Soil preparation for cultivation of Bitter gourd

  • खेत की जुताई एवं 1-2 बार क्राँस जुताई से भूमि को बारीक एवं समतल करते है।
  • गोबर की खाद को 8 -10 टन प्रति एकड़ के दर से आखरी जुताई से पहले मिलाते है।
  • 2- 3 फ़ीट चौड़ाई के बेड बनाते है। यह सहारा देने की विधि पर निर्भर करता है।

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Seed Treatment in Bitter gourd

  • अच्छी गुणवत्ता एवं बीमारी और कीट से बचाव के लिए बुआई के पहले बीज उपचार जरूर करना चाहिए|
  • उपचार के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मेंकोजेब 63% फफूँदनाशक का उपयोग 2 ग्राम/किलोग्राम बीज की दर से करते है| या कार्बोक्सिन 37.5% + थाइरम 37.5%  2 ग्राम/किलोग्राम बीज से उपचारित करें|
  • रस चूसक कीट के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 600 एफ. एस. (48%) 1 एम.एल/कि.ग्रा से उपचारित कर सकते है|

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Nutrient Management of Bitter Gourd

करेले में पोषक तत्व प्रबंधन:-

  • खेत की तैयारी करते समय 25-30 टन गोबर की खाद खेत में मिलाना चाहिये  |
  • अंतिम जुताई के समय 75 कि.ग्रा. यूरिया, 200 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट एवं 75 कि.ग्रा. पोटाश की मात्रा खेत में मिलाये |
  • शेष बचे हुये 75 कि.ग्रा. यूरिया की मात्रा को दो से तीन बार में बराबर भागों में बाँट कर डाले |
  • फोस्फोरस, पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा एवं नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा को बोये गये बीज से 8 से 10  से.मी. के पूरी पर डाले |
  • खेत में नाइट्रोजन पोषक तत्व की कमी होने पर पत्तियाँ एवं लताए  पीले रंग की हों जाती हैं,साथ ही पौधों की वृद्धि रुक जाती है |
  • अधिक नाईट्रोजन देने से वानस्पतिक वृद्धि अधिक होती हैं और फलन कम होता हैं नर फूलों की संख्या बढ़ जाती हैं |
  • यदि भूमि में पोटेशियम की कमी होती, तब पौधे की बढ़वार और पत्तियों का क्षेत्रफल कम हों जाता हैं और फूल झड़ने लगते है व फल लगने बंद हों जाते है |

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Germination before sowing in bitter gourd

करेला में बुआई पूर्व अंकुरण:-

  • करेले के बीज का आवरण कड़ा होता है, इसलिए 2-3माह पुराने बीजों को रात भर के लिए ठन्डे पानी में भिगोया जाता है|
  • बीजों को अच्छे अंकुरण के लिए 1-2 दिन तक नम कपड़े में लपेट कर रखा जाता हैं |
  • बीजों में अंकुरण के तुरंत बाद ही बो दिया जाता है |
  • बीजों को 2 सेमी. गहराई में बोना चाहिये |

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Red Pumpkin Beetle in Bitter Gourd

करेला में लाल कीट का नियंत्रण:-

  • अंडे से निकले हुये ग्रब जड़ो, भूमिगत भागो एवं जो फल भूमि के संपर्क में रहते है उन्है खाता है|
  • उसके बाद ग्रसित जड़ो एवं भूमिगत भागों पर मृतजीवी फंगस का आक्रमण हो जाता है जिसके फलस्वरूप अपरिपक्वफल व लताएँ सुख जाती है|
  • इसमें ग्रसित फल उपयोग करने हेतु अनुपयुक्त होते है|
  • बीटल पत्तियों को खाकर छेद कर देते है |
  • पौध अवस्था में बीटल का आक्रमण होने पर मुलायम पत्तियों को खाकर हानि पहुचाते है जिसके कारण पौधे मर जाते है |

नियंत्रण:-

  • गहरी जुताई करने से भूमि के अन्दर उपस्थित प्यूपा या ग्रब ऊपर आ जाते है सूर्य की किरणों में मर जाते है |
  • बीजो के अंकुरण के बाद पौध के चारों तरफ भूमि में कारटाप हाईड्रोक्लोराईड 3 G दाने डाले|
  • बीटल को इकट्ठा करके नष्ट करें|
  • साईपरमेथ्रिन (25 र्इ.सी.) 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी + डायमिथोएट 30% ईसी. 2  मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिडकाव करें। या कार्बारिल 50% WP 3 ग्राम प्रति ली पानी की दर से घोल बना दो छिड़काव करें। पहला छिडकाव रोपण के 15 दिन व दूसरा इसके 7 दिन बाद करें|

