Symptoms and control of Fusarium wilt in Okra

  • प्रारंभिक अवस्था में पौधा अस्थाई रुप से मुरझा जाता है किन्तु बीमारी का प्रभाव बढ़ जाने पर पौधा स्थाई रुप  से मुरझाकर सूख जाता है ।
  • ग्रसित पौधों की पत्तियाँ पीली हो जाती है ।
  • फफूंद जड़तंत्र पर आक्रमण  करता है और संवहन उतकों पर कालोनी का निर्माण करता है ।  
  • इसके कारण जल का प्रवाह संवहन उतकों द्वारा रुक जाता है साथ ही फंगस के विषैले प्रभाव के कारण संवहन उतक और कोशिकायें कार्य करना बंद कर देती है ।  
  • ग्रसित पौधों के तने को काटने पर मध्य भाग गहरे भूरे रंग का दिखाई देता है।

प्रबंधन

  • भिण्डी को लगातार एक ही खेत  में नहीं उगाना चाहिए ।
  • कार्बोक्सिन 37.5% + थायरम 37.5% @ 2-3 g/kg  बीज या थायोफनेट मिथाइल 45% WP+ पाइरक्लोस्ट्रोबिन 5% FS @ 2g/kg  से बीज उपचार करे।
  • थायोफनेट मिथाइल 70% WP @ 400g/एकड़ की दर से स्प्रे करें।
  • एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2%+ डेफ़नकोनाज़ोल 11.4% एससी @ 200 ml/एकड़ |
  • जैव प्रबंधन के तौर पर ट्राइकोडर्मा विरिडी की ड्रेंचिंग एवं पत्तियों पर स्प्रे करे । इसका उपयोग फसलों में होने वाले लगभग सभी प्रकार के फफूंद जनित रोगो के नियंत्रण के लिए किया जा सकता हैं।

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Control of Fusarium Wilt in Gram

चने में उकठा रोग के नियंत्रण के उपाय:-चने में उकठा रोग फ्यूजेरियम ओक्सीस्पोरस फफुद के कारण होता है गर्म व नमी वाला वातावरण इसके लिए अनुकूल होता है इस बीमारी के रोकथाम के लिए निम्न सावधानिया रखनी पड़ती है |:-

  • छ: वर्षीय फसल चक्र अपनाए|
  • मानसून में खेत की नमी को संरक्षित करे |
  • गहरी जुताई (6-7 इन्च) करके खेत को समतल करे |
  • रोग मुक्त बीज का प्रयोग करे |
  • रोग प्रतिरोधी किस्में लगाये|
  • कार्बोक्सीन 37.5 % + थायरम 37.5 % @ 3 ग्राम/किलो बीज या ट्रायकोडर्मा विरिडी @  ग्राम/किलो बीज से बीज उपचार करे|
  • जब तापमान अधिक हो जब बुआई ना करे| अक्टूबर के दुसरे व तीसरे सप्ताह में बुआई करे |
  • सिचाई नवम्बर-दिसम्बर में करे |
  • माइकोराइज़ा @ 4 किलो प्रति एकड़ 15 दिन की फसल में भुरकाव करें|
  • फूल आने से पहले थायोफिनेट मिथाईल 75% @ 300 ग्राम/एकड़ का स्प्रे करें|
  • फली बनते समय प्रोपिकोनाज़ोल 25% @ 125 मिली/ एकड़ का स्प्रे करें|

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Prevention of Fusarium Wilt in Gram

चने में उकठा रोग के नियंत्रण के उपाय:-चने में उकठा रोग फ्यूजेरियम ओक्सीस्पोरस फफुद के कारण होता है गर्म व नमी वाला वातावरण इसके लिए अनुकूल होता है इस बीमारी के रोकथाम के लिए निम्न सावधानिया रखनी पड़ती है | 

  • छ: वर्षीय फसल चक्र अपनाए|
  • मानसून में खेत की नमी को संरक्षित करे |
  • गहरी जुताई (6-7 इन्च) करके खेत को समतल करे |
  • रोग मुक्त बीज का प्रयोग करे |
  • रोग प्रतिरोधी किस्में लगाये|
  • कार्बोक्सीन 37.5 % + थायरम 37.5 % @ 3 ग्राम/किलो बीज या ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 5 ग्राम/किलो बीज से बीज उपचार करे|
  • जब तापमान अधिक हो जब बुआई ना करे| अक्टूबर के दुसरे व तीसरे सप्ताह में बुआई करे |
  • सिचाई नवम्बर-दिसम्बर में करे |
  • माइकोराइज़ा @ 4 किलो प्रति एकड़ 15 दिन की फसल में भुरकाव करें|
  • फूल आने से पहले थायोफिनेट मिथाईल 75% @ 300 ग्राम/एकड़ का स्प्रे करें|
  • फली बनते समय प्रोपिकोनाज़ोल 25% @ 125 मिली/एकड़ का स्प्रे करें|

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Control of Fusarium wilt in cotton crop

  • छ: वर्षीय फसल चक्र अपनाए|
  • गर्मी के दिनों में गहरी जुताई (6-7 इन्च) करके खेत को समतल करे |
  • रोग मुक्त बीज का प्रयोग करे |
  • रोग प्रतिरोधी किस्में लगाये|
  • कार्बोक्सीन 37.5 % + थायरम 37.5 % @ 3 ग्राम/किलो बीज या ट्रायकोडर्मा विरिडी @  5 ग्राम/किलो बीज से बीज उपचार करे |
  • माइकोराइज़ा @ 4 किलो प्रति एकड़ 15 दिन की फसल में भुरकाव करें|
  • फूल आने से पहले थायोफिनेट मिथाईल 75% @ 300 ग्राम/एकड़ का स्प्रे करें|
  • फली बनते समय प्रोपिकोनाज़ोल 25% @ 125 मिली/ एकड़ का स्प्रे करें|

