए वाहक का कार्य करती है।
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माहू, हरा तेला, चेपा, सफ़ेद मक्खी के प्रबंधन के लिए थियामेथोक्सम 25% WP 100 ग्राम या एसीफेट 75% एसपी 300 ग्राम/एकड़ या ऐसिटामिप्रिड 20% एसपी 100 ग्राम या डाइफेंथियूरॉन 50% WP 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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मकड़ी: पत्तियाँ लाल-भूरे रंग की होकर मुरझा कर सूख जाती हैं। इसके नियंत्रण के लिए प्रॉपरजाइट 57% ईसी 400 मिली या एथिओन 50% ईसी 600 मिली या सल्फर 80% डब्ल्यूडीजी 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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आलू के खेतों में प्रति एकड़ 10 येलो स्टिकी ट्रैप लगाकर भी फसल को रस-चूसक कीटों के प्रकोप से बचाया जा सकता है।
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