भारत में कृषि एक मात्र व्यवसाय है जो सदियों से चलता आ रहा है। आधुनिकता के बढ़ते इस दौर में कृषि क्षेत्र में भी कई बदलाव हुए हैं। कम समय में अधिक उत्पादकता और मुनाफा पाने के लिए रसायनिक खाद और कम लागत का फॉर्मूला अपनाया जा रहा है। जिस कारण मिट्टी धीरे-धीरे अंदर से कमजोर होती जा रही है।
इसके अलावा ग्लोबल वार्मिंग की वजह से मौसम के व्यवहार में बहुत बदलाव हुआ है। जिसके चलते कहीं बाढ़, तो कहीं सूखा देखने को मिला है। जहां देश के लगभग 80% किसान बारिश पर निर्भर रहते हैं, इस कारण मौसम का सबसे ज्यादा असर कृषि क्षेत्र पर हुआ है। ऐसी में लाभ पाने के लिए किसान भाई खेती के दौरान कई गलतियां कर देते हैं, जिसका असर मिट्टी की उपज क्षमता पर पड़ता है।
मिट्टी से घटते पोषक तत्वों की वजह
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फसलों में गोबर, हरी खाद या वर्मी कम्पोस्ट का इस्तेमाल न करना
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बिना मृदा परीक्षण के अंधाधुंध उर्वरकों का प्रयोग करना
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फसल चक्र के अनुसार खेती न करना
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लगातार अधिक उत्पादन देने वाली फसल की खेती करना
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सिंचाई के लिए लवणीय जल का उपयोग करना
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ज्यादा गहरी जुताई करना, जिस कारण मिट्टी में जिंक, सल्फर और नाइट्रोजन की कमी हो जाती है
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खेतों को मेड़ बंद न करना, जिस कारण पानी के साथ मिट्टी के पोषक तत्व भी बह जाते हैं
सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश के पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, गुजरात, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में यह स्थिति ज्यादा देखने को मिली है। अगर इन गलतियों को न सुधारा गया तो आगे आने वाले समय में भूमि को बंजर होने से रोकना मुश्किल होगा।
स्रोत: आज तक
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