जानें प्राकृतिक खेती के महत्वपूर्ण सिद्धांत

Natural farming

प्राकृतिक खेती क्या है? – प्राकृतिक खेती (natural farming) देसी गाय पर आधारित प्राचीन खेती पद्धति है। जिसमें रासायनिक उर्वरकों और रसायनों के दूसरे उत्पाद का विकल्प के रूप में देसी गाय का गोमूत्र और गोबर  का उपयोग फसल उत्पादन में किया जाता है। यह भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है। प्राकृतिक खेती में रासायनिक कीटनाशक का उपयोग नहीं किया जाता है। इस प्रकार की खेती में जो तत्व प्रकृति में पाए जाते है, उन्हीं को कीटनाशक के रूप में काम में लिया जाता है।

प्राकृतिक खेती में खाद के रूप में गोबर, गौ मूत्र, जीवाणु खाद, फ़सल अवशेष द्वारा पौधों को पोषक तत्व दिए जाते हैं। प्राकृतिक खेती में प्रकृति में उपलब्ध जीवाणुओं, मित्र कीट और जैविक कीटनाशक द्वारा फ़सल को हानिकारक सूक्ष्म जीव और कीट से बचाया जाता है।

आइये  जानते है प्राकृतिक खेती के चार सिद्धांत  

👉🏻खेतों में कोई जुताई नहीं करना, यानी न तो उनमें जुताई करना, और न ही मिट्टी को  पलटना है । धरती अपनी जुताई स्वयं स्वाभाविक रूप से पौधों की जड़ों के प्रवेश तथा केंचुओं व छोटे प्राणियों, तथा सूक्ष्म जीवाणुओं के जरिए कर लेती है।

👉🏻किसी भी तरह की तैयार खाद या रासायनिक उर्वरकों का उपयोग न किया जाए। इस पद्धति में हरी खाद और गोबर की खाद को ही उपयोग में लाया जाता है।

👉🏻निराई-गुड़ाई न की जाए। न तो हल से, न शाकनाशियों के प्रयोग द्वारा। खरपतवार मिट्टी को उर्वर  बनाने तथा जैव-बिरादरी में संतुलन स्थापित करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। बुनियादी सिद्धांत यही है कि खरपतवार को पूरी तरह समाप्त करने की बजाए नियंत्रित किया जाना चाहिए।

👉🏻रसायनों पर बिल्कुल निर्भर न करना है। जोतने तथा उर्वरकों के उपयोग जैसी गलत प्रथाओं के कारण जब से कमजोर पौधे उगना शुरू हुए, तब से ही खेतों में बीमारियां लगने तथा कीट-असंतुलन की समस्याएं खड़ी होनी शुरू हुई। छेड़छाड़ न करने से प्रकृति-संतुलन बिल्कुल सही रहता है।

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जानें प्राकृतिक खेती के महत्वपूर्ण सिद्धांत

Natural farming

प्राकृतिक खेती क्या है? – प्राकृतिक खेती (natural farming) देसी गाय पर आधारित प्राचीन खेती पद्धति है। जिसमें रासायनिक उर्वरकों और रसायनों के दूसरे उत्पाद का विकल्प के रूप में देसी गाय का गोमूत्र और गोबर  का उपयोग फसल उत्पादन में किया जाता है। यह भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है। प्राकृतिक खेती में रासायनिक कीटनाशक का उपयोग नहीं किया जाता है। इस प्रकार की खेती में जो तत्व प्रकृति में पाए जाते है, उन्हीं को कीटनाशक के रूप में काम में लिया जाता है।

प्राकृतिक खेती में खाद के रूप में गोबर, गौ मूत्र, जीवाणु खाद, फ़सल अवशेष द्वारा पौधों को पोषक तत्व दिए जाते हैं। प्राकृतिक खेती में प्रकृति में उपलब्ध जीवाणुओं, मित्र कीट और जैविक कीटनाशक द्वारा फ़सल को हानिकारक सूक्ष्म जीव और कीट से बचाया जाता है।

आइये  जानते है प्राकृतिक खेती के चार सिद्धांत  

👉🏻खेतों में कोई जुताई नहीं करना, यानी न तो उनमें जुताई करना, और न ही मिट्टी को  पलटना है । धरती अपनी जुताई स्वयं स्वाभाविक रूप से पौधों की जड़ों के प्रवेश तथा केंचुओं व छोटे प्राणियों, तथा सूक्ष्म जीवाणुओं के जरिए कर लेती है।

