मक्का की फसल में सैनिक कीट का प्रबंधन

Management of fall army worm in Maize Crop
  • यह कीट दिन में मिट्टी के ढेलों और पुआल के ढेर में छिप जाता है और रात भर फसलों को खाता रहता है। प्रभावित खेत/फसल में इसकी काफी संख्या देखी जा सकती है। यह कीट बहुत तेज़ी से फसलों को खाता है और काफी कम समय में पूरे खेत की फसल को खाकर ख़त्म कर सकता है। अतः इस कीट का प्रबंधन/नियंत्रण आवश्यक है।
  • जिन क्षेत्रों में सैनिक कीट की संख्या अधिक है उस खेत में इसका प्रबंधन/नियंत्रण तत्काल किया जाना बहुत आवश्यक होता है।
  • इसके नियंत्रण के लिए लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 5% EC 4.6% + क्लोरानिट्रानिलीप्रोल 9.3% ZC 100 मिली/एकड़, या क्लोरानिट्रानिलीप्रोल 18.5% SC @ 60 मिली/एकड़, या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @ 100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना 1.15% WP @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • जिन खेतो में इसका प्रकोप थोड़ी कम मात्रा में हो, तब ऐसी स्थिति में किसान अपने खेत के मेड़ पर या खेत के बीच में पुआल के छोटे छोटे ढेर लगा कर रखें। जब बहुत अधिक धूप पड़ती है तब आर्मी वर्म (सैनिक कीट) छाया की खोज में इन पुआल के ढेर में छिप जाते हैं। शाम को इन पुआल को इकट्ठा करके जला देना चाहिए।

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सोयाबीन की फसल में 20 से 50 दिनों में खरपतवारनाशी का उपयोग

Weed Management in Soybean Crop
  • सोयबीन की फसल खरीफ सीजन की एक मुख्य फसल है एवं लगातार बारिश होने के कारण सोयाबीन की फसल में बुआई के बाद समय समय पर खरपतवार का नियंत्रण करना बहुत आवश्यक हो जाता है।
  • सोयबीन की फसल में बुआई के बाद चौड़ी पत्ती एवं सकरी पत्ती वाले खरपतवार बहुत अधिक मात्रा में उग जाते है।
  • 20 से 50 दिन की अवस्था में सकरी पत्ती वाले खरपतवार ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं अतः इसका रोकथाम करना अतिआवश्यक हो जाता है। इन खरपतवारों के नियंत्रण के लिए निम्र उत्पादों का उपयोग किया जा सकता है।
  • प्रोपेक्यूजाफ़ॉप का इस्तेमाल 10% EC @ 400 मिली/एकड़ की दर से करें। यह एक चुनिंदा खरपतवार नियंत्रक है और इसका उपयोग सकरी पत्ती के खरपतवारों के लिए किया जाता है।
  • क्विज़ालोफ़ॉप इथाइल का इस्तेमाल 5% EC @ 400 मिली/एकड़ की दर से करें। यह एक चुनिंदा खरपतवार नियंत्रक है और इसका उपयोग सकरी पत्ती के खरपतवारों के लिए किया जाता है।

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मध्यप्रदेश के किसानों ने अब तक कर दी 118 लाख हेक्टेयर में खरीफ फ़सलों की बुआई

Monsoon effect: 104% increase in cotton sowing with pulses, oilseed crops

रबी सीजन के मुख्य फसल गेहूं के उपार्जन में सबसे आगे रहने के बाद अब मध्यप्रदेश के किसान खरीफ सीजन में भी बुआई के लिए तय किये गए लक्ष्य को पाते हुए नजर आ रहे हैं। प्रदेश के किसानों ने अब तक 118 लाख हेक्टेयर भूमि में खरीफ फ़सलों की बुआई कर दी है। यह आंकड़ा संपूर्ण निर्धारित लक्ष्य का 80% है। जल्द ही किसान न सिर्फ अपने लक्ष्य को 100% तक प्राप्त करेंगे बल्कि लक्ष्य से आगे भी बढ़ेंगे। ग़ौरतलब है की इस साल प्रदेश में खरीफ सीजन के लिए 146.31 लाख हेक्टेयर बुआई का लक्ष्य रखा गया है।

प्रदेश में खरीफ की मुख्य फसल सोयाबीन की बुआई 97% तक पूर्ण हो चुकी है। सोयाबीन के लिए बुआई के लक्ष्य 57.70 लाख हेक्टेयर निर्धारित किया गया है और अब तक 56.42 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बुआई हो चुकी है। इसके अलावा मूंगफली, तिल, कपास जैसी फ़सलों के भी निर्धारित लक्ष्य को लगभग प्राप्त कर लिया गया है।

