यह रोग पुरानी पत्तियों के किनारों से शुरू होता है | शुरुआत में छोटे, अंडाकार धब्बे जो आगे चल कर बैगनी भूरे हो जाते हैं तथा इन धब्बो के किनारे पीले रंग के होते हैं |
जब धब्बे बड़े होने लगते है तब पीले किनारे फ़ैल कर ऊपर नीचे घाव बनते है|
पत्ते व फूलों की डंठल मुरझा जाती है और पौधा सूख जाता है|
बिना कंद वाली दूसरी फसलों के साथ 2-3 साल का फसल चक्र का अपनाना चाहिए।
इस रोग की रोकथाम हेतु कीटाजीन 48 ईसी 80 मिली या क्लोरोथालोनिल 75 डब्लूपी 300 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 12 + मेंकोजेब 63 डब्लूपी 500 ग्राम @ 200 मिली/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी के साथ मिलाकर छिड़काव करे|
जैविक उपचार के माध्यम से स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी के साथ मिलाकर छिड़काव करे|