👉🏻किसी भी तरह की तैयार खाद या रासायनिक उर्वरकों का उपयोग न किया जाए। इस पद्धति में हरी खाद और गोबर की खाद को ही उपयोग में लाया जाता है।

👉🏻निराई-गुड़ाई न की जाए। न तो हल से, न शाकनाशियों के प्रयोग द्वारा। खरपतवार मिट्टी को उर्वर  बनाने तथा जैव-बिरादरी में संतुलन स्थापित करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। बुनियादी सिद्धांत यही है कि खरपतवार को पूरी तरह समाप्त करने की बजाए नियंत्रित किया जाना चाहिए।

👉🏻रसायनों पर बिल्कुल निर्भर न करना है। जोतने तथा उर्वरकों के उपयोग जैसी गलत प्रथाओं के कारण जब से कमजोर पौधे उगना शुरू हुए, तब से ही खेतों में बीमारियां लगने तथा कीट-असंतुलन की समस्याएं खड़ी होनी शुरू हुई। छेड़छाड़ न करने से प्रकृति-संतुलन बिल्कुल सही रहता है।

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जैविक खेती करना होगा अब और ज्यादा आसान, जानें सरकार की योजना

खेती में रसायनिक उर्वरकों के बढ़ते प्रयोग से मिट्टी की उपज क्षमता पर काफी असर पड़ रहा है। मिट्टी में घटते पोषक तत्वों की वजह से उत्पादकता में भी कमी दर्ज की गई है। ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारें प्राकृतिक खेती को अपनाने की सलाह दे रही हैं। इसके साथ ही प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए राज्य स्तर पर कई योजनाएं भी चलाई जा रही हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान भाई प्राकृतिक खेती को अपनाकर भूमि को बंजर होने से बचा सकें।

इसी क्रम में राजस्थान सरकार प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए एक खास मिशन चला रही है। इसके माध्यम से राज्य के किसानों को जैविक बीज, जैव उर्वरक एवं कीटनाशी उपलब्ध कराए जाएंगे। इसके अलावा किसानों को प्राकृतिक खेती के जरिए पूरा लाभ दिलाने के लिए कई प्रयास भी किए जा रहे हैं।

इसके अंतर्गत ‘ऑरगैनिक कमोडिटी बोर्ड’ का गठन किया जा रहा है, जहां किसानों के जैविक उत्पादनों को प्रमाणित करने का प्रबंध किया जाएगा। इसके साथ ही जैविक खेती में उत्कृष्ट कार्य करने वाले तीन किसानों को प्रतिवर्ष राज्य स्तरीय समारोह में 1-1 लाख रूपये की पुरस्कार राशि देकर सम्मानित किया जाएगा। सरकार के अनुसार इस योजना के माध्यम से राज्य के लगभग 4 लाख किसानों को लाभ प्राप्त होगा।

स्रोत: किसान समाधान

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प्राकृतिक खेती से बढ़ाएं खेत की उर्वरता और पाएं जबरदस्त उपज

natural farming

प्राकृतिक खेती कृषि की प्राचीन पद्धति है, जिसे रसायन मुक्त खेती के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। यह खेती भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है। प्राकृतिक खेती फसलों, पेड़ों और पशुधन को एकीकृत करती है, जिससे कार्यात्मक जैव विविधता के सर्वश्रेष्ठ उपयोग की अनुमति मिलती है। 

प्राकृतिक खेती में कीटनाशकों के रूप में गोबर की खाद, कम्पोस्ट, जीवाणु खाद, फसल अवशेष और प्रकृति में उपलब्ध खनिज जैसे- रॉक फास्फेट, जिप्सम आदि द्वारा पौधों को पोषक तत्व दिए जाते हैं। प्राकृतिक खेती में प्रकृति में उपलब्ध जीवाणुओं, मित्र कीट और जैविक कीटनाशक द्वारा फसल को हानिकारक जीवाणुओं से बचाया जाता है।

साधारण भाषा में प्राकृतिक खेती को जीरो बजट खेती भी कहा जाता है। यह खेती देसी गाय के गोबर एवं गोमूत्र पर निर्भर होती है। इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक, रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती। इसमें रासायनिक खाद के स्थान पर किसान गोबर से तैयार की हुई खाद बनाते हैं। इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है।  एक देसी गाय से प्राप्त खाद 30 एकड़ जमीन की खेती के लिए पर्याप्त होती है l