 

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Symptoms of Fusarium wilt in cotton

  • इस रोग का  रोग कारक फ्यूसेरियम ऑक्सीस्पोरम एफ.एस.पी. हैं 
  • कपास में होने वाले सभी रोगो में यह एक मुख्य रोग के रूप में देखा जाता हैं ।
  • इस रोग में पत्तिया किनारो से मुरझाना शुरू करती हैं तथा मुख्य शिरा की ओर मुरझाती चली जाती हैं | 
  • पत्तियों की शिराये गहरी, संकरी और धब्बे वाली हो जाती हैं। तथा अंत में पौधा सुख कर मर जाता हैं | 
  • इस  रोग का मुख्य लक्षण जड़ो के पास वाले तने का अंदर से क्षतिग्रस्त होना हैं।

 

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Control of Fusarium wilt in cotton crop

  • छ: वर्षीय फसल चक्र अपनाए|
  • गर्मी के दिनों में गहरी जुताई (6-7 इन्च) करके खेत को समतल करे |
  • रोग मुक्त बीज का प्रयोग करे |
  • रोग प्रतिरोधी किस्में लगाये|
  • कार्बोक्सीन 37.5 % + थायरम 37.5 % @ 3 ग्राम/किलो बीज या ट्रायकोडर्मा विरिडी @  5 ग्राम/किलो बीज से बीज उपचार करे |
  • माइकोराइज़ा @ 4 किलो प्रति एकड़ 15 दिन की फसल में भुरकाव करें|
  • फूल आने से पहले थायोफिनेट मिथाईल 75% @ 300 ग्राम/एकड़ का स्प्रे करें|
  • फली बनते समय प्रोपिकोनाज़ोल 25% @ 125 मिली/ एकड़ का स्प्रे करें|

 

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Symptoms of Fusarium wilt

  • इस रोग का  रोग कारक फ्यूसेरियम ऑक्सीस्पोरम एफ.एस.पी. हैं 
  • कपास में होने वाले सभी रोगो में यह एक मुख्य रोग के रूप में देखा जाता हैं ।
  • इस रोग में पत्तिया किनारो से मुरझाना शुरू करती हैं तथा मुख्य शिरा की ओर मुरझाती चली जाती हैं | 
  • पत्तियों की शिराये गहरी, संकरी और धब्बे वाली हो जाती हैं। तथा अंत में पौधा सुख कर मर जाता हैं
  • इस  रोग का मुख्य लक्षण जड़ो के पास वाले तने का अंदर से क्षतिग्रस्त होना हैं।

 

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Control of wilt in okra

  • प्रारंभिक अवस्था में पौधा अस्थाई रुप से मुरझा जाता है किंतु बीमारी का प्रभाव बढ़ जाने पर पौधा स्थाई रुप से मुरझाकर सूख जाता है ।
  • ग्रसित पौधों की पत्तियाँ पीली हो जाती है ।
  • ग्रसित पौधों के तने को काटने पर आधार गहरे भूरे रंग का दिखाई देता है ।
  • भिण्डी को लगातार एक ही खेत में नहीं उगाना चाहिए ।
  • फसल चक्र अपनाना चाहिए ।
  • थायोफनेट मिथाइल 70% WP @ 200-300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • हेक्साकोनाजोल 5% ईसी @ 250-400 मिली/एकड़ का उपयोग भी इस बीमारी की रोकथाम के लिए किया जा सकता हैं ।

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Control of fusarium wilt in muskmelon

  • फ्यूजेरियम विल्ट के पहले लक्षण पुरानी पत्तियो पर दिखाई देते हैं। पत्तिया पीलापन लिए हुए सुख जाती हैं। इस बीमारी के लक्षण दिन में गर्मी के समय स्पष्ट रूप से दिखाई देते है।
  • तने में  भूरे रंग की दरारें दिखाई देती हैं, जिसमे से लाल-भूरे रंग का गाढ़ा रिसाव निकलता हैं।
  • बुवाई के लिए स्वस्थ बीजो का प्रयोग करें।
  • खेत की गहरी जुताई, खरपतवार प्रबंधन, तथा उचित जलनिकास आवश्यक हैं |
  • फ्यूजेरियम विल्ट के प्रभावी नियंत्रण के लिए प्रोपिकोनाजोल 25% ईसी @ 200 मिली / एकड़ या थियोफैनेट-मिथाइल 500 ग्राम प्रति एकड़ का उपयोग करें।

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Control of fusarium wilt in watermelon

  • रेतीली मिट्टी में यह रोग अधिक पाया जाता है।
  • संक्रमित पौधो को नष्ट करें।
  • रोग मुक्त बीज का उपयोग करे।
  • बुवाई से पहले कार्बेन्डाजिम @ 2 ग्राम/किलोग्राम बीज के साथ बीजोपचार करें।
  • जब तरबूज के पौधे पर बीमारी दिखाई दे तो प्रोपिकोनाजोल @ 80-100 मिली/एकड़ का प्रयोग करें।

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