स्रोत: नई दुनिया

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कपास की फसल में डेंडू बनते समय उर्वरक प्रबंधन

  • कपास की फसल में डेंडु का निर्माण 50 से 70 दिनों में शुरू हो जाता है।
  • इस अवस्था में पोषण प्रबंधन उचित तरीके से करना बहुत जरूरी होता है।
  • इस हेतु यूरिया- 30 किग्रा/एकड़, MoP(पोटाश) 30 किग्रा/एकड़, मैगनेशियम सल्फेट- 10 किग्रा प्रति एकड़ की दर से उपयोग करना बहुत आवश्यक होता है।
  • डेंडु बनते समय पोषण प्रबंधन करने से डेंडु का बनना एवं फसल की वृद्धि अच्छी होती है और किसान को फसल का सही और ज्यादा उत्पादन प्राप्त होता है।
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प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर क्या होता है, जानें इनका महत्व

Plant growth regulator and its importance
  • प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर फ़सलों के लिए वृद्धि नियामक की तरह कार्य करते हैं।  
  • यह जड़ों के विकास, फलों के विकास, फूलों एवं पत्तियों के विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
  • फ़सलों को विकास के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इनकी पूर्ति प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर के द्वारा की जाती है। 
  • फ़सलों को इनकी बहुत कम मात्रा की आवश्यकता होती है। 
  • यह फ़सलों के उन भागों पर अपना प्रभाव दिखाते हैं जो जड़ विकास, फल विकास, फूल उत्पादन आदि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • जो फसलें छोटी रह जाती हैं उनके विकास में यह सहायक होते हैं और उन फ़सलों के तने की लंबाई में वृद्धि करके फसल की बढ़वार को बढ़ाते हैं।    
  • यह कोशिका विभाज़न को प्रेरित कर बीजों में उत्पन्न प्रसुप्ति को तोड़ने में सहायक होते हैं।
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खरीफ की खेती के लिए किसानों को नाबार्ड देगा 5000 करोड़ रूपये का ऋण

NABARD to provide Rs. 5000 crore loan to farmers for Kharif farming

किसानों को ऋण मुहैया करवाने के लिए अलग अलग वित्तीय संस्थान सामने आती रहती है। इसी कड़ी में नाबार्ड यानी नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट की तरफ से खरीफ फ़सलों की खेती के पूरे देश के किसानों को ऋण मुहैया करवाया जाएगा। इस ऋण के लिए नाबार्ड 5000 करोड़ रुपए का बड़ा फंड मंजूर किया है।

5000 हजार करोड़ रुपए का यह ऋण देश भर के किसानों को सहकारी बैंक, ग्रामीण बैंक, माइक्रो फिननांस संस्था और एनबीएफसी के माध्यम से मिलेगा। ग़ौरतलब है की नाबार्ड ने हाल ही में अपनी 59वीं सालगिरह मनाई है। इसी अवसर पर आयोजित एक समारोह में संस्थान के मुख्य महा प्रबंधक सुब्रत मंल ने यह बातें कही।

सुब्रत मंल ने इस दौरान कहा कि “लॉकडाउन के कारण कर्जदारों से छह माह तक के लिए किस्त वसूलने पर रोक लगा दी गई है। इससे किसानों को राहत मिलेगी। खरीफ मौसम में किसानों को खेती के लिए नकदी का अभाव न हो इसके लिए नाबार्ड ने 5000 हजार करोड़ रुपए मंजूर किए है। यह राशि देश भर के किसानों में कर्ज के तौर पर विभिन्न वित्तीय संस्थाओं के मार्फत वितिरत की जाएगी।

स्रोत: कृषि जागरण

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फसलों की पत्तियों के जलने और झुलसने का कारण