इस खेती से तात्पर्य है कि, किसी भी फसल या बागवानी खेती करने के लिए जिन जिन संसाधनों की आवश्यकता रहती है, उनकी पूर्ति घर से ही करना, बाजार या मंडी से खरीदकर नहीं लाना अर्थात गांव का पैसा गांव में, गांव का पैसा शहरो को नहीं, बल्कि शहर का पैसा गांव में लाना है l यह गांव का जीरो बजट है और साथ-साथ देश का पैसा देश में, देश का पैसा विदेश को नहीं, विदेश का पैसा देश में l यह देश का जीरो बजट हैl 

प्राकृतिक खेती के लिए आवश्यक तथ्य –

  • प्राकृतिक खेती के लिए केवल देशी गाय चाहिए, देशी गाय के साथ-साथ में सम समान मिलावट के लिए देशी बेल या भैंस चलेगी लेकिन किसी भी स्थिति में जर्सी होलस्टिन जैसे संकर या विदेशी गाय नहीं चलेगी l क्योंकि वह गाय नहीं है l 

  • काले रंग की कपिला (देशी) गाय सर्वोत्तम है l 

  • गोबर जितना ताजा उतना ही अच्छा एवं प्रभावी होता है और गोमूत्र जितना पुराना उतना ही प्रभावी एवं असरदार होता है l 

  • एक देशी गाय 30 एकड़ (180 कच्चा बीघा भूमि ) की खेती के लिए पर्याप्त है l 

प्राकृतिक खेती के फायदे –

  • कृषकों की दृष्टि से प्राकृतिक खेती के फायदे की बात की जाये तो, जैसे – भूमि की उपजाऊ क्षमता, सिंचाई अंतराल एवं फसलों की उत्पादकता में वृद्धि l

  • रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है, साथ ही बाजार में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ने से किसानों की आय में भी वृद्धि होती है l

  • मिट्टी की दृष्टि से देखा जाए तो जैविक खाद के उपयोग करने से भूमि की गुणवत्ता में सुधार आता है, भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम होता है एवं भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ती है।

  • मिट्टी, खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण में कमी आती है।

प्राकृतिक खेती के सिद्धांत –

  • खेतों में न तो जुताई करना, और न ही मिट्टी पलटना। 

  • किसी भी तरह के रासायनिक उर्वरकों का उपयोग न करना।

  • निंदाई-गुड़ाई न करें, न तो हलों से न ही शाकनाशियों के प्रयोग द्वारा। 

  • रसायनों का उपयोग बिल्कुल ना करें।

प्राकृतिक खेती की आवश्यकता क्यों –

  • किसानों की पैदावार का आधा हिस्सा उनके उर्वरक और कीटनाशक में ही चला जाता है। यदि किसान खेती में अधिक मुनाफा या फायदा कमाना चाहता है तो, उसे प्राकृतिक खेती की तरफ अग्रसर होना चाहिए।

  • भूमि के प्राकृतिक स्वरूप में भी बदलाव हो रहे हैं, जो काफी नुकसान भरे हो सकते हैं। रासायनिक खेती से प्रकृति और मनुष्य के स्वास्थ्य में काफी गिरावट आई है। 

  • रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से ये खाद्य पदार्थ अपनी गुणवत्ता खो देते हैं। जिससे हमारे शरीर पर बुरा असर पड़ता है।

  • रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से मिट्टी की उर्वरक क्षमता काफी कम हो गई। जिससे मिट्टी के पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ गया है। इस घटती मिट्टी की उर्वरक क्षमता को देखते हुए जैविक खाद उपयोग जरूरी हो गया है।

जीरो बजट प्राकृतिक खेती के प्रमुख अवयव –

जीवामृत, घन जीवामृत, बीजामृत, मल्चिंग, वाफसा l 

जीवामृत –

जीवामृत मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की गतिविधि को बढ़ावा देकर उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है और प्रासंगिक पोषक तत्व भी प्रदान करता है। यह जैविक कार्बन और अन्य पोषक तत्वों का भी स्रोत हैं, किंतु इनकी मात्रा कम ही होती है। यह सूक्ष्मजीवों की  गतिविधि के लिए एक प्राइमर की तरह काम करता है, और देसी केंचुओं की संख्या को भी बढ़ाता है।

