- ह्यूमिक एसिड खदान से उत्पन्न एक बहुपयोगी खनिज है. इसे सामान्य भाषा में मिट्टी का कंडीशनर कहा जा सकता है. जोकि बंजर भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है तथा मिट्टी की संरचना को सुधार कर एक नया जीवन दान देता है।
- इसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य मिट्टी को भुरभुरा बनाना है जिससे जड़ों का विकास अधिक हो सके।
- ये प्रकाश संलेषण की क्रिया को तेज करता है जिससे पौधे में हरापन आता है और शाखाओं में वृद्धि होती है।
- यह पौधों की तृतीयक जडों का विकास करता है जिससे की मिट्टी से पोषक तत्वों का अवशोषण अधिक होता है।
- पौधों की चयापचयी क्रियाओं में वृद्धि कर मृदा की उर्वरा शक्ति को भी यह बढाता है।
- पौधों में फलों और फूलों की वृद्धि कर फसल की उपज को बढ़ाने में भी यह सहायक होता है।
- यह बीज की अंकुरण क्षमता बढाता है तथा पौधों को प्रतिकूल वातावरण से भी बचाता है।
पीएम मोदी ने की मध्यप्रदेश की तारीफ, कहा ‘गेहूं के बाद ऊर्जा क्षेत्र में भी बनाएगा रिकॉर्ड’
शुक्रवार, 10 जुलाई के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एशिया के सबसे बड़े सोलर प्लांट का उद्घाटन किया। इस प्लांट का निर्माण मध्यप्रदेश के रीवा में किया गया है। पीएम ने इस प्लांट की शुरुआत वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से की। इस दौरान पीएम मोदी ने मध्यप्रदेश के लोगों और किसानों की खूब तारीफ की।
पीएम ने अपने सम्बोधन में कहा कि “इस प्लांट लाभ मध्य प्रदेश के गरीब, मध्यम वर्गीय लोगों, किसान और आदिवासियों को होगा।” पीएम मोदी ने आगे कहा की “कोरोना संकट के दौरान मध्य प्रदेश के किसानों ने रिकॉर्ड तोड़ फसल उत्पादन किया और सरकार ने उसे खरीदा, जल्द ही मध्य प्रदेश के किसान बिजली पैदा करने का रिकॉर्ड भी तोड़ देंगे।”
गौरतलब है की मध्यप्रदेश के किसानों ने गेंहू उपार्जन में देश के अन्य सभी राज्यों को पछाड़ कर रिकॉर्ड बनाया है। इसी का जिक्र पीएम ने अपने भाषण में किया। इसके साथ ही उन्होंने कहा की “सोलर प्लांट से जुड़े सामान को भारत में बनाया जाएगा। आत्मनिर्भर भारत के तहत आयात पर इनकी निर्भरता कम की जायेगी और यहां पर इसके उत्पादन को बढ़ावा दिया जाएगा।”
स्रोत: प्रदेश टुडे
Shareफ़सलों में मायकोराइज़ा का महत्व
- किसी भी कवक तथा पौधों की जड़ों के बीच एक परस्पर सहजीवी संबंध को माइको राइडर कहते हैं। इस प्रकार के संबंध में कवक पौधों की जड़ पर आश्रित हो जाता है और मृदा-जीवन का एक महत्वपूर्ण घटक बन जाता है।
- अच्छी फसल के लिए माइकोराइजा एक अहम रोल अदा करता है। माइकोराइजा कवक और पौधों की जड़ों के बीच का एक संबंध होता है।
- माइकोराइजा मिट्टी से पौधों के विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व जैसे फास्फोरस, नाइट्रोजन और छोटे पोषक तत्व को ग्रहण करने में मदद करता है
- फ़सलों की पैदावार बढ़ाने में यह एक अहम भूमिका निभाता है। माइकोराइजा पौधों के द्वारा अंत: प्रक्रिया को बढ़ा देता है। सूखे जैसी परिस्थितियों में यह पौधों को हरा भरा रखने में मदद करता है।
- माइकोराइजा का काम फास्फोरस की उपलब्धता को 60-80% तक बढ़ाना है।
- माइकोराइजा के उपयोग से जड़ों का बेहतर विकास होता है।
- माइकोराइजा से पौधों मे जड़ों द्वारा पोषक तत्वों का बेहतर अवशोषण होता है तथा पौधों के आसपास नमी बनाए रखने मे भी यह सहायक होता है।
- माइकोराइजा फ़सलों को मिट्टी जनित रोगाणुओं से भी बचा कर रखता है।
