- यह रोग देशी एवं अमेरिकन दोनों किस्मों के कपास में लग सकता है।
- आमतौर पर पहली मानसूनी बारिश के बाद पौधा जब 30-40 दिनों की अवस्था में प्रवेश करता है तब इस रोग का प्रकोप होता है।
- जड़ गलन रोग के लक्षण गोलाकार पेच रूप में दिखाई देते हैं। इसके कारण फसल खेत के बीच बीच में गोल घेरे की आकार में सूखने लगता है।
- इससे प्रभावित पौधा अचानक से मुरझाकर धीरे-धीरे सुख जाता है। जब पौधे को उखाड कर देखते है तो वह आसानी से उखड जाता है।
- जड़ गलन रोग में पौधे की जड़ गलने लग जाती है। इस रोग के लगने पर पौधा सूख जाता है। इसके अलावा पत्तियां सूखने के बाद पौधे से गिरती नहीं है बल्कि पौधे पर लगी रहती है।
- इसके प्रकोप से बचने के लिए आप ट्रायकोडर्मा विरिडी के 500 ग्राम की मात्रा का प्रति एकड़ की दर से मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें।
- इसके अलावा कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ब 63%WP@ 500 ग्राम/एकड़ या थियोफैनेट मिथाइल 70% WP@ 500 ग्राम/एकड़ या ट्रायकोडर्मा विरिडी@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से भी उपयोग कर सकते हैं।
मध्यप्रदेश में जमकर हो रही है मानसून की बारिश, अगले 24 घंटे भी होती रहेगी बरसात
शुक्रवार की सुबह से ही मध्यप्रदेश के कई क्षेत्रों में बारिश हो रही है। मानसून के तय समय पर आने और जमकर बारिश करवाने से प्रदेश के किसान भी खुश हैं। राजधानी भोपाल में जून महीने में ही रिकाॅर्डतोड़ बारिश हो रही है। हालात ये हैं कि बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार को जून के बारिश के कोटे 13.08 से करीब दोगुनी यानी 24.68 सेमी बारिश हो चुकी है।
मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार जून महीने में अब तक यानी शुक्रवार रात तक 32.25 सेमी बारिश हो चुकी है। यह अब तक की सामान्य बारिश से 27.65 सेमी अधिक है। मौसम केंद्र के अनुसार शनिवार को भी भोपाल, होशंगाबाद, जबलपुर, रीवा संभागों के कई शहरों में भारी बारिश होने की संभावना है। 20 से 22 जून तक पूर्वी मप्र, भोपाल एवं होशंगाबाद संभागों में बारिश के आसार बने रहेंगे।
स्रोत: भास्कर
Shareग्रामोफ़ोन का मिला साथ तो कपास किसान का मुनाफ़ा 6 लाख से बढ़कर हुआ 12 लाख
भारत सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य पर कई बड़े बड़े निर्णय ले रही है। कुछ ऐसा ही काम साल 2016 से किसानों का सच्चा साथी ग्रामोफ़ोन भी अपने स्तर पर कर रहा है। पिछले 3 से 4 साल के दौरान ग्रामोफ़ोन से जुड़े कई किसानों की आय दोगुनी हुई है। इन्हीं में से एक हैं बड़वानी जिले के अंतर्गत आने वाले राजपुर तहसील के साली गांव के रहने वाले कपास किसान मुकेश मुकाती जी। मुकेश कई साल से कपास की खेती करते आ रहे थे और उन्हें थोड़ा मुनाफ़ा भी हो जाता था। पर वे इससे पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे और इसी बीच वे ग्रामोफ़ोन के संपर्क में आये।
