सिंचाई की नई तकनीक ड्रिप सिंचाई से पानी की हर बूँद का खेतों में होगा इस्तेमाल

Drip irrigation
  • फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने में पानी की उपलब्धता एक महत्वपूर्ण कारक होता है। पर लगातार बढ़ती हुई आबादी और जलवायु परिवर्तन के कारण ज़मीन में उपलब्ध जल की मात्रा कम होती जा रही है।

  • पानी की कमी के कारण लगातार फसलों के उत्पादन में कमी हो रही है। इसी समस्या के समाधान के लिए ड्रिप सिंचाई पद्धति की शुरुआत हुई जो कि, किसानों के लिए एक वरदान साबित हुआ है।

  • इस विधि में पानी को स्रोतों से प्लास्टिक की नलियों द्वारा सीधा पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है और साथ ही उर्वरकों को भी इनके माध्यम से पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है। ऐसा करने की प्रक्रिया फर्टिगेशन कहलाती है।

  • अन्य सिंचाई प्रणाली की तुलना में यह पद्धति 60-70% पानी की बचत करती है।

  • ड्रिप सिंचाई के माध्यम से पौधों को अधिक दक्षता के साथ पोषक तत्त्व उपलब्ध करवाने में मदद मिलती है।

  • ड्रिप सिंचाई के माध्यम से पानी का अप-व्यय (वाष्पीकरण एवं रिसाव के कारण) को रोका जा सकता है।

  • ड्रिप सिंचाई में पानी सीधे फसल की जड़ों में दिया जाता है। जिस कारण आस-पास की जमीन सूखी रहने से खरपतवार विकसित नहीं हो पाते हैं।

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जानिए, कपास की खेती में ड्रिप सिंचाई का महत्व

👉🏻किसान भाइयों, ड्रिप इरिगेशन सिस्टम तकनीक की सहायता से कपास की फसल में 60 से 70 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है। 

👉🏻इस विधि से फसलों की पैदावार में काफी हद तक वृद्धि देखी गई है। 

👉🏻फसलों को उगाने के लिए ड्रिप सिंचाई सबसे कुशल जल और पोषक तत्व वितरण प्रणाली है। 

👉🏻यह पानी और पोषक तत्वों को सीधे पौधे की जड़ों के क्षेत्र में, सही मात्रा में, सही समय पर पहुंचता है। 

👉🏻प्रत्येक पौधे को ठीक से पोषक तत्व, पानी मिलता है, जब उसे इसकी आवश्यकता होती है।  

👉🏻ड्रिप सिंचाई से पानी, बिजली, श्रम एवं लागत की बचत होती है और आवश्यक उर्वरक की मात्रा में कमी आती है। 

👉🏻इसके उपयोग से खरपतवारों पर भी लगाम लगाई जा सकती है, इसके प्रयोग से आर्द्रता का स्तर भी अनुकूल बना रहता है।

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ड्रिप इरिगेशन को बढ़ावा देने के लिए सरकार किसानों को दे रही 4 हजार करोड़ रुपए

Government is giving 4 thousand crores rupees to farmers for promoting drip irrigation

किसान भाई आजकल सिंचाई के लिए ड्रिप इरिगेशन का इस्तेमाल खूब कर रहे हैं। केंद्र सरकार भी इसे बढ़ावा दे रही है और “पर ड्रॉप मोर क्रॉप” स्कीम के अंतर्गत विभिन्न राज्य के किसानों के लिए 4 हजार करोड़ रुपए आवंटित किये हैं। इस स्कीम के पीछे का मुख्य उद्देश्य खेती में पानी के उपयोग को कम करके पैदावार बढ़ाना है।

ग़ौरतलब है की केंद्र सरकार ने सिंचाई प्रक्रिया में पानी की एक-एक बूंद का उपयोग करने के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना चलाई है। इस योजना के अंतर्गत ही ‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप- माइक्रो इरीगेशन’ कार्यक्रम चलाया जा रहा है।

‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप- माइक्रो इरीगेशन’ कार्यक्रम के अंतर्गत सिंचाई की आधुनिक तकनीकों पर जोर दिया रहा है। इसके साथ ही विभिन्न राज्य के किसानों को 4000 करोड़ रुपए आवंटित कर दिए हैं। इस कार्यक्रम का लक्ष्य सूक्ष्म सिंचाई तकनीक जैसे ड्रिप और स्प्रिंक्लर इरिगेशन सिस्टम द्वारा खेतों में पानी का कम उपयोग करके अधिक पैदावार लेना है।