आवश्यक सामग्री :- 10 किलो ताजा गोबर, 5-10 लीटर गोमूत्र, 50 ग्राम चूना, 2 किलो गुड़, 2 किलो दाल का आटा, 1 किलो बांध मिट्टी और 200 लीटर पानी l 

जीवामृत तैयार करने की विधि : सामग्री को 200 लीटर पानी में मिलाकर अच्छी तरह से हिलाना चाहिए । इसके बाद इस मिश्रण को छायादार स्थान पर 48 घंटे के लिए किण्वन के लिए रख दें। इसे दिन में दो बार यानी एक बार सुबह और एक बार शाम के समय लकड़ी की छड़ से चलाना चाहिए। तैयार मिश्रण का अनुप्रयोग सिंचाई के पानी के माध्यम से या सीधे फसलों पर करें। इसे वेंचुरी (फर्टिगेशन डिवाइस) का उपयोग करके ड्रिप सिंचाई के माध्यम से भी अनुप्रयुक्त किया जा सकता है।

जीवामृत के अनुप्रयोग :- इस मिश्रण का अनुप्रयोग प्रत्येक पखवाड़े में किया जाना चाहिए। इसका प्रयोग सीधे फसलों पर छिड़काव के जरिए या सिंचाई जल के साथ फसलों पर अनुप्रयोग किया जाना चाहिए। फल वाले पौधों के मामले में, इसका अनुप्रयोग एक-एक पेड़ पर किया जाना चाहिए। इस मिश्रण को 15 दिनों के लिए भंडारित किया जा सकता है।

घन जीवामृत –

घन जीवामृत, जीवाणु युक्त सूखी खाद है, जिसे बुवाई के समय या पानी के तीन दिन बाद भी दे सकते हैं। 

आवश्यक सामग्री :- 100 किलोग्राम गाय का गोबर,  1 किलोग्राम गुड,  2 किलोग्राम बेसन (चना, उड़द, अरहर, मूंग), 50 ग्राम मेड़ या जंगल की मिट्टी, 1 लीटर गौमूत्र l

घन जीवामृत तैयार करने की विधि :- सर्वप्रथम 100 किलोग्राम गाय के गोबर को किसी पक्के फर्श व पोलीथीन पर फैलाएं, फिर इसके बाद 1 किलोग्राम गुड या फलों के गूदे की चटनी व 1 किलोग्राम बेसन को डालें, इसके बाद 50 ग्राम मेड़ या जंगल की मिट्टी में 1 लीटर गौमूत्र डालकर सभी सामग्री को फॉवड़ा से मिलाएं फिर, 48 घंटे तक छायादार स्थान पर एकत्र कर या थापीया बनाकर जूट के बोरे से ढक दें। 48 घंटे बाद उसको छाया में सुखाकर चूर्ण बनाकर भंडारण करें। इस मिश्रण के लड्डू बनाकर भी उपयोग किये जा सकते हैं l 

अवधि प्रयोग :- इस घन जीवामृत का प्रयोग छः माह तक कर सकते हैं।

सावधानियां :- सात दिन का छाए में रखा हुआ गोबर का प्रयोग करें। गोमूत्र किसी धातु के बर्तन में न ले या रखें।

छिड़काव :- एक बार खेत जुताई के बाद घन जीवामृत का छिड़काव कर खेत तैयार करें।

घन जीवामृत लड्डू सीधे पेड़ पौधों के पास रखकर या ड्रिप के साथ भी उपयोग कर सकते हैंl 

बीजामृत –

बीजामृत एक प्राचीन, टिकाऊ कृषि तकनीक है। इसका उपयोग बीज, पौध या किसी रोपण सामग्री के लिए किया जाता है। यह नई जड़ों को कवक से बचाने में कारगर है। बीजामृत एक किण्वित माइक्रोबियल समाधान है, जिसमें पौधों के लिए बहुत से लाभकारी माइक्रोब्स होते हैं, और इसे बीज उपचार के रूप में अनुप्रयोग किया जाता है। यह उम्मीद की जाती है कि लाभकारी माइक्रोब्स अंकुरित बीजों की जड़ों और पत्तियों को पोषित करेंगे और पौधों के स्वस्थ विकास में मदद करेंगे।

आवश्यक सामग्री :- 5 किग्रा गाय का गोबर, 5 लीटर गोमूत्र, 50 ग्राम चूना, 1 किग्रा बांध मिट्टी, 20 लीटर पानी (100 किलो बीज के लिए)