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Irrigation in Bitter Gourd

करेले में सिंचाई प्रबंधन:-

  • करेले की फसल सूखे एवं अत्यधिक पानी वाले क्षेत्रों के प्रति सहनशील नहीं होती है|
  • रोपण या बुवाई के तुरन्त बाद सिंचाई करनी चाहिये फिर तीसरे दिन एवं उसके बाद सप्ताह में एक बार भूमि में नमी के अनुसार सिंचाई करनी चाहिये|
  • भूमि की उपरी सतह (50 सेमी.तक) नमी बनाए रखना चाहिये| इस क्षेत्र में जड़ें अधिक संख्या मने होती है|

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Staking and trellising in Bitter gourd

करेला में सहारा देना

  • करेला अत्यधिक तेजी से बढ़ने वाली फसल है बीज की बुआई के दो सप्ताह बाद लताये तेजी से बढ़ने लगती है|
  • जालीदार मंडप की सहायता से करेले के फलों के आकार एवं उपज में वृद्धि होती है, साथ ही फलों में सडन कम होती है, और फलों की तुड़ाई एवं कीटनाशकों का छिड़काव आसानी से किया जा सकता है|
  • मंडप 1.2- 1.8 मीटर ऊँचाई के होने चाहिए|

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Time of Sowing of Bitter Gourd

करेला लगाने का समय :-

  • गर्मी मौसम की फसल के लिए बीज की बुवाई जनवरी-फरवरी माह में करनी चाहिये|
  • खरीफ मौसम की फसल के बीज की बुवाई मई-जून माह में करनी चाहिये |
  • रबी मौसम की फसल के बीज की बुवाई सितंबर-अक्टूबर में करनी चाहिये |

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Control of Fruit fly in Bitter Gourd

पहचान:-

  • अंडे 1.0 से 1.5 मिमी., लम्बे, बेलनाकार आकार के सफ़ेद के रंग एवं किनारे पर पतले होते है|
  • पूर्ण विकसित लार्वा 5 से 10 मिमी. लम्बे, बेलनाकार सामने की तरफ पतले, एवं पीछे का हिस्सा भोथरा एवं सफ़ेद रंग का होता है|
  • प्यूपा 5 से 8 सेमी. लंबा. नलीनुमा आकार का एवं भूरे रंग लिए हुए होता है|
  • वयस्क मक्खी का शरीर लाल भूरे रंग का, पंख पारदर्शक एवं चमकदार जिन पर पीले भूरे रंग की धारियां होती है|
  • वयस्क मक्खी 4 से 5 मिमी. लम्बी होती है| वयस्क मादा मक्खी अपने पंखो को 14 से 16 मिमी. एवं नर मक्खी अपने पंखों को 11 से 13 मिमी. तक फैला सकती है|

हानि:-

  • मेगट (लार्वा) फलों में छेद करने के बाद उनका रस चूसते है|
  • इनसें ग्रसित फल खराब होकर गिर जाते है|
  • मक्खी प्राय: कोमल फलों पर अंडे देती है|
  • मक्खी अपने अंडे देने वाले भाग से फलों में छेद करके उन्है हानि पहुचाती है| इन छेदों से फलों का रस निकलता हुआ दिखाई देता है|
  • अन्तत: छेद ग्रसित फल सड़ने लगते है|
  • मेगट फलों में छेद कर गुदा एवं मुलायम बीजों को खाते है, जिसके कारण फल परिपक्व होने के पहले ही गिर जाते है|

नियंत्रण:-

  • ग्रसित फलों को इकटठा करके नष्ट कर देना चाहिए|
  • अंडे देने वाली मक्खी की रोथाम के लिए खेत में फेरोमेन ट्रेप लगाना चाहिये, इस फेरोमेन ट्रेप में मक्खी को मारने के लिए 1% मिथाईल इजीनोल या सिंत्रोनेला तेल या एसीटिक अम्ल या लेक्टिक अम्ल का घोल बनाकर रखा जाता है|
  • परागण की क्रिया के तुरंत बाद तैयार होने वाले फलों को पोलीथीन या पेपर से ढक देना चाहिए|
  • इन मक्खियों को नियंत्रण करने के लिए करेले के खेत में कतारों के बीच में मक्के के पौधों को लगाना चाहिए, इन पौधों की उचाई ज्यादा होने से मक्खी पत्तो के नीचे अंडे देती है|
  • जिन क्षेत्रों में फल माखी का प्रकोप ज्यादा देखा जाता है, वहां पर कार्बारिल 10% चूर्ण खेत में मिलाये|
  • डायक्लोरोवास कीटनाशक का 3 मिली. प्रति ली. पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें|
  • गर्मी के दिनों में गहरी जुताई करके भूमि के अन्दर की मक्खी की सुप्तावस्था को नष्ट करना चाहिए|

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