Control of Verticillium wilt in cotton

  • छ: वर्षीय फसल चक्र अपनाए|
  • गर्मी के दिनों में गहरी जुताई (6-7 इन्च) करके खेत को समतल करे |
  • रोग मुक्त बीज का प्रयोग करे |
  • रोग प्रतिरोधी किस्में लगाये|
  • ट्राइकोडर्मा विरिडी @ 2 किलो प्रति एकड़ की दर से बुवाई के पहले 40- 50 किलो गोबर की खाद के साथ मिला कर जमीन में मिलवाये |
  • कार्बोक्सीन 37.5 % + थायरम 37.5 % @ 3 ग्राम/किलो बीज या ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 5 ग्राम/किलो बीज से बीज उपचार करे |
  • ट्राईकोडर्मा विरिडी @ 1 किलो + सूडोमोनास फ्लोरोसेंसे @ 1 किलो का घोल 200 लीटर पानी में मिला कर ड्रेंचिंग करे |
  • माइकोराइज़ा @ 4 किलो प्रति एकड़ 15 दिन की फसल में भुरकाव करें|
  • फूल आने से पहले थायोफिनेट मिथाईल 75% @ 300 ग्राम/एकड़ का स्प्रे करें |
  • फली बनते समय प्रोपिकोनाज़ोल 25% @ 125 मिली/ एकड़ का स्प्रे करें | ( या ) 
  • कासुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 46% WP @ 300 ग्रामं प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करे | 

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Control of late blight of tomato

  • कटाई के बाद फसल अवशेष को नष्ट करें
  • खेत पर जल भराव की स्थिति न होने दे | 
  • रोग नियंत्रण के लिए किसी भी एक फफूंद नाशक का स्प्रे करे | 
  • मेटलैक्सिल 8% + मैनकोजेब 64% @ 500 ग्राम/एकड़।
  • कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP @ 300 ग्राम/एकड़।
  • पायरोस्टॉकलोबिन 5% + मेटीराम 55% @ 600 ग्राम/एकड़।
  • डाइमेथोमॉर्फ 50% डब्लू पी @ 400 ग्राम/एकड़।

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें

Share

Prevention/Control/Treatment of Mastitis

थनैला रोग से बचाव/रोकथाम/उपचार:-

थनैला बीमारी से अर्थिक क्षति का मूल्याकंन करने पर एक आश्चर्यजनक तथ्य सामने आता है जिसमें यह देखा गया हैं कि प्रत्यक्ष रूप मे यह बीमारी जितना नुकसान करती हैं, उससे कहीं ज्यादा अप्रत्यक्ष रूप में पशुपालकों को आर्थिक नुकसान पहुँचाती हैं। कभी-कभी थनैला रोग के लक्षण प्रकट नहीं होते हैं परन्तु दूध की कमी, दूध की गुणवत्ता में ह्रास एवं बिसुखने के पश्चात (ड्राई काउ) थन की आंशिक या पूर्ण रुप से  क्षति हो जाती है, जो अगले बियान के प्रारंभ में प्रकट होती है।

  • पशुओं के बांधे जाने वाले स्थान/बैठने के स्थान व दूध दुहने के स्थान की सफाई का विशेष ध्यान रखें।
  • दूध दुहने की तकनीक सही होनी चाहिए जिससे थन को किसी प्रकार की चोट न पहुंचे।
  • थन में किसी प्रकार की चोट (मामूली खरोंच भी) का समुचित उपचार तुरंत करायें।
  • थन का उपचार दुहने से पहले व बाद में दवा के घोल में (पोटेशियम परमैगनेट 1:1000 या क्लोरहेक्सिडीन 0.5  प्रतिशत) डुबो कर करें।
  • दूध की धार कभी भी फर्श पर न मारें।
  • समय-समय पर दूध की जाँच (काले बर्तन पर धार देकर) या प्रयोगशाला में करवाते रहें।
  • शुष्क पशु उपचार भी ब्यांने के बाद थनैला रोग होने की संभावना लगभग समाप्त कर देता है। इसके लिए पशु चिकित्सक से संपर्क करें।
  • रोगी पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखें तथा उन्हें दुहने वाले भी अलग हों। अगर ऐसा संभव न हो तो रोगी पशु सबसे अंत में दुहें।

    उपचार

रोग का सफल उपचार प्रारम्भिक अवस्थाओं में ही संभव है अन्यथा रोग के बढ़ जाने पर थन बचा पाना कठिन हो जाता है। इससे बचने के लिए दुधारु पशु के दूध की जाँच समय पर करवा कर जीवाणुनाशक औषधियों द्वारा उपचार पशु चिकित्सक द्वारा करवाना चाहिए। प्रायः यह औषधियां थन में ट्‌यूब चढा कर तथा साथ ही मांसपेशी में इंजेक्शन द्वारा दी जाती है।

थन में ट्‌यूब चढा कर उपचार के दौरान पशु का दूध पीने योग्य नहीं होता। अतः अंतिम ट्‌यूब चढने के 48 घंटे बाद तक का दूध प्रयोग में नहीं लाना चाहिए। यह अत्यन्त आवश्यक है कि उपचार पूर्णरूपेण किया जाये, बीच में न छोडें। इसके अतिरिक्त यह आशा नहीं रखनी चाहिए कि (कम से कम) वर्तमान ब्यांत में पशु उपचार के बाद पुनः सामान्य पूरा दूध देने लग जाएगा।

थनैला बीमारी की रोकथाम प्रभावी ढ़ंग से करने के लिए निम्नलिखित विन्दुओं पर ध्यान देना आवश्यक हैं।

  • दूधारू पशुओं के रहने के स्थान की नियमित सफाई जरूरी हैं। फिनाईल के घोल तथा अमोनिया कम्पाउन्ड का छिड़काव करना चाहिए।
  • दूध दुहने के पश्चात् थन की यथोचित सफाई लिए लाल पोटाश या सेवलोन का प्रयोग किया जा सकता है।
  • दूधारू पशुओं में दूध बन्द होने की स्थिति में ड्राई थेरेपी द्वारा उचित ईलाज करायी जानी चाहिए।
  • थनैला होने पर तुरंत पशु चिकित्सक की सलाह से उचित ईलाज करायी जाय।
  • दूध की दुहाई निश्चित अंतराल पर की जाए ।

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share