अदरक की फसल में 20 से 30 दिनों बाद उर्वरक प्रबंधन
- जिस प्रकार अदरक की बुआई के समय उर्वरक प्रबंधन आवश्यक होता है ठीक उसी प्रकार बुआई के 20 से 30 दिनों बाद भी उर्वरक प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।
- यह प्रबंधन अदरक की फसल की अच्छी बढ़वार एवं रोगों के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए किया जाता है।
- इस समय अदरक की फसल की गाठे जमींन में फैलती हैं और इसी दौरान गाठों की अच्छी बढ़वार की लिए उर्वरक प्रबंधन बहुत आवश्यक है।
- इस समय उर्वरक प्रबंधन के लिए MOP @ 30 किलो/एकड़ SSP @ 50 किलो/एकड़, जिंक सल्फेट @ 5 किलो/एकड़ या NPK का कॉन्सोर्टिया 3 किलो/एकड़, ज़िंक बेक्टेरिया @ 4 किलो/एकड़ मायकोराइज़ा @ 4 किलो/एकड़ की दर से खेत में भुरकाव करें।
- इस बात का भी ध्यान रखें की उर्वरको के उपयोग के समय खेत में नमी जरूर हो।
सोयाबीन की फसल में एन्थ्रेक्नोज का प्रबंधन
- सोयाबीन की फसल में एन्थ्रेक्नोज के लक्षण सबसे पहले प्रजनन वृद्धि चरणों के दौरान देखे जाते हैं।
- पत्ते या फली पर इसके लक्षण आमतौर पर गहरे, अनियमित घावों के रूप में दिखाई देते हैं।
- जब फली संक्रमित होती है, तो कवक पूरी तरह से फली में भर सकता है और कोई बीज पैदा नहीं होता है, या कम, छोटे बीज बन सकते हैं।
- इसके नियंत्रण के लिए टेबुकोनाजोल 10% + सल्फर 65% WG@ 500 ग्राम/एकड़ या
- कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ब 63% WP@ 300 ग्राम /एकड़ या
- थियोफैनेट मिथाइल 70% WP@ 300 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
सोयाबीन की फसल में 20 से 30 दिनों की अवस्था में छिड़काव प्रबंधन
- सोयाबीन की फसल की बढ़वार, पुष्प और फली विकास तथा अन्य अवस्थाओं में भिन्न-भिन्न किस्म के कीट खास तौर पर गर्डल बीटल, ब्लू बीटल आदि एवं कई प्रकार की बीमारियाँ भी सक्रिय रहते हैं।
- इन कीटों एवं बीमारियों के नियंत्रण लिए बुआई के बाद 20 से 30 दिनों में छिड़काव प्रबंधन करना बहुत आवश्यक है। इसके लिए निम्न छिड़काव किये जा सकते हैं।
- लैंबडा-साइफलोथ्रिन 4.9% CS@ 200 मिली/एकड़ या प्रोफेनोफॉस 50% SC@500 मिली/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ब 63% WP@300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- बेवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ का छिड़काव कीट के प्रकोप को खत्म करने के लिए आवश्यक है।
- सीवीड 400 मिली/एकड़ या एमिनो एसिड @ 300 मिली/एकड़ या G A 0.001% @ 300 मिली/एकड़ का छिड़काव फसल के अच्छे विकास के लिए करना बहुत आवश्यक है।
- छिड़काव के 24 घंटे के अंदर वर्षा हो जाये तो पुनः छिड़काव करें।
- पत्तियों की निचली सतह पर पूरी तरह से छिड़काव किया जाना चाहिए क्योंकि कीट इसी सतह पर रहते हैं।
- एक ही कीटनाशक रसायन का छिड़काव पुनः दोहराया नहीं जाना चाहिए।
कृषि अवसंरचना कोष के लिए सरकार देगी एक लाख करोड़ रुपये, ग्रामीण किसानों को होगा लाभ
केंद्र सरकार की तरफ से कृषि अवसंरचना कोष के निर्माण के लिए एक लाख करोड़ रुपये की मंजूरी दे दी गई है। इस कोष की मदद से कृषि क्षेत्र में बुनियादी संरचना के विकास हेतु सस्ते दर पर ऋण दिए जाएंगे और इससे सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में निजी निवेश को बल मिलेगा साथ ही साथ नए नए रोज़गार के अवसर भी बनेंगे।
