Nutrient management in sponge gourd and ridge gourd

गिलकी एवं तुरई में पोषक तत्व प्रबंधन:-

  • खेत की तैयारी के समय 20-25 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद का प्रयोग करें|
  • 75 किलोग्राम यूरिया 200 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट एवं 80 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश को अंतिम जुताई के समय डालें|
  • अन्य बचे हुये 75 किलोग्राम यूरिया की आधी मात्रा को 8-10 पत्ति अवस्था में तथा आधी मात्रा को फुल आने की अवस्था में डालें|

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Objectives of Soil testing

मिट्टी परीक्षण के उद्देश्य:-

  • फसलों में रासायनिक खादों के प्रयोग की सही मात्रा निर्धारित करने के लिए।
  • ऊसर तथा अम्लिय भूमि के सुधार तथा उसे उपजाऊ बनाने का सही ढंग जानने के लिए।
  • फसल लगाने हेतु भूमि की अनुकूलता तय करने के लिए।

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Role of Copper in Plant

पौधों में कॉपर की भूमिका:- स्वस्थ पौधों के विकास के लिए कॉपर अत्यधिक आवश्यक घटक है अन्य बातों के अलावा, यह कई एंजाइम प्रक्रियाओं में एक भूमिका निभाता है और क्लोरोफिल के गठन की कुंजी है।कॉपर के कार्य:- कॉपर पौधों में कुछ एंजाइमों को सक्रिय करता है जो लिग्निन संश्लेषण में शामिल होते हैं और यह कई एंजाइम प्रणालियों में आवश्यक होता है। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में यह आवश्यक है, पौधे के श्वसन में आवश्यक है और कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन के पौधे के चयापचय में सहायता करता है। कॉपर  सब्जियों में स्वाद एवं रंग को एवं फूलों में रंगों को तेज करने का भी कार्य करता है| कमी के लक्षण:- कॉपर स्थिर होता है, जिसका अर्थ है कि इसकी कमी के लक्षण नए पत्तियों में होते हैं लक्षण फसल के आधार पर भिन्न होते हैं। आमतौर पर, लक्षण चषकन और पूरी पत्ती या नए पत्तियों की नसों के बीच के एक मामूली पीलापन के रूप में शुरू होते हैं। पत्ती के पीले क्षेत्रों के भीतर, छोटे उत्तक क्षय धब्बे विशेष रूप से पत्ती के किनारों पर हो सकते हैं। लक्षणों आगे बढ़ कर, नई पत्ते आकार में छोटे होते हैं, अपनी चमक खो देते हैं और कुछ मामलों में पत्तियां सुख सकती हैं। पार्श्विक शाखाओं की वृद्धि को बाधित करने के कारण शीर्ष कालिका में उत्तक क्षय होता है और मर जाते हैं। पौधो में आमतोर पर तने की लम्बाई पत्तियों के बीच में कम हो जाती है| फूल का रंग अक्सर सामान्य से हल्का होता है| पोटेशियम, फास्फोरस या अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों की अत्यधिकता अप्रत्यक्ष रूप से कॉपर की कमी का कारण हो सकते हैं। साथ ही यदि जमीन का  पीएच उच्च है, तो यह कॉपर की कमी का कारण बन सकती है क्योंकि यह पौधे को कम उपलब्ध होता है।

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Fertilizer and Manure in Guava trees

अमरुद के पौधों में खाद एवं उर्वरक:-गोबर की सड़ी हुई खाद 50 किलो और नाईट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश प्रत्येक 1 किलो मात्रा दो बराबर भागो में मार्च एवं अक्टूबर के दोरान देना चाहिए| अधिक उपज के लिए यूरिया 1% + जिंक सल्फेट 0.5% के घोल का छिडकाव मार्च एवं अक्टूबर में साल में दो बार करें| बोरान की कमी ( पत्तियों का छोटा होना, फलो का फटना और फलो का कड़क होना) को दूर करने के लिए बोरेक्स 0.3% का छिडकाव फुल एवं फल लगने की अवस्था पर करे|

