चने की फसल में पाले के कारण हो सकता है नुकसान, ऐसे करें नियंत्रण

  • आमतौर पर शीतकाल की लंबी रातें बहुत ज्यादा ठंडी होती हैं और कई बार तापमान हिमांक पर या इससे भी नीचे चला जाता है। ऐसी स्थिति में जलवाष्प बिना तरल रूप में परिवर्तित हुए सीधे ही सूक्ष्म हिमकणों में परिवर्तित हो जाते हैं इसे पाला कहते हैं पाला फसलों और वनस्पतियों के लिए बहुत हानिकारक होता है।

  • पाले के प्रभाव से चने की फसल में पत्तियां एवं फूल झुलसे हुए दिखाई देते हैं एवं बाद में झड़ जाते हैं। यहां तक कि अधपके फल सिकुड़ भी जाते हैं, उनमें झुर्रियां पड़ जाती हैं एवं कलिया गिर जाती हैं। इन फलियों में दाने भी नहीं बनते हैं।

  • अपनी फसल को पाले से बचाने के लिए आप अपने खेत के चारो तरफ धुंआ करें। इससे तापमान संतुलित हो जाता है एवं पाले से होने वाली हानि से बचा जा सकता है।

  • जिस दिन पाला पड़ने की संभावना हो उस दिन फसल पर गंधक का 0.1 प्रतिशत घोल बनाकर छिड़काव करें।

  • ध्यान रखें कि पौधों पर घोल की फुहार अच्छी तरह गिरे। छिड़काव का असर दो सप्ताह तक रहता है। यदि इस अवधि के बाद भी शीतलहर व पाले की संभावना बनी रहे तो गंधक का छिड़काव 15 से 20 दिन के अंदर से दोहराते रहें।

  • जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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