ग्रामोफ़ोन के संपर्क में आने के बाद मुकेश जी ने कपास की खेती के लिए विशेषज्ञों की सलाह लेनी शुरू की और फसल चक्र के दौरान विषेशज्ञों द्वारा बताई गई हर बात का ख्याल रखा। इसका नतीजा यह हुआ की मुकेश जी की कृषि लागत काफी कम हो गई और मुनाफ़ा दोगुना हो गया।
पहले मुकेश अपने 14 एकड़ ज़मीन पर कपास की खेती से 6 लाख तक की कमाई करते थे। पर ग्रामोफ़ोन की सलाह पर जब उन्होंने खेती की तो उनकी कमाई दोगुनी होकर 12 लाख हो गई। यही नहीं खेती की लागत जो पहले 3 लाख तक जाती थी वो अब घटकर 2 लाख 15 हजार रह गई।
अगर आप भी मुकेश की तरह अपनी कृषि में इसी प्रकार का बड़ा अंतर लाना चाहते हैं तो आप भी ग्रामोफ़ोन के साथ जुड़ सकते हैं। ग्रामोफ़ोन से जुड़ने के लिए टोल फ्री नंबर 18003157566 पर मिस्डकॉल करें या फिर ग्रामोफ़ोन कृषि मित्र एप पर लॉगिन करें।
Shareमक्का की खेती में बुआई के समय ऐसे करें उर्वरक प्रबंधन
- दुनिया में मुख्य खाद्यान्न फ़सलों में गेहूँ एवं धान के बाद तीसरी मुख्य फसल के रूप में मक्का आता है।
- इसका मुख्य कारण है इसकी उत्पादकता – क्योंकि इसकी उत्पादन क्षमता गेहूँ एवं धान से 25-100 प्रतिशत तक अधिक है। बुआई हेतु यह खरीफ मौसम में 15 से 30 जून का समय सबसे उपयुक्त होता है।
- अधिकतम लाभ के लिए बुआई से पहले मिट्टी की जांच करवाना आवश्यक होता है। बुआई से पूर्व खेत में 4-6 टन प्रति एकड़ की दर से भली भाँती सड़ी हुई गोबर या FYM को मिला देना चाहिए।
- मक्का की संकर एवं संकुल किस्मों द्वारा अधिकतम उपज लेने के लिए खाद एवं उर्वरक की पर्याप्त मात्रा उपयुक्त समय पर ही देनी चाहिए।
- बुआई से पहले यूरिया @ 25 किलो/एकड़, DAP @ 50 किलो/एकड़ एवं MOP@ 40 किलो/एकड़ की दर से खेत में भुरकाव करें।
- इसी के साथ किसान मक्का समृद्धि किट का उपयोग भी कर सकते हैं। इस किट की कुल मात्रा 2.7 किलो है जो प्रति एकड़ खेत के लिए उपयुक्त है।
- इस किट में आपको वो सबकुछ एक साथ मिलेगा जिसकी जरुरत मक्का की फसल को होती है।
- इस किट में कई उत्पाद संलग्न हैं जिनमें चार प्रकार के बैक्टीरिया ‘नाइट्रोजन फिक्सेशन बैक्टीरिया, पीएसबी और केएमबी से मिलकर बना है। एवं जिंक जो अघुलनशील जिंक को घुलनशील बनाता है और पौधों को यह उपलब्ध करवाता है। यह पौधों की वृद्धि के लिए सबसे महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्वों में से एक है।
- मक्का समृद्धि किट मिट्टी और बीज में होने वाले रोगजनकों को मारता है और फूल, फल, पत्ती आदि की वृद्धि में मदद करता है। साथ ही साथ यह सफेद जड़ के विकास में भी मदद करता है।
धान की फसल में ऐज़ोस्पिरिलम का महत्व
- ऐज़ोस्पिरिलम एक जैविक सूक्ष्मजिव है जो धान की फसल में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- ऐज़ोस्पिरिलम के उपयोग द्वारा चावल की वृद्धि को बढ़ाया जा सकता है।
- चावल के पौधों में अजोस्पिरिलम कोशिकाएं ज़मीन के नीचे से ऊपर के ऊतकों में फैल जाती है।
