- प्रभावित पौधे के पत्ते आकार में बहुत छोटे और झुर्रीदार दिखाई देते तथा पत्ती की शिरा के बीच का भाग पीले रंग का दिखाई देता है |
- इस रोग का प्रबंधन वायरस मुक्त बीज का प्रयोग करके किया जा सकता है|
- माहू मुक्त क्षेत्रो में बीज तैयार करे |
- रोग वाहक माहू की जनसंख्या नियंत्रण के लिए उपयुक्त सम्पर्क/दैहिक एसीटामिप्रिड 20% SP @ 10 ग्राम /15 लीटर पानी के साथ स्प्रे करे | या
- इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL @ 10मिली /15 लीटर पानी के साथ स्प्रे करे |
करेला में लाल कीट का नियंत्रण
- गहरी जुताई करने से भूमि के अन्दर उपस्थित प्यूपा या ग्रब ऊपर आ जाते है सूर्य की किरणों में मर जाते है |
- बीजो के अंकुरण के बाद पौध के चारों तरफ भूमि में कारटाप हाईड्रोक्लोराईड 3 G दाने डाले|
- बीटल को इकट्ठा करके नष्ट करें|
- फसल में 2 किग्रा बिवेरिया बेसियाना + (साइपरमैथ्रिन 4% ईसी + प्रोफेनोफॉस 40% ईसी) @ 400 एमएल/एकड़ के हिसाब से स्प्रे करें
- फसल को 2 किलोग्रामबिवेरिया बेसियाना + (लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 4.9% सीएस )@ 200 मि.ली./एकड़ की दर से छिड़काव करें।
प्याज में कंद के फटने से सम्बंधित रोग का नियंत्रण
-
- एक समान सिंचाई और उर्वरकों की मात्रा उपयोग करने से कंदों को फटने से रोका जा सकता है|
- धीमी वृद्धि करने वाले प्याज की किस्मों का उपयोग करने से इस विकार को कम कर सकते है|
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मटर में अंगमारी (झुलसा) और पद गलन रोग का नियंत्रण
- स्वस्थ बीजों का उपयोग करें एवं बुवाई से पहले कार्बेन्डाजिम + मेंकोजेब @ 250 ग्राम/ क्विन्टल बीज से बीजोपचार करें।
- रोग ग्रस्त पौधों पर फूलों के आने पर मैनकोजेब 75% @ 400 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें एवं 10-15 दिन के अंतराल से पुनः छिड़काव करें ।
- थायोफनेट मिथाइल 70% डब्ल्यूपी @ 250 ग्राम/एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें| या
- क्लोरोथ्रोनिल 75% WP @ 250 ग्राम/एकड़ छिड़काव करें।
- रोगग्रस्त पौधों को निकालकर नष्ट करें ।
- जल निकास की उचित व्यवस्था करें ।
मटर में माहु का नियंत्रण
मटर में माहु का नियंत्रण:-
- हरे रंग के छोटे कीट होते है । वयस्क, बड़े नाशपाती के आकार वाले हरे, पीले या गुलाबी रंग के होते है।
हानि :-
- पत्तियों, फूलों व फल्लियों से रस चूसते है ।
- प्रभावित पत्तियां मुड़ जाती है व टहनियां छोटी रह जाती है ।
- यह कीट मीठे पदार्थ का रिसाव करते है जो सूटी मोल्ड को विकसित करते है ।
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Control of Root-Knot Nematode in Tomato
- प्रतिरोधक किस्मों को उगाये|
- ग्रीष्म ऋतू में भूमि की गहरी जुताई करें|
- नीम खली 80 किलो प्रति एकड़ की दर से देना चाहिए|
- कार्बोफ्युरोन 3% G 8 किलो प्रति एकड़ की दर से देना चाहिए|
- पेसिलोमाइसेस लिलासिनास -1% डब्ल्यूपी, बीज उपचार के लिए 10 ग्राम/किलोग्राम बीज, 50 ग्राम/मीटर वर्ग नर्सरी उपचार, 2.5 से 5 किलो/हेक्टेयर जमीन से देने के लिए |
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Management of root aphid in Wheat
- फसल की देर से बुवाई न करें|
- यूरिया का प्रयोग ज्यादा न करे|
- खड़ी फसल में इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL 60-70 मिली प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें|
- या थायमेथॉक्ज़ाम 25% WG @ 100 ग्राम के साथ बिवेरिया बेसियाना 2 किलो प्रति एकड़ की दर से खाद/रेत/मिट्टी में मिला कर जमीन से दे और सिंचाई करें |
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Major Diseases and Their Control Measures of Wheat