इस विषय पर हुई केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक की अध्यक्षता करते हुए पीएम मोदी ने इस बारे में निर्णय लिए। बता दें की कृषि अवसंरचना कोष पीएम के 20 लाख करोड़ रुपये के उसी आर्थिक प्रोत्साहन पैकज का एक भाग है जिसकी घोषणा उन्होंने कुछ दिन पहले राष्ट्र को संबोधित करते हुए की थी।
इस बैठक में हुए निर्णयों की जानकारी देते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने बताया, ‘‘यह एक ऐतिहासिक निर्णय है। इससे कृषि क्षेत्र को और बढ़ावा मिलेगा।’’ उन्होंने आगे कहा कि ‘‘ग्रामीण इलाकों में निजी निवेश प्रोत्साहित करने के लिये एक लाख करोड़ रुपये का कृषि बुनियादी संरचना कोष माध्यम का काम करेगा।मंत्रिमंडल ने इसे मंजूरी दी है। यह कृषि क्षेत्र को बदलने में मदद करेगा।’’
स्रोत: नवभारत टाइम्स
Shareमक्का की फसल में बोरर का प्रबंधन
- मक्का की फसल में बहुत अधिक मात्रा में कीटों एवं इल्लियों का प्रकोप होता है।
- ये कीट और इल्ली मक्का की फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुँचाते हैं।
- इन बोरर के अंतर्गत गुलाबी तना इल्ली, तना मक्खी, कट वर्म, ईयर हेड बग, सैनिक कीट आदि आते हैं।
- ये कीट मक्का की फसल को फल फूल वृद्धि तीनों अवस्था में बहुत अधिक नुकसान पहुँचाते हैं।
- इन कीटों के निवारण के लिए साइंट्रानिलिप्रोएल 19.8% + थियामेथोक्साम 19.8% FS @ 6 मिली/किलो बीज की दर से बीज उपचार करें।
- फ्लूबेनडामाईड 20% WG @ 100 ग्राम/एकड़ या क्लोरेंट्रानिलिप्रोएल 9.3% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 4.6% ZC @ 100 मिली/एकड़ या थियामेथोक्सम 12.6% + लैंबडा साइहलोथ्रिन 9.5% ZC@ 80 ग्राम/एकड़ या फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोरोप्रिड 40% WG @ 40 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
मक्का की फसल में एफिड एवं ईयर हेड बग का प्रबंधन
- ईयर हेड बग का निम्फ और वयस्क रूप अनाज के भीतर से रस चूसते हैं। जिसके कारण दाने सिकुड़ जाते हैं और काले रंग में बदल जाते हैं।
- एफिड एक छोटा कीट है जो पौधों से रस चूसकर पौधे को नुकसान पहुँचाता है और बड़ी संख्या में पत्तों के नीचे रहकर पौधों को व्यापक नुकसान पहुँचाता है।
- इसके नियंत्रण के लिए निम्र उत्पादों का उपयोग कर सकते हैं।
- प्रोफेनोफॉस 50% EC@ 500 मिली/एकड़ या एसिटामिप्रिड 20% SP @100 ग्राम/एकड़ या एसीफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% SP@ 400 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।
मध्य प्रदेश के किसानों को अगले तीन साल में सब्सिडी पर दिए जाएंगे 2 लाख सोलर पंप
बिजली के वैकल्पिक स्रोत को सरकार खूब बढ़ावा दे रही है। इसी कड़ी में किसानों को बिजली के लिए सौर उर्जा का इस्तेमाल करने हेतु कुसुम योजना की शुरुआत की गई है। इसके साथ साथ राज्य सरकार सब्सिडी पर सोलर पंप मुहैया करवाने सम्बन्धी योजनाओं को भी शुरू कर रही है।
बात मध्य प्रदेश की करें तो यहाँ आने वाले तीन सालों में 2 लाख सोलर पंप किसानों को देने का लक्ष्य रखा गया है। ग़ौरतलब है की सोलर पंप लगाए जाने से राज्य के किसान भाइयों को बेहतर सिंचाई का लाभ मिलेगा। प्रदेश के किसानों की सोलर पंप लगाने के लिए प्रोत्साहित भी किया जा रहा है। राज्य में मुख्यमंत्री सोलर पंप योजना के अंतर्गत किसानों के लिए वर्तमान समय तक 14 हजार 250 सोलर पंप लगाए भी जा चुके हैं। आने वाले समय में यह संख्या और ज्यादा बढ़ेगी और 2 लाख सोलर पंप स्थापित किये जाएंगे।
स्रोत: किसान समाधान
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