Control of Fruit Rot in Brinjal

रोकथाम :-

  • इस रोग से ग्रसित पौधे के पत्तियों  एवं अन्य भागो के तोड़कर नष्ट कर दे |
  • फसल पर मेंकोजेब @ 400 ग्राम/एकड़, या जिनेब @ 400 ग्राम या केप्टॉन+ हेक्साकोनाज़ोल @ 250 ग्राम/ एकड़ की दर से 10 दिनों के अन्तराल से छिडकाव करें|

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Fruit Rot in Brinjal

लक्षण:-

  • अत्यधिक नमी इस रोग के विकास में सहायक होती है |
  • फलों पर जलीय सूखे हुये धब्बे दिखाई देते है जो बाद में धीरे धीरे दूसरे फलो में फैल जाते है |
  • प्रभावित फलो की ऊपरी सतह भूरे रंग की हो जाती है जिस पर सफ़ेद रंग की कवक का निर्माण हो जाता है |

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Control of Eriophyid mite in Garlic and Onion

  • व्यस्क एवं अवयस्क दोनों ही कोमल पत्तियों एवं कलियों के बीच में लहसुन एवं प्याज में रस चूसते है| पत्तियाँ पुरी नहीं खुल पाती है पूरे पौधे की छोटा, टेड़ा, घुमावदार एवं पीले धब्बे दार हो जाता है|
  • धब्बे अधिकाँश पत्तियों के किनारों पर दिखाई देते है|
  • माइटस के प्रभावशाली नियंत्रण के लिए,  घुलनशील सल्फर 80% का 3 ग्राम प्रति लीटर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।  
  • अधिक प्रकोप होने पर प्रोपरजाईट 57% का  400 मिली. प्रति एकड़ के अनुसार 7 दिन के अंतराल से दो बार छिड़काव करें |

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Powdery Mildew of Pea

लक्षण:-

  • पहले पुरानी पत्तियों पर आते है इसके बाद पोधे के अन्य भाग पर|
  • पत्तियों की दोनी सतहों पर चूर्ण बनता है|
  • इसके बाद कोमल तनों, फली आदि पर चूर्णिल धब्बे बनते है |
  • पौधे की सतह पर सफ़ेद चूर्ण दिखाई देता है| फल या तो लगते नहीं है या छोटे रह जाते है|
  • अंतिम अवस्था में चूर्णिल वृद्धि फलियों को ढक लेती है जिससे वह बाज़ार में बिकने के लायक नहीं रहते है|

प्रबन्धन:-

  • देर से बुआई ना करे|
  • प्रतिरोधी किस्म का उपयोग करे जैसे अर्का अजीत, PSM-5, जवाहर मटर-4, जेपी-83, जेआरएस-14 |
  • घुलनशील सल्फर 50% WP 3 ग्राम प्रति लीटर पानी या डायनोकेप 48% ईसी 2 मिली प्रति ली पानी का स्प्रे दो से तीन बार 10 दिन के अंतराल में करे |

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Seed Treatment of Chickpea (Gram)

  • चने को बुआई से पहले फफुद जनित बिमारियों जैसे जड़ सडन, कोलर सडन एवं पाद गलन से बचने के लिए कार्बोक्सिन 37.5% + थायरम 37.5% या कार्बेन्डाजिम 12% + मेंकोजेब 63% 2 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित करना चाहिए |

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Suitable climate and soil for Papaya Farming

पपीता की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु –

  • पपीता उष्णकटिबंधीय फसल होने के कारण उच्च तापमान और अधिक आर्द्रता वाला मौसम पसंद करता है |
  • यह ठंड और तूफान के लिए बहुत संवेदनशील है।
  • अधिक लम्बे दिन पपीते के स्वाद और गुणवत्ता को बढ़ाता है|
  • फूलों के दौरान, अधिक बारिश हानिकारक होती है और भारी क्षति का कारण बनती है।

मिट्टी-  

  • पपीता विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है|
  • हालांकि, बहुत उथली और बहुत गहरी काली  मिट्टी उपयुक्त नहीं हैं|
  • अच्छे जल निकास वाली एवं चूना रहित मृदा पपीता के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है |  

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Importance of Microbes in Soil (ZnSB )

