ट्राइकोडर्मा क्या है

  • ट्राइकोडर्मा एक जैविक कवकनाशी है जो फसलों में होने वाले रोगों के प्रबंधन के लिए एक बहुत ही प्रभावी जैविक साधन है।
  • ट्राइकोडर्मा एक शक्तिशाली बायोकंट्रोल एजेंट हैं और इसका उपयोग मृदा जनित बीमारियों जैसे फ्यूजेरियम, फाइटोपथोरा, स्क्लेरोशिया आदि के लिए बड़े पैमाने पर किया जाता है।
  • ट्राइकोडर्मा फसल वृद्धि कारक की तरह भी कार्य करता है। यह सुरक्षात्मक रूप में डाला जाये तो निमेटोड का भी नियंत्रण कर लेता है।
  • इसका उपयोग बीज़ उपचार के लिए भी किया जाता है। बीज़ उपचार करने से अंकुरण तो बहुत जल्दी से होता है साथ ही बीज़ जनित बीमारियों से भी सुरक्षा होती है।
  • ट्राइकोडर्मा का उपयोग जड़ गलन, तना गलन, उकठा रोग आदि के प्रभावी नियंत्रक के रूप में किया जाता है।
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Symptoms and control of Fusarium wilt in Okra

  • प्रारंभिक अवस्था में पौधा अस्थाई रुप से मुरझा जाता है किन्तु बीमारी का प्रभाव बढ़ जाने पर पौधा स्थाई रुप  से मुरझाकर सूख जाता है ।
  • ग्रसित पौधों की पत्तियाँ पीली हो जाती है ।
  • फफूंद जड़तंत्र पर आक्रमण  करता है और संवहन उतकों पर कालोनी का निर्माण करता है ।  
  • इसके कारण जल का प्रवाह संवहन उतकों द्वारा रुक जाता है साथ ही फंगस के विषैले प्रभाव के कारण संवहन उतक और कोशिकायें कार्य करना बंद कर देती है ।  
  • ग्रसित पौधों के तने को काटने पर मध्य भाग गहरे भूरे रंग का दिखाई देता है।

प्रबंधन

  • भिण्डी को लगातार एक ही खेत  में नहीं उगाना चाहिए ।
  • कार्बोक्सिन 37.5% + थायरम 37.5% @ 2-3 g/kg  बीज या थायोफनेट मिथाइल 45% WP+ पाइरक्लोस्ट्रोबिन 5% FS @ 2g/kg  से बीज उपचार करे।
  • थायोफनेट मिथाइल 70% WP @ 400g/एकड़ की दर से स्प्रे करें।
  • एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2%+ डेफ़नकोनाज़ोल 11.4% एससी @ 200 ml/एकड़ |
  • जैव प्रबंधन के तौर पर ट्राइकोडर्मा विरिडी की ड्रेंचिंग एवं पत्तियों पर स्प्रे करे । इसका उपयोग फसलों में होने वाले लगभग सभी प्रकार के फफूंद जनित रोगो के नियंत्रण के लिए किया जा सकता हैं।

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Transplanting Precautions in Chilli

  • मिर्च की रोपाई जुलाई-सितम्बर तक की जाती है |
  • अगस्त का महीना मिर्च की रोपाई के लिए सर्वोत्तम है, तत्पश्चात सितम्बर का महीना उत्तम है |
  • ट्रांसप्लांटिंग से 5-7 दिन पहले टेबुकोनाज़ोल का स्प्रे या ड्रेंचिंग करे जिससे की डम्पिंग ऑफ की समस्या न आये | ट्रांसप्लांटिंग से पहले रोपे की जड़ो को माइकोराइजा के घोल (100 ग्राम/10 लीटर पानी ) में डुबोये |
  • पौधों की स्पेसिंग ( कतार से कतार X पौधे से पौधे 3.5-5 फ़ीट X 1-1.5 फ़ीट ) को उचित अनुपात में रखना चाहिए|
  • अगर खेत में कीट का प्रकोप ज्यादा हो तो कार्बोफुरोन 3G @ 8 किलो/एकड़ की दर से बुरकाव करे| साथ ही खेत में पौधे सूखने की समस्या आती हो तो ट्राइकोडर्मा 4 किलो/एकड़ की दर से बुरकाव करे |

 

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Use of Trichoderma :- When, How and Why ?