बीजामृत तैयार करने की विधि :- 5 किग्रा गाय के गोबर को एक कपड़े में लें और टेप का उपयोग कर इसे बांध दें। कपड़े को 20 लीटर पानी में 12 घंटे के लिए लटका दें ।

साथ ही एक लीटर पानी लें और उसमें 50 ग्राम चूना मिलाकर रात भर के लिए रख दें। अगली सुबह, बंडल को पानी में तीन बार लगातार निचोड़ें, ताकि गाय के गोबर के महत्वपूर्ण तत्व पानी में मिल जाएं। एक मुट्ठी मृदा को लगभग 1 किग्रा जल मिश्रण में मिलाकर अच्छी तरह से चलाएं। मिश्रण में देसी गाय का 5 लीटर मूत्र और चूना पानी मिलाएं और अच्छी तरह से चलाएं।

बीज उपचार के रूप में अनुप्रयोग :-  किसी भी फसल के बीज में बीजामृत मिलाएं, उन्हें हाथ से मंढे, इन्हें अच्छी तरह सुखाकर बुवाई के लिए इस्तेमाल करें। ध्यान रखें सोयाबीन एवं मूंगफली के बीजों को हाथ से ना मले अन्यथा बीज का छिलका निकल जाएगा l अनाज वर्गीय फसलों को अच्छे से मिलाया जा सकता है l 

आच्छादन –

मल्चिंग (आच्छादन) को जीवित फसलों और पुआल (मृत पौधा बायोमास) दोनों का उपयोग करके मिट्टी की सतह को कवर करने के रूप में परिभाषित किया जाता है, ताकि नमी को संरक्षित किया जा सके। पौधों की जड़ों के आसपास मिट्टी का तापमान कम हो, मिट्टी का कटाव रोका जा सके और खरपतवार की वृद्धि को कम किया जा सके। मिट्टी में वायु परिसंचरण को बढ़ाने, वर्षा जल के सतही प्रवाह को कम करने और खरपतवारों के विकास को नियंत्रित करने के लिए मल्चिंग की जाती है।

मल्च दो प्रकार के होते हैं :-

1.स्ट्रॉ मल्च :- इसमें कोई भी सूखी वनस्पति, खेत की पराली, जैसे-सूखे बायोमास के अपशिष्ट आदि शामिल हैं। इसका उपयोग मिट्टी को तेज धूप, ठंड, बारिश आदि से ढकने के लिए किया जाता है। कार्बनिक पदार्थों का अपघटन मिट्टी में ह्यूमस बनाता है और इसे संरक्षित करता है। ह्यूमस में 56% जैविक कार्बन और 6% जैविक नाइट्रोजन होता है। यह मृदा बायोटा की गतिविधि के माध्यम से बनता है, जो माइक्रोबियल संस्कृतियों द्वारा सक्रिय होता है। स्ट्रॉ मल्च पक्षियों, कीड़ों, और पशुओं से बीज का बचाव करती है।

2.लाइव मल्च :- मुख्य फसल की पंक्तियों में छोटी अवधि की फसलों की बहु- फसल पद्धति विकसित करके लाइव मल्चिंग का कार्य किया जाता है। यह सुझाव दिया है कि, सभी आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने के लिए, पद्धति मोनोकोटाइलेडोंस और डिक्टोटाइलेडोंस प्रकार की होनी चाहिए। मोनोकॉट , जैसे गेहूं और चावल – पोटाश, फॉस्फेट और सल्फर जैसे पोषक तत्वों की आपूर्ति करते हैं, जबकि डायकोट जैसे दालें – नाइट्रोजन का पोषण करने वाले पौधे हैं। इस तरह के अभ्यास एक विशेष प्रकार के पौधा-पोषक-तत्व की मांग को कम करते हैं।

वाफसा –

वाफसा का अर्थ है मिट्टी के दो कणों के बीच की गुहा में 50% वायु और 50% जलवाष्प का मिश्रण। यह मिट्टी का माइक्रॉक्लाइमेट है, जिस पर मिट्टी के जीव और जड़ें अपनी अधिकांश नमी और अपने कुछ पोषक तत्वों के लिए निर्भर करती हैं। यह पानी की उपलब्धता के साथ ही पानी के उपयोग की दक्षता को बढ़ाता है और सूखे के विरूद्ध प्रतिरोधी बनाता है।