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Nutrient Management in Pea

मटर में पोषक तत्व प्रबंधन:-

बुआई के समय  30 किलो नाईट्रोजन प्रति हेक्टेयर की आधारीय खुराक प्रारंभिक वृद्धि को उत्तेजित करने के लिए पर्याप्त होती है। नाईट्रोजन की अधिक मात्रा ग्रंथियों के स्थिरीकरण पर बुरा प्रभाव डालती है |फसल फास्फोरस प्रयोग को अच्छी प्रतिक्रिया देती है क्योंकि यह जड़ में ग्रंथ गठन को बढ़ाकर नाइट्रोजन निर्धारण का समर्थन करता है। इससे मटर की उपज और गुणवत्ता भी बढ़ जाती है।पौधे की उपज और नाइट्रोजन निर्धारण क्षमता बढ़ाने में पोटेशिक उर्वरकों का भी प्रभाव होता है।

सामान्य अनुशंसा :-

उर्वरको के प्रयोग की सामान्य अनुशंसा निम्न बातों पर निर्भर करता है-

  • मृदा उर्वरकता एवं दी जाने वाली कार्बनिकखाद/गोबर खाद की मात्रा |
  • सिंचाई की स्तिथि:- वर्षा आधरित या सिंचित
  • वर्षा आधारित फसल में उर्वरको की मात्रा आधी दी जाती है |

कितनी मात्रा में दे, कब देना हे-

  • मटर की भरपूर पैदावार के लिए 10 किलोग्राम यूरिया, 50 किलोग्राम डी.ए.पी, 15 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ  पोटाश और 6 किलोग्राम सल्फर 90% डब्लू.जी. को प्रति एकड़ प्रयोग करते है|
  • खेत की तैयारी के समय यूरिया की आधी मात्रा एवं डी.ए.पी, म्यूरेट ऑफ पोटाश और सल्फर की पूरी मात्रा को प्रयोग करते है| एवं शेष बची हुई यूरिया की मात्रा को दो बार में सिंचाई के समय देना चाहिए|

Source: IIVR, VARANASI and Handbook Of Agriculture

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Fertilizer application for Chickpea

चने की फसल दलहनी होने के कारण इसको नाइट्रोजन की कम आवश्यकता होती है क्योंकि चने के पौधों की जड़ों में ग्रन्थियां पाई जाती है। ग्रन्थियों में उपस्थित जीवाणु वातावरण की नाइट्रोजन का जड़ों में स्थिरीकरण करके पौधे की नाइट्रोजन की पूर्ति कर देती है। लेकिन प्रारम्भिक अवस्था में पौधे की जड़ों में ग्रंन्थियों का पूर्ण विकास न होने के कारण पौधे को भूमि से नाइट्रोजन लेनी होती है। अतः नाइट्रोजन की आपूर्ति हेतु 20 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। इसके साथ 40 कि.ग्रा. फॉस्फोरस प्रति हैक्टेयर की दर से देना चाहिये। नाइट्रोजन की मात्रा यूरिया या डाई अमोनियम फास्फेट (डीएपी) तथा गोबर खाद व कम्पोस्ट खाद द्वारा दी जा सकती है। जबकि फास्फोरस की आपूर्ति सिंगल सुपर फास्फेट या डीएपी या गोबर व कम्पोस्ट खाद द्वारा की जा सकती है। एकीकृत पोषक प्रबन्धन विधि द्वारा पोषक तत्वों की आपूर्ति करना लाभदायक होता है। एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिए 2.50 टन गोबर या कस्पोस्ट खाद को भूमि की तैयारी के समय अच्छी प्रकार से मिट्‌टी में मिला देनी चाहिये। बुवाई के समय 22 कि.ग्रा. यूरिया तथा 125 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट या 44 कि.ग्रा. डीएपी में 5 किलो ग्राम यूरिया मिलाकर प्रति हैक्टेयर की दर से पंक्तियों में देना पर्याप्त रहता है।

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Manures and fertilizers in Peas

सामान्यतः 20 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद बुवाई के लगभग 1.5 माह पूर्व खेत में मिला देना चाहिये | 25 किग्रा नाइट्रोजन 70 किग्रा फास्फोरस 50 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर उपयोग करना चाहिये| उर्वरको का मिश्रण बना के बुवाई के समय ही बीज की कतार से 5 सेमी. बगल से तथा 5 सेमी. बीज की सतह के नीचे कूंड में देना चाहिए|

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Fertilizer and Manure in Onion

गोबर की खाद 15-20 टन / हेक्टयर की दर से भुमि की तैयारी के समय मिलाये | नाईट्रोजन 120 किलो/. हे. फास्फोरस 60 किलों प्रति हे. पोटाश 75 किलो /हे.
20 किलो सल्फर, 10 किलो बोरेक्स एवं 10-15 किलो जाईम देने से उपज एवं गुणवत्ता बढती है |

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