Causes of burning and scorching of crop leaves
  • फसलों की पत्तियाँ जलने के बहुत से कारण हो सकते हैं। 
  • पत्तियाँ जलने का कारण कीट, रोग एवं पोषण की कमी भी हो सकती है।
  • जड़ों में किसी भी प्रकार के कीट जैसे निमेटोड, कटवर्म आदि का प्रकोप होने से जड़ें कट जाती हैं और इस कारण भी पत्तियाँ झड़ने और झुलसने लगती हैं। 
  • पत्तियों के जलने और झुलसने के सबसे आम कारणों में से एक है जड़ों का रोग ग्रस्त हो जाना। कवक के आक्रमण के कारण भी जड़ें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं एवं पत्तियां जलने तथा झुलसने लगती हैं। 
  • पत्तियों के जलने और झुलसने का एक और सामान्य कारण मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी है। इसके कारण पत्तियों के किनारे सूखने लगते हैं। 
  • हवा में कुछ ऐसे प्रदूषक भी पाए जाते हैं जो पत्तियों की सतह पर चिपक जाते हैं और पत्ती के किनारों को जला सकते हैं।   
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मिट्टी में जिप्सम का महत्व

Importance of gypsum in soil
  • जिप्सम मिट्टी के pH मान को स्थिर करने में सहायक है एवं क्षारीय भूमि को सुधारने का कार्य करता है। 
  • यह फ़सल एवं पौधे की जड़ों के अच्छे विकास के लिए भी आवश्यक माना जाता है।  
  • जिप्सम का उपयोग करने से मिट्टी में नाइट्रोज़न, फॉस्फोरस, पोटैशियम, कैल्शियम तथा सल्फर की उपलब्धता  सुनिश्चित होती है।
  • जिप्सम कैल्शियम तथा सल्फर का एक अच्छा स्रोत है।
  • जिप्सम का उपयोग फसल उत्पादन को बढ़ाने के लिए किया जाता है। 
  • इसका उपयोग बुआई के पहले करें और उपयोग करने के बाद खेत में हलकी जुताई अवश्य करें। 
  • जिप्सम की कितनी मात्रा का उपयोग किया जाये यह मिट्टी की प्रकृति पर निर्भर करता है।
  • जिप्सम के उपयोग के समय खेत में अधिक नमी नहीं होना चाहिए तथा इसके भुरकाव के समय हाथ पूरी तरह सूखे होने चाहिए।

 

 

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इन राज्यों में हो सकती है भारी बारिश, जानें अगले 24 घंटे का मौसम पूर्वानुमान

Take precautions related to agriculture during the weather changes

देश के ज्यादातर राज्यों में मानसून सक्रिय हो गया है और इसका प्रभाव भी नजर आने लगा है। मुंबई और गुजरात में पिछले कुछ घंटे से भारी बारिश हुई है। इसके साथ ही केरल के कई इलाकों में भी लगातार बारिश हो रही है। असम में तो बारिश के कारण बाढ़ की स्थिति बन गई है।

मॉनसून की अक्षीय रेखा वर्तमान में फलौदी, अजमेर, उमरिया, अंबिकापुर, जमशेदपुर और दिघा होते हुए बंगाल की खाड़ी के उत्तरी हिस्सों तक बनी हुई है। मध्य प्रदेश के भीतरी भागों पर एक चक्रवाती हवाओं का क्षेत्र भी बना हुआ है।

मौसम विभाग के अनुसार अगले 24 घंटों में तटीय कर्नाटक, केरल और उप-हिमालयी पश्चिम बंगाल में मध्यम से भारी बारिश। कोंकण गोवा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्रों, असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और उत्तरी तटीय आंध्र प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में हल्की से मध्यम बारिश। वहीं जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, गिलगित-बाल्टिस्तान, मुज़फ़्फ़राबाद, उत्तर प्रदेश, उत्तरी बिहार, गंगीय पश्चिम बंगाल, ओडिशा, दक्षिणी और दक्षिण-पश्चिमी मध्य प्रदेश, गुजरात, दक्षिण-पूर्वी राजस्थान, तेलंगाना, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के कुछ हिस्सों में हल्की से मध्यम बारिश हो सकती है।

स्रोत: कृषि जागरण

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बोरॉन का फसलों के लिए महत्व

Boron's importance for crops
  • बोरॉन पौधों में कार्बोहाइड्रेट के निर्माण में सहायक होता है 
  • दलहनी फ़सलों में यह जड़ों में ग्रन्थियों के निर्माण में सहायक होता है।
  • फूलों में परागण निर्माण में भी बोरॉन सहायक होता है। 
  • प्रोटीन संश्लेषण में भी यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
  • इसकी कमी से पौधे बौने रह जाते हैं एवं फ़सलों का विकास बहुत धीरे होता है
  • इसकी कमी से तने में इन्टरनोड अर्थात दो गांठों के बीच की लम्बाई कम रह जाती है, जड़ों का विकास रुक जाता है एवं जड़ तथा तना खोखले रह जाते हैं। 
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