फसल एवं फल वृक्षों पर छिड़काव के लिए घर में ही जीरो बजट दवा बनाने की विधि – 

नीमास्त्र – 

नीमास्त्र का उपयोग रोगों की रोकथाम या निवारण के साथ ही पौधों को खाने और चूसने वाले कीड़ों या लार्वा को मारने के लिए किया जाता है। यह हानिकारक कीड़ों के प्रजनन को नियंत्रित करने में भी मदद करता है। नीमास्त्र तैयार करना बहुत आसान है और प्राकृतिक खेती के लिए यह सबसे अच्छा कीटनाशक भी है।

आवश्यक सामग्री :- 200 लीटर पानी, 2 किलो गाय का गोबर, 10 लीटर गोमूत्र, 10 किलो नीम के पत्तों का बारीक पेस्ट।

नीमास्त्र तैयार करने की विधि :-

  • एक ड्रम में 200 लीटर पानी लें और उसमें 10 लीटर गोमूत्र डालें। फिर देशी गाय का 2 किलो गोबर डालें। अब, 10 किलो नीम के पत्ते का बारीक पेस्ट या 10 किलो नीम के बीजों का गूदा मिलाएं।

  • फिर इसे एक लंबी छड़ी के साथ दायीं ओर चलाएं और इसे एक बोरी से ढक दें। इसे घोल को छाया में रखें ताकि यह धूप या बारिश के संपर्क में नहीं आ सके। घोल को हर सुबह और शाम को दायीं दिशा में चलाएं।

  • 48 घंटे के बाद, यह उपयोग के लिए तैयार हो जाता है। इसे 6 महीने तक उपयोग के लिए भंडारित किया जा सकता है । इस घोल को पानी से पतला नहीं करना चाहिए।

  • तैयार घोल को मलमल के कपड़े में छान लें और फोलर स्प्रे के ज़रिए सीधे फसल पर छिड़काव करें।

नियंत्रण:- सभी शोषक कीट, जैसिड्स, एफिड्स, सफेद मक्खी और छोटे कीड़े नीमास्त्र द्वारा नियंत्रित होते हैं।

ब्रह्मास्त्र –

यह पत्तियों से तैयार किया जाने वाला एक प्राकृतिक कीटनाशक है जिसमें कीटों को हटाने के लिए विशिष्ट एल्कालॉएड्स होते हैं। यह फली और फलों में मौजूद सभी शोषक कीटों और छिपे हुए कीड़ों को नियंत्रित करता है।

आवश्यक सामग्री:- 20 लीटर गौमूत्र, नीम के 2 किलो पत्ते, करंज के 2 किलो पत्ते, शरीफे के 2 किलो पत्ते और धतुरे के 2 किलो पत्ते।

ब्रह्मास्त्र तैयार करने की विधि :-

एक बर्तन में 20 लीटर गौमूत्र लें और इसमें नीम की पत्तियों का 2 किलो बारीक पेस्ट, करंज की पत्तियों से तैयार 2 किलो पेस्ट, शरीफे की पत्तियों का 2 किलो पेस्ट, अंरडी के पत्तों का 2 किलो पेस्ट, और धतुरे के पत्तों का 2 किलो पेस्ट सबको एकसाथ मिलाएं। इसे धीमी आंच पर एक या दो उबाल (ओवरफ्लो लेवल) आने तक उबालें। घड़ी की दिशा में चलाएं, इसके बाद बर्तन को एक ढक्कन से ढंक दें और उबलने दें। दूसरा उबाल आने पर बर्तन को नीचे उतार दें और इसे 48 घंटे के लिए ठंडा होने के लिए रख दें ताकि पत्तियों में मौजूद एल्कालॉएड मूत्र में मिल जाएं। 48 घंटे के बाद, एक मलमल के कपड़े का उपयोग कर मिश्रण का छान लें और इसे भंडारित करें। इसे छाया के नीचे बर्तनों (मिट्टी के बर्तन) या प्लास्टिक के ड्रमों में भंडारित करना बेहतर होता है। मिश्रण को 6 महीने तक उपयोग के लिए भंडारित किया जा सकता है।

अनुप्रयोग : 6-8 लीटर ब्रह्मास्त्र को 200 लीटर पानी में घोलकर खड़ी फसल पर पर्णीय छिड़काव के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। कीटों के आक्रमण की गंभीरता के आधार पर इस अनुपात को निम्नानुसार परिवर्तित किया जा सकता है-

