सोयाबीन में सल्फर का होता है महत्व, उपयोग पूर्व बरतें सावधानियाँ

  • सोयाबीन की फसल में सल्फर (गंधक) की कमी के लक्षण सर्वप्रथम नई पत्तियों पर दिखाई देते हैं। इसके कारण पत्तियाँ पीली व हरे रंग की हो जाती हैं वहीं पुरानी पत्तियां सामान्य रहती हैं। कुछ समय बाद पत्तियॉं एवं पर्ण छोटे आकार के हो जाते हैं एवं सम्पूर्ण पौधा पीला पड़ जाता है। तने पतले तथा कमजोर व जड़ कड़ी हो जाती है, जिससे पौधों की वृद्धि रूक जाती है।

  • गंधक (सल्फर) का जैव रसायनिक महत्व: गंधक (सल्फर) कुछ महत्वपूर्ण एमिनों अम्ल का आवश्यक घटक है। हरित लवक निर्माण मे इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है। तेल के जैव उत्पादन, सोयाबीन फसल में ग्रंथिका निर्माण, जैविक नत्रजन स्थिरीकरण में तथा स्वस्थ दानों के निर्माण में गंधक (सल्फर) सहायक है।

  • सोयाबीन की फसल में सल्फर का उपयोग करने के पहले कुछ सावधानियां रखनी बहुत आवश्यक है। सबसे पहले सल्फर का उपयोग बुवाई के समय या बुवाई के बाद 40 दिनों तक कर सकते है। सल्फर के उपयोग के पूर्व इस बात का ध्यान रखें की खेत में पर्याप्त नमी हो। कम बारिश की स्थिति में, सल्फर उपयोग करने के बाद हल्की सिंचाई अवश्य करें।

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