स्रोत: कृषि जागरण

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Drip irrigation and Advantages of Drip Irrigation

अच्छी फसल के सफल उत्पादन के लिए पानी की उपलब्धता एक महत्वपूर्ण कारक है| लगातार बढ़ती हुई आबादी और जलवायु परिवर्तन के कारण ज़मीन में उपलब्ध जल की मात्रा कम होती जा रही है, जिस कारण लगातार फसलों के उत्पादन में कमी होते जा रही है| इसी समस्या के समाधान के लिए ड्रिप सिंचाई का आविष्कार किया गया जो कि, किसानों के लिए एक वरदान साबित हुई है| इस विधि में पानी को स्रोतों से प्लास्टिक की नलियों  द्वारा सीधा पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है और साथ ही यदि उर्वरकों को भी इनके माध्यम से पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है तो यह प्रक्रिया फर्टिगेशन कहलाती है|

लाभ –

  • अन्य सिंचाई प्रणाली की तुलना में 60-70% पानी की बचत होती है|  

  • ड्रिप सिंचाई के माध्यम से पौधों को अधिक दक्षता के साथ पोषक तत्त्व उपलब्ध करने में मदद मिलती है|

  • ड्रिप सिंचाई के माध्यम से पानी का अप-व्यय (वाष्पीकरण एवं रिसाव के कारण)  को रोक सकते हैं |

  • ड्रिप सिंचाई में पानी सीधे फसल की जड़ों में दिया जाता है। जिस कारण आस-पास की जमीन सूखी रहने से खरपतवार विकसित नहीं हो पाते हैं|

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Irrigation in Bottle gourd

  • बीज को लगाने से पहले खेत की सिंचाई करें और उसके बाद सप्ताह में एक बार सिंचाई करें
  • फरवरी – मार्च में बोई गई फसल, की पहली सिंचाई बुवाई के 2-3 दिन बाद दी जाती है।
  • उसके बाद सिंचाई 7-8 दिन के अंतराल पर करें।

ड्रीप सिंचाई

  • ड्रिप सिस्टम स्थापित करें और इनलाइन पार्श्व ट्यूबों को 1.5 मीटर के अंतराल पर रखें। क्रमशः 4 लीटर प्रति घंटा और 3.5 लीटर प्रति घंटा क्षमता के साथ 60 सेमी और 50 सेमी के अंतराल पर ड्रिपर्स रखें।

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Drip irrigation a Boon

ड्रिप (बूँद-बूँद) सिंचाई एक वरदान –

अच्छी फसल के सफल उत्पादन के लिए पानी की उपलब्धता एक महत्वपूर्ण कारक है| लगातार बढ़ती हुई आबादी और जलवायु परिवर्तन के कारण ज़मीन में उपलब्ध जल की मात्रा कम होती जा रही है, जिस कारण लगातार फसलों के उत्पादन में कमी होते जा रही है| इसी समस्या के समाधान के लिए ड्रिप सिंचाई का आविष्कार किया गया जो कि, किसानों के लिए एक वरदान साबित हुई है| इस विधि में पानी को स्रोतों से प्लास्टिक की नलियों  द्वारा सीधा पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है और साथ ही यदि उर्वरकों को भी इनके माध्यम से पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है तो यह प्रक्रिया फर्टिगेशन कहलाती है|

लाभ –

  • अन्य सिंचाई प्रणाली की तुलना में 60-70% पानी की बचत होती है|  
  • ड्रिप सिंचाई के माध्यम से पौधों को अधिक दक्षता के साथ पोषक तत्त्व उपलब्ध करने में मदद मिलती है|
  • ड्रिप सिंचाई के माध्यम से पानी का अप-व्यय (वाष्पीकरण एवं रिसाव के कारण)  को रोक सकते हैं |
  • ड्रिप सिंचाई में पानी सीधे फसल की जड़ों में दिया जाता है। जिस कारण आस-पास की जमीन सूखी रहने से खरपतवार विकसित नहीं हो पाते हैं|

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