100 लीटर पानी  + 3 लीटर ब्रह्मास्त्र

15 लीटर पानी + 500 मिली ब्रह्मास्त्र

10 लीटर पानी + 300 मिली ब्रह्मास्त्र

अग्निअस्त्र –

इसका उपयोग सभी शोषक कीटों और कीड़ों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है ।

आवश्यक सामग्री:- 20 लीटर गोमूत्र, 2 किलो नीम के पत्तों का गूदा, 500 ग्राम तंबाकू पाउडर, 500 ग्राम हरी मिर्च का पेस्ट, 250 ग्राम लहसुन का पेस्ट और 200 ग्राम हल्दी पाउडर l 

अग्निअस्त्र तैयार करने की विधि :-

एक कंटेनर में 200 लीटर गोमूत्र डालें, फिर 2 किलो नीम की पत्तियों का पेस्ट, 500 ग्राम तंबाकू पाउडर, 500 ग्राम हरी मिर्च का पेस्ट, 250 ग्राम लहसुन का पेस्ट और 200 ग्राम हल्दी पाउडर डालें। घोल को दायीं ओर चलाएं और इसे ढक्कन से ढककर झाग आने तक उबलने दें। आग से हटाकर बर्तन को 48 घंटों के लिए ठंडा करने के लिए सीधी धूप से दूर किसी छायादार स्थान पर रख दें। इस किण्वन अवधि के दौरान अवयव को दिन में दो बार चलाएं। 48 घंटे के बाद एक पतले मलमल के कपड़े से छान लें और भंडारित कर लें। इसे 3 महीने तक भंडारित किया जा सकता है ।

आवेदन :- छिड़काव के लिए 6-8 लीटर अग्नेयास्त्र को 200 लीटर पानी में मिलाया जाना चाहिए। कीटों के पर्याक्रमण की गंभीरता के आधार पर निम्नलिखित अनुपात का प्रयोग ​​किया जाना है ।

100 लीटर पानी + 3 लीटर अग्निअस्त्र

15 लीटर पानी + 500 लीटर अग्निअस्त्र

10 लीटरपानी + 300 लीटर अग्निअस्त्र 

दशपर्णी अर्क या कषायम – 

दशपर्णी अर्क, नीमास्त्र, ब्रह्मास्त्र और अग्नेयास्त्र के विकल्प के रूप में कार्य करता है। इसका उपयोग सभी प्रकार के कीटों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है और पर्याक्रमण के स्तर के आधार पर उपयोग किया जाता है।

आवश्यक सामग्री :- 200 लीटर पानी, 20 लीटर गाय मूत्र, 2 किलो गाय का गोबर, 500 ग्राम हल्दी पाउडर, 10 ग्राम हींग, 1 किग्रा तंबाकू पाउडर, 1 किग्रा मिर्च का गूदा, 500 ग्राम लहसुन पेस्ट, 200 ग्राम अदरक का पेस्ट एवं कोई भी 10 पत्तियां l 

दशपर्णी अर्क तैयार करने की विधि :-

एक ड्रम में 200 लीटर पानी लें, उसमें 20 लीटर गोमूत्र और 2 किग्रा गाय का गोबर मिलाएं। इसे अच्छी तरह मिला लें और बोरी से ढ़ककर 2 घंटे के लिए अलग रख दें। मिश्रण में 500 ग्राम हल्दी पाउडर, 200 ग्राम अदरक का पेस्ट, 10 ग्राम हींग मिलाएं । इसे मिश्रण को दायीं ओर अच्छी तरह से चलाएं, बोरे से ढककर रात भर के लिए रख दें। अगली सुबह, 1 किग्रा तंबाकू पाउडर, 2 किग्रा गर्म हरी मिर्च का पेस्ट और 500 ग्राम लहसुन का पेस्ट डालें और इसे लकड़ी की छड़ी से दायीं ओर अच्छी तरह से चलाएं, बोरी से ढक दें और 24 घंटे के लिए छायादार स्थान पर छोड़ दें। अगली सुबह, मिश्रण में किसी भी प्रकार की 10 पत्तियों का पेस्ट डालें। अच्छी तरह से चलाएं और चटाई बैग के साथ ढक दें। इसे 30-40 दिनों के लिए किण्वन के लिए रख दें ताकि पत्तियों में मौजूद एल्कलॉइड मिश्रण में घुल जाए। इसके बाद इसे दिन में दो बार चलाएं। 40 दिन बाद इसे मलमल के कपड़े से छान लें और इस्तेमाल करें।