- एज़ोस्पिरिलम अजैविक तनावों से पौधों की रक्षा करता है एवं पौधे की वृद्धि को बढ़ावा देता है।
- यह एज़ोस्पिरिलम जीवाणु वायुमंडलीय नाइट्रोजन को नाइट्रेट के रूप में धान की फसल को प्रदान करता है।
- रोपाई से पहले या रोपाई के समय प्रयोग करने से धान के पौधों को किसी भी प्रकार की हानि से बचाया जा सकता है।
मप्र में इस तारीख तक होगी समर्थन मूल्य पर चना, मसूर और सरसों की खरीदी
मध्यप्रदेश में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर चना, मसूर और सरसों की खरीदी वर्तमान में जारी है और इस प्रक्रिया की आखिरी तारीख को अब बढ़ा कर 29 जुलाई कर दिया गया है। पहले कृषि विभाग की तरफ से ख़रीद की अंतिम तारीख 15 जून रखी गई थी जिसे अब बढ़ा दिया गया है।
इसके साथ ही यह भी बताया गया है की अब ख़रीद सिर्फ एसएमएस देकर बुलाए जाने वाले किसानों से की जाएगी। ऐसा करने के पीछे का उद्देश्य भंडारण का इंतज़ाम साथ-साथ कर लेना है। इस मसले पर प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल ने किसानों से अपील की है कि वे अपनी फसल को घर में ही रखें। साथ ही उन्होंने कहा की पंजीकृत किसानों से उनकी उपज का दाना-दाना ख़रीदा जाएगा।
ग़ौरतलब है की मध्यप्रदेश में अब तक छह लाख 58 हजार टन चना समर्थन मूल्य पर ख़रीदा जा चुका है और किसानों को इसके मूल्य के तौर पर तीन हजार 700 करोड़ रुपये का भुगतान भी किया जा चुका है। बता दें की 29 मई से यह खरीदी की प्रक्रिया शुरू की गई थी और इसे 90 दिन तक चलाया जाएगा।
स्रोत: नई दुनिया
Shareसोयाबीन की फसल में उकटा या उतसुक रोग का प्रबंधन कैसे करें?
- सोयाबीन की फसल में होने वाला उकटा रोग एक मृदाजनित रोग है।
- अन्य बीमारियों एवं उकटा रोग में अंतर करना मुश्किल हो सकता है।
- यह रोग प्रारंभिक वनस्पति विकास के दौरान ठंडे तापमान और गीली मिट्टी के कारण होता है। इसके प्रारंभिक प्रजनन चरणों के दौरान पौधे संक्रमित होते हैं, लेकिन इसके लक्षण बाद में दिखाई देते हैं।
- विल्टिंग के कारण जड़ों और तने में भूरे रंग का मलिनकिरण हो जाता है, और पत्तियां क्लोरोटिक हो जाती हैं। इस रोग के निवारण के लिए मिट्टी उपचार करना, एवं बीज उपचार बहुत आवश्यक होता है।
- इस रोग के निवारण के लिए कवकनाशी का उपयोग किया जाता है।
- इसके लिए प्रोपिकोनाज़ोल 25% EC या कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या थियोफिनेट मिथाइल 70% WP 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार में ट्राइकोडर्मा विरिडी@ 500ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- अधिक समस्या होने पर डीकंपोजर का भी उपयोग कर सकते है। इसका उपयोग खाली खेत में फसल बुआई से पहले करें।
सोयाबीन की फसल में खरपतवार प्रबंधन
सोयाबीन की फसल खरीफ के मौसम की मुख्य फसल है। खरीफ सीजन में बुआई होने के कारण सोयाबीन की फसल में खरपतवारों का बहुत अधिक प्रकोप होता है। खरपतवारों से निजात पाने के लिए निम्न प्रकार से इसका प्रबंधन करें।