गेंहू की प्रमुख बीमारियों में कण्डुआ (रस्ट) रोग प्रमुख है| कंडुआ रोग 3 प्रकार का होता है | पीला कंडुआ, भूरा कंडुआ और काला कंडुआ |
- पीला कंडुआ:- यह रोग पकसीनिया स्ट्रीफोर्मियस नामक फफूंद से होता है | यह फफूंद नारंगी-पीले रंग के बीजाणु के द्वारा ग्रसित खेत से स्वस्थ खेत को प्रभावित करता है यह पत्तों की नसों की लंबाई के साथ पट्टियों में विकसित होकर छोटे-छोटे, बारीक़ धब्बे विकसित कर देता है| धीरे-धीरे यह पत्तियों की दोनों सतह पर फ़ैल जाता है| |
- अनुकूल परिस्थितियां:- यह रोग अधिक ठण्ड और आद्र जलवायु लगभग 10-15° से.ग्रे. तापमान पर फैलता है| इस पर बने हुए पॉवडरी धब्बे 10-14 दिनों में फूट जाते है और विभिन्न माध्यमों जैसे- हवा, बरसात और सिंचाई के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पहुँचते है | इससे लगभग गेंहू की फसल में 25% हानि होती है|
- भूरा कण्डुआ:- यह रोग पकसीनिया ट्रीटीसीनिया नामक फफूंद से होता है | यह फफूंद पत्तियों के ऊपरी सतह से शुरू होकर तनों पर लाल-नारंगी रंग के धब्बे बनता है | यह धब्बे 1.5 एम.एम.के अंडाकार आकृति के होते है|
- अनुकूल परिस्थितियां:- यह रोग 15 -20°से.ग्रे. तापमान पर फैलता है| इसके बीजाणु विभिन्न माध्यमों जैसे- हवा,बरसात और सिंचाई के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पहुँचते है | इसके लक्षण 10-14 दिनों में दिखने लग जाते है|
- काला कण्डुआ:- यह रोग पकसीनिया ग्रेमिनिस नामक फफूंद से होता है | यह रोग बाजरे की फसल पर भी क्षति पहुँचाता है| यह फफूंद पौधों की पत्तियों और तनों पर लम्बे,अण्डाकार आकृति में लाल-भूरे रंग के धब्बे बनाता है| कुछ दिनों बाद यह धब्बे फट जाते है और इनमे से पाउडरी तत्त्व निकलता है जो की विभिन्न माध्यमों जैसे- सिंचाई, बरसात और हवा के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पहुँचता है और अन्य फसलों को क्षति पहुँचाता है |
- अनुकूल परिस्थितियां:- काला कण्डुआ अन्य कण्डुआ की तुलना में अधिक तापमान 18 -30°से.ग्रे.पर फैलता है| बीजों को नमी (ओस, बारिश या सिंचाई) की आवश्यकता होती है और फसल को संक्रमित करने के लिए छह घंटे तक लगते हैं और संक्रमण के 10-20 दिनों के बाद धब्बे देखे जा सकते है|
नियंत्रण:-
- कंडुआ रोग के नियंत्रण के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिए|
- रोग प्रति-रोधी किस्मों की बुवाई करें |
- बीज या उर्वरक उपचार बुवाई के चार सप्ताह तक कण्डुआ को नियंत्रित कर सकता है और उसके बाद इसे दबा सकता है।
- एक ही सक्रिय घटक वाले कवकनाशी का बार-बार उपयोग नहीं करें।
- कासुगामीसिन 5%+कॉपर ऑक्सीक्लोरिड 45% डब्लू.पी. 320 ग्राम/एकड़ या प्रोपिकोनाज़ोल 25% ई.सी.240 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें|
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- इसके लिए दैहिक कीटनाशक जैसे डेल्टामेथ्रिन 2.8% ईसी @ 200 मिली/एकड़ या
- ट्रायजोफॉस 40% ईसी @ 350-500 मिली/ एकड़ या
- डायमिथोएट 30% EC @ 400 मिली/एकड़ या
- करटोप हाइड्रो क्लोराइड 50% SP @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से स्प्रे |
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Management of Mealy Bug in Cotton
- पुरे साल खेत खरपतवार मुक्त रखना चाहिए |
- खेत की निगरानी रखनी चाहिए ताकि शुरुआत में ही कीट को देखा जा सके|
- अधिकतम नियंत्रण के लिए शुरुआती अवस्था में ही प्रबंधन के उपाय करें |
- आवश्यकता होने पर नीम आधारित वानस्पतिक कीटनाशक जैसे नीम तेल @ 75 मिली प्रति पंप या नीम निंबोली सत @ 75 मिली प्रति पम्प का स्प्रे करें|
- रासायनिक नियंत्रण के लिए डायमिथोएट @ 30 मिली प्रति पम्प या प्रोफेनोफॉस @ 40 मिली प्रति पम्प या ब्यूप्रोफेज़िन @ 50 मिली प्रति पम्प का स्प्रे करें|
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