अनुप्रयोग :- 6-8 लीटर तैयार कषायम को 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए ।

कवकनाशी / फफूंदनाशी दवा –

गाय के दूध और दही से तैयार किया गया कवकनाशी, कवक को नियंत्रित करने में बहुत प्रभावी पाया गया है।

तैयार करने की विधि :- 3 लीटर दूध से दही तैयार कर लें। क्रीम की सतह को हटा दें और फंगस की सिलेटी सतह बनने तक 3 से 5 दिनों के लिए छोड़ दें। इसे अच्छे से मथ लें, पानी में मिलाकर छानकर प्रभावित फसलों पर छिड़काव करें।

सोंठास्त्र –

इस कवकनाशी के लिए 200 ग्राम सुखी सोंठ ले, इनको पीसकर चूर्ण बनाएं l 2 लीटर पानी में यह चूर्ण डालें और ऊपर ढक्कन से ढक कर बर्तन को आग पर रख कर उबालें l सोंठ के घोल को आधे होने तक उबालें, बाद में इसे नीचे उतार कर ठंडा करें l

दूसरे एक बर्तन में 2-5 लीटर देशी गाय का दूध लें और उसे उबालेंl एक उबाल आने के बाद बर्तन को ठंडा होने देंl ठंडे दूध से ऊपर की मलाई हटा दें और इसमें 200 लीटर पानी और सोंठ मिला देंl इसके बाद लकड़ी की सहायता से अच्छे से मिलायें और कपड़े से छान लें। अब यह मिश्रण फसल एवं पेड़ पौधों पर छिड़काव के लिए तैयार है l 

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केंचुआ खाद बनाकर करें लाखों की कमाई, जानें उत्पादन का आसान तरीका

कृषि क्षेत्र मे रासायनिक उत्पादों के ज्यादा इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरता खत्म हो रही है, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण और लोगों पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है। इसके समाधान के तौर पर कई किसान जैविक खेती की ओर मुड़ रहे हैं।

जैविक खेती के जरिए मिट्टी की उपज क्षमता में वृद्धि होती है। इसके अलावा रासायनिक खेती के मुकाबले जैविक खेती में कम लागत के साथ बढ़िया मुनाफा कमाया जा सकता है। वहीं जैविक खेती में केंचुआ खाद एक अभिन्न अंग है। ऐसे में केंचुआ पालन का व्यवसाय करके लाखों की कमाई की जा सकती है।

ऐसे तैयार करें केंचुआ खाद

ग्रामीण परिवेश में केंचुआ पालन आसानी से किया जा सकता है। केंचुआ पालन के लिए अंधेरे और थोड़े गर्म स्थान का चुनाव करना चाहिए, या फिर ऐसा स्थान जहां सीधी धूप ना पड़ती हो। स्थान चुनाव के बाद केंचुआ खाद बनाने के लिए 6 X 3 X 3 फीट का गड्ढा बना दें। गड्ढे में छोटे आकार के ईंट-पत्थरों की परतों के बीच बालू मिट्टी और दोमट मिट्टी को बिछा दें। इस जगह को पानी की मदद से 60% तक नम कर दें। इसके बाद 1000 केंचुआ प्रति वर्ग मीटर की दर से मिट्टी में छोड़ दें। इनके ऊपर गोबर के उपले और घास की पुआल के साथ हरे वानस्पतिक पदार्थ बिछा दें। गड्ढा भरने के 45 दिन बाद केंचुआ खाद बनकर तैयार हो जाती है।

स्रोत: आज तक

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जीरो बजट खेती अपनाएं, कम लागत में अधिक उत्पादन पाएं

👉🏻किसान भाइयों जीरो बजट खेती एक प्रकार से प्राकृतिक खेती होती है।

👉🏻यह खेती देसी गाय के गोबर एवं गोमूत्र पर निर्भर होती है।

👉🏻इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक, रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती। 

👉🏻इसमें रासायनिक खाद के स्थान पर किसान गोबर से तैयार की हुई खाद बनाते हैं। 

👉🏻देसी गाय के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत तथा घनजीवामृत बनाया जाता है।

👉🏻इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है। 

👉🏻जीवामृत का महीने में एक अथवा दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है। साथ ही जीवामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में भी किया जा सकता है।

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