  • भारत की कृषि योग्य भूमि में 50% तक ज़िंक की कमी पाई जाती हैं 
  • जिंक एक अनिवार्य सुक्ष्म पोषक तत्व है जो पौधों के विकास के लिए आवश्यक हैं। परन्तु यह मिट्टी में अनुपलब्ध रूप में रहता हैं जिसे पौधे आसानी से उपयोग नहीं कर पाते |
  • यह जीवाणु पौधों को जिंक उपलब्ध करवाते हैं परिणामस्वरूप यह फसलों में रोग’ का नियंत्रण करते हैं, फसल की उपज और गुणवत्ता की वृद्धि में सहायक होते हैं, मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार और हार्मोन की सक्रियता को बढ़ाते हैं और प्रकाश संश्लेषण की गतिविधि को भी बढ़ाते हैं।
  • जिंक घोलने वाले जीवाणु मिट्टी में कार्बनिक अम्ल उत्पन्न करते हैं जिससे अघुलनशील जिंक (जिंक सल्फाइड, जिंक ऑक्साइड और जिंक कार्बोनेट), Zn+ (पौधों के लिए उपलब्ध रूप ) में बदल जाता हैं इसके अलावा ये मिट्टी के pH का संतुलन बनाए रखते हैं।
  • जिंक घुलनशील जीवाणु 2 किलो/ एकड़ की दर से 50 किलो अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद में मिला कर खेत में बुरकाव करे |

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Stem and bulb nematode in Onion and Garlic

प्याज एवं लहसन में तना और कंद सुत्रकृमी:- नेमीटोड रंधो या पौधे के घावों के माध्यम से प्रवेश करती है और पौधों में गांठने या कुवृद्धि पैदा करती है। यह कवक और जीवाणु जैसे माध्यमिक रोगजनकों के प्रवेश द्वार के लिए स्थान देता है। इसके लक्षणों में वृद्धि अवरुद्ध हो जाना, कंदों में रंग हीनता और सूजन पैदा होती है।

प्रबंधन:- ·

  • कंद जो रोग के लक्षण दिखाते हैं वह बीज के लिए नहीं रखना चाहिए।·
  •  खेतों और उपकरणों का उचित स्वच्छता आवश्यक है क्योंकि यह निमेटोड संक्रमित पौधों और अवशेषों में जीवित रहता है और पुन: उत्पन्न कर सकता है।·
  • नेमीटोड के बेहतर नियंत्रण के लिए कार्बोफ्यूरोन 3% दानेदार @ 10 किग्रा/एकड़ जमीन से दे|·
  • नेमीटोड के कार्बनिक नियंत्रण के लिए नीम खली @ 200 किग्रा/एकड़ जमीन से दे|

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Weed control in Garlic

लहसुन में खरपतवार नियंत्रण:-

  • पेंडिमेथालीन @ 100 मिली. / 15 लीटर पानी या ऑक्सीफ़्लोर्फिन @15 मिली. / 15 लीटर पानी का उपयोग लगाने के 3 दिनों के बाद लहसुन में प्रभावी खरपतवार नियंत्रण के लिए सिफारिश की जाती है, इसके साथ ही फसल में लगाने के 25-30 दिनों के बाद और रोपण के 40-45 दिन बाद दो बार हाथ से निदाई करे।
  • चावल का भूरा घास या गेहूं पुआल का उपयोग मल्चिंग के रूप में करने से उपज बढ़ाने के लिए सिफारिश की गई है।
  • ऑक्सिफ्लोरफेन 23.5% EC 1 मिलीलीटर / ली.पानी + क्विजलॉफॉप एथाइल 5% ईसी @ 2 मिलीलीटर / लीटर पानी का संयुक्त छिडकाव लगाने के बाद 20-25 दिन में और 30-35 दिन होने पर करने से खरपतवार का अच्छा नियंत्रण और अधिक उपज मिलती है|

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Management of Termites in Wheat

गेहूँ  में दीमक (उददी ) का प्रबंधन:-

  • बुवाई के बाद और कभी-कभी परिपक्वता की अवस्था पर दीमक द्वारा फसल को नुकसान पहुँचाया जाता है|  
  • दीमक प्रायः फसल की जड़ों, बढ़ते पौधों के तनों, पौधे के मृत ऊतकों को नुकसान पहुँचाती है|
  • क्षतिग्रस्त पौधे पूरी तरह से सूख जाते हैं और आसानी से जमीन से उखाड़े जा सकते है|
  • जिन क्षेत्रों में अच्छी तरह सड़ी हुई खाद का प्रयोग नहीं किया जाता उन क्षेत्रो में दीमक का प्रकोप अधिक होता है|

प्रबंधन

  • बुवाई के पहले खेत में गहरी जुताई करें|
  • खेत में अच्छी सड़ी हुई खाद का ही उपयोग करे|
  • दीमक के टीले को केरोसिन से भर दे ताकि दीमक की रानी के साथ-साथ अन्य सभी कीट मर जाएँ|
  • बुवाई से पहले क्लोरोपायरीफोस (20% ई.सी ) @ 5 मिली/ किलो बीज से बीजोपचार करें ।  
  • क्लोरोपायरीफोस (20% ई.सी) @ 1 लीटर/ एकड़ को किसी भी उर्वरक के साथ मिलाकर जमीन से दें और सिंचाई कर दे|

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share