ट्राइकोडर्मा सभी प्रकार के पौधों और सब्जियों के लिए जरूरी है जैसे कि गोभीवर्गीय, कपास, सोयाबीन आदि।

  • बीजोपचार:  1 किलो ट्राइकोडर्मा पाउडर प्रति क्विंटल बीज की दर से बुवाई से पहले बीजो में मिलाएं।
  • जड़ो के उपचार हेतु : 10  किलो गोबर की अच्छे से सड़ी हुई खाद तथा 100 लीटर पानी मिला कर घोल तैयार करे फिर इसमें 1 किलो  ट्राइकोडर्मा पाउडर मिला कर तीनो का मिश्रण तैयार कर ले अब इस मिश्रण में पौध की जड़ो को रोपाई के पहले 10 मिनट के लिए डुबोएं।
  • मृदा उपचार: 4  किलो ट्राइकोडर्मा पाउडर प्रति एकड़ की दर से 50 किलो गोबर की खाद के साथ मिला कर बेसल डोज के रूप में खेत में मिलाईये |    
  • खड़ी फसल में : खड़ी फसल में उपयोग हेतु एक लीटर पानी में 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर मिलाकर तना क्षेत्र के पास की मिट्टी में ड्रेंचिंग करें |

सावधानियां

  • ट्राइकोडर्मा के प्रयोग के बाद 4-5 दिनों के तक कोई भी रासायनिक कवकनाशी का उपयोग न करें।
  • सूखी मिट्टी में ट्राइकोडर्मा का प्रयोग न करें। इसकी वृद्धि और उत्तरजीविता के लिए नमी एक आवश्यक कारक है।
  • उपचारित बीज को सीधे सूर्य की किरणों में न रखे।
  • ट्राइकोडर्मा को FYM के साथ मिला कर अधिक समय तक न रखें।
  • ज्यादा जानकारी के लिए हमारे टोल फ्री न.( 1800-315-7566 ) पर मिस कॉल दे | 

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Field Management in cotton

  • बेहतर फसल उत्पादन केवल एक बेहतर भूमि प्रबंधन प्रणाली द्वारा ही लिया जा सकता हैं।
  • कपास की बुवाई से पहले खेत की 2 से 3 बार गहरी जुताई कर खेत को 2-3 दिन के लिए खुला छोड़ दे।
  • गहरी जुताई से खेत में उपस्थित खरपतवार नष्ट हो जाते हैं और मिट्टी भुरभरी हो जाती हैं जिससे जल धारण क्षमता बढ़ जाती हैं और खेत में उपस्थित कीट के प्यूपा/कोकून नष्ट हो जाते हैं इसके बाद खेत में बखर चला कर समतल कर दे।
  • बुवाई के 10-15 दिन पहले खेत में 10 टन/एकड के अनुसार सडी हुई गोबर की खाद समान रूप से  मिला दे।
  • कपास में मिट्टी जनित रोगों के नियंत्रण के लिए ट्राइकोडर्मा विरिड + ट्राइकोडर्मा हर्ज़िनियम @ 2 किग्रा/एकड़ + 50 किलो सडी हुई गोबर की खाद का उपयोग करें।

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Bio-fungicide:- Trichoderma; Application and Benefits

ट्रायकोडर्मा पौधे रोग प्रबंधन के लिए विशेष रूप से मिट्टी में पैदा होने वाले रोग के लिए एक बहुत ही प्रभावी जैविक माध्यम है। यह एक मुक्त जीवित कवक है जो मिट्टी और जड़ पारिस्थितिक तंत्र में आमतौर पर होता है|

ट्रायकोडर्मा से लाभ:-

रोग नियंत्रण, पौध वृद्धि कारक, रोग के जैव रासायनिक रोधक, ट्रांसजेनिक पौधे और जैव उपचार।

प्रयोग का तरीका:-

बीज उपचार:- बुवाई से पहले 6-10 ग्राम / किलो बीज के अनुसार ट्रायकोडर्मा मिलाये |

नर्सरी उपचार:- 100 वर्ग मी. नर्सरी क्यारियों में 10-25 ग्राम ट्रायकोडर्मा डालते है|

कलम एवं रोपा उपचार:- 10 ग्राम ट्रायकोडर्मा प्रति ली. पानी का घोल बना कर 10 मिनट रखें कलम एवं रोपा को उपचारित करके रोपाई करें|

मृदा उपचार:- 1 किलो ट्रायकोडर्मा 100 किलो गोबर की खाद में मिला कर उसे पॉलीथिन से ढक कर 7 दिन के लिए रखे बीच बीच में ढेर पर पानी डालते रहे और इसे 3-4 दिन में पलटे 7 दिन बाद खेत में भुरकाव करें |

पौध उपचार:- एक पानी में 10 ग्राम ट्रायकोडर्मा मिला कर पौधे के पास तने के चारों और जमीन में दे|

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