अंकुरण के पहले उपयोग के लिए (बुआई के 1-3 दिन बाद)
इमिजाथपायर 2% + पेंडिथमलिन 30% @ 700मिली/एकड़ या डाइक्लोसुलम 84% WDG @ 12.4 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।
बुआई के 12 से 18 दिन बाद उपयोग के लिए
फॉम्साफेन 11.1% + फ्लुज़िफ़ॉप-पी-ब्यूटाइल 11.1% SL @ 400 मिली/एकड़ फ्यूसिफ़्लेक्स) या क्लोरिमुरोन इथाइल 25% WG @ 15 ग्राम/एकड़ या सोडियम एसिफ़्लुफ़ोरेन 16.5% + क्लोडिनाफ़ॉप प्रॉपगेल 8% EC @ 400 ग्राम/एकड़ या इमिजाथपायर 10% SL @400 मिली/एकड़ या इमिजाथपायर + प्रोपैक्विज़ाफोप @ 800 मिली/एकड़ का उपयोग करें।
मध्य प्रदेश में मानसून प्रवेश के बाद मौसम विभाग ने दी 17 जिलों में भारी बारिश की चेतावनी
मध्यप्रदेश में मानसून ने अपने तय समय पर दस्तक दे दी है और इसके कारण ही प्रदेश के कई जिलों में बारिश और आंधी का दौर देखने को मिल रहा है। मानसून के आगमन के साथ ही सोमवार को राजधानी भोपाल समेत प्रदेश के 22 जिलों में बारिश की शुरुआत हो गई।
मौसम विभाग के अनुसार मानसून होशंगाबाद, इंदौर, शहडोल और जबलपुर संभाग के अधिकतर जिलों में पहुँच चुका है। इसके अलावा उज्जैन संभाग के कुछ जिलों में भी मानसून ने अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है। इसके साथ ही मौसम विभाग की तरफ से आने वाले 24 घंटे के दौरान 17 जिलों में भारी बारिश की चेतावनी भी जारी की गई है। इन जिलों में अनूपपुर, बड़वानी, बैतूल, छिंदवाड़ा, धार, डिंडोरी, होशंगाबाद, हरदा, झाबुआ, खरगौन, नरसिंहपुर, रीवा, सिवनी, शहडोल, सीधी, सिंगरौली, उमरिया शामिल हैं।
आगामी 48 घंटे के दौरान मानूसन के पूर्वी मध्यप्रदेश की तरफ बढ़ने की पूरी संभावना है। मानसून की उत्तरी सीमा कांडला अहदाबाद, इंदौर, नरसिंहपुर, उमरिया एवं बलिया से होकर गुजर रही है।
स्रोत: नई दुनिया
Shareकपास की फसल में थ्रिप्स कीट का प्रबंधन
कपास की फसल में जब मानसून की पहली बारिश हो जाती है तब कपास में रस चूसक कीटों का प्रकोप शुरू होने लगता है।
यह कीट पत्तियों का रस चूसते हैं और अपने तेज मुखपत्र के साथ पत्तियों एवं कलियों का रस चूसते हैं।
इसके प्रकोप से पत्तियां किनारों पर भूरी हो सकती हैं, या विकृत हो सकती हैं और ऊपर की ओर कर्ल कर सकती हैं। इस कारण पत्तियां मुरझा जाती हैं और अन्त में पौधा मर जाता है।
इन कीटों में मुख्य रूप से थ्रिप्स, एफिड, जैसिड का प्रकोप बहुत अधिक होता है।
इन कीटों के प्रबंधन के लिए निम्र रसायनों का उपयोग लाभकरी होता है
- प्रोफेनोफोस 50% EC @ 400 मिली/एकड़ या एबामेक्टिन 1.9 % EC@ 150 मिली/एकड़ या स्पेनोसेड 45% SC @ 75मिली/एकड़
- लैंबडा सायलोथ्रिन 4.9% CS @ 200 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़
- ऐसीफेट50 %+ इमिडाक्लोरोप्रिड1.8 %SP@ 400 ग्राम/एकड़
- एसिटामिप्रिड 20% SP@ 100 ग्राम/एकड़
- मेट्राज़ियम @ किलो